राजा क्षुप द्वारा विष्णु की आराधना और शिव भक्तों की महिमा का वर्णन
प्रस्तावना
भारत के धार्मिक और पौराणिक ग्रंथों में देवताओं के आपसी संबंध, उनके संवाद और उनकी महिमा का वर्णन हमें जीवन में आदर्श आचरण का मार्गदर्शन देता है। विष्णु पुराण में राजा क्षुप की कथा ऐसी ही एक प्रेरणादायक कहानी है, जिसमें भगवान विष्णु ने शिव भक्तों की महिमा का गुणगान किया है।
राजा क्षुप की विष्णु आराधना
राजा क्षुप ने भगवान विष्णु की आराधना करते हुए उन्हें प्रसन्न किया। उनके तप और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने दिव्य स्वरूप में प्रकट होकर राजा को दर्शन दिए। वह शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए थे, पीताम्बर पहने हुए थे और लक्ष्मी व भूमि देवी के साथ थे। राजा ने भगवान विष्णु की स्तुति करते हुए कहा:
- "हे जनार्दन! आप आदि हैं, आप ही प्रकृति और पुरुष हैं। ब्रह्मा, रुद्र और समस्त सृष्टि आपके ही स्वरूप से उत्पन्न हुए हैं।"
विष्णु द्वारा शिव भक्तों की महिमा का वर्णन
राजा क्षुप ने विष्णु से ब्राह्मण दधीच को हराने की याचना की। दधीच, जो शिवजी के परम भक्त थे, उनकी तपस्या और शिव कृपा के कारण अवध्य थे। विष्णु ने राजा क्षुप को समझाते हुए कहा:
"हे क्षुप! शिव भक्त का तिरस्कार नहीं करना चाहिए। रुद्र मेरी ही शक्ति हैं, और जो व्यक्ति शिवजी का पूजन करता है, वह सदा मेरे प्रिय रहता है।"
भगवान विष्णु ने दधीच की भक्ति और शिवजी की महिमा का वर्णन करते हुए राजा को उनके प्रति श्रद्धा और सम्मान बनाए रखने का उपदेश दिया।
वैष्णव स्तोत्र की महिमा
इस प्रसंग में वर्णित वैष्णव स्तोत्र को पढ़ने या सुनने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो इसे भक्ति-भाव से गाता है, वह अंततः विष्णु लोक को प्राप्त करता है।
शिक्षा
यह कथा हमें सिखाती है कि ईश्वर की आराधना में अहंकार का कोई स्थान नहीं है। साथ ही, शिव और विष्णु के भक्तों के प्रति सम्मान और एकता का संदेश इस कथा का मूल भाव है। यह कहानी हमें सिखाती है कि शिव और विष्णु एक-दूसरे के पूरक हैं, और उनके भक्तों का सम्मान करना धर्म का पालन करना है।
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