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उत्तराखण्ड के जिलों में होने वाले प्रमुख मेले | Uttarakhand ke jilon mein hone wale pramukh mele

उत्तराखण्ड के जिलों में होने वाले प्रमुख मेले | Uttarakhand ke jilon mein hone wale pramukh mele अल्मोड़ा – बिनाथेश्वर मेला , जागेश्वर का श्रावणी मेला , सोमेश्वर मेला , नन्दादेवी मेला , स्याल्दे बिखौती मेला , गणनाथ मेला , जैंती मेला , भनोली मेला , गिर का कौथिग मेला , बापू खगोल मेला । बागेश्वर – उत्तरायणी मेला , नागनाथ मेला , वैद्यनाथ मेला , सनीगाड़ , गंगा दशहरा , बागेश्वर उत्तरायणी , नागेश्वर , शिखर भनार , धौली नाल , वासुकी नाल , नागपुरी उत्सव कोट भ्रामरी उत्सव , सनेती मेला । नैनीताल – नन्दा देवी मेला (अल्मोड़ा + नैनीताल) , शीलावती मेला नैनीताल , चित्रशिला मेला , हरियाली मेला , फूल सग्यान , लुखाम उत्सव , सीवनी उत्सव , नागो उत्सव , नन्दा अष्टमी , जिया रानी का मेला रानी बाग , जौ सग्यान , उत्तरायणी । पिथौरागढ़ – जौलजीवी मेला , थल मेला , गबला देव मेला , छलिया मेला , मोस्टामानू मेला , गंगावली महोत्सव , रामेश्वर मेला , बेरीनाग मेला , पुष्कर नाग , हाटकाली का उत्सव , गढ़मेश्वर उत्सव , थल केदार उत्सव , जुमली महोत्सव , कण्डाली मिर्थी उत्सव , छुरमल पुजाई महोत्सव , थल का मेला , होलग्या मेला , हिरण

उत्तराखंड राज्य का गठन ( Formation of Uttarakhand)

उत्तराखंड राज्य का गठन ( Formation of Uttarakhand) उत्तराखंड राज्य को उत्तरप्रदेश के 13 हिमालयी जिलों को काटकर इसका गठन किया गया था। उत्तराखंड राज्य का गठन 9 नवंबर 2000 को किया गया था। यह देश में गठित होने वाला 27 वां राज्य था। हिमालयी राज्यों के क्रम में गठित होने वाला यह देश का 11 वां राज्य है। वर्तमान में यह 10वां हिमालयी राज्य है। क्योंकि वर्तमान में जम्मू-कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश है। उत्तरांचल राज्य विधेयक लोकसभा में 1 अगस्त 2000 को पारित हुआ था। उत्तरांचल विधेयक राज्यसभा में 10 अगस्त 2000 को पारित हुआ था। उत्तरांचल विधेयक पर राष्ट्रपति के आर नारायण द्वारा 28 अगस्त 2000 हस्ताक्षर किए गए थे। राज्य गठन के बाद राज्य को सरकारी गजट संख्या 28 में रखा गया था। राजधानी – देहरादून (अस्थायी) बनाई गई थी। ग्रीष्मकालीन राजधानी –गैरसैंण (4 मार्च 2020 को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत द्वारा घोषित घोषणा 20 जून को स्वीकृत किया गया था।) उत्तराखंड दो राजधानी वाला उत्तराखंड देश का पांचवा राज्य है। राज्य का नाम 31 दिसंबर 2006 तक उत्तरांचल रहा और फिर 1 जनवरी 2007 से इसका नाम उत्तराखंड कर किया गया था।

भैरवगढ़ी /bhairavgarhi uttarakhand

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🔱भैरवगढ़ी🔱 यूं तो भगवान शिव को कई नामों से पुकारा जाता है। लेकिन उनके 15 अवतारों में एक नाम भैरवगढ़ी का आता है। ये मंदिर देवभूमि उत्तराखंड में स्थित है। भैरवगढ़ी लैंसडाउन से लगभग 17 किमी की दूरी पर कीर्तिखाल की पहाड़ी पर मौजूद है। यहां कालनाथ भैरव की पूजा नियमित रूप से की जाती है। कीर्तिखाल पहाड़ी पर स्थित कालनाथ भैरव को सभी चीजें काली पंसद होती है और उन्हीं की पंसद पर कालनाथ भैरव के लिए मंडवे के आटे का प्रसाद बनाया जाता है। मंडवे के आटे से बने इस प्रसाद को रोट कहते हैं। भैरवगढ़ी को गढ़वाल मंडल का रक्षक माना जाता है। भैरव के साधक और पुजारी आज भी भैरवगढ़ी चोटी पर जाकर सिद्धि प्राप्त करते हैं। कहा जाता है कि यहां आकर हर किसी की मुराद पूरी होती है। अगर मुराद पूरी हो जाए, तो यहां श्रद्धालु चांदी का छत्र चढ़ाते हैं। भैरव महिमा से प्रभावित होकर गोरखों ने चढ़ाया ताम्रपत्र गढ़ों की मान्यता को अगर देखा जाए तो गढ़वाल में एक गढ़ भैरवगढ़ भी है. जिसका वास्तविक नाम लंगूरगढ़ है। लांगूल पर्वत पर मौजूद होने के कारण इसका नाम लंगूरगढ़ पड़ा. सन् 1791 तक लंगूरगढ़ को बहुत शक्तिशाली माना जाता था। इस जगह को