शिव महिमा!!!!

शिव महिमा!!!!

महाभारत के महासमर में गाण्डीवधारी अर्जुन कौरवों का संहार कर रहे थे। जिधर श्रीकृष्ण रथ को घुमाते थे, उधर अर्जुन के बाणों से बड़े-बड़े महारथी तथा विशाल सेना मारी जाती थी। द्रोणाचार्य की मृत्यु के पश्चात् कौरव सेना भाग खड़ी हुई। इसी बीच अचानक महर्षि वेदव्यासजी स्वेच्छा से घूमते हुए अर्जुन के पास आ गये। उन्हें देखकर जिज्ञासावश अर्जुन ने उनसे पूछा- 'महर्षे ! जब मैं अपने बाणों से शत्रुसेना का संहार कर रहा था, उस समय मैंने देखा कि एक तेजस्वी महापुरुष हाथ में त्रिशूल लिये हमारे रथ के आगे-आगे चल रहे थे। सूर्य के समान तेजस्वी उन महापुरुष का पैर जमीन पर नहीं पड़ता था। त्रिशूल का प्रहार करते हुए भी वे उसे हाथ से कभी नहीं छोड़ते थे। उनके तेज से उस एक ही त्रिशूल से हजारों नये-नये त्रिशूल प्रकट होकर शत्रुओं पर गिरते थे। उन्होंने ही समस्त शत्रुओं को मार भगाया है। किंतु लोग समझते हैं कि मैंने ही उन्हें मारा और भगाया है। भगवन्! मुझे बताइये, वै महापुरुष कौन थे?'

 
           कमण्डलु और माला धारण किये हुए महर्षि वेदव्यास ने शान्तभाव से उत्तर दिया- 'वीरवर! प्रजापतियों में प्रथम, तेज:स्वरूप, अन्तर्यामी तथा सर्वसमर्थ भगवान् शंकर के अतिरिक्त उस रोमांचकारी घोर संग्राम में अश्वत्थामा, कर्ण और कृपाचार्य आदि के रहते हुए कौरव सेना का विनाश दूसरा कौन कर सकता था ! तुमने उन्हीं भुवनेश्वर का दर्शन किया है। उनके मस्तक पर जटाजूट तथा शरीर पर वल्कल वस्त्र शोभा देता है। भगवान् भव भयानक होकर भी चन्द्रमा को मुकुट रूप से धारण करते हैं। साक्षात् भगवान् शंकर ही वे तेजस्वी महापुरुष हैं. जो कृपा करके तुम्हारे आगे- आगे चला करते हैं।'
           एक बार ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त करके तीन असुर-तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली आकाश में विमान के रूप में नगर बसाकर रहने लगे। घमण्ड में फूलकर ये भयंकर दैत्य तीनों लोकों को कष्ट पहुँचाने लगे। देवराज इन्द्रादि उनका नाश करने में सफल न हो पाये। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान् शंकर ने उन तीनों पुरों को भस्म कर दिया। वीरवर अर्जुन ! उनका भोलापन सुनो- 'जिस समय दैत्यों के नगरों को महादेवजी भस्म कर रहे थे, उस समय पार्वतीजी भी कौतूहलवश देखने के लिये वहाँ आयीं। उनकी गोद में एक बालक था। वे देवताओं से पूछने लगीं- 'पहचानो , ये कौन हैं ?' इस प्रश्न से इन्द्र के हृदय में असूया की आग जल उठी और उन्होंने जैसे ही उस बालक पर वज्र का प्रहार करना चाहा, तत्क्षण उस बालक ने हँसकर उन्हें स्तम्भित कर दिया। उनकी वज्र सहित उठी हुई बाँह ज्यों-की-त्यों रह गयी। अब क्या था, बाँह उसी तरह ऊपर उठाये हुए इन्द्र दौड़ने लगे। महान् कष्ट से पीड़ित होकर वे ब्रह्माजी की शरण में गये। ब्रह्माजी को दया आ गयी। वे इन्द्र को लेकर शंकरजी के पास पहुँचे। ब्रह्माजी शंकरजी को प्रणाम करके बोले- 'भगवन्! आप ही विश्व का सहारा तथा सबको शरण देने वाले हैं। भूत और भविष्य के स्वामी जगदीश्वर! ये इन्द्र आपके क्रोध से पीड़ित हैं, इन पर कृपा कीजिये।
           सर्वात्मा महेश्वर प्रसन्न हो गये। देवताओं पर कृपा करने के लिये ठठाकर हँस पड़े। सबने जान लिया कि पार्वतीजी की गोद में चराचर जगत् के स्वामी भगवान् शंकरजी ही थे। वे सभी मनुष्यों का कल्याण चाहते हैं, इसलिये उन्हें शिव कहते हैं। वेद, वेदांग, पुराण तथा अध्यात्मशास्त्रों में जो परम रहस्य है, वह भगवान् महेश्वर ही हैं। अर्जुन ! यह है महादेवजी की महिमा!

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटन स्थल (Major tourist places in Uttarakhand)

उत्तराखण्ड: एक नया राज्य, एक नई शुरुआत - Uttarakhand: A New State, A New Beginning

उत्तराखंड राज्य में स्थित राष्ट्रीय उद्यान (National park located in the state of Uttarakhand)

गब्बर सिंह नेगी, इनकी बहादुरी को आज भी याद (Gabbar Singh Negi still remembers his bravery )

श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं - shree ganesh chaturthi ki hardik shubhkamnayen

वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली कौन थे ? /Who was Veer Chandra Singh Garhwali?

उत्तराखंड में कृषि सिंचाई एवं पशुपालन(Agriculture Irrigation and Animal Husbandry in Uttarakhand) uttaraakhand mein krshi sinchaee evan pashupaalan