श्री दुर्गा-पूजा: विधि, सामग्री एवं महत्त्व - Shri Durga Puja: Rituals, Ingredients and Significance

 श्री दुर्गा-पूजा: विधि, सामग्री एवं महत्त्व

प्रस्तावना: श्री दुर्गा-पूजा हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है, जो वर्ष में दो बार चैत्र और आश्विन माह में मनाई जाती है। इन नौ दिनों के दौरान माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिसे 'नवरात्र' कहा जाता है। इस ब्लॉग में हम दुर्गा-पूजा की विधि, आवश्यक सामग्री और इसके महत्त्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे।


दुर्गा-पूजा की विधि:

दुर्गा-पूजा की शुरुआत पूजा स्थल को शुद्ध करने और सजाने से होती है। साधक भक्त स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें और माँ दुर्गा की मूर्ति को मण्डप में स्थापित करें। मूर्ति के दाईं ओर कलश की स्थापना करें और कलश के सम्मुख जौं बोने चाहिएँ। पूजन की विधि इस प्रकार है:

  1. गणेश पूजा: पूजा की शुरुआत गणेश जी की पूजा से करें। इसके बाद अन्य देवी-देवताओं की पूजा करें।
  2. जगदम्बा पूजन: इसके बाद माँ जगदम्बा की पूजा आरंभ करें।
  3. सप्तशती पाठ: श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ ध्यानपूर्वक करें। इस दौरान एक ही आसन पर अचल बैठना चाहिए।

पूजा के लिए आवश्यक सामग्री:

पूजा के दौरान निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:

  • जल, गंगाजल, पंचामृत, दूध, दही, घी, शहद, शक्कर
  • रेशमी वस्त्र, उपवस्त्र, नारियल, चन्दन, रोली, कलावा, अक्षत
  • पुष्प, पुष्पमाला, जयमाला, धूप, दीप, नेवैद्य, ऋतुफल
  • पान, सुपारी, लौंग, इलाइची, आसन, चौकी, पूजन पात्र, आरती, कलश

नवदुर्गा की पूजा विधि:

मस्तक पर भस्म, चन्दन, और रोली का टीका लगाकर नवदुर्गा की प्रार्थना करें। प्रार्थना के पश्चात् कवच का पाठ करें, इसके बाद अर्गला और कीलक का पाठ करें। अंत में रात्रि सूक्त का पाठ करें। इसके पश्चात् श्री दुर्गा सप्तशती के 13 अध्यायों का पाठ आरंभ करें, जिसमें माँ भगवती के तीन प्रमुख चरित्रों का वर्णन है:

  1. प्रथम चरित्र: मधु और कैटभ नामक राक्षसों का वध।
  2. द्वितीय चरित्र: महिषासुर का वध।
  3. तृतीय चरित्र: शुम्भ-निशुम्भ का वध।

पूजा का समापन:

नवरात्र के नौ दिनों के अंत में, नवें दिन माँ दुर्गा को भोग अर्पित करें। दुर्गा चालीसा, विन्ध्येश्वरी चालीसा, स्तोत्र और आरती करें। पूजा के समापन पर साधक भक्त माँ से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।


महत्त्व:

दुर्गा-पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह साधक को आत्मशुद्धि, संयम और साधना का मार्ग प्रदान करता है। यह पर्व हमें माँ दुर्गा की असीम शक्ति और करुणा का स्मरण कराता है, और हमें जीवन की कठिनाइयों से जूझने के लिए प्रेरित करता है।

प्रार्थना:

"हे करुणामयी, जगजननी, स्नेहमयी एवं आनन्द देने वाली माँ! आपकी सदा जय हो। हे जगदम्बे! पंखहीन पक्षी और भूख से बिलबिलाते बच्चे जिस प्रकार अपनी माँ की प्रतीक्षा करते हैं, उसी प्रकार मैं भी आपकी दया की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। हे अमृतमयी माँ! आप शीघ्रताशीघ्र मुझे दर्शन देने की कृपा करें। मुझे ऐसी बुद्धि प्रदान करिए जिससे मैं आपका रहस्य जान सकूँ।"


समाप्ति:

श्री दुर्गा-पूजा एक अद्वितीय साधना का अवसर है, जिसमें भक्त माँ के नौ रूपों की पूजा कर उन्हें प्रसन्न करते हैं। इस पावन पर्व के माध्यम से हम माँ दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। माँ की पूजा सच्चे मन से करें और उनके आशीर्वाद से जीवन को सार्थक बनाएं।


जय माता दी!


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