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आरती- जय गोलज्यू महाराज.जय हो जय गोलज्यू महाराज, - Aarti- Jai Goljyu Maharaj. Jai Ho Jai Golju Maharaj,

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 आरती- जय गोलज्यू महाराज.जय हो जय गोलज्यू महाराज,  चितई गोलू मंदिर, अल्मोडा  आरती- जय गोलज्यू महाराज.जय हो जय गोलज्यू महाराज, जय हो जयगोलज्यू महाराज, ज्योति जलूनों तेरी. ज्योति जलूनों तेरी. सुफल करिए काज. जय गोलज्यू महाराज.....!!! पाड़ी में बगन तू आछे , लुवे को पिटार में नादान, देवा लुवे को पीटार में नादान. गोरी घाट भाना पायो. गोरी घाट भाना पायो. पड़ी गयो गोरिया नाम. जय हो जय गोलज्यू महाराज.....!!! हरुआ, कलुवा भाई तेरो, बड़ छेना जो दीवान, देवा बड़ छेना जो दीवान. माता कालिका तेरी. माता कालिका तेरी. बाबू झालो राज़. जय हो जय गोलज्यू महाराज.....!!! सुखिले लुकड़ टांक तेरो, कांठ का घोड़ में सवार, देवा काठ को घोड़ में सवार. लुवे की लगाम हाथयू में. लुवे की लगाम हाथयू में. चाबुक छू हथियार. जय हो जय गोलज्यू महाराज.....!!! न्याय तेरो हुं साची, सब उनी तेरो द्वार, देवा सब उनी तेरो द्वार. जो मांखी तेरो नो ल्यूं. जो मांखी तेरो नो ल्यूं. लगे वीक नय्या पार. जय गोलज्यू महाराज.....!!! दधू , बतास और नारियल, फूल चडनी तेरो द्वार, देवा फूल चडनी तेरो द्वार. प्रथम मंदीर चम्पावत. प्रथम मंदीर चम्पावत. फिर चितई,

चितई गोलू मंदिर, अल्मोडा(Chitai Golu Temple, Almoda)

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 चितई गोलू मंदिर, अल्मोडा(Chitai Golu Temple, Almoda) अल्मोड़ा से लगभग 8 किमी दूर स्थित, चिताई गोलू उत्तराखंड में एक प्रसिद्ध मंदिर है| गोलु जी देवता की अध्यक्षता में गौर भैरव के रूप में भगवान शिव विराजमान हैं| चित्तई मंदिर को इसकी परिसर में लटकी तांबे की घंटियों द्वारा आसानी से पहचाना जा सकता है| गोलू जी को न्याय का भगवान माना जाता है और यह एक आम धारणा है कि जब कोई व्यक्ति उत्तराखंड में आपके किसी मंदिर में पूजा करता है तो गोलू देवता उसे न्याय प्रदान करते हैं और अपने भक्तों की इच्छा पूरी करते हैं |  चितई गोलू मंदिर, अल्मोडा मंदिर से जुड़ी मान्यताएं... मनोकामना पूरी होने पर मंदिर में  घंटी चढ़ाई गोलू देवता को स्थानीय संस्कृति में सबसे बड़े और त्वरित न्याय के देवता के तौर पर पूजा जाता है। इन्हें राजवंशी देवता के तौर पर पुकारा जाता है। गोलू देवता को उत्तराखंड में कई नामों से पुकारा जाता है। इनमें से एक नाम गौर भैरव भी है। गोलू देवता को भगवान शिव का ही एक अवतार माना जाता है। मनोकामना पूरी होने पर मंदिर में चढ़ाई जाती है   चितई गोलू मंदिर, अल्मोडा मंदिर में लाखों अद्भुत घंटे-घंटियों का संग्

चितई गोलू देवता की आरती और पूजा मंत्र "जय गोल ज्यू महाराज, " - chitee goloo devata kee aaratee aur pooja mantr "jay gol jyoo mahaaraaj, "

