संदेश

फ़रवरी, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पूरन चन्द जोशी / Puran Chand Joshi

चित्र
पूरन चन्द जोशी पूरा नाम                पूरन चन्द जोशी जन्म                               14 अप्रैल, 1907 जन्म भूमि           ज़िला अल्मोड़ा, उत्तरांचल मृत्यु                               9 नवम्बर, 1980 मृत्यु स्थान           दिल्ली नागरिकता           भारतीय प्रसिद्धि                     स्वतंत्रता सेनानी जेल यात्रा                     सन 1929 में 'मेरठ षड्यंत्र केस' में सज़ा भी हुई थी। विद्यालय                     इलाहाबाद विश्वविद्यालय शिक्षा                     क़ानून की डिग्री अन्य जानकारी पूरनचंद जोशी सन 1936 में कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने थे तथा सन 1951 में                                              इलाहाबाद से 'इण्डिया टुडे' पत्रिका निकाली थी। पूरन चन्द जोशी पूरनचंद जोशी (अंग्रेज़ी: PuranChand Joshi, जन्म- 14 अप्रैल, 1907, ज़िला अल्मोड़ा, उत्तरांचल; मृत्यु- 9 नवम्बर, 1980, दिल्ली) स्वाधीनता सेनानी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्य थे। वे कम्युनिटों के बीच पी.सी. जोशी के नाम से प्रसिद्ध थे। पूरन चन्द जोशी को सन 1929 में मे

गढ़वाल राइफल्स ने पेशावर में अपने देशवासियों पर गोली चलाने से इनकार कर / Garhwal Rifles refuse to fire on their countrymen in Peshawar

चित्र
गढ़वाल राइफल्स ने पेशावर में अपने देशवासियों पर गोली चलाने से इनकार कर 23 अप्रैल 1930. पेशावर के सदर बाजार के काबुली गेट पर पठानों की भीड़ लगी हुई थी. सबके चेहरों पर एक शिकन तो थी, लेकिन कोई खास ख़ौफ़ नहीं दिखता था. पेशावर के आसमान में सूरज अभी चढ़ ही रहा था, लेकिन माहौल में तनाव और कुछ अनिष्ट हो जाने का डर पसरा हुआ था. चौराहे के दूसरी ओर अभी-अभी एक गोरे सार्जेंट पर किसी ने पेट्रोल की बोतल दे मारी थी. वो सार्जेंट जब जलने लगा तो वहां तैनात अंग्रेज़ अधिकारी कैप्टन रिकेट ने सिपाहियों को उसे बचाने का आदेश दिया. लेकिन कोई भी भारतीय सिपाही आगे नहीं बढ़ा. उल्टा सभी सिपाहियों ने मुँह फेर लिया. सार्जेंट जब जल कर मर गया, तो ग़ुस्से से तमतमाए कैप्टन रिकेट ने चार जवानों को धक्का मारते हुए आदेश दिया, ‘जाओ उसे ले आओ.’ सिपाही मौके पर पहुंचे और गोरे सार्जेंट को खींच लाए. इस घटना के बाद पेशावर के पठान ये भांप चुके थे कि अंग्रेजी हुकूमत इस हत्या का बदला ज़रूर लेगी. पठानों की ये आशंका अगले कुछ घंटों में ही सही भी साबित होने वाली थी. अंग्रेजों ने रॉयल गढ़वाल राइफ़ल्ज़ की पूरी ब्रिगेड को पेशावर के चप्पे-चप्पे म

महान क्रान्तिकारी चंद्र सिंह गढ़वाली /The great revolutionary Chandra Singh Garhwali

