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अक्तूबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बिनसर महादेव मंदिर रानीखेत उत्तराखंड नमः शिवाय

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बिनसर महादेव मंदिर रानीखेत उत्तराखंड   नमः शिवाय   देवदार के वृक्षों से घिरा शिव को समर्पित बिनसर महादेव मंदिर रानीखेत उत्तराखंड    1. बिनसर महादेव मंदिर रानीखेत से 15 किमी दूर,  समुद्र स्तर से 2480 मीटर की ऊंचाई, पर हरे-भरे देवदार के जंगलों के बीच स्थित  है। 2. मान्यता है कि  इस मंदिर का निर्माण 10 वीं सदी में  सिर्फ एक दिन में पूर्ण किया गया था। 3. महिलाएं 'वैकुंठ चतुर्दशी' पर  यहां  अपनी हथेली पर  जलता हुआ चिराग रख कर बच्चे के लिए प्रार्थना करती हैं। 4. महेशमर्दिनी, हर गौरी और गणेश के रूप में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों के साथ निहित, इस मंदिर की वास्तुकला शानदार है। 5. यह मंदिर बिंदेश्वर मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, जिसका निर्माण राजा पिथू ने अपने पिता की स्मृति में कराया था। पिता का नाम बिंदु था।

नवरात्रि गढ़वाली भजन मां दुर्गा अपने भक्तों पर किस तरह कृपा करती इस वीडियो में दर्शाया गया है

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Jai Durga Maa | Saurav Maithani | Garhwali Bhajan |Navratri Special | New Uttrakhandi Song | Bhajan Saurav Maithani | Maa Uncha Pahadu Ma - माँ ऊँचा पहाड़ो मा HD Video Garhwali Latest  Bhajan 2019

गाना मेरी तरफ़ से बेटी ब्वारी फ़िल्म का #पैली_यानू_त_कबी_नि_ह्ववे_कबी_नि_ह्ववे

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 गाना मेरी तरफ़ से बेटी ब्वारी फ़िल्म का  पैली यानू त कबी नि ह्ववे कबी नि ह्ववे अब ह्ववे त क्यान ह्ववे क्यान ह्ववे.. मन अपडा बस मा नि राई, क्वि ऊपरी मन बसी ग्याई.. हो….ओ.. तन मा क्यफ़णि सी क्यफ़णि झणि क्यँन हूंद मन मा कुतगली सी कुतगाली से झणि कु लगांद कुछ ह्ववे गे मी थे, कुछ ह्ववे गे मी थे ह्वाई क्याच…ह्वाई क्याच समझ मा नि आई…. मन आपदा बस मा नि राई.. ….हो. हो हो.. मन आपदा बस मा नि राई तेरी जीकुड़ी धक धक धक धक़दीयाट के कु कनि न…….. तेरी आंखि रक रक रक रक्रियट केन कनि न बैध बुला ज़रा, दारू दवे करा.. सदनी कु….सदनी कु रोग लगी ग्याई.. मन आपडा बस मा नि राई….हो. हो हो.. मन आपदा बस मा नि राई. मन मा बनबनी का बनबनी का फूल खिलिया न… सुपीन्या बन बनी का बन बनी का रंगों मा रंगीया न.. सुपीन्यो का रंग मा मायादार संग मा.. धरती-आ.. धरती आकाश रंगी ग्याई … मन आप डा बस मा नि राई.. हो हो…. पैली यानू त कबी नि ह्ववे कबी नि ह्ववे अब ह्ववे त क्यान ह्ववे क्यान ह्ववे मन अपडा बस मा नि राई, क्वि ऊपरी मन बसी ग्याई.. हो….ओ..

जमीन पर सूखी घास के पुओं(गट्ठर) को समेटकर बनाया जाता है वो 'कुस्योल' 'खुमा' 'लुट को पुलकुंड, थुव्वा' बोल जाता है

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 उत्तराखंड में सूखी घास और पुवाल का ढेर (थपुड़)। विधिवत बना ढेर लुट कहलाता है #लुट। #थुपुड़ कोई भी लगा सकता है, #लुट लगाना एक कला है। ज़मीन पर ऐसे कि पानी से न सड़े। पेड़ पर हो तो तेज हवा से न बिखरे। #गढ़वाल में लुट को पुलकुंड, थुव्वा कहा जाता है। मैदानों में माचा, बोऊ सुना है। जो जमीन पर सूखी घास के पुओं(गट्ठर) को समेटकर बनाया जाता है वो 'कुस्योल' कहलाता है और जो पेड़ों पर पराल(धान का तना), नऊ (तना - मड़ू, झूंगर आदि) को एकत्रित/व्यवस्थित करने बनाया जाता है 'लुट' कहलाता है। मध्य उत्तरप्रदेश से बिहार के सीमा तक इसे "खरही" और कहीं खरहा भी कहते है|  मैदानी इलाकों में इसे कूप या कुर्री कहा जाता है। यह फूंस से बनी दृढ़ बेलनाकार संरचना के ऊपर शंक्वाकार रचना होती है जो इस के भीतर भरे गए भूसे की तेज हवा और वर्षा से सुरक्षा करती है। दक्षिणीपूर्वी नेपालकी तराईके लोग सालभरके चारेके लिए पुवाल (पुवार) की बनाईहुई ढेरको “टाल” कहते हैं। “पुवारके टालमें साँप घुस्कल रहै।” या फिर “पुवालेर टालखानत साँप घुस्काल छिल्गी।”