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 चितई गोलू देवता की आरती और पूजा मंत्र "जय गोल ज्यू महाराज, "  चितई गोलू मंदिर, अल्मोडा जय गोल ज्यू महाराज,  जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..! जय गोल ज्यू महाराज,  जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!! ज्योत जगुनों तेरी...  सुफल करिए काज....! जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!! (कोरस) जय गोल ज्यू महाराज,  जय हो जय गोल ज्यू महाराज .. ज्योति जगुनों तेरी...  सुफल करिए काज....! जय गोल ज्यू महाराज !! पाड़ी में बगन तू आछे,  लुवे को पिटार में नादान,  (देवा लुवे को पीटार में नादान) गोरी घाट भाना पायो..  पड़ी गयो गोरिया नाम..! जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!! (कोरस) जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..  जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!! ज्योति जलूनों तेरी...  सुफल करिए काज.....! जय गोल ज्यू महाराज !! हरुआ, कलुवा भाई तेरो,  बड़ छेना जो दीवान..! माता कालिंका तेरी...  बाबू झालो राज...! जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!! (कोरस) जय हो जय गोल ज्यू महाराज  जय हो जय गोल ज्यू महाराज ज्योति जलूनों तेरी...  सुफल करिए काज.....! जय गोल ज्यू महाराज !! सुखिले लुकड़ टांक तेरो  कांठ का घोड़ में सवार ! (देवा काठ को घोड़ में सवार) लुवे की लगा

कसार देवी मंदिर अल्मोड़ा (Kasar Devi Temple Almora)

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 कसार देवी मंदिर अल्मोड़ा (Kasar Devi Temple Almora) कसार देवी मंदिर, अल्मोड़ा कसार देवी मंदिर, अल्मोड़ा कसार देवी मंदिर, अल्मोड़ा कासार देवी उत्तराखंड के अल्मोड़ा के पास एक गांव है। यह कासार देवी मंदिर, कासार देवी को समर्पित एक देवी मंदिर के लिए जाना जाता है, जिसके बाद यह स्थान भी नामित किया गया है। मंदिर की संरचना की तारीखें 2 शताब्दी सी.ई.की हैं, 1890 के दशक में स्वामी विवेकानंद ने कासार देवी का दौरा किया और कई पश्चिमी साधक, सुनिता बाबा, अल्फ्रेड सोरेनसेन और लामा अनागारिक गोविंदा यहाँ आ चुके हैं |1960 और 1970 के दशक में हिप्पी आंदोलन के दौरान यह एक  लोकप्रिय स्थान था, जो गांव के बाहर, क्रैंक रिज के लिए भी जाना जाता है, और घरेलू और विदेशी दोनों ही ट्रेकर्स और पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है। कसार देवी मंदिर, अल्मोड़ा इस मंदिर का निर्माण लगभग दूसरी शताब्दी में किया गया था। उसके बाद से ही ये मंदिर ध्यान और साधना का प्रमुख केंद्र बन गया है क्योंकि इस मंदिर के आसपास का पूरा क्षेत्र वैन एलेन बेल्ट है। इसके अलावा, इस मंदिर में महान भारतीय संन्यासी स्वामी विवेकानंद ने ध्यान किया था। अगर आपको शा

नंदा देवी राजजात यात्रा - ऊर्गम घाटी में नंदा का अनूठा लोकोत्सव!(Nanda Devi Rajajat Yatra - Nanda's unique Lokotsav in the Vegha Valley!)

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नंदा देवी राजजात यात्रा - ऊर्गम घाटी में नंदा का अनूठा लोकोत्सव! मां नंदा और स्वनूल को ससुराल कैलास से मायके लाने की यात्रा, जुगात के जरिए करते हैं विदा.. ऊर्गम घाटी में नंदा का अनूठा लोकोत्सव! उत्तराखंड में हिमालय की अधिष्टात्री देवी माँ नंदा के लोकोत्सवों की अलग ही पहचान है। नंदा के मायके में अलकनंदा नदी के पश्चिमी छोर की सहायक जलधारा बालखिला से कल्प गंगा के बीच के हिस्से को मल्ला नागपुर क्षेत्र कहा गया है। इसी भू भाग में आयोजित होती है मां नंदा का अनूठा लोकोत्सव। इसी परिक्षेत्र में चमोली जिले के जोशीमठ ब्लाक के उर्गम थात, पंचगाई थात गांवों के लोग हर साल भादौ के महीने मां नंदा और स्वनूल की वार्षिक लोकजात यात्रा आयोजित करते हैं। यह जात नंदा को ससुराल कैलास से मायके लाने की यात्रा है। जिसमें माँ नंदा को मैनवाखाल में नंदीकुड से और स्वनूल को भनाई बुग्याल में सोना शिखर से जागरों के माध्यम से अपने मायके में अष्टमी के लिए बुलाया जाता है। नंदा सप्तमी के दिन यहां पूजा-अर्चना के बाद भगोती नंदा को मायके लाने की मनौती की जाती है। जिसके उपरांत दोनों ध्याण नंदा अष्टमी को अपने मायके ऊर्गम पहुंचती ह

