विभिन्न कल्पों में सद्योजातादि शिवावतारों का वर्णन, लोकों की स्थिति और महारुद्र का विश्वरूपत्व
शिव महापुराण के अंतर्गत विभिन्न कल्पों में शिव के सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अघोर और ईशान स्वरूपों का वर्णन अद्भुत है। इनमें शिव के प्रत्येक स्वरूप की विशेषताएँ, उनके अवतरण के समय की परिस्थितियाँ और लोकों की स्थिति का वर्णन है। इसके साथ ही, महारुद्र के विश्वरूपत्व को भी विस्तार से समझाया गया है।
श्वेतकल्प और सद्योजात स्वरूप
श्वेतकल्प में भगवान शिव का स्वरूप श्वेत वर्ण का था। शिव की वेशभूषा, माला, वस्त्र, अस्थि, रोम, त्वचा और रक्त सभी श्वेत थे। यह कल्प इसलिए श्वेतकल्प कहलाया। इस कल्प में देवेश्वरी गायत्री भी श्वेत वर्ण की थीं।
शिव के सद्योजात स्वरूप को इस कल्प में गुह्य ब्रह्म माना गया, जो जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति दिलाने वाले हैं। सद्योजात स्वरूप का ध्यान करने वाले व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करते हैं।
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लोहितकल्प और वामदेव स्वरूप
लोहितकल्प में भगवान शिव लोहित (लाल) वर्ण के थे। इस समय गायत्री देवी भी लाल रंग की थीं। शिव का यह रूप वामदेव कहलाया।
वामदेव स्वरूप में शिव ने योग और तपस्या के माध्यम से भक्तों को सान्निध्य प्रदान किया। इस स्वरूप का ध्यान करने वाले भक्त रुद्रलोक प्राप्त करते हैं।
पीतकल्प और तत्पुरुष स्वरूप
पीतकल्प में भगवान शिव का स्वरूप पीले रंग का था। इस समय गायत्री देवी भी पीली वर्ण की थीं। शिव को तत्पुरुष नाम इसी समय प्राप्त हुआ।
तत्पुरुष स्वरूप योग और ज्ञान के मार्ग को प्रशस्त करने वाला है। यह स्वरूप ज्ञान, धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष का मार्गदर्शन करता है।
कृष्णकल्प और अघोर स्वरूप
कृष्णकल्प में भगवान शिव का स्वरूप कृष्ण (काला) था। इस समय शिव का नाम अघोर पड़ा। इस स्वरूप में शिव भयानक और कालसदृश थे।
अघोर स्वरूप में शिव ने रुद्र रूप धारण किया और काल को नियंत्रित किया। यह स्वरूप भक्तों के पाप नाश और शुद्धिकरण का प्रतीक है।
विश्वरूपकल्प और विश्वरूप महारुद्र
विश्वरूपकल्प में शिव ने विश्वरूप धारण किया। इस स्वरूप में शिव और गायत्री देवी अनेक रूपों में प्रकट हुए।
शिव का यह स्वरूप सृष्टि के सभी तत्वों और जीवों का प्रतिनिधित्व करता है। भक्तों के लिए यह स्वरूप सौम्यता और शांति का प्रतीक है।
लोकों की स्थिति और महत्ता
शिव पुराण में विभिन्न लोकों की स्थिति का वर्णन है। भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपलोक, सत्यलोक, और विष्णुलोक जैसे लोकों का निर्माण सृष्टि के क्रम में हुआ।
इनमें भूलोक से सत्यलोक तक की यात्रा जन्म-मरण से मुक्त होने और मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग है। विष्णुलोक सबसे ऊपर स्थित है, जहाँ पुनर्जन्म का चक्र समाप्त हो जाता है।
निष्कर्ष
शिव के विभिन्न स्वरूप उनके अद्वितीय गुणों और भक्तों के प्रति उनकी करुणा का प्रतीक हैं। सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अघोर, और विश्वरूप महारुद्र के स्वरूप शिव के विभिन्न आयामों को दर्शाते हैं। शिव भक्तों के लिए यह वर्णन मोक्ष, शांति और आत्मज्ञान का मार्ग प्रशस्त करता है। विभिन्न लोकों और कल्पों की यह यात्रा अद्भुत और आध्यात्मिक रूप से प्रेरणादायक है।
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