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रुद्रनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित भगवन शिव का एक मंदिर है

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  रुद्रनाथ मंदिर  भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित भगवन शिव का एक मंदिर है रुद्रनाथ मंदिर   भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित भगवन शिव का एक मंदिर है जो की पंचकेदार में से एक है।   समुद्रतल से 2290 मीटर की उचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है।  रुद्रनाथ मंदिर में भगवन शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है जबकि सम्पूर्ण शरीर की पूजा नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ में की जाती है।  रुद्रनाथ मंदिर के सामने से दिखाई देती नंदादेवी और त्रिशूल की हिमाच्छिद चोटियां यहां का आकर्षण बढाती है। देश के किसी कोने से आपको पहले ऋषिकेश पहुंचना होगा। ऋषिकेश से ठीक पहले तीर्थनगरी हरिद्वार दिल्ली, हावडा से बडी रेल लाइन से जुडी है। देहरादून के निकट जौली ग्रांट में हवाईअड्डा भी है जहां दिल्ली से सीधी उडानें हैं। हरिद्वार या ऋषिकेश से आपको चमोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर का रुख करना होगा जो ऋषिकेश से करीब 212 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऋषिकेश से गोपेश्वर पहुंचने के लिए आपको बस या टैक्सी आसानी से उपलब्ध हो जाती है। एक रात गोपेश्वर में रुकने के ब

चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ मंदिर

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 चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ मंदिर रुद्रनाथ महादेव   पंच केदारो मे स्थित चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ सुरम्य मखमली बुग्यालो के बीच स्थित बाबा का मंदिर अपने आप मे एक अनौखा  मंदिर है। बाबा भोले का मंदिर   समुद्र तल से 2290 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। चमोली जनपद के सगर (गोपेश्वर) नामक स्थान से 19 किमी के पैदल सफर को पार कर भगवान  रुद्रनाथ जी के दर्शन प्राप्त होते है। गोरतलव है कि शीतकाल के दौरान भगवान रुद्रनाथ जी पूजा अर्चना गोपीनाथ मंदिर गोपेश्वर मे संपादित होती हैं।    स्कन्ध पुराण के केदारखण्ड के 51 वें अध्याय मे शिव जी पार्वती से कहते है :- रुद्रनाथ हमारा एक तीर्थ है। इसका नाम "रुद्रालय" है। यह समस्त तीर्थो मे परमोतम है। इस तीर्थ के महात्म्य को सुनकर मनुष्य समस्त पापों के बंधनो से मुक्त हो जाता है। रुद्रालय अनेको तीर्थो से विभूषित है, इसलिए यह अति पवित्र होने के साथ ही भगवान शंकर यहां नित्य निवास करते है।  यहां पर भगवान शिव के "मुख" भाग के रुप मे दर्शन होते है। मंदिर के नजदीक ही नन्दीकुण्ड व पाण्डव कुण्ड  है जिसके जल  से आचमन किया जाता है। स्नान के लिये 200 मीटर की द

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ दुर्लभ पाषाण मूर्ति के होते हैं दर्शन

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  शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ दुर्लभ पाषाण मूर्ति के होते हैं दर्शन  देश-दुनिया में भगवान शंकर के बहुत से मंदिर स्थापित हैं जहां भोलेनाथ अनोखे अंदाज़ में विराजमान हैं। इन्ही में से एक है पंच केदार में शामिल रुद्रनाथ मंदिर जो उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। बता दें भगवान शंकर का ये मंदिर समुद्रतल से 3600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर की सबसे खास बात तो ये है कि यहां भगवान शिव के मुख की पूजा होती है। इतना ही नहीं, इससे भी खास बात ये है कि भगवान शिव के बाकि के शरीर की पूजा नेपाल के काठमांडू में की जाती है। जी हां, यही कारण है कि ये मंदिर न केवल देश में बल्कि विदशों में अपनी इस खासियत के कारण ही काफी प्रचलित है।  बता दें इस मंदिर को पशुपतिनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है चूंकि रुद्रनाथ मंदिर के अन्य मंदिरों से अलग है, इसलिए दूर दूर से लोग इस मंदिर के दर्शन करने आते हैं। जहां शिव जी के लिंग रूप की पूजा होती है वहीं इस मंदिर में केवल उनके मुख की पूजा होती है। मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में स्थापित भगवान शिव के मुख को ‘नीलकंठ महादेव’ के नाम से जाना जाता है।  पंचकेदार