उत्तराखंड की बाईस भाई ऐड़ी राजाओं की लोकगाथा

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 #बाईस #भाई #ऐड़ी #राजाओं_की_लोकगाथा (लेखक: अमित नाथ) ऐड़़ी राजा के बारे में कहा जाता है की वे धनुर्विद्या में महारत प्राप्त थे तथा उनका धनुष सौ मन और बाण अस्सी मन के होते थे। धनुष की कमान छह मुट्ठी और डोर नौ मुट्ठी की होती थी, उनके धनुष से छूटे बाण बाईस प्रकार की व्याधियों का निवारण करने में सक्षम थे।  इन बाणों के नाम भी इनके उद्देश्य को प्रकट करते थे, जैसे लूला बाण, लंगड़ा बाण, खाना बाण, चिड़कना बाण, हौलपट बाण, धूलपट बाण, तात (गरम) बाण, स्यला(शीतल) बाण, आदि।  ऐड़ी राजाओं की राजधानी चौदह लाख डोटी थी और उनके राजमहल में प्रतिदिन बाइस बीसी डोटियालों की बारह कचहरियां लगती थी।  ये राजा, जानकार को दस पैसे का और अनजान को पांच पैसे का दण्ड  देते थे, लेकिन कोई भी अपराधी दंड से अछूता न था। ऐड़ी राजा अपने शासन में कमजोर गरीब को भूखा नहीं छोड़ते थे व मजबूत अमीर को अकड़ में नहीं रहने देते थे।  केसिया डोटियाल जो ऐड़ी राजकुल का पुरोहित था, अपने ही यजमान राजाओं की ख्याति और ठाट-बाट से ईर्ष्या करने लगा था।  केसिया बामण अब मन-ही-मन सोचने लगा था कि कैसे ही ऐड़ी राजा से मुक्ति मिल जाती तो मैं अपना राज चलाता।  ए

कुछ यादे पहाड़ी अपने नियत समय में फल पककर तैयार हो ही जाता

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#ककड़ी का जीवन #चौमासे भर तक ही सही एक छाप छोड़ जाती #सुखमय और #संतुष्ट जीवन की, #अनूभूति देखे #फूलचरया" लगने की, तबज्जो देखें पहले पहल के #ककड़ी की जिसे पत्तों से छुपा दिया जाता, परिपक्व ककड़ी का कहना ही क्या पहाडी रायते का कोई तोड नहीं, राई के दानों की मसालों से बनी रायते का कोई जोड़ नहीं, बिदाई और भी कष्टप्रद होती ककडी की जब  #झाल"में ढूंढ़े से एक कहीं मिल जाता जो मोती से भी अनमोल सुहाता  #मोल तो कोई नहीं पर #अहमियत बहुत #पहाड़ी_फल मेव की, जहा सेब #नाशपाती की "चौल" हो वहां अपने वर्चस्व को पहाड़  मे कायम रखें है मेव, कोई अवसाद नहीं कोई मलाल नही उनकी बेरूखी पर,कोई तबज्जो न भी दे तो क्या #पक्षियों का पेट तो भर ही जाता है, अपने नियत समय में फल पककर तैयार हो ही जाता 

Narendra Singh Negi Ji has shown many things of Uttarakhand in the song here, after listening to the song here, you will feel like you are going to see Uttarakhand and see the devils and the grace of Goddesses.

