Sacrifice of Sati by Lord Shiva: Samadhi of Lord Shiva

शिव जी द्वारा सती का त्याग: शिव जी की समाधि

प्रस्तावना

शिव और सती की कथा भारतीय पौराणिक कथाओं में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह कथा न केवल प्रेम, त्याग और दुःख का प्रदर्शन करती है, बल्कि यह भी बताती है कि सती ने अपने पति शिव को कैसे त्याग दिया, जिससे शिव जी ने समाधि में जाने का निर्णय लिया। इस ब्लॉग में हम इस प्रेरणादायक कहानी को दोहों और चौपाइयों के माध्यम से समझेंगे।

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श्री रामचरितमानस बालकाण्ड | शिव जी द्वारा सती का त्याग, शिव जी की समाधि,

दोहा:

परम पूनि न जाइ तजि कि प्रेम बड़ पापु।

प्रगति न कहत महेसु कछु हृदयं अधिक संतपु॥56॥

हिंदी अर्थ:

सती परम पवित्र हैं, इसलिए अन्य भी नहीं बनती और प्रेम करने में बड़ा पाप है। प्रकट होकर महादेवजी कुछ भी नहीं कहते, लेकिन उनके हृदय में बड़ा संताप है।

चौपाई:

तब संरा प्रभु पद सिरु नावा।

सुमिरत रामु हृदयं अस आवा॥

हिंदी अर्थ:

तब शिवजी ने प्रभु श्री रामचन्द्रजी के चरण कमलों में सिर नवाया और श्री रामजी का स्मरण किया और उनके मन में यह विचार आया कि सती के इस शरीर से मेरा पता नहीं चल सकता और शिवजी ने अपने मन में यह संकल्प लिया।

कहानी का क्रम

शिवजी ने अपनी बुद्धि स्थिर करते हुए श्रीगुंठजी का स्मरण किया और कैलास की ओर आये। जीवित समय आकाशवाणी हुई कि महेश की जय हो, क्योंकि आपकी भक्ति अच्छी दृढ़ता की है।

सती ने शिव जी की इस प्रतिज्ञा को सुनकर चिंतित हो गयीं और उन्हें समझ आ गया कि उन्होंने शिव जी का कपट कर दिया है। इस संकेत में उनका दिल भारी हो गया।

सती के मन की स्थिति

जलु पाय सरिस बिकै देखहु प्रीति की रीति भली।

बिलग होइ रसु जाइ कपाट खटाई परत पुनि॥57 ख॥

हिंदी अर्थ:

प्रीती की सुंदर रीति देखें कि जल भी (दूध के साथ कप मिलकर) दूध के समान भाव बिकता है, लेकिन फिर रूपी खटाई मेकर ही पानी अलग हो जाती है।

सतीजी के हृदय में जो विचार थे, उन्हें समझकर शिवजी ने अपनी कृपा का कोई परिचय नहीं दिया, जिससे उनकी सेवा का और भी बढ़ावा मिला।

समाधि का निर्णय

सती बसहिं कैलास तब मोर सोचु मन माहिं।

मरमु न कोउ जं कछु जुग सम दिवस सिराहीं॥58॥

हिंदी अर्थ:

सतीजी कैलास पर निवास स्टॉक। उनके मन में बड़ा दुःख था। इस रहस्य को कोई भी नहीं जानता। उनका एक-एक दिन युग के समान उदय हो रहा था।

सती के हृदय में आपके द्वारा किए गए अपमान का भारी बोझ था। शिव जी ने अपने मन में सती को त्यागने का निर्णय लिया और समाधि में चले गये।

यह कथा हमें यह सिखाती है कि प्रेम और त्याग की गहराई को समझना आवश्यक है। सती और शिव की यह कथा हमें हमारे अंदर के साक्षात अनुभवों को समझने और बनाए रखने की प्रेरणा देती है। शिव जी की समाधि हमें यह भी याद दिलाती है कि त्याग और साधना का मार्ग कठिन हो सकता है, लेकिन अंततः सत्य और प्रेम का मार्ग ही अंतिम विजय है।

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