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जनवरी, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तथ्य उत्तराखंड भाग 2

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तथ्य उत्तराखंड भाग 2 राज्य में सर्वप्रथम किस औषधीय पौधे की खेती शुरू की गई थी? – बैलाडोना राज्य में नई कृषि नीति जारी किस वर्ष जारी की गई? – 2011 में उत्तराखंड के चारोधाम (गंगोत्री, यमुनोत्री, बदरी तथा केदार) किन जिला समूहों में स्थित हैं? – उत्तरकाशी-रुद्रप्रयाग-चमोली राज्य के चारों धामों में सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित कौन-सा धाम हैं? – केदारनाथ उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकगीत ‘बेड़ी पाको नारा मासा’ की धुन किसने बनाई थी? – स्व. बजेन्द्रलाला शाह ने सर्वाधिक महिला साक्षरता वाला (जिला जनगणना 2011) कौन-सा है? – देहरादून जनगणना 2011 के अनुसार उत्तराखंड का लिंगानुपात में देश में स्थान है? – 13वाँ राज्य की कितनी जातियों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में सम्मिलित किया गया है? – 65 टिहरी जलाशय (स्वामी रामतीर्थ सागर) का क्षेत्रफल कितना है? – 42 वर्ग किमी कोटेश्वर बांध एवं जल विद्युत परियोजना कितने मेगावॉट की है? – 400 मेगावॉट उत्तराखंड में अधिकांश कागज मिलें कहां स्थित हैं? – ऊधम सिंह नगर में राज्य सरकार ने औद्योगिक विकास को गति प्रदान करने के लिए किस वर्ष तक के लिए विजन प्लान तैयार किया है? – 2020 तक र

तथ्य उत्तराखंड भाग 3

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 तथ्य उत्तराखंड भाग 3 उत्तराखंड जहाँ जीवन दायनी गंगा जी का जन्म हुआ। जिस में स्नान करने से मुक्ति मिलती है। उत्तराखंड जहाँ के लोग भिखारी कभी नहीं मिलेंगे चाहे बाहर के लोग यहाँ आकर भीख क्यूँ  ना माँग लें क्योंकि यहाँ के लोग मेहनत करते हैं और लोगों का सम्मान करते हैं। उत्तराखंड जहाँ गिरदा तिवारी व प्रीतम भरतवाण जैसे महान गायकों का जन्म हुआ। जो दुनिया के कई देशों में जा कर गा चुके हैं , उत्तराखंड जहाँ पतांजलि विध्यापीठ है व अनेक आयुर्वेदिक सन्थान है । उत्तराखंड  जहाँ जिम कॉर्बेट पार्क है । उत्तराखंड जहाँ आज भी लोग न गंदगी फैलाते हैं ना नफरत उत्तराखंड जहाँ सृष्टि की पहली शादी में दक्षप्रजापति की पुत्री पार्वती का विवाह भगवान शिवशंकर से हुआ। उत्तराखंड जहाँ सुर सम्राट स्व *गोपालबाबू गोस्वामी जी* पहले गायक उत्तराखंड के जिनकी कैसीट पोलिटोडर ग्रामो फोन पर प्रकासित हुई ऐसे महान लोकगायक ने जन्म लिया! उत्तराखंड के नाम को पूरे विश्व में अपनी गायकी व लेखनी से जन मानस के दिलो मे राज किया  जिनके हर गीत मै उत्तराखंड की संस्कृति व परम्परा व सभ्यता देखने को मिलती है जिन्होंने अपने गीतों से *उत्तराखंड को
 #पंचकदार🔱🚩  पंच केदार : भगवान शिव को समर्पित पांच हिंदू मंदिरों या शिव संप्रदाय के पवित्र स्थानों को संदर्भित करता है।  उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित है।  .  पंच केदार के बारे में लोक कथा हिंदू महाकाव्य महाभारत के नायक पांडवों से संबंधित है।  पांडवों ने महाकाव्य कुरुक्षेत्र युद्ध में अपने चचेरे भाइयों - कौरवों को हराया था।  वे युद्ध के पापों का प्रायश्चित करना चाहते थे।  अपने भाइयों और अन्य ब्राह्मणों को मारने के लिए।  इस प्रकार, वे भगवान शिव की तलाश में और उनका आशीर्वाद लेने के लिए निकल पड़े। शिव को कहीं नहीं मिलने पर, पांडव गढ़वाल हिमालय चले गए।  जहां उन्होंने पांच अलग-अलग रूपों में भगवान शिव के प्रकट होने से प्रसन्न होकर शिव की पूजा और पूजा के लिए पांच स्थानों पर मंदिरों का निर्माण किया। इस प्रकार पांडव अपने पापों से मुक्त हो गए।  .  पंचकेदार पांच मंदिर 🚩🚩👇👇  .  1. केदारनाथ (3583मी)- यहां भगवान शिव के  पीठ की पूजा की जाती है  2. मधमहेश्वर (3490मी)- यहां भगवान शिव के बेली बटन की पूजा की जाती है  3. तुंगनाथ (3680मी)- यहां भगवान शिव की भुजाओं की पूजा की जाती है  4.

