मान्यता यह है कि यहां जो नि:संतान दंपति खड़े दीये के पवित्र अनुष्ठान में शामिल होते हैं उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है

जब दवाइयां काम न आएं तब भक्ति साधना में आस की किरण नजर आती है. आज हम आपको बता रहे हैं उत्तराखंड (Uttarakhand) के श्रीनगर स्थित प्राचीन कमलेश्वर महादेव मंदिर के बारे में. जहां नि:संतान दंपति शिव की आराधना करने आते हैं. यहां कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन हजारों लोगों का हुजूम उमड़ता है जिसके पीछे एक अनोखी मान्यता है. दरअसल, मान्यता यह है कि यहां जो नि:संतान दंपति खड़े दीये के पवित्र अनुष्ठान में शामिल होते हैं उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है. रविवार को देश-विदेश से आए 175 दंपति ने खड़े दीये का अनुष्ठान पूरा किया.


श्रीनगर गढ़वाल के कमलेश्वर महादेव मंदिर में हर साल बैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन एक विशेष अनुष्ठान हेाता है. इस ऐतिहासिक व धार्मिक मेले का अपना महत्व है. हजारों दर्शनार्तथि भगवान भोलेनाथ के दर्शन कर जहां मेले का लुत्फ उठाते हैं वहीं नि:संतान बैकुण्ठ चतुर्दशी पर्व की रात्रि को घी का दीप प्रज्वति कर रात भर खड़े होकर भगवान शिव की स्तुति करते हैं. 

कमलेश्वर महादेव मंदिर के महंत आशुतोष पुरी ने बताया कि खड़े दिये की पूजा काभी कठिन है. उन्होंने बताया कि बैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन की वेदनी बेला पर शुरू हुए उपवास के बाद रात्रि के 2 बजे महंत द्वारा शिवलिगं के आगे एक विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है. जिसमें 100 व्यजनों का भोग लगाकर शिवलिगं को मक्खन से ढक दिया जाता है. इसके बाद नि:संतान दंपति को अनुष्ठान पूरा करना होता है. जिसके तहत वे जलता हुआ दीपक लेकर पूरी रात 'ओम् नम: शिवाय' का जप करते हुए खड़े रहते हैं.

क्या कहती हैं किवदंतियां

मध्य हिमालय की तलहटी में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित पौराणिक कमलेश्वर महादेव मंदिर से श्रद्धालुओं की अटूट आस्था के पीछे कई किवदंतियां हैं. कहा जाता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने जामवंती के कहने पर कमलेश्वर मंदिर में भगवान शिव की आराधना की. जिसके बाद उन्हें स्वाम नामक पुत्र की प्राप्ति हुई. इस अनुष्ठान को एक नि:संतान दंपति ने देखा और शिव की आराधना की जिसके बाद उन्हें भी संतान की प्राप्ति हुई. मन्दिर से जुड़ी एक और मान्यता के अनुसार ब्राह्मण हत्या से मुक्ति पाने के लिए श्रीराम चन्द्र जी ने इसी स्थल पर शिव की तपस्या की थी!

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