चित्र
महान क्रान्तिकारी चंद्र सिंह गढ़वाली वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली (25 दिसम्बर, 1891 - 1 अक्टूबर 1979) को भारतीय इतिहास में पेशावर काण्ड के नायक के रूप में याद किया जाता है। २३ अप्रैल १९३० को हवलदार मेजर चन्द्र सिंह गढवाली के नेतृत्व में रॉयल गढवाल राइफल्स के जवानों ने भारत की आजादी के लिये लड़ने वाले निहत्थे पठानों पर गोली चलाने से मना कर दिया था। बिना गोली चले, बिना बम फटे पेशावर में इतना बड़ा धमाका हो गया कि एकाएक अंग्रेज भी हक्के-बक्के रह गये, उन्हें अपने पैरों तले जमीन खिसकती हुई सी महसूस होने लगी। पेशावर कांड । जीवनी चन्द्र सिंह गढ़वाली का जन्म 25 दिसम्बर 1891 में हुआ था। चन्द्रसिंह के पूर्वज चौहान वंश के थे जो मुरादाबाद में रहते थे पर काफी समय पहले ही वह गड़वाल की राजधानी चांदपुरगढ़ में आकर बस गये थे और यहाँ के थोकदारों की सेवा करने लगे थे। चन्द्र सिंह के पिता का नाम जलौथ सिंह भंडारी था। और वह एक अनपढ़ किसान थे। इसी कारण चन्द्र सिंह को भी वो शिक्षित नहीं कर सके पर चन्द्र सिंह ने अपनी मेहनत से ही पढ़ना लिखना सीख लिया था। 3 सितम्बर 1914 को चन्द्र सिंह सेना में भर्ती होने के लिये लैंसडौन

चन्द्र सिंह गढ़वाली /Chandan Singh Garhwali

चित्र
चंद्र सिंह भंडारी Chandra Singh Garhwali पूरा नाम                          चन्द्र सिंह गढ़वाली जन्म                                         1891 ई. जन्म भूमि                      पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड मृत्यु                                         1 अक्टूबर, 1979 नागरिकता                     भारतीय आंदोलन                               सविनय अवज्ञा आन्दोलन, नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आन्दोलन अन्य जानकारी           आन्दोलन के दौरान जब अंग्रेज़ अधिकारियों ने अहिंसक प्रदर्शन कर रहे                                                    आन्दोलनकारियों   पर गोलियाँ चलाने की आज्ञा दी, तब चन्दन सिंह ने गोली                                                                चलाने से इंकार कर दिया। चन्द्र सिंह गढ़वाली /Chandan Singh Garhwali  चन्दन सिंह गढ़वाली (अंग्रेज़ी: Chandan Singh Garhwali, जन्म: 1891 ई. - मृत्यु: 1 अक्टूबर, 1979) भारत के क्रांतिकारियों में से एक थे। चन्दन सिंह 'गढ़वाल रेजीमेंट' के प्रमुख थे। 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के दौरान जब उत्तर-पश्चिम सीमा प्रा

विचित्र नारायण शर्मा /Vichitra Narayan Sharma

चित्र
विचित्र नारायण शर्मा पूरा नाम                          विचित्र नारायण शर्मा अन्य नाम                          विचित्र भाई जन्म                                    10 मई, 1898 जन्म भूमि                          गढ़वाल, उत्तरांचल मृत्यु                                    31 मई, 1998 नागरिकता                भारतीय प्रसिद्धि                          स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनीतिज्ञ पुरस्कार-उपाधि      'जमुना लाल बजाज पुरस्कार', 1993 अन्य जानकारी पूर्व विधायक और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में विचित्र नारायण शर्मा को जो पेंशन मिलती थी, उसे वे गांधी आश्रम में जमा कर देते थे। आश्रम से उन्हें आजीविका के लिए जो धन मिलता था, उसी से अपना काम चलाते थे। विचित्र नारायण शर्मा उत्तराखण्ड राज्य के टिहरी गढ़वाल के टिंगरी गांव के मूल निवासी विचित्र नारायण शर्मा उनियाल का जनम 10 मई, 1898 को देहरादून के नवादा ग्राम में हुआ था। हाईस्कूल परीक्षा देहरादून से उत्तीर्ण करने के बाद स्नातक शिक्षा बनारस से ग्रहण की। किन्तु गांधी जी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर आचार्य कृपलानी के नेतृत्व म