1857 ई० का विद्रोह और उत्तराखण्ड

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1857 ई० का विद्रोह और उत्तराखण्ड जिस समय सम्पूर्ण उत्तरी व मध्य भारत में 1857 के विद्रोह की आग फैल रही थी। उस समय जनपद में बैकेट डिप्टी कमिश्नर था। उसने गढ़वाल में शान्ति बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी तथा गढ़वाल को विद्रोहियों से सुरक्षित रखने के लिये ब्रिटिश गढ़वाल के उन सभी मार्गों पर नाकेबन्दी कर दी जो मैदानी क्षेत्रों में मिलते थे। वॉल्टन के अनुसार यद्यपि मैदानी क्षेत्रों से कुछ क्रान्तिकारियों ने श्रीनगर गढ़वाल में अशान्ति फैलाने का प्रयास किया था। किन्तु कुमाऊँ कमिश्नर हेनरी रेमजे ने विद्रोहियों के दमन के लिये अल्मोड़ा से गोरखा सेना श्रीनगर भेजी। यद्यपि क्रान्तिकाल में ब्रिटिश गढ़वाल में कोई हिंसक घटना घटित नहीं हुई। फिर भी इस बात की भी संभावना है कि कुछ लोग 1857 की क्रान्ति से अंग्रेजों के विरुद्ध जागृत हुये। इसी कारण वहाँ जिन व्यक्तियों पर यह सन्देह होता था कि वह क्रान्तिकारी है उसे पकड़कर श्रीनगर पहुँचाया जाता था और वहाँ गंगा नदी के किनारे स्थित एक टीले पर जिसे स्थानीय लोग टिबरी कहते थे, खड़ा कर गोली से मार दिया जाता था। ब्रिटिश गढ़वाल के थोकदारों, जमींदारों ने भी 185

मंसूरी सीजन, हिमालय क्रान्तिकाल,द ईगल,

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मंसूरी सीजन, हिमालय क्रान्तिकाल,द ईगल, मंसूरी सीजन, 1872 सन् 1872ई0 में कोलमेन व नार्थम की साझेदारी में यह पत्र मसूरी से प्रकाशित हुआ। 1874 में कोलमेन द्वारा मंसूरी छोड़ने के साथ ही 'मंसूरी सीजन' नाम का यह समाचार पत्र सदा के लिए बन्द हो गया। अपने अत्यंत अल्प जीवनकाल में यह पत्र कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ गया। हिमालय क्रान्तिकाल, (1875-76) उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध समाचार पत्र मेफिसलाइट के बन्द होने के पश्चात् इसके प्रतिनिधि के रूप में जॉन नार्थम ने 'हिमालय क्रान्तिकाल' नाम के समाचार पत्र का सम्पादन व प्रकाशन किया। कुलड़ी (मंसूरी) में स्थित प्रेस में छपने वाले इस पत्र ने 'मेफिसलाइट' के प्रतिनिधि की भूमिका को बखूबी निभाया तथा पाठकों पर अपना प्रभाव छोड़ते हुए अपार प्रसिद्धि प्राप्त की। कुछ समय तक नियमित मंसूरी से निकलने के पश्चात् इसका प्रकाशन मेरठ से किया जाने लगा। द ईगल, 1878 मौर्टन के सम्पादन व प्रकाशन में 'द ईगल' नामक समाचार-पत्र सन् 1878 में छपना शुरू हुआ। आंग्ल भाषी यह पत्र काफी लोकप्रिय था। इसका अपना एक अलग ही प्रभाव था। फलतः इसके प्रसार में भी लगातार वृद

