विभिन्न कल्पों में त्रिदेवों का परस्पर प्राकट्य तथा ब्रह्मा द्वारा महेश्वर की नामाष्टक स्तुति | The mutual appearance of the Trinity in different Kalpas and the nameless praise of Maheshwar by Brahma

विभिन्न कल्पों में त्रिदेवों का परस्पर प्राकट्य तथा ब्रह्मा द्वारा महेश्वर की नामाष्टक स्तुति

इन्द्र उवाच

भगवान ब्रह्मा ने प्रत्येक कल्प के प्रारंभ में प्रजा के सृजन को पुनः स्थापित किया। एक हजार चतुर्युगी के बाद, ब्रह्मा ने पुनः अपनी प्रजा को सृजित किया। उस समय पृथ्वी जल में, जल अग्नि में, अग्नि वायु में और वायु आकाश में समाहित हो गए। इसके बाद, सभी तन्मात्राएँ और इन्द्रियाँ एक दूसरे में विलीन हो गईं, और इससे अहंकार का भी उच्छेदन हुआ। इसके बाद, जब महेश्वर शिव ने योग मार्ग द्वारा सृष्टि का कार्य प्रारंभ किया, तब उन्होंने अपनी अर्धांगिनी परमेश्वरी के साथ मिलकर अपने विचारों से ब्रह्मा, विष्णु, और पाशुपत अस्त्र की रचना की।

ब्रह्मा द्वारा महेश्वर की नामाष्टक स्तुति

जब ब्रह्मा ने महेश्वर की नामाष्टक स्तुति की, तब भगवान शिव का संपूर्ण रूप सामने आया। उन्होंने महेश्वर को श्रद्धापूर्वक नमस्कार करते हुए कहा:

  1. नमस्ते भगवन् रुद्र - भगवान रुद्र को अत्यधिक तेजस्वी भास्कर के रूप में प्रणाम है।
  2. नमो भवाय देवाय - भगवान शिव के अविनाशी स्वरूप को प्रणाम है, जो समस्त संसार के रक्षक हैं।
  3. शर्वाय क्षितिरूपाय - पृथ्वी के रक्षक शर्वाय को प्रणाम है।
  4. ईशाय वायवे तुभ्यं - वायु के रूप में ईश्वर को प्रणाम है, जो जीवन के लिए आवश्यक हैं।
  5. पशूनां पतये चेव - पशुओं के स्वामी, पावक, अत्यधिक तेजस्वी को प्रणाम है।
  6. भीमाय व्योमरूपाय - आकाश के रूप में भीम को प्रणाम है, जो सर्वव्यापी हैं।
  7. महादेवाय सोमाय - महादेव को प्रणाम है, जो सोम (चंद्रमा) के रूप में अमृत के प्रवाहक हैं।
  8. उग्राय यजमानाय - उग्र रूप में यजमान को प्रणाम है, जो कर्मयोगी और सभी कार्यों का पालन करने वाले हैं।

ब्रह्मा का महेश्वर के प्रति आभार

महेश्वर के प्रति ब्रह्मा के आभार और स्तुति ने भगवान शिव को प्रसन्न किया। इन स्तोत्रों का उच्चारण करने से महेश्वर की कृपा प्राप्त होती है और भक्तों को उनकी अनंत शक्ति और आशीर्वाद का अनुभव होता है। जो भी इस स्तुति का पाठ करता है, वह ब्रह्मा और शिव के आशीर्वाद से सच्चे मार्ग पर अग्रसर होता है।

निष्कर्ष

यह संवाद त्रिदेवों के परस्पर संबंध, उनकी शक्तियों का आदान-प्रदान, और ब्रह्मा द्वारा महेश्वर की स्तुति के महत्व को दर्शाता है। ब्रह्मा की नामाष्टक स्तुति से न केवल शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है, बल्कि यह दर्शाता है कि त्रिदेवों का अस्तित्व और उनकी रचनाएँ आपस में जुड़ी हुई हैं, जिससे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का संचालन होता है।

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