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  नरेंद्र सिंह नेगी जी ने यहां गीत में उत्तराखंड के कई सारी चीजों को दर्शाया है यहां गीत सुनकर आपको ऐसा लगेगा आप उत्तराखंड के दर्शन कर रहे होंगे टेढ़े मेढ़े रास्ते देवी देवताओं के दर्शन और उनकी कृपा किस तरह बनी रहती है   # नरेंद्र_सिंह_नेगी जी ने यहां गीत में उत्तराखंड के कई सारी चीजों को दर्शाया है यहां गीत सुनकर आपको ऐसा लगेगा आप उत्तराखंड के दर्शन कर रहे होंगे टेढ़े मेढ़े रास्ते देवी देवताओं के दर्शन और उनकी कृपा किस तरह बनी रहती है  नरेंद्र सिंह नेगी जी ने इस  गीत में उत्तराखंड के रिश्ते और फल फूल गौशाला के बारे में बताया   हमारा यहां आर्टिकल पढ़ने का आप का बहुत-बहुत धन्यवाद अच्छा लगे तो सोशल मीडिया पर और अपने व्हाट्सएप ग्रुप अवश्य शेयर करें और आपके पास भी उत्तराखंड की कोई कहानी है कविता है उत्तराखंड के रीति रिवाज फोटो इतिहास इत्यादि ऐसी कुछ भी हो तो हमें अवश्य भेजें न उकाल न उन्दार न उकाल न उन्दार सीधू सैणु धार धार गौ कू बाटू मेरा गौ कू बाटू ऐ जाणू कभी मठु माठु मठु माठु भला लोग भलु समाज गोऊ पिठाई कू रिवाज खोली खोलियो म गणेश मोरी नारेयण बिराजे मेरा गोऊ मा देवी दय्बतो का थान धरम करम

सुखरौ निवासी बृजमोहन सिंह नेगी ने अपने घर में सौर संयंत्र लगाया हुआ

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 पौड़ी जिले में सौर ऊर्जा के प्रति लोगों में आकर्षण बढ़ा है। जिले के कई गांवों और घरों में सोलर पैनल देखे जा सकते हैं और यह आमदनी का जरिया भी बन रहा है। पोखड़ा ब्लॉक के गवानी गांव के रहने वाले जयप्रकाश ने अपने घर की छत पर सौर ऊर्जा के पैनल लगाए हैं, जिससे वे बिजली का उत्पादन कर रहे हैं। इससे उनके घर की बिजली की जरूरत पूरी हो जाती है और शेष बिजली विद्युत विभाग खरीदता है। इसी ब्लॉक के बोरगाँव में सोलर लाइटें लगने से रात के समय जंगली जानवरों का डर कम हुआ है। दुगड्डा ब्लॉक के पदमपुर सुखरौ निवासी बृजमोहन सिंह नेगी ने अपने घर में सौर संयंत्र लगाया हुआ है, जिसका इस्तेमाल वे खाना बनाने और अन्य कार्यों में करते हैं।

नरेंद्र सिंह नेगी जी का यहां गीत जब सुनते हैं तो गीत में खो जाते हैं ऐजदी भग्यानी,

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 ऐजदी भग्यानी, चिठ्युं का आखर अब ज्यू नि बेल मोंदा, बुसील्या रैबार तेरा आस नी बंधौन्दा -२ ऐजदी भग्यानी, ऐजदी भग्यानी -२ ऐजदी भग्यानी ईं ज्वानि का छौन्दा-२ ऐजदी भग्यानी ईं ज्वानि का छौन्दा-२ रांका बाल बाली काली रात नि ब्याणी, मेरी रात नि ब्याणी । रात नि ब्याणी, मेरी रात नि ब्याणी । उंसी का बुंदुन चुची तीस नि जाणी मेरी तीस नि जाणी । तीस नि जाणी मेरी तीस नि जाणी । पंद्रह पचिस्या दिन सदानि नि रौंदा -२ ऐजदी भग्यानी अर..र..र..र..र.र..र..रा.. ऐजदी भग्यानी ईं ज्वानि का छौन्दा-२ ऐजदी भग्यानी ईं ज्वानि का छौन्दा-२ रुड्युं का घामुन खैरया आंसूनी सुखदा, भगी आंसूनी सुखदा । आंसूनी सुखदा, भगी आंसूनी सुखद । जेट की बरखा न पाडु छोयां नी फ़ुटदा भगी छोरि छोयां नी फ़ुटदा । छोयां नी फ़ुटदा छोरि छोयां नी फ़ुटदा । बारमास फ़ूल खिल्यां डाल्युं मां नि रौंदा-२ ऐजदी भग्यानी छांटो रे छाटो रे छांटो छाटो.. ऐजदी भग्यानी ईं ज्वानि का छौन्दा-२ ऐजदी भग्यानी ईं ज्वानि का छौन्दा-२ आस को आसरो तेरी खुद ज्यूणो सारो, भगी खुद ज्यूणो सारो । खुद ज्यूणो सारो, भगी खुद ज्यूणो सारो । जथा हिटूं त्वे जथैईं बाटु फारु-फ़ारु, चुची बाटु फारु-फ़ारु