ब्रिटिश कालीन भू-प्रबन्धन, वन प्रबन्ध, पुलिस व्यवस्था

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ब्रिटिश कालीन भू-प्रबन्धन आदि पुरूष मनु ने राजा अथवा शासक को राज्य प्रबन्धन हेतु कर लेने का अधिकार प्रदान किया है। हिन्दु राजाओं की राजस्व व्यवस्था मनु के आदर्शों के अनुरूप ही संचालित होती थी। उत्तराखण्ड के प्राचीन राजवंशों ने भी इसका अनुपालन किया किन्तु अंग्रेजों ने इसे बदल दिया। राजस्व सम्बन्धी उनके नियम रबड़ की तरह लचीले होते थे। बंदोबस्त की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं थी एवं प्रत्येक बंदोबस्त के पश्चात् कर की दर बढ़ाना सरकार की नीति रही। इस पर्वतीय क्षेत्र में स्थानीय जनता को दो तरह से बंदोबस्त की मार पड़ी। उन्हें जमीन के साथ-साथ वन बंदोबस्त का त्रास भी झेलना पड़ा। सामान्यत बंदोबस्त से तात्पर्य जमीन से बाबत राज्य व प्रजा के मध्य जो लिखा-पढ़ी होती है, से है। ब्रिटिशकाल में इस क्षेत्र में खसरा पैमाइश की व्यवस्था शुरू हुई। जमीन के नक्शे बनाए गए, जिनमें खेतों के नंबर डाले जाते थे। खसरों के हिस्सेदार, खायकर, व सिरतानों के नाम खेतों के नम्बर सहित दर्ज होते थे।  ब्रिटिश कालीन भू-प्रबन्धन, वन प्रबन्ध, पुलिस व्यवस्था   इस क्षेत्र की जमीन को चार भागों में बाटाँ गया था- 1. तलाऊँ 2. दोयम 3. कटील

सिंगोली की संधि

सिंगोली की संधि बमशाह एवं अंग्रेजो में मध्य हुई संधि पत्र पर 15 मई 1815 का अमर सिंह थापा ने हस्ताक्षर कर दिए थे किन्तु नेपाल पहुँचते ही उन्होने बमशाह की संधि को मानने से इन्कार कर दिया। बनारस से नेपाल के राजगुरु गजराज मिश्र को काठमाण्डु बुलाया गया। 2 दिसम्बर 1815 को सिंगौली नामक स्थल पर लै० कर्नल पेरिस ब्रेडसों और नेपाल नरेश शाह बहादूर शमशेरजंग के प्रतिनिधि गजराज मिश्र एवं चन्द्रशेखर उपाध्याय के मध्य एक संधि का मसौदा हस्ताक्षरित हुआ। इसके अनुसार तराई क्षेत्र और काली नदी के पश्चिम पहाड़ी प्रदेश अंग्रेजो को सौंप दिए जाने के साथ ही नेपाल में ब्रिटिश रेजीडेण्ट रखने पर भी सहमति हो गई। नेपाल में गुटबंदी शुरु हो गई और थापा दल ने गजराज मिश्र द्वारा तय की गई संधि शर्तों को मानने से साफ मना कर दिया। थापा दल इसकी बजाय युद्ध के पक्ष में था। अतः पुनः संघर्ष की तैयारी प्रारम्भ हो गई। जनरल डेविड ऑक्टरलोनी के नेतृत्व में एक बड़ी सेना आक्रमण को भेजी गई। इसके साथ ही कर्नल निकोलस को डोटी, पाल्या एवं पलवल पर आक्रमण का आदेश हुआ। 10 फरवरी 1816ई0 को ऑक्टरलोनी ने अपनी सेना चोरियाघाट दर्रे से नेपाल घाटी की ओर

