पूरन चन्द जोशी / Puran Chand Joshi

पूरन चन्द जोशी


पूरा नाम             पूरन चन्द जोशी
जन्म                         14 अप्रैल, 1907
जन्म भूमि         ज़िला अल्मोड़ा, उत्तरांचल
मृत्यु                         9 नवम्बर, 1980
मृत्यु स्थान         दिल्ली
नागरिकता         भारतीय
प्रसिद्धि                 स्वतंत्रता सेनानी
जेल यात्रा                 सन 1929 में 'मेरठ षड्यंत्र केस' में सज़ा भी हुई थी।
विद्यालय                 इलाहाबाद विश्वविद्यालय
शिक्षा                 क़ानून की डिग्री
अन्य जानकारी पूरनचंद जोशी सन 1936 में कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने थे तथा सन 1951 में                                     इलाहाबाद से 'इण्डिया टुडे' पत्रिका निकाली थी।

पूरन चन्द जोशी

पूरनचंद जोशी (अंग्रेज़ी: PuranChand Joshi, जन्म- 14 अप्रैल, 1907, ज़िला अल्मोड़ा, उत्तरांचल; मृत्यु- 9 नवम्बर, 1980, दिल्ली) स्वाधीनता सेनानी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्य थे। वे कम्युनिटों के बीच पी.सी. जोशी के नाम से प्रसिद्ध थे। पूरन चन्द जोशी को सन 1929 में मेरठ षड्यंत्र केस में सज़ा भी हुई थी। वे सन 1936 में कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने थे तथा सन 1951 में इलाहाबाद से 'इण्डिया टुडे' पत्रिका निकाली थी। पी. सी. जोशी ने कम्युनिस्ट आंदोलन के संबंध में अनेक पुस्तकें लिखी थीं। ये कई बार जेल भी गये थे।

जन्म एवं परिचय

पूरंनचंद्र जोशी का जन्म 14 अप्रैल, 1907 ई. को उत्तरांचल के अल्मोड़ा में हुआ था। पी. सी. जोशी ने एम.ए और क़ानून की परीक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पास की थी। वे कुछ समय तक उसी विश्वविद्यालय मे इतिहास के अध्यापक भी रहे थे।

कम्युनिस्ट आंदोलन

विद्यार्थी जीवन में ही पी. सी. जोशी कम्युनिस्ट आंदोलन के संपर्क में आ गए थे। गोपनीय गतिविधियों में उनके संलग्न रहने की सूचना मिलने पर गिरफ्तार कर लिए गये थे। मेरठ षड़्यंत्र केस 1929 में पूरनचंद्र जोशी पर भी मुकदमा चला और 1933 तक वे जेल में बंद रहे थे। बाहर आने पर जब कम्युनिस्ट पार्टी का भारत में केंद्रीय संगठन बना तो पी. सी. जोशी उसके महासचिव बनाए गए थे। 1935 की कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के निश्चयों की पृष्ठभूमि में, देश के स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रयत्नाशील संगठन के सहारे अपनी संगठनात्मक शक्ति में वृद्धि करने के उद्देश्य से भारत के कम्युनिस्ट भी कांग्रेस संगठन में सम्मिलित हो गए थे। साथ ही पूरनचंद्र जोशी ने श्रमिकों के किसानों के और विद्यार्थियों के भी अलग संगठन बनाए थे। पी.सी.जोशी का इन सबमें अग्रणी योगदान था।

कांग्रेस संगठन से निकाला

द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ होने पर पहले प्रमुख कम्युनिस्ट भी गिरफ्तार कर लिए गए थे। ब्रिटेन आदि के साथ रूस भी युद्ध में सम्मिलित हुआ तो कम्युनिस्टों की नीति बदल गई थी। पूरनचंद्र जोशी ब्रिटिश सरकार का विरोध करने के स्थान पर उसका समर्थन करने लगे थे और जेलों से बाहर तो पूरनचंद्र जोशी की अंग्रेज़ परस्त नीति को देखते हुए कम्युनिस्टों को कांग्रेस से निकाल दिया गया था। स्वतंत्रता के बाद पी. सी. जोशी कांग्रेस सरकारों का समर्थन करने के पक्ष में थे। इस पर उन्हें महामंत्री पद से ही नहीं, कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता से भी हटा दिया गया था , यद्यपि 1951 में वे फिर पार्टी के सदस्य बना लिए थे।

निष्कासन और पुनर्वास

पोस्ट में स्वतंत्रता अवधि, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी , के बाद दूसरे नंबर पर कांग्रेस में कलकत्ता (नई वर्तनी: कोलकाता ) हथियार लेने के लिए एक रास्ता अपनाया। जोशी जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ एकता की वकालत कर रहे थे । 1948 में भाकपा के कलकत्ता कांग्रेस में उनकी कड़ी आलोचना की गई और उन्हें महासचिव पद से हटा दिया गया। इसके बाद, उन्हें 27 जनवरी 1949 को पार्टी से निलंबित कर दिया गया, दिसंबर 1949 में निष्कासित कर दिया गया और 1 जून 1951 को पार्टी में फिर से शामिल किया गया। धीरे-धीरे उन्हें दरकिनार कर दिया गया, हालांकि उन्हें पार्टी साप्ताहिक, न्यू एज का संपादक बनाकर पुनर्वासित किया गया । भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन के बाद , वह भाकपा के साथ थे। हालांकि उन्होंने 1964 में 7वीं कांग्रेस में भाकपा की नीति की व्याख्या की, लेकिन उन्हें सीधे नेतृत्व में नहीं लाया गया।

महासचिव के रूप में

1935 के अंत में भाकपा के तत्कालीन सचिव सोमनाथ लाहिड़ी की अचानक गिरफ्तारी के बाद जोशी नए महासचिव बने। इस प्रकार वे १९३५ से १९४७ तक की अवधि के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पहले महासचिव बने। उस समय वाम आंदोलन लगातार बढ़ रहा था और ब्रिटिश सरकार ने १९३४ से १९३८ तक कम्युनिस्ट गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया। भारत का पहला कानूनी अंग बॉम्बे में शुरू हुआ , नेशनल फ्रंट , जोशी इसके संपादक बने। [१] राज ने १९३९ में अपने प्रारंभिक युद्ध-विरोधी रुख के लिए भाकपा पर फिर से प्रतिबंध लगा दिया। 1941 में जब नाजी जर्मनी ने सोवियत संघ पर हमला किया, तो भाकपा ने घोषणा की कि युद्ध की प्रकृति फासीवाद के खिलाफ लोगों के युद्ध में बदल गई है ।

कृतियाँ

पी. सी. जोशी ने कम्युनिस्ट आंदोलन के संबंध में अनेक पुस्तकें लिखीं थी। वे कुछ वर्षों तक पार्टी के मुख पत्र ‘न्यू एज’ के संपादक भी रहे थे । सांस्कृतिक क्षेत्र में ‘इंडियन पीपुल्स थिएटर ऐसोसिएसन’ (इप्ट) की स्थापना में भी उनका प्रमुख हाथ था।

निधन

पूरंनचंद्र जोशी का निधन 9 नवम्बर, 1980, दिल्ली में हुआ था।
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