कल्पेश्वर मंदिर पंच केदार 'कल्पनाथ', वर्ष भर खुले रहते हैं यहाँ भोले का द्वार

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  कल्पेश्वर मंदिर पंच केदार 'कल्पनाथ', वर्ष भर खुले रहते हैं यहाँ भोले का द्वार.. सीमांत जनपद चमोली की प्रसिद्ध ऊर्गम घाटी में हेलंग से लगभग 13 किमी की दूरी पर स्थित है कल्पेश्वर मंदिर। कल्पेश्वर मंदिर तक सडक पहुंचने से पंच केदारों में सबसे सरल और सुगम यात्रा है यहाँ की जहां बमुश्किल से 100 मीटर की ही पैदल दूरी तय करनी पडती है। समुद्र तल से 2200 मीटर (7220 फीट) की ऊचाई पर से स्थापित है भोले का ये धाम। नन्दीकुंड ट्रैकिग एंड एडवेंचर ग्रुप हिमालय देवग्राम उर्गम घाटी के सीईओ और लोकसंस्कृति कर्मी रघुवीर सिंह नेगी नें बताया की कल्पेश्वर मंदिर पांडवों द्वारा बनाया गया था। पत्थर की गुफा में बना हुआ कल्पेश्वर मंदिर की वास्तुकला उत्तर भारतीय शैली में है। यह एकमात्र पंच केदार मंदिर है, जो पूरे वर्ष भर आम श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है। पंचकेदारों में भोले के दर्शन करनें के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु देश विदेश से यहाँ पहुंचते हैं। सावन के महीने तो श्रद्धालुओं की भारी भीड होती है। खासतौर पर सावन के सोमबार को यहाँ भोले के भक्तों का तांता लगा रहता है।   कल्पेश्वर मंदिर धार्मिक आस्था! पौराणि

भीम शिला! यकीन करना मुश्किल है लेकिन सत्य है ।

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 भीम शिला! यकीन करना मुश्किल है लेकिन सत्य है । Bhima Shila! It's hard to believe, but it's true. जब 2013 में केदारनाथ की त्रासदी ने पूरे भारत को झकझोर दिया तब केवल एक चीज था जो अडिग खड़ा रहा..वह था केदारनाथ मंदिर ..। आपदा के समय यह पत्थर बाढ़ के साथ आकर मंदिर के ठीक पीछे स्थापित हो गया और बाढ़ के वेग को अत्यंत मंद कर दिया और फिर दुनियाँ ने देखा कि केदारनाथ में सबकुछ तबाह होने के बाद भी हमारा मंदिर सौर्य से खड़ा होकर दुनियाँ को चकित कर रहा था ।  जय बाबा केदारनाथ जी मंदिर के पीछे आ रुकी बड़ी चट्टान  पानी, रेत, चट्टान और मिट्टी का सैलाब ने केदार घाटी को उजाड़कर रख दिया था। पहाड़ों में धंसी बड़ी-बड़ी मजबूत चट्टानें भी टूटकर पत्थर की तरह गिरने लगी। सैलाब के सामने जब कोई नहीं टिक पा रहा था, ऐसे में मंदिर पर भी खतरा मंडरा रहा था। केदारनाथ के लोग और साधुओं की मानें तो मंदिर को किसी चमत्कार ने ही बचाया था। कहते हैं कि पीछे के पहाड़ से बाढ़ के साथ तेज रफ्तार से एक बहुत बड़ी चट्टान भी मंदिर की ओर आ रही थी, लेकिन अचानक वे चट्टान मंदिर के पीछे करीबन 50 फुट की दूरी पर ही रुक गई। लोगों को ऐसा लगा जैसे

तुंगनाथ मंदिर भगवान शिव का सबसे ऊंचाई पर और 1000 वर्ष पुराना

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तुंगनाथ मंदिर भगवान शिव का सबसे ऊंचाई पर और 1000 वर्ष पुराना  Tungnath Temple is the highest and 1000 years old temple of Lord Shiva तुंगनाथ उत्तराखण्ड के गढ़वाल के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक पर्वत है। तुंगनाथ पर्वत पर स्थित है तुंगनाथ मंदिर, जो 3460 मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ है और पंच केदारों में सबसे ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर 1000 वर्ष पुराना माना जाता है और यहाँ भगवान शिव की पंच केदारों में से एक के रूप में पूजा होती है। ऐसा माना जाता है की इस मंदिर का निर्माण पाण्डवों द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया गया था, जो कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार के कारण पाण्डवों से रुष्ट थे। तुंगनाथ की चोटी तीन धाराओं का स्रोत है, जिनसे अक्षकामिनी नदी बनती है। मंदिर चोपता से ३ किलोमीटर दूर स्थित है। कहा जाता है कि पार्वती माता ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए यहां ब्याह से पहले तपस्या की थी ।यह पूरा पंचकेदार का क्षेत्र कहलाता है। ऋषिकेश से श्रीनगर गढ़वाल होते हुए अलकनंदा के किनारे-किनारे यात्रा बढ़ती जाती है। रुद्रप्रयाग पहुंचने पर यदि ऊखीमठ का रास्ता लेना है तो अलकनंदा को छोडकर मंदाकिनी घ

