शिवाराधना के माहात्म्य में एवेतमुनि का आख्यान | Narrative of Avetamuni in the greatness of Shiva worship

शिवाराधना के माहात्म्य में एवेतमुनि का आख्यान

भूमिका:

शिवमहिमा का यह प्रसंग श्वेत मुनि के शिवाराधना और भगवान शिव की कृपा से जुड़ा है। इस कथा में यह वर्णन किया गया है कि किस प्रकार श्वेत मुनि ने भगवान शिव की आराधना से अपने जीवन की रक्षा की और शिव के प्रति भक्ति का अमोघ प्रभाव प्रकट हुआ।


कथा का आरंभ

श्वेत नामक एक महान मुनि, जिनकी आयु समाप्ति के निकट थी, गिरि की गुफा में निवास करते हुए भगवान शिव की आराधना में लीन थे। वे रुद्राध्याय के माध्यम से त्रिनेत्र महेश्वर की पूजा करते थे। उनकी भक्ति अपार थी, और वे पूरी निष्ठा के साथ भगवान शिव को प्रसन्न करने में लगे रहते थे।

काल का आगमन

जब श्वेत मुनि का जीवनकाल समाप्त होने को था, तब महातेजस्वी काल उन्हें यमलोक ले जाने के लिए आया। काल ने मुनि से कहा:
"हे मुनि! तुम्हारी आयु समाप्त हो चुकी है, और मैं तुम्हें यमलोक ले जाने आया हूँ। तुम्हारी पूजा और भक्ति मेरे आगे व्यर्थ है। यहां तक कि ब्रह्मा, विष्णु, और रुद्र भी मेरे मार्ग में नहीं आ सकते।"

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श्वेत मुनि का उत्तर

श्वेत मुनि ने काल के इस वचन को सुनकर उत्तर दिया:
"हे काल! तुम मेरा क्या बिगाड़ सकते हो? मेरे स्वामी, वृषध्वजधारी भगवान शिव, इस लिंग में विराजमान हैं। उनकी भक्ति करने वाला कोई भी भक्त तुम्हारे जैसे काल से भयभीत नहीं हो सकता। तुम जैसे आये हो, वैसे ही चले जाओ।"

काल का क्रोध

श्वेत मुनि के इस उत्तर से क्रोधित होकर काल ने उन्हें अपने पाश से बांध लिया और कहा:
"तुम्हारे शिव ने तुम्हारे लिए क्या किया? वे तो निश्चेष्ट हैं। तुम्हारी पूजा और भक्ति का क्या फल हुआ?"

भगवान शिव का प्राकट्य

काल का यह वचन सुनकर श्वेत मुनि ने शिवलिंग की ओर देखा और ‘हा रुद्र! हा रुद्र!’ का विलाप करने लगे। उनकी सच्ची पुकार सुनकर कामदेव के शत्रु, दक्ष-यज्ञ के विध्वंसक, त्रिनेत्र भगवान शिव, पार्वती, नंदी, और गणों के साथ शिवलिंग से प्रकट हुए।
शिवजी ने अपने कृपादृष्टि से मुनि की रक्षा की और काल को चेतावनी देते हुए कहा कि शिव के भक्तों को छूने का साहस कोई नहीं कर सकता।

शिव कृपा का प्रभाव

भगवान शिव के प्राकट्य और कृपा से भयभीत होकर काल मुनि के समक्ष गिर पड़ा। शिवजी के आदेश से काल ने मुनि को मुक्त कर दिया और जीवनदान दिया। इस घटना के बाद देवगण और मुनि शिवजी की जय-जयकार करने लगे।


कथा का उपदेश

इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि शिव की सच्ची भक्ति करने वाले भक्तों को मृत्यु और काल भी नहीं छू सकते। भगवान शिव अपने भक्तों की रक्षा के लिए हर स्थिति में प्रकट होते हैं। यह कथा हमें शिवभक्ति की महानता और उनकी कृपा पर अटूट विश्वास रखने का संदेश देती है।


निष्कर्ष:
शिवाराधना का यह प्रसंग हमें भक्ति की शक्ति और भगवान शिव की कृपा का अनुभव कराता है। भगवान शिव अपने भक्तों के सच्चे सहायक और रक्षक हैं। उनकी आराधना से जीवन के सभी संकटों से मुक्ति संभव है।

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