सुतरा की दौन्ली बल सुतरा की दौन्ली बल सुतरा की दौन्ली

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 सुतरा की दौन सुतरा की दौन्ली बल सुतरा की दौन्ली बल सुतरा की दौन्ली सुतरा की दौन्ली बल सुतरा की दौन्ली बल सुतरा की दौन्ली  मुखडी बताई दे छोरी, मुखडी बथई छोरी गोरी छै की सौन्ली गोरी छै की सौन्ली मेरा जोग जानी, मेरा जोग जानी जोग जानी, मेरा जोग जानी-२ नथुली को मुंगो बल नथुली को मुंगो बल नथुली को मुंगो नथुली को मुंगो बल नथुली को मुंगो बल नथुली को मुंगो  तू कखन आई छोरा छोंदाडा सी धुंगो, छोंदाडा सी धुंगो मेरा जोग जानी मेरा जोग जानी जोग जानी मेरा जोग जानी-२  डाली काट्या फेद बल डाली काट्या फेद बल डाली काट्या फेद डाली काट्या फेद बल डाली काट्या फेद बल डाली काट्या फेद  जाखी लायी माया मिन, जाखी लायी माया मिन तखी नाडी भेद तखी नाडी भेद मेरा जोग जानी जोग जानी मेरा जोग जानी-२  मटखानी माटू बल मटखानी माटू बल मटखानी माटू मटखानी माटू बल मटखानी माटू बल मटखानी माटू  कै बैरी न बताई त्वेयी कै बैरी न बताई त्वेयी मेरा गों कु बाठो मेरा गों कु बाठो मेरा जोग जानी जोग जानी मेरा जोग जानी-२ ch.. भण्डार को तालो बल भण्डार को तालो बल भण्डार को तालो भण्डार को तालो बल भण्डार को तालो बल भण्डार को तालो  ससे ससे मारो दिल ससे
 नेगी जी सैकडों गानों को अपनी आवाज दे चुके हैं. लेकिन उनका यह गाना अपने आप में अनूठा है. एक आदमी अपनी बिमारी का इलाज कराने डाक्टर के पास पहुंच गया है. बिमारी के लक्षण बताने के साथ ही वह यह भी बताना नहीं भूलता कि वह इसके इलाज के लिये वैद्य से लेकर देवपूजा तक सब उपाय अपना कर हार चुका है और अब डाक्टर के हाथ से ही उसका इलाज होना है. लेकिन मरीज जी चाहते हैं कि इलाज शुरु करने से पहले डाक्टर उनका मिजाज समझ ले. वो स्पष्ट रूप से बताते हैं कि चाय, तम्बाकू और मांसाहार नहीं छोड पायेंगे और दलिया वगैरा खाना उनके वश की बात नहीं है. गोलियां, कैप्सूल, इंजेक्शन और ग्लूकोज वाला इलाज भी वो नहीं करवायेंगे. उनकी पाचन शक्ति ठीक नहीं है लेकिन वो बिना खाये भी रह नहीं पाते हैं. दवाई के स्वाद बारे में उन्हें पहले से ही अहसास है कि डॉक्टर मीठी दवाई तो देगा ही नही, लेकिन डॉक्टर को वो खुले शब्दों में कहते हैं कि कड़वी दवाई वो पियेंगे ही नही.. इसके साथ ही वह बार-बार डॉक्टर से यह भी कहते रहते हैं कि मेरा इलाज अब तुम्हारे हाथों ही होना है… सामान्य आदमी के मनोविज्ञान को दर्शाने वाला यह गाना लगता तो एक व्यंग की तरह है,

रावण को मारने के बाद में भगवान श्रीराम यहां आये थे और उन्होंने इस स्थान पर आकर भगवान शिव की तपस्या की थी।

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  3680 मी ऊँचे तुगंनाथ पर्वतपरस्थित तुगंनाथ शिवमंदिर तृतीयकेदार रुद्रप्रयाग उत्तराखन्ड              तुगंनाथ मंदिर रुद्रप्रयाग उत्तराखन्ड इस मंदिर का नाम तुगंनाथ मंदिर  है। यह उत्तराखंड के रूद्र प्रयाग जिले में तुगंनाथ  नामक एक पहाड़ पर ही बना हुआ है।  3680मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह शिवालय विश्व_का_सबसे ऊंचा_शिवालय माना जाता है। पांच_केदारों में गिना जाता है नवंबर और मार्च के बीच के समय में यह मंदिर बर्फबारी के कारण बंद रहता है।  मान्यता है कि  रावण को मारने के बाद में भगवान श्रीराम यहां आये थे और उन्होंने इस स्थान पर आकर भगवान शिव की तपस्या की थी।

11 वीं शताब्दी में अल्मोड़ा में मां नंदा की स्थापना हुई थी। चंद्र वंशीय राजाओं ने माँ नंदो दवी की यहाँ स्थापना की थी