पंचकेदार (पाँच केदार) हिन्दुओं के पाँच शिव मंदिरों का सामूहिक नाम है

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पंचकेदार (पाँच केदार) हिन्दुओं के पाँच शिव मंदिरों का सामूहिक नाम है  पंचकेदार (पाँच केदार) हिन्दुओं के पाँच शिव मंदिरों का सामूहिक नाम है। ये मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित हैं। इन मन्दिरों से जुड़ी कुछ किंवदन्तियाँ हैं जिनके अनुसार इन मन्दिरों का निर्माण पाण्दवों ने किया था। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे अंतरध्यान होकर केदार में जा बसे। पांडव उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच गए। भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं के बीच चले गए। पांडवों को संदेह हुआ तो भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर लिया। भीम ने दो पहाड़ों पर पैर फैला दिए। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए पर भगवान शंकर रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बैल पर झपटे तो बैल भूमि में अंतरध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति और दृढ़ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।

खट्ठा-मीठा मनभावन फल काफल

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  खट्ठा-मीठा मनभावन फल काफल आप गर्मियों में उत्तराखंड आए और काफल यानी मिरिका एस्कुलेंटा का स्वाद नहीं लिया तो समझिए यात्रा अधूरी रह गई। समुद्रतल से 1300 से 2100 मीटर की ऊंचाई पर मध्य हिमालय के जंगलों में अपने आप उगने वाला काफल एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों के कारण हमारे शरीर के लिए बेहद लाभकारी है। इसका छोटा-सा गुठलीयुक्त बेरी जैसा फल गुच्छों में आता है और पकने पर बेहद लाल हो जाता है। तभी इसे खाया जाता है। इसका खट्ठा-मीठा स्वाद मनभावन और उदर-विकारों में अत्यंत लाभकारी होता है। काफल अनेक औषधीय गुणों से भरपूर है। इसकी छाल का उपयोग जहां चर्मशोधन (टैनिंग) में किया जाता है, वहीं इसे भूख और मधुमेह की अचूक दवा भी माना गया है। फलों में एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होने के कारण कैंसर व स्ट्रोक के होने की आशंका भी कम हो जाती है। काफल ज्यादा देर तक नहीं रखा जा सकता। यही वजह है उत्तराखंड के अन्य फल जहां आसानी से दूसरे राज्यों में भेजे जाते हैं, वहीं काफल खाने के लिए लोगों को देवभूमि ही आना पड़ता है। काफल के पेड़ काफी बड़े और ठंडे छायादार स्थानों में होते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में मजबूत अर्थतंत्र दे सकने क

जय सिद्धबली महाराज

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जय सिद्धबली महाराज!  श्री सिद्धबली मंदिर कोटद्वार उत्तराखंड में खोह नदी के तट पर पौड़ी गढ़वाल के कोटद्वार में स्थित हनुमान जी महाराज का एक प्रसिद्ध मंदिर हैं। कोटद्वार में बजरंगबली का एक प्राचीन सिद्धपीठ मंदिर है। श्री सिद्धबली मंदिर लैंसडाउन हिल स्टेशन से लगभग 37 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। सिद्धबली बाबा मंदिर कोटद्वार उत्तराखंड के गढ़वाल में हिमालय के असाधारण दृश्य के साथ भगवान हनुमान की विशाल मूर्ति एक 40 मीटर ऊँचे चट्टान पर विराजमान हैं।    मंदिर के अंदर दो प्राकृतिक पिंडी स्थित हैं जिसमे से एक हनुमान जी महाराज और दूसरी गुरु गोरखनाथ का नेतृत्व करती हैं।  सिद्धबली मंदिर के बरामदे का नजारा बहुत आकर्षित और देखने लायक हैं। यहाँ से एक छोटी नदी को प्रवाहित होते हुए और घुमावदार रास्ते भक्तों की उमड़ती हुई भीड़ को देखा जा सकता हैं जो कि लैंसडाउन हिल स्टेशन की ओर यात्रा कर रहे होते हैं। सिद्धबली मंदिर के द्वार से कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटता हैं। यहाँ देश ही नही विश्व भर के भक्त दर्शन करने पहुंचते हैं।

