श्वेतवाराहकल्प के अट्टाईस द्वापरों के अन्त में प्रकट होने वाले अट्टाईस व्यासों, अट्टाईस शिवावतारों तथा विविध शिव योगियों का वर्णन
सूतजी का उपदेश:
सूतजी ने मुनियों को बताया कि शिवजी द्वारा वर्णित समस्त वचनों को सुनकर प्रजापति ब्रह्माजी ने देवाधिदेव महादेव को प्रणाम कर उनसे यह जिज्ञासा प्रकट की।
ब्रह्माजी का प्रश्न:
ब्रह्माजी ने कहा:
- हे देवदेवेश्वर! हे विश्वरूप! हे महेश्वर! आपके जो अवतार लोकों में प्रकट हुए हैं, वे किस युग और काल में देखे जा सकेंगे?
- द्विजातिगण किस तप, ध्यानयोग या साधना के माध्यम से आपका दर्शन कर सकते हैं?
शिवजी का उत्तर:
महादेव मुस्कराते हुए बोले:
- मेरा दर्शन केवल तप, दान, धर्म, तीर्थ, वेदाध्ययन या शास्त्रज्ञान के बल पर नहीं किया जा सकता।
- मेरा साक्षात्कार ध्यानयोग से संभव है।
- वाराहकल्प के सातवें मन्वंतर में, जब वैवस्वत मनु का समय होगा, उस समय मैं लोकों के कल्याण हेतु प्रकट होऊँगा।
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लिंग पुराण : श्वेतवाराहकल्प के अट्टाईस द्वापरों के अन्त में प्रकट होने वाले अट्टाईंस व्यासों |

शिवजी के अट्टाईस अवतार और उनके शिष्य
- प्रथम द्वापर:शिवजी का अवतार: श्वेतशिष्य: श्वेत, श्वेतशिख, श्वेतास्य, श्वेतलोहितयोग का स्थान: हिमालय का छागल पर्वत
- द्वितीय द्वापर:शिवजी का अवतार: सुतारशिष्य: दुन्दुभि, शतरूप, ऋचीक, केतुमान
- तृतीय द्वापर:शिवजी का अवतार: दमनशिष्य: विकोश, विकेश, विपाश, शापनाशन
- चतुर्थ द्वापर:शिवजी का अवतार: सुहोत्रशिष्य: सुमुख, दुर्मुख, दुर्दर, दुरतिक्रम
- पञ्चम द्वापर:शिवजी का अवतार: कंकशिष्य: सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार
- षष्ठ द्वापर:शिवजी का अवतार: लोगाक्षिशिष्य: सुधामा, विरजा, शद्भु, पद्रज
- सप्तम द्वापर:शिवजी का अवतार: जैगीषव्यशिष्य: सारस्वत, मेघ, मेघवाह, सुवाहन
विशेष बातें:
- शिवजी के प्रत्येक द्वापर में एक विशेष रूप में अवतार लेने का उद्देश्य ब्राह्मणों और लोककल्याण के लिए होता है।
- उनके चार शिष्य हमेशा ध्यानयोग में पारंगत और ब्रह्मलोक में स्थान पाने वाले होते हैं।
- शिवजी के इन अवतारों की साधना और शिक्षाओं का प्रभाव संपूर्ण ब्रह्मांड पर होता है।
निष्कर्ष:
शिवजी के ये अट्टाईस अवतार ध्यान, योग, और साधना का संदेश देते हैं। प्रत्येक अवतार युग के अनुसार ब्रह्मज्ञान और शांति के प्रसार के लिए प्रेरित करता है। शिवभक्तों के लिए यह ज्ञान साधना का उच्चतम मार्ग प्रशस्त करता है।
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