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माँ नंदा देवी मंदिर  संपूर्णचे कुमाऊं में अल्मोड़ा को सांस्कृतिक नगरी के रूप में जाना जाता है। यह सांस्कृतिक नगरी में मंदिरों की सुंदर श्रृंखलाएँ देखने को मिलती है। शारदीय व चैत्र नवरात्रि में लोग दूर-दूर से यहां मंदिरों में दर्शन के लिए पहुंचते हैं। यहां पहुंचने पर पूजा-अर्चना कर मनचाहे वरदान की कामना करते हैं। नगर का मां नंद देवी मंदिर आस्था व भक्ति का केंद्र माना जाता है।  बताया जाता है कि 11 वीं शताब्दी में अल्मोड़ा में मां नंदा की स्थापना हुई थी। चंद्र वंशीय राजाओं ने माँ नंदो दवी की यहाँ स्थापना की थी। मां नंदा की सती कुंड में कूदने के दौरान उनकी छाया यहां पड़ गई थी। इस आधार पर शक्ति स्वरूप में माँ यहाँ विराजमान हुईं। पार्वती का स्वरूप होने के कारण उन्हें राजराजेश्वरी रूप में जाना गया। मां नंदा देवी मंदिर में प्रतिवर्ष भाद्रपद मास में पंचमी के दिन मां नंद देवी मंदिर में मेले का आयोजन हो जाता है। महिलाएं मां नंदा को इस दिन सजाती हैं। मंदिर को सजाने के लिए ऐपण भी दिए जाते हैं। भाद्रपद में ही षष्ठी के दिन कदली वृक्षों को निमंत्रण दिया जाता है। सप्तमी को कदली वृक्षों को नगर भ्रमण के

मान्यता यह है कि यहां जो नि:संतान दंपति खड़े दीये के पवित्र अनुष्ठान में शामिल होते हैं उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है

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जब दवाइयां काम न आएं तब भक्ति साधना में आस की किरण नजर आती है. आज हम आपको बता रहे हैं उत्तराखंड (Uttarakhand) के श्रीनगर स्थित प्राचीन कमलेश्वर महादेव मंदिर के बारे में. जहां नि:संतान दंपति शिव की आराधना करने आते हैं. यहां कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन हजारों लोगों का हुजूम उमड़ता है जिसके पीछे एक अनोखी मान्यता है. दरअसल, मान्यता यह है कि यहां जो नि:संतान दंपति खड़े दीये के पवित्र अनुष्ठान में शामिल होते हैं उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है. रविवार को देश-विदेश से आए 175 दंपति ने खड़े दीये का अनुष्ठान पूरा किया. श्रीनगर गढ़वाल के कमलेश्वर महादेव मंदिर में हर साल बैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन एक विशेष अनुष्ठान हेाता है. इस ऐतिहासिक व धार्मिक मेले का अपना महत्व है. हजारों दर्शनार्तथि भगवान भोलेनाथ के दर्शन कर जहां मेले का लुत्फ उठाते हैं वहीं नि:संतान बैकुण्ठ चतुर्दशी पर्व की रात्रि को घी का दीप प्रज्वति कर रात भर खड़े होकर भगवान शिव की स्तुति करते हैं.  कमलेश्वर महादेव मंदिर के महंत आशुतोष पुरी ने बताया कि खड़े दिये की पूजा काभी कठिन है. उन्होंने बताया कि बैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन की वेदनी बेला

माया देवी शक्तिपीठ(maya devi shaktipith)

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 🔱माया देवी शक्तिपीठ🔱माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है,  माया देवी शक्तिपीठ' उत्तराखंड का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है। माना जाता है कि यहाँ सती के मृत शरीर की 'नाभि' गिरी थी।मान्यता है कि माँ की पूजा तब तक पूर्ण नहीं मानी जाती, जब तक भक्त भैरव बाबा का दर्शन पूजन कर उनकी आराधना नहीं कर लेते।प्राचीन काल से माया देवी मंदिर में देवी की पिंडी विराजमान है और 18वीं शताब्दी में मंदिर में देवी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इस मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही तंत्र साधना भी की जाती है। माया देवी शक्तिपीठ उत्तराखंड के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हरिद्वार में स्थित है। 'धर्मनगरी' कहे जाने वाले हरिद्वार के मध्य स्थित माया देवी मंदिर, देवी के 51 शक्तिपीठों में सबसे प्रमुख है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थ स्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। 'देवीप

बद्रीनाथ धाम को सृष्टि का आठवां बैकुंठ माना जाता है। इस धाम में भगवान श्रीहरी छह माह तक योगनिद्रा में लीन