नंदा देवी मेला अल्मोड़ा उत्तराखंड (Nanda Devi Mela Almora Uttarakhand)

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नंदा देवी मेला अल्मोड़ा उत्तराखंड नंदा देवी मेला अल्मोड़ा नंदा देवी मेले के बारे में उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र में प्रमुख त्योहारों में से एक, नंदा देवी मेला अल्मोड़ा, नैनीताल, बागेश्वर, भोवाली और कोट जैसे स्थानों के साथ-साथ जोहार के दूर-दराज के गांवों में आयोजित किया जाता है। यह मेला हर साल सितंबर के महीने में आयोजित किया जाता है। अल्मोड़ा वह स्थान है जहाँ मुख्य मेला लगता है। नंदा देवी मेला, जिसे नंदा देवी महोत्सव के रूप में भी जाना जाता है, चंद राजाओं के शासन के समय से मनाया जाता है और इसकी अवधि 5 दिन या 7 दिन होती है। यह मेला आमतौर पर नंदाष्टमी के त्यौहार के आसपास लगता है, जिसे राज्य के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। किंवदंती के अनुसार, नंदा देवी कुमाऊं क्षेत्र के शासक चंद राजाओं की कुल देवी थीं। 17वीं शताब्दी में राजा द्योत चंद ने अल्मोड़ा में नंदा देवी का मंदिर बनवाया था। इस प्रकार, तब से हर साल कुमाऊं की देवी नंदा देवी की पूजा के लिए नंदा देवी मेले का आयोजन किया जाता है और यह क्षेत्र की आर्थिक और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है। लोग नंदा देवी और उनकी बहन सुनंदा की डोला (प

माँ नंदा देवी की राजजात की कहानी और कौन कौन से पड़ाव पड़ते हैं

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 जय माँ नंदा देवी नंदा देवी राजजात यात्रा मैं पढ़ते हैं 20 पड़ाव माँ नंदा देवी की राजजात की कहानी और कौन कौन से पड़ाव पड़ते हैं पहला पड़ाव- ईड़ाबधाणी दूसराा पड़ाव- नौटी तीसरा पड़ाव- कांसुवा  चौथा पड़ाव- सेम  पांचवां पड़ाव- कोटी  छठा पड़ाव- भगोती  सातवां पड़ाव- कुलसारी आठवां पड़ाव- चेपड्यूं  नौवां पड़ाव- नंदकेशरी दसवां पड़ाव- फल्दियागांव  ग्यारहवां पड़ाव- मुंदोली बारहवां पड़ाव- वाण तेरहवां पड़ाव- गैरोलीपातल  चौदहवां पड़ाव- वैदनी पन्द्रहवां पड़ाव- पातरनचौंणियां  सोलहवां पड़ाव- शिला समुद्र  सत्रहवां पड़ाव- चंदनियाघाट  अठारहवां पड़ाव- सुतोल उन्नीसवां पड़ाव- घाट:  वापसी नौटी: नंदप्रयाग मां नंदा देवी राजजात यात्रा विश्व की सबसे लंबी पैदल यात्रा है नंदा देवी राजजात मां नंदा को उनके ससुराल भेजने की यात्रा लोक इतिहास के अनुसार नन्दा गढ़वाल के राजाओं के साथ-साथ कुँमाऊ के कत्युरी राजवंश की ईष्टदेवी थी। इष्टदेवी होने के कारण नन्दादेवी को राजराजेश्वरी कहकर सम्बोधित किया जाता है। नन्दादेवी को पार्वती की बहन के रूप में देखा जाता है परन्तु कहीं-कहीं नन्दादेवी को ही पार्वती का रूप माना गया है। नन्दा के

नंदा देवी मंदिर - नंदा देवी मंदिर अल्मोड़ा (Maa Nanda Devi Temple, Almora)