गोरखों का सैन्य प्रशासन

गोरखों का सैन्य प्रशासन गोरखों की सम्पूर्ण शासन व्यवस्था सेना पर आधारित थी। इसी सेना के बल पर ही नरभूपाल, पृथ्वी नारायण एवं रणबहादुर शाह इत्यादि ने एक छोटे से गोरखे शहर से वृहद गोरखा साम्राज्य की स्थापना की थी जिसमें सम्पूर्ण नेपाल के अतिरिक्त कुमाऊँ गढ़वाल एवं कांगड़ा घाटी तक का प्रदेश सम्मिलित था। चीन एवं तिब्बती सेना से गोरखा सेना का मुकाबला हुआ। महाराजा रणजीत से उनकी सीमाएँ परस्पर मिलती थी। ब्रिटिश कम्पनी से उन्होंने गोरखपुर क्षेत्र के लगभग 200 गावों को विजित करने में सफलता पाई थी। अतः सहज ही अनुमान लगता है कि गोरखा सेना व सेनापति शौर्य एवं बल में अत्यधिक मजबूत रहे होगें। जहाँ तक उनकी सेना के गठन एवं प्रशिक्षण का प्रश्न है तो इस सम्बन्ध की कोई ठोस जानकारी मिल नहीं पाती है। गोरखे मूलतः हिन्दू एवं मंगोलाइड नस्ल का मिश्रित रूप थे। इसलिए उनमें शौर्य एवं बल का पुट नस्लीय आ गया था। इसके अलावा उनके प्रदेश के भौगोलिक एवं सामाजिक परिवेश का उन पर पूर्ण प्रभाव पड़ा। किष्ट्रोफर चैट महोदय ने गोरखो की इस विशेषता का अपने शब्दो में सुन्दर वर्णन दिया है। 'ठाकुरिया' कहा जाता था। उनको वेतन इ

ज्ञानचंद का गद्दी पर बैठते ही निर्गत

ज्ञानचंद का गद्दी पर बैठते ही निर्गत  ज्ञानचंद ज्ञानचंद का गद्दी पर बैठते ही निर्गत किया गया 1698 ई० का ताम्रपत्र मिला है। इसका भी पूरा जीवन गढ़वाल और डोटी राज्य के साथ संघर्ष में बीता। उसका पहला आकमण पिंडर घाटी पर हुआ और उसने थराली तक का उपजाऊ क्षेत्र रौंद डाला। 1699 ई0 में उसने बधानगढ़ी को लूटा जहाँ से वह नंदादेवी की स्वर्ण प्रतिमा अपने साथ ले गया और उसे अल्मोडे नंदादेवी मन्दिर में पुर्नस्थापित करवाया। 1700 ई0 में उसका अभियान रामगंगा नदी पार मल्ला सलाण स्थित साबलीगढ़, खाटलीगढ़ व सैंजधार ग्राम तक हुआ। ये क्षेत्र तीलु रौतेली की मृत्यु के बाद पुनः गढ़राज्य का हिस्सा बन गये थे। ज्ञानचंद के आकमण के प्रतिउत्तर में गढनरेश फतेहशाह ने 1701 में चंद राज्य के पाली परगने के गिवाड एवं चौकोट क्षेत्रो को लगभग वीरान कर दिया था। 1704 ई० में ज्ञानचंद ने अपने पिता की हार का प्रतिशोध लेने के लिए डोटी पर आक्रमण किया। यह संघर्ष सम्भवतः कुमाऊँ की सीमा पर स्थित मलेरिया ग्रस्त भाबर में लड़ना पड़ा। डोटी नरेश तो भाग गया किन्तु ज्ञानचंद की सेना मलेरिया का शिकार हो गयी। अतः ज्ञानचंद को यहीं से वापस लौटना पड़ा। ज्