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बद्रीनाथ धाम को देश के चार प्रमुख धामों में से एक माना जाता है। हिमालय पर्वत की श्रंखलाओं में बसे इस पौराणिक और भव्य मंदिर में भगवान श्रीहरी विराजमान है। हिमालय की चोटियों के बीच स्थित इस पावन धाम का सनातन संस्कृति में बहुत महत्व है। हर भक्त की इच्छा होती है कि जीवन में एक बार बद्रीनाथ धाम की यात्रा की जाए। बद्रीनाथ धाम समुद्र तल से 3,050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यहां पर पहुंचने का रास्ता भी काफी दुर्गम है। भगवान श्रीहरी का यह पवित्र और पावन धाम नर और नारायण नाम की दो पर्वत श्रंखलाओं के बीच स्थित है। श्रीहरी का प्राचीन मंदिर स्वच्छ और बर्फीले जल से प्रवाहमान अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। बद्रीनाथ हिन्दुओं के चार धामों बद्रीनाथ, द्वारिका, जगन्नाथ और रामेश्‍वरम में से एक है। उत्तराखंड में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को मिलाकर उत्तराखंड के चार धाम या छोटे चार धाम कहा जाता है। बद्रीनाथ धाम को सृष्टि का आठवां बैकुंठ माना जाता है। इस धाम में भगवान श्रीहरी छह माह तक योगनिद्रा में लीन रहते हैं और छह माह तक अपने द्वार पर आए भक्तों को दर्शन देते हैं। मंदिर के गर्भगृह में स्थित

जागेश्वर में लगभग 250 छोटे-बड़े मंदिर हैं। जागेश्वर मंदिर परिसर में 125 मंदिरों का समूह है उत्तराखंड

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 उत्तराखंड में अल्मोड़ा के पास स्थित जागेश्वर धाम भगवान सदाशिव को समर्पित है। कहा जाता है कि यह प्रथम मंदिर है जहां लिंग के रूप में शिवपूजन की परंपरा सर्वप्रथम आरंभ हुई। जागेश्वर को उत्तराखंड का पांचवां धाम भी कहा जाता है। जागेश्वर धाम को भगवान शिव की तपस्थली माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग आठवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इसे योगेश्वर नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर शिवलिंग पूजा के आरंभ का गवाह माना जाता है।   पुराणों के अनुसार भगवान शिव एवं सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं, जिसका भारी दुरुपयोग होने लगा। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य यहां आए और उन्होंने इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। अब यहां सिर्फ यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं। यह भी मान्यता है कि भगवान श्रीराम के पुत्र लव-कुश ने यहां यज्ञ आयोजित किया था, जिसके लिए उन्होंने देवताओं को आमंत्रित किया। कहा जाता है कि उन्होंने ही सर्वप्रथम इन मंदिरों की स्थापना की थी। जागेश्वर में लगभग 250 छोटे-बड़े मंदिर हैं।

चदरी यो चदरी – पारम्परिक लोकगीत है, गांव के ग्वालों के साथ एक महिला गाय चराते

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 चदरी यो चदरी – पारम्परिक लोकगीत है, गांव के ग्वालों के साथ एक महिला गाय चराते हुए अपनी चादर सुखाने को डालती है. तेज हवा से सूखती हुई चादर उङ जाती है. इसी पर गाय चराने वाले लङके हंसी-मजाक करते हैं.  चदरी यो चदरी तेरी चदरी फ्वं फ्वां फ्वां  कनी भली छै चदरी तेरी चदरी फ्वं फ्वां फ्वां -२  जान्दरी रूणाई बल जन्दरी रूणाई  पल्या खोला की झुप्ली गए डांडा की वणाई  डांडा की वणाई…….तेरी चदरी फ्वं फ्वां फ्वां  चदरी यो ……………………………………….  झंगोरे की घाण बल झंगोरे की घाण  धार ऐच बैठी झुपली चदरी सुखाण  चदरी सुखाण…….तेरी चदरी फ्वं फ्वां फ्वां  चदरी यो ……………………………………….  किन्गोडा का कांडा बल किन्गोडा का कांडा -२  चदरी उडी -उडी पोहुची खैरालिंगा का डांडा  खैरालिंगा का डांडा …………..तेरी चदरी फ्वं फ्वां फ्वां  चदरी यो ……………………………………….  कान्गुला की घांघी बल कान्गुला की घांघी  ढाई गजे की चदरी उडी  तेरी मुंडली रेगी नांगी  तेरी मुंडली रेगी नांगी………तेरी चदरी फ्वं फ्वां फ्वां  चदरी यो ……………………………………….  पाली पोडी सेड बल पाली पोडी सेड  चदरी का किनारा झुपली बुखणो की छै गेड-2  बुखणो की छै गेड………..तेरी चदरी फ्वं फ्वां फ्वा

