महादेव जी द्वारा ब्रह्म एवं विष्णु को वर प्रदान करना तथा उमा महेश्वर-पूजन के रूप में लिंग पूजन की परंपरा का प्रारंभ
सारांश
इस अध्याय में भगवान शिव द्वारा ब्रह्मा और विष्णु को वरदान देने, उनके उत्पत्ति-रहस्य, और लिंग पूजन की परंपरा का वर्णन किया गया है। महादेव का यह कथन उनके त्रिदेव स्वरूप को और उनकी शक्ति को उजागर करता है। इस अध्याय में महादेव का करुणामय स्वभाव और भक्तों के प्रति उनकी कृपा की गहराई दृष्टिगोचर होती है।

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लिंग पुराण : महादेव जी द्वारा ब्रह्म एवं विष्णु को वर प्रदान करना तथा उमामहेश्वर-पूजन |
महादेव का आशीर्वचन
सूतजी कहते हैं, महादेव ने प्रसन्न होकर ब्रह्मा और विष्णु से कहा:
“मैं आप दोनों पर प्रसन्न हूँ। मेरे दर्शन करें और सभी प्रकार के भय का त्याग करें। आप दोनों महाबली देवता मेरे शरीर से उत्पन्न हुए हैं। दक्षिण अंग से ब्रह्मा, जो लोकों के पितामह हैं, और बाएं अंग से विष्णु, जो विश्वात्मा हैं, प्रकट हुए हैं। यथेष्ट वरदान मांगें, मैं उसे अवश्य दूँगा।"
वरदान की मांग
भगवान विष्णु ने महेश्वर से कहा:
"हे प्रभु! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं, तो हमें ऐसा वरदान दें कि हमारी भक्ति हमेशा स्थिर और अडिग रहे।"
महादेव ने ब्रह्मा और विष्णु को अविनाशी भक्ति का वरदान दिया और कहा कि उनकी श्रद्धा कभी विचलित नहीं होगी।
त्रिदेव का रहस्य
महादेव ने कहा:
"हे विष्णु! मैं ही ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र के रूप में त्रिविध रूप धारण करता हूँ। सृजन, पालन और संहार के गुणों के कारण मैं त्रिदेव के रूप में जाना जाता हूँ, लेकिन मैं परम निष्कल और एकमात्र परमेश्वर हूँ।"
शिवजी ने विष्णु को मोह त्यागने और ब्रह्मा का पालन करने का आदेश दिया।
लिंग पूजन की स्थापना
इस घटना के बाद महादेव ने संसार में लिंग पूजन की परंपरा का प्रारंभ किया। उन्होंने कहा:
“लिंग में ही महादेवी पार्वती और मैं स्वयं प्रतिष्ठित रहते हैं। लिंग का अर्थ है समस्त सृष्टि का लय। जो कोई भी लिंग के समक्ष इसकी महिमा का पाठ करता है, वह शिवत्व को प्राप्त करता है।”
अध्याय का महत्व
इस अध्याय में भगवान शिव के करुणामय स्वभाव का वर्णन है। उन्होंने विष्णु और ब्रह्मा को उनके कर्तव्यों का ज्ञान दिया और उन्हें भक्ति व श्रद्धा का महत्व समझाया। साथ ही, लिंग पूजन की परंपरा को स्थापित किया, जो आज भी सनातन धर्म का अभिन्न अंग है।
श्लोकों के माध्यम से संदेश
- भक्ति का महत्व: महादेव ने ब्रह्मा और विष्णु को भक्ति का वरदान दिया, जिससे उनकी शक्ति स्थिर बनी रहे।
- त्रिदेव की एकता: यह अध्याय दर्शाता है कि शिव, विष्णु और ब्रह्मा अलग-अलग होते हुए भी एक ही शक्ति के तीन रूप हैं।
- लिंग पूजन का महत्व: शिवलिंग पूजा से व्यक्ति शिवत्व को प्राप्त कर सकता है।
समाप्ति:
"जो व्यक्ति शिवलिंग के समक्ष लिंग की महिमा का पाठ करता है, वह अवश्य ही शिवत्व को प्राप्त करता है।"
इस प्रकार लिंग पूजन की परंपरा का प्रारंभ हुआ, जो भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है।
॥ श्री लिंग पुराण [पूर्वभाग] उन्नीसवाँ अध्याय समाप्त ॥
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