सम्भवतः मुगल सम्राट अकबर का समकालीन कूर्माचल नरेश रूद्रचंद

सम्भवतः मुगल सम्राट अकबर का समकालीन कूर्माचल नरेश रूद्रचंद  रुद्रचंद सम्भवतः मुगल सम्राट अकबर का समकालीन कूर्माचल नरेश रूद्रचंद था जो प्रारम्भ में तो स्वतंत्र शासक था किन्तु 1587 ई0 के बाद उसे मुगल अधीनता स्वीकार कर कुर्मांचल को करद-राज्य बना दिया था। इसी काल में हुसैन खां ने तराई क्षेत्र पर कब्जा किया। अतः रूद्रचंद ने तराई पर आक्रमण कर पुनः उस पर अधिकार किया एवं साथ ही रूद्रपुर शहर की नींव भी रखी। इस अवसर पर उसने सम्राट अकबर को कुछ भेंट भेजी थी। मुगल बादशाह अकबर ने उसे 'चौरासी माल' परगने की जमींदारी सौंपी थी। अल्मोडा का 'मल्ल महल' रूद्रचंद ने ही निर्मित करवाया था। रूद्रचंद एक योग्य प्रशासक, कुशल सेनापति व निर्माता था। अपनी योग्यता के बल पर ही उसने चंद वंश की श्रीवृद्धि की। रूद्रचंद की व्यवस्था रूद्रचंद ने एक नई सामजिक-आर्थिक व्यवस्था को स्थापित करने का प्रयास किया। समाज को सुगठित करने के लिए उसने सर्वप्रथम 'धर्म निर्णय' नाम की पुस्तक संकलित करवाई। इसमें ब्राह्मणों के गोत्र एवं उनके पारस्परिक सम्बन्धों को अंकन किया गया। गढ़वाल सरोला ब्राहम्णों की भाँति ही कुमाऊँ

उत्तराखंड राज्य में गठित प्रमुख आयोग, प्रमुख पुस्तक तथा लेखक, उत्तरांचल ग्रामीण बैंक की स्थापना

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राज्य में गठित प्रमुख आयोग (अ) ए0 एन0 वर्मा आयोग-अनियमितताओं की जाँच के लिए। (ब) राज्य सुरक्षा आयोग-आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को सदरढ़ कर तथा पुलिस सुधार को लागू करने के लिए। (स) गोसेवा आयोग-गोवंशीय पशुओं पर हाने वाली बर्बरता क रोकने तथा गोवंशीय पशुओं के कल्याण हेतु।  (द) दीक्षित आयोग-राजधानी स्थल चयन के लिए | प्रमुख पुस्तक तथा लेखक 1. टिंचरी माई-कुलदीप रावत। 2. उत्तराखण्ड : समग्र ज्ञानकोष-डॉ0 राजेन्द्र बलोदी। 3. गढ़वाली हिन्दी शब्द कोष अरविंद पुरोहित/ बीना बेजवाल । 4. हिमालय के खस डी0 डी0 शर्मा।  5. होली हिमालय - सेरमन ओकले। 6. मैमोयर्स आफ देहरादून - आर0 सी0 विलियम्स । 7. आलमोस्ट सिंगल अद्वैत काला। 8. रूम आन द रूफ रस्किन बांड। 9. द हिमालय - एडी मोदी। उत्तराखण्ड में पहले विधानसभा चुनाव हुए थे-14 फरवरी 2002 उत्तराखण्ड में दूसरे विधान सभा चुनाव कब हुए-21 फरवरी 2007 एशिया के सबसे युवा ग्रैंडमास्टर का नाम है- परिमार्जन नेगी  राज्य के प्रत्येक जनपद में एक आयुष ग्राम की स्थापना का उद्देश्य क्या है- आयुर्वेदिक चिकित्सा को बढ़ावा।  वानिकी विश्वविद्यालय खोला गया है- रानीचौरा ( टिहरी) वर्तमान में