इस लोरी को मै सुनते हुवे लिख रहा था तो मेरी आँखों में पानी आ गया

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 इस लोरी को मै सुनते हुवे लिख रहा था तो मेरी आँखों में पानी आ गया और आप सुनोगे तो जरुर आपका मन भी उन यादों में खो जायेगा, मा अपने बच्चे को सुला रही है वो उसे लोरी बोल रही है हे मेरी आँखों के रतन सोजा उसे अभी घर के बहुत सरे काम करने हैं सोजा उसके साथ की सहेलियों ने सरे काम कर दिए हैं और उसके सरे काम ऐसे ही पड़े हुवे हैं तू सोजा हे मेरी आंख्युं का रतन बाला स्ये जादी,बाला स्ये जादी दूध भात दयोलू मी ते तैन बाला स्ये जादी-२ हे मेरी आंख्युं का रतन बाला स्ये जादी-४ मेरी औंखुडी पौन्खुड़ी छै तू, मेरी स्याणी छै गाणी मेरी स्याणी छै गाणी मेरी जिकुड़ी उकुड़ी ह्वेल्यु रे स्येजा बोल्युं मानी स्येजा बोल्युं मानी न हो जिधेर ना हो बाबु जन बाला स्ये जादी दूध भात दयोलू मी ते तैन,बाला स्ये जादी तेरी घुन्द्काली तू की मुट्ठ्युं मा मेरा सुखी दिन बुज्याँन मेरा सुखी दिन बुज्याँन तेरी टुरपुरि तों बाली आंख्युं मा मेरा सुप्न्या लुक्याँन मेरा सुप्न्या लुक्याँन मेरी आस सांस तेम ही छन बाला स्ये जादी हे मेरी आंख्युं का रतन, बाला स्ये जादी हे पापी निंद्रा तू कख स्येंयी रैगे आज स्येंयी रैगे आज मेरी भांडी कुण्डी सुचण रै ग्ये

किशन महिपाल का ये गीत पूरे उत्तराखंड के लोगो को नाचने पर मजबूर कर देता है

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 उत्तराखंड के सबसे प्रतिभाशाली युवा गायकों में शुमार किशन महिपाल का ये गीत पूरे उत्तराखंड के लोगो को नाचने पर मजबूर कर देता है .  इस गीत में किशन जी ने बहुत ही अलग अंदाज़ में उत्तराखंड की नारी की सुन्दरता में चार चाँद लगाते पारंपरिक वेशभूषा का चित्रण किया है .गीत का संगीत बेहद ही सुन्दर है और गीत का विडियो भी बहुत अच्छा बना है . रानीखेत रामढोला घम घामा कन बजना.. रानीखेत रामढोला घम घामा कन बजना.. तेरी खुट्यु की पेजबी मेरी सुआ भली सजन... तेरी खुट्यु की पेजबी मेरी सुआ भली सजन... रानीखेत रामढोला ...रानीखेत रानीखेत रामढोला घम घामा कन बजना.. तेरी खुट्यु की पेजबी मेरी सुआ भली सजन... {रानीखेत रामढोला घम घामा कन बजना.. तेरी खुट्यु की पेजबी मेरी सुआ भली सजन... तेरी पाऊ की पुलिया ..तेरी पाऊ.. तेरी पाऊ की पुलिया मेरी सुआ भली सजन.. तेरी हथो की पोछिया...मेरी सुआ भली सजन.. तेरी गोले.....तेरी गोले की हसुली मेरी सुआ भली सजन.. रानीखेत रामढोला घम घामा कन बजना.. रानीखेत रामढोला घम घामा कन बजना.. {रानीखेत रामढोला घम घामा कन बजना.. तेरी खुट्यु की पेजबी मेरी सुआ भली सजन... } तेरी माथे की बिंदुली ...तेरी माथे

नरेंद्र सिंह नेगी "चुलू जगोंदी बगत आई" को जितनी बार सुनो उतनी बार कम लगता है

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 प्रेम की पीड़ा को शब्दों के मोती से बया करके फिर उसे अपनी आवाज़ की मधुरता से पूर्ण करने की कला यदि किसी को आती हे तो वो श्री नेगी जी ही हे । उनके गीत  "चुलू जगोंदी बगत आई"  को जितनी बार सुनो उतनी बार कम लगता है । न जाने कितने लोग अपना परिवार अपना पहाड़ छोडके शेहरो में अकेले जिन्दगी काट रहे हे ।ऐसे में ये गीत उनकी भावनाओं को कुछ ऐसे छूता हे जेसे मानो ये उनकी ही कहानी हो । यही तो ख़ास बात हे नेगीजी की उनके गीत होते ही पहाड़ के लोगो के लिए है । इसीलिए उन्हें गढ़रत्न कहते है ।  चुलू जगोंदी बगत आई कभी चुलू मुझोंदी बगत आई नि घुटेदु हेर गफा तुम्हारी याद खांदी बगत आई ..!!!! द्यु जगोंदी बगत आई .. कभी द्यु मूझोंदी बगत आई .. कभी द्यु जगोंदी बगत आई .. कभी द्यु मूझोंदी बगत आई .. नि घुटेदु हेर गफा तुम्हारी याद खांदी बगत आई ..!!!! चुलू जगोंदी बगत आई कभी चुलू मुझोंदी बगत आई मिलदी गुडदी बेर कभी .. कभी लौन्दी बांदी दा सार्यो मा.. कभी यखुली यखुली ..छ्जा मुड़ी.. ग्यु छच्यांदी बगत आई .. नि घुटेदु हेर गफा तुम्हारी याद खांदी बगत आई ..!!!! कभी द्यु जगोंदी बगत आई .. कभी द्यु मूझोंदी बगत आई ... रुड़ी भमांण द