पहाड़ी फल तिमले का लाजवाब जायका

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तिमले का लाजवाब जायका वैज्ञानिक नाम फिकस ऑरिकुलेटा मध्य हिमालय में समुद्रतल से 800 से 2000 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाने वाला तिमला, एक ऐसा फल है, जिसे स्थानीय लोग, पर्यटक व चरवाहा बड़े चाव से खाते हैं। तिमला, जो पौष्टिक एवं औषधीय गुणों का भंडार है। मोरेसी कुल के इस पौधे का वैज्ञानिक नाम फिकस ऑरिकुलेटा है। तिमले का न तो उत्पादन किया जाता है

ताड़कासुर का वध करने के बाद भगवान शिव ने यहां विश्राम

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  Tarkeshwar Mahadev Temple जनपद पौड़ी गढ़वाल के रिखणीखाल विकासखण्ड से लगभग पच्चीस किलोमीटर बांज तथा बुरांश की जंगलों के बीच चखुलियाखाल से लगभग सात किलोमीटर उत्तर पूर्व में स्थित है ताड़केश्वर महादेव मंदिर। गढ़वाल राइफल के मुख्यालय लैन्सड़ौंन से लगभग पचास किलोमीटर दूर तथा गढ़वाल के द्वार कोटद्वार से लगभग पैंसठ किलोमीटर दूर स्थित यह धार्मिक स्थल दशकों से लोगों की आस्था और धार्मिक पर्यटन का केन्द्र रहा है। इसके पश्चिम में गढ़वाल का प्रसिद्ध पौराणिक बाजार सतपुली यहां से लगभग दस -बारह किलोमीटर दूरी पर है ताड़केश्वर महादेव ताड़ के विशाल वृक्षों के बीच में स्थित एक ऐसा प्राचीन तथा पौराणिक मंदिर है कि जहां आने मात्र से ही मन को एक अजीब प्रकार का सुकून और राहत मिलती है। यहां पर प्रकृति ने ऐसा वातावरण तथा दृश्यावलि रची हुई हैं कि ऐसा इस जगह के अतिरिक्त और कहीं देखने को नही मिलता है। यहां विशाल ताड़ के वृक्ष तथा हर मौसम में लबालब भरे जलकुण्ड देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है। कहते हैं कि ताड़कासुर का वध करने के बाद भगवान शिव ने यहां विश्राम किया था जब माता पार्वती ने देखा कि भगवान शिव को सूर्य की गर्मी लग रही

कंडोलिया मंदिर

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  Kandolia Temple (कंडोलिया मंदिर) आज हम आपको उत्तराखंड दर्शन की इस पोस्ट में पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित प्रसिद्ध मंदिर “ #Kandoliya Temple, Pauri Garhwal!! (कंडोलिया मंदिर)”  के बारे में पूरी जानकारी देने वाले है , यदि आप कंडोलिया मंदिर के बारे में जानना चाहते है तो इस वीडियो को अंत तक जरुर देखे  🌺एक और शिव मंदिर (कंडोलिया देवता) कंडोलिया पहाड़ियों पर ओक और पाइन के घने जंगल में स्थित है। इस मंदिर के निकट एक खूबसूरत पार्क, खेल परिसर और कुछ मीटर आगे एशिया की सबसे ऊंची स्टेडियम रान्शी है । गर्मियों के दौरान कंडोलिया पार्क में स्थानीय लोगों को उत्साह से हँसते और खेलते देख सकते हैं। कंडोलिया मंदिर , पौड़ी गढ़वाल शहर से 2 किमी. की दूरी पर स्थित धार्मिक , पवित्र एवम् प्राचीन मंदिर है । यह मंदिर कंडोलिया देवता को समर्पित है  जो स्थानीय भूमि देवता हैं । मंदिर में भगवान शिव जी की कंडोलिया देवता के रूप में पूजा होती है | यह धार्मिक स्थान महान हिमालय की चोटियों और गंगवारस्यून घाटी का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है । कण्डोलिया देवता चम्पावत क्षेत्र के डुंगरियाल नेगी जाति के लोगों के इष्ट “गोरिल देवता