बेटी ब्वारी फिल्म का "गढ़वाली लोक गीत" (beti bari film ka "garhwali lok geet")

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  बेटी ब्वारी फ़िल्म का ……  बेटी  ब्वारी  फिल्म का "गढ़वाली लोक गीत" एक लोकप्रिय गीत :- उत्तराखंड स्वर सम्राट श्री नरेन्द्र सिंह जी (Narendra Singh Negi) पैली यानू त कबी नि ह्ववे कबी नि ह्ववे अब ह्ववे त क्यान ह्ववे क्यान ह्ववे.. मन अपडा बस मा नि राई, क्वि ऊपरी मन बसी ग्याई.. हो….ओ.. तन मा क्यफ़णि सी क्यफ़णि झणि क्यँन हूंद मन मा कुतगली सी कुतगाली से झणि कु लगांद कुछ ह्ववे गे मी थे, कुछ ह्ववे गे मी थे ह्वाई क्याच…ह्वाई क्याच समझ मा नि आई…. मन आपदा बस मा नि राई.. ….हो. हो हो.. मन आपदा बस मा नि राई तेरी जीकुड़ी धक धक धक धक़दीयाट के कु कनि न…….. तेरी आंखि रक रक रक रक्रियट केन कनि न बैध बुला ज़रा, दारू दवे करा.. सदनी कु….सदनी कु रोग लगी ग्याई.. मन आपडा बस मा नि राई….हो. हो हो.. मन आपदा बस मा नि राई. मन मा बनबनी का बनबनी का फूल खिलिया न… सुपीन्या बन बनी का बन बनी का रंगों मा रंगीया न.. सुपीन्यो का रंग मा मायादार संग मा.. धरती-आ.. धरती आकाश रंगी ग्याई … मन आप डा बस मा नि राई.. हो हो…. पैली यानू त कबी नि ह्ववे कबी नि ह्ववे अब ह्ववे त क्यान ह्ववे क्यान ह्ववे मन अपडा बस मा नि राई, क्वि

पहाड़ी कविता "खुदेड़" की यह कविता।

पहाड़ी कविता "खुदेड़" की यह कविता।  तू काहे का #पहाड़ी रे!!!   ============= मंडवे की रोटी तूने खायी नहीं है। कछ्बोळी तूने कभी चबाई नहीं है।। '#बल' और '#ठैरा' तू भाषा में लगता नहीं है। उचेणु तू अब चढ़ाता नहीं है। तू काहे का पहाड़ी रे "खुदेड़" ? मंडाण तू नाचता नहीं है,  देवता तू पूजता नहीं है।। काफल के हडले तू चबाता नहीं है!! मोटा आनाज अब तू पचाता नहीं है।। तू काहे का पहाड़ी रे "खुदेड़" ? शादियों में धोती पहनता नहीं है,  पहाड़ी हिसाब से तू रहता नहीं है।। साहपाटा बरात में तू ले जाता नहीं!! पहाड़ी भोजन तू बनाता नहीं।। पिछोड़ा तू महिलाओं को ओढ़ता नहीं!! रस्म कंगन की शादी में तू तोड़ता नहीं।। काहे का पहाड़ी रे "खुदेड़" ? बारात में ढोल-दमो तेरे आते नहीं है, मांगल, गाळी अब शादी में तेरी गाते नहीं है।। पितगा अब तू बनाता नहीं है!! बेदी अब तू सजाता नहीं।। तू काहे का पहाड़ी रे "खुदेड़" ? भाषा तू बोलता नहीं है। अपनों के अत्यचार पर खून तेरा खौलता नहीं।। इमानदारी तुझमे अब दिखती नहीं!! मुजफ्फरनगर कृत्य की पीड़ा तुझे चुभती नहीं।। न्याय के लिए तू लड़ता न