गोविंद बल्लभ पंत /Govind Ballabh Pant

चित्र
गोविंद बल्लभ पंत पूरा नाम                                 गोविंद बल्लभ पंत जन्म                                    10 सितम्बर, 1887 जन्म भूमि                     अल्मोड़ा, उत्तराखंड मृत्यु                                         7 मार्च, 1961 अभिभावक                     श्री मनोरथ पंत पति/पत्नी                               श्रीमती गंगा देवी नागरिकता                     भारतीय पार्टी                               कांग्रेस पद                                         उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भारत के गृहमंत्री कार्य काल                     मुख्यमंत्री- 15 अगस्त 1947 से 27 मई 1954 गृहमंत्री-                                    1955 - 1961 शिक्षा                               वकालत विद्यालय                          'म्योर सेण्ट्रल कॉलेज', इलाहाबाद भाषा                                    अंग्रेज़ी, संस्कृत जेल यात्रा                          सन 1921, 1930, 1932 और 1934 के स्वतंत्रता संग्रामों में लगभग 7 वर्ष जेलों में रहे। पुरस्कार-उपाधि           भा

फूलदेई उत्तराखंड का लोक पर्व || फूलदेई की शुभकामनाएं || Phool dei 2024 | Phuldei | phool dei photo

चित्र
फूलदेई उत्तराखंड का लोक पर्व || फूलदेई की शुभकामनाएं ||  Phool dei 2024 | Phuldei | phool dei photo उत्तराखंड वासियों का प्रकृति प्रेम जगविख्यात है। चाहे पेड़ बचाने के लिए चिपको आंदोलन हो या पेड़ लगाने के लिए मैती आंदोलन या प्रकृति का त्योहार हरेला हो। इसी प्रकार प्रकृति को प्रेम प्रकट करने का त्योहार या प्रकृति का आभार प्रकट करने का प्रसिद्ध त्योहार फूलदेई मनाया जाता है। फूलों के साथ मनाया जाता है फुलदेई, मुख्य विशेषताएं, फूलयारी बच्चे, फूल सक्रांति /phoolon ke sath manaya jata hai fuldei, mukhya visheshtayen, phoolayaree bacche, fool sakranti #phooldei #prakriti aur jeevan ke utsav ka lokaparv hai / #फूलदेई #प्रकृति और जीवन के उत्सव का लोकपर्व है- फूलदेई त्योहार मुख्यतः छोटे छोटे बच्चो द्वारा मनाया जाता है। यह उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोक पर्व है। फूलदेई त्योहार बच्चों द्वारा मनाए जाने के कारण इसे लोक बाल पर्व भी कहते हैं। प्रसिद्ध त्योहार फूलदेई (Phool dei ) चैैत्र मास के प्रथम तिथि को मनाया जाता है। अर्थात प्रत्येक वर्ष मार्च 14 या 15 तारीख को यह त्योहार मनाया जाता है। फूल सग्यान

जागेश्वर धाम अल्मोड़ा /Jageshwar Dham Almora

चित्र
जागेश्वर धाम अल्मोड़ा जागेश्वर धाम अल्मोड़ा का कुबेर मंदिर...यह मंदिर अद्भुत है और भारत का इकलौता मंदिर है, जिसमें भगवान कुबेर चहुंमुखी शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं.... देवदार के घने जंगलों में पत्तियों से टपकने वाली ओस के एकत्र होने नदी का रूप लेने वाली जटागंगा के तट पर जागेश्वर धाम के मुख्य परिसर से बाहर थोड़ा ऊंचाई पर बनाए गए कुबेर मंदिर से धाम का अद्भुत नजारा दिखाई देता है... जागेश्वर   धाम ,  अल्मोड़ा उत्तराखंड के अल्मोड़ा से ३५ किलोमीटर दूर स्थित केंद्र जागेश्वर धाम के प्राचीन मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस क्षेत्र को सदियों से आध्यात्मिक जीवंतताप्रदान कर रहे हैं। यहां लगभग २५० मंदिर हैं जिनमें से एक ही स्थान पर छोटे-बडे २२४ मंदिर स्थित हैं। इतिहास उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाडियों के कुमाऊं क्षेत्र में कत्यूरीराजा थे। जागेश्वर मंदिरों का निर्माण भी उसी काल में हुआ। इसी कारण मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की झलक भी दिखलाई पडती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इन मंदिरों के निर्माण की अवधि को तीन कालों में बांटा गया है। कत्यरीकाल, उत्तर क