कविता - बदल गया जमाना

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बदल गया जमाना जमाना वह कुछ और था जब सब मिल जुल कर रहा करते होता कोई भी बार त्योहार उसे सब एक साथ मनाते, न कोई टेलीविजन ना कोई टेलीफोन और ना ही कोई मोबाइल लोग अनपढ़ तो जरूर थे पर एक दूसरे का मान सम्मान करते, गांव में 2-4 जो पढ़े लिखे लोग देश विदेश से आए खत को पढ़कर खत में लिखी खबर को सुनाते, बदल गया जमाना अब गांव टेलीविजन का हो गया दीवाना पहले ब्लैक एंड वाइट में महाभारत रामायण फिर कलर टीवी का हो गया जमाना, धीरे-धीरे बढ़ता गया जमाना खंभों पर टेलीफोन की लाइन बिछ गई बाजारों में पीसीओ खुल गये, पीसीओ में लगती भीड़ टेलीफोन पर बात करते-करते खाने पीने की नहीं रहती शुद्ध, अब नयीं पीढ़ी का हो गया जमाना नई पीढ़ी हो गई पढ़ी-लिखी, नई पीढ़ी की नई नई स्टाइलें आ गई घर घर में मां बाप बेटा बेटी बहू सबके पास मोबाइल आ गये, हर किसी की हाथों में घंटी बजने  लग गई  टेलीफोन वीडियो टेलीविजन सब मोबाइल पर होने लग गये बेटा बेटियों का बाप को हाई!डैड मां को हाय!मोम का आ गया जमाना खर्चा बढ़ गया जितनी कमाई होती है मोबाइल में खर्च हो जाती , बजने लगे मोबाइल ब्लाउज के अंदर शर्म सब दूर हो गई फट से मोबाइल निकाल कर बात होने

ढोल दमाऊ को मात देने वाला कोई वाद्ययंत्र आज तक पहाड़ में

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ढोल दमाऊ वाद्ययंत्र  उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में एक समृद्ध परंपरा में ढोल वादन, वक्त के साथ ढोल शास्त्र के नामी कलाकार हाशिये में, कभी बरातो मे बड़े शान से चलते थे ढोल दमाऊ और मशकबीन, उसी शान से दुल्हन पक्ष के ढोली बरात के आगमन पर आतिथ्य देने सबसे पहले पहुच बारात का इंतजार करते मिलते थे, सभ्यता बहुत महान जहां ढोल और ढोली को मेहमानों की तरह पिठ्या लगाया जाता था, ढोल दमाऊ मश्कबीन को आधुनिक बादय यंत्र चाहे छुपाने की लाख कोशिशों करते हो पर वक्त की आईने में इनकी घमक का कोई सानी आज भी  नहीं, सबसे बड़ी बात ठेठ पहाड़ी रंगमस्त तो आज भी ढोल की थाप पर ही होते हैं, पहाड़ के देवालय और रात रात भर भर चलने वाले देव आह्वानो में  ढोल दमाऊ को मात देने वाला  कोई  वाद्ययंत्र आज तक पहाड़ में  नहीं               ❤जय देव भुमि उत्तराखंड ❤

उत्तरकाशी जिले में स्थित यमुनोत्री धाम को चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव माना गया है।

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यमुनोत्री धाम उत्तरकाशी जिले में स्थित यमुनोत्री धाम को चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव माना गया है। यहां सूर्यपुत्री और शनि व यम की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। समुद्रतल से 3235 मीटर (10610 फीट) की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री धाम से एक किमी. की दूरी पर चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुनाजी का मूल उद्गम है। समुद्रतल से इस ग्लेशियर की ऊंचाई 4421 मीटर है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह पवित्र स्थान एक साधु असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने यहां देवी यमुना की आराधना की, जिससे प्रसन्न हो यमुनाजी ने उन्हें दर्शन दिए। यमुनोत्री धाम पहुंचने के लिए जानकीचट्टी से छह किमी. की खड़ी चढ़ाई पैदल तय करनी पड़ती है। यहां पर स्थित यमुना मंदिर का निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में करवाया था। हिमालय की चारधाम यात्रा धर्मनगरी हरिद्वार और तीर्थनगरी ऋषिकेश से शुरू होती है, लेकिन शास्त्रों में इसकी शुरुआत यमुनोत्री धाम से मानी गई है। देवी यमुना भक्ति की अधिष्ठात्री हैं। 'स्कंद पुराण' के 'केदारखंड' में कहा गया है कि भक्ति के बिना ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं। इसलिए यमुनोत्री के बाद ह