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भगवान् महेश्वर के आशभ्यंतर पूजन का स्वरूप और तत्त्वों की व्याख्या | Explanation of the nature and elements of worship of Lord Maheshwar

भगवान् महेश्वर के आशभ्यंतर पूजन का स्वरूप और तत्त्वों की व्याख्या

परिचय

भगवान महेश्वर, जिन्हें शिव भी कहा जाता है, संपूर्ण सृष्टि के आधार और तत्त्वों के स्वरूप माने जाते हैं। उनका पूजन और ध्यान ध्यानविद्या के माध्यम से उनकी परम तत्त्व-रूपता को समझने का साधन है। यह लेख भगवान शिव के आशभ्यंतर पूजन, सकल और निष्कल तत्त्वों की व्याख्या, छब्बीस तत्त्वों के परिगणन और संपूर्ण चराचर जगत की शिव रूपता का विवेचन करता है।


आशभ्यंतर पूजन का स्वरूप

आत्मसाक्षात्कार और भगवान शिव के पूजन में ध्यान का विशेष महत्व है। शैलादि ने कहा है कि पूजन के लिए पहले हृदय में अग्निमंडल, सूर्य मंडल और चंद्र मंडल का ध्यान करना चाहिए। इसके बाद क्रम से त्रिगुण (सत्व, रजस, तमस) और त्रिविध आत्मा (स्थूल, सूक्ष्म, कारण) का ध्यान कर उनके ऊपर कलायुक्त और अर्धनारीश्वर रूपी निष्कल महादेव की पूजा की जानी चाहिए।

ध्यान प्रक्रिया:

  1. हृदय में अग्नि, सूर्य और चंद्र का ध्यान करें।
  2. त्रिगुण और त्रिआत्मा का अवलोकन करें।
  3. महादेव के सकल और निष्कल स्वरूप का ध्यान करें।

सकल और निष्कल तत्त्वों की व्याख्या

भगवान शिव का स्वरूप दो प्रकार का है:

  1. सकल स्वरूप: जिसमें साकार, कलायुक्त और मूर्तिमान रूप है, जैसे अर्धनारीश्वर।
  2. निष्कल स्वरूप: जो निराकार, निर्विकल्प और शुद्ध चैतन्य है।

सकल स्वरूप में शिव सृष्टि के सर्जक और पालक के रूप में प्रकट होते हैं। जबकि निष्कल स्वरूप में वे निर्गुण, अचल और शाश्वत ब्रह्म हैं।


छब्बीस तत्त्वों का परिगणन

शिव तत्वज्ञान में छब्बीस तत्त्वों का विशेष उल्लेख है।

  1. चौबीस तत्त्व:
    • महत्तत्त्व, अहंकार, पाँच तन्मात्राएँ (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध)
    • पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ (श्रवण, त्वचा, नेत्र, जिह्वा, नासिका)
    • पाँच कर्मेन्द्रियाँ (वाणी, पाणि, पाद, उपस्थ, गुदा)
    • पाँच महाभूत (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी)
    • मन
  2. पच्चीसवाँ तत्त्व: जीवात्मा (ध्याता)
  3. छब्बीसवाँ तत्त्व: शिव (ध्येय)

यह सभी तत्त्व भगवान शिव के अंश हैं और सृष्टि की रचना, पालन और संहार में योगदान करते हैं।


शिव की सर्वत्र रूपता

भगवान शिव को चराचर जगत का आधार और आत्मा कहा गया है।

  • चराचर जगत: शिव का स्थूल रूप है।
  • सर्वव्यापी रूप: शिव का सूक्ष्म रूप है, जो वाणी और मन से परे है।
  • ऋषि कहते हैं, "सर्वं खल्विदं ब्रह्म," अर्थात सब कुछ शिव ही है।

शिव और समय का संबंध

शैलादि के अनुसार, काल (समय) सृष्टि का सृजन करता है, लेकिन काल को प्रेरित करने वाला स्वयं शिव हैं। उनका निष्कल स्वरूप समय और कर्म के बंधनों से परे है।


भक्त के लिए उपदेश

  1. शिव का ध्यान ही मोक्ष का साधन है।
  2. भक्त को चाहिए कि वह "सोऽहम्" और "सैवाहं" की भावना से शिव में एकत्व स्थापित करे।
  3. भगवान शिव को चराचर जगत का रूप मानकर उनकी अष्टमूर्ति (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, यजमान, सूर्य, चंद्रमा) की पूजा करें।

निष्कर्ष

भगवान महेश्वर की पूजा उनके सकल और निष्कल स्वरूप में करने से भक्त को मोक्ष प्राप्त होता है। छब्बीस तत्त्वों का परिगणन उनके विश्वरूपता का प्रमाण है। ध्यान और समर्पण से भक्त शिव को आत्मसात कर उनकी अनंत विभूतियों का अनुभव कर सकता है।

“सर्वं शिवमयं जगत्।”

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