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नंदा देवी मंदिर - नंदा देवी मंदिर अल्मोड़ा - अल्मोड़ा में मंदिर नंदा देवी मंदिर - नंदा देवी मंदिर अल्मोड़ा  नंदा देवी मंदिर का निर्माण चंद राजाओं द्वारा किया गया था।देवी की मूर्ति शिव मंदिर के डेवढ़ी में स्थित है और स्थानीय लोगों द्वारा बहुत सम्मानित है। हर सितंबर में, अल्मोड़ा नंदादेवी मेला के लिए इस मंदिर में हजारों हजारों भक्तों की भीड़ रहती हैं,मेला 400 से अधिक वर्षों तक इस मंदिर का अभिन्न हिस्सा है। नंदा देवी मंदिर का इतिहास वर्ष1670 में कुमाऊं के चंद शासक राजा बाज बहादुर चंद बधाणकोट किले से मां नंदा देवी की सोने की मूर्ति लाए और मूर्ति को मल्ला महल में स्थापित कर दिया। तब से चंद शासकों ने मां नंदा को कुल देवी के रूप में पूजना शुरू कर किया। सन 1690 में तत्कालीन राजा उघोत चंद ने पार्वतीश्वर और उघोत चंद्रेश्वर नामक दो शिव मंदिर बनाए। 1710 में राजा जगत चंद को बधानकोट विजय के अवसर पर नंदादेवी की प्रतिमा प्राप्त नहीं हुई तो उन्होंने अपने खजाने से 200 अशर्फियों को गलाकर नंदादेवी की प्रतिमा का निर्माण कराया। सन 1815 में मल्ला महल में स्थापित नंदादेवी की मूर्तियों को कमिश्नर ट्रेल ने उघोत

कटारमल सूर्य मंदिर अल्मोड़ा (Katarmal Sun Temple Almora)

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 कटारमल सूर्य मंदिर अल्मोड़ा (Katarmal Sun Temple Almora) कटारमल सूर्य मंदिर अल्मोड़ा कटारमल सूर्य मंदिर कटारमल सूर्य मंदिर अल्मोड़ा कटारमल मंदिर एक शानदार सूर्य मंदिर है जिसे बारा आदित्य मंदिर भी कहा जाता है।कटारमल अल्मोड़ा से लगभग 17 किलोमीटर दूर स्थित है और यह 2,116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कोसी नदी के पास हवालबाग और मटेला को पार करने के लिए लगभग तीन किलोमीटर का पैदल सफर करना पड़ता है। कटारमल मंदिर को कुमाऊं में एकमात्र सूर्य मंदिर होने का गौरव प्राप्त है। कटारमल सूर्य मंदिर अल्मोड़ा इतिहास कटारमल सूर्य मंदिर आठ शताब्दियों से भी अधिक पुराना है, जो इसे भारत के सबसे पुराने सूर्य मंदिरों में से एक बनाता है। मंदिर का निर्माण कत्यूरी राजाओं ने करवाया था, जो कला और वास्तुकला के प्रति अपने प्रेम के लिए जाने जाते थे। यह खूबसूरत पहाड़ी मंदिर आसपास के हिमालयी परिदृश्य के कुछ लुभावने दृश्य भी प्रस्तुत करता है। सबसे अच्छी बात यह है कि इसका दूरस्थ स्थान वर्षों से इसके ऐतिहासिक, स्थापत्य और प्राकृतिक सौंदर्य को संरक्षित करने में मदद करता है। कटारमल सूर्य मंदिर अल्मोड़ा वास्तुकला मंदिर अपनी अनूठ

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम (Lord Shiva / Mahadev Dwadash Jyotirlinga Stotram)

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द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम  Lord Shiva / Mahadev Dwadash Jyotirlinga Stotram हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम का नियमित जाप भगवान शिव को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद पाने का सबसे शक्तिशाली तरीका है। द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम का पाठ कैसे करें सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए आपको सुबह स्नान करने के बाद और भगवान शिव की मूर्ति या तस्वीर के सामने द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम का पाठ करना चाहिए। इसके प्रभाव को अधिकतम करने के लिए आपको सबसे पहले द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम का अर्थ हिंदी में समझना चाहिए। द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम के लाभ द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम का नियमित पाठ मन को शांति देता है और आपके जीवन से सभी बुराईयों को दूर करता है और आपको स्वस्थ, धनवान और समृद्ध बनाता है। सौराष्ट्रे सोमनाधञ्च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् । उज्जयिन्यां महाकालम् ॐकारेत्वमामलेश्वरम् ॥ पर्ल्यां वैद्यनाधञ्च ढाकिन्यां भीम शङ्करम् । सेतुबन्धेतु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥ वारणाश्यान्तु विश्वेशं त्रयम्बकं गौतमीतटे । हिमालयेतु केदारं घृष्णेशन्तु विशालके ॥ एतानि ज्योतिर्लिङ्गान