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शिलाद द्वारा नन्दिकेश्वर शिव की स्तुति | Praise of Nandikeshwar Shiva by Shilad

शिलाद द्वारा तप करने से भगवान महेश्वर का नन्दी नाम से उनके पुत्र के रूप में प्रकट होना और शिलाद द्वारा नन्दिकेश्वर शिव की स्तुति

सूत उवाच

पुण्यकाल में सहस्त्राक्षी इन्द्र के चले जाने पर शिलाद मुनि ने महादेव शिव की आराधना शुरू की और तप से उन्हें संतुष्ट कर लिया। इसके बाद उन्होंने ध्यान और तपस्या के द्वारा अपनी आत्मा को शुद्ध किया। वर्षों की तपस्या के बाद उनका शरीर वल्मीकों से ढका हुआ और अस्थिबद्ध हो गया, परंतु उनके मन में केवल भगवान शिव का ध्यान था। इस तपस्या के दौरान भगवान शिव ने उन्हें देखा और अपने हाथ से मुनि का स्पर्श करते हुए उनकी कष्टों को दूर किया।

भगवान शिव का वरदान

तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने शिलाद मुनि से पूछा कि वे क्या चाहते हैं। शिलाद ने भगवान से एक ऐसा पुत्र मांगा जो अयोनिज और मृत्युहीन हो, जो शाश्वत हो और जगत का रक्षक हो। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार करते हुए उन्हें नन्दी नामक पुत्र देने का वचन दिया, जो न केवल मृत्युहीन होगा, बल्कि शिव का पुत्र और दुनिया का रक्षक होगा।

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लिंग पुराण : शिलादद्वारा तप करने से भगवान्‌ महेश्वर का नन्‍दी नामसे उनके पुत्रके रूप में प्रकट होना |

नन्दी का अवतरण

भगवान शिव ने शिलाद मुनि को नन्दी नामक पुत्र देने के लिए तप किया। फिर शिलाद के घर में नन्दी का जन्म हुआ। शिलाद मुनि ने नन्दी के रूप में भगवान शिव के अवतरण को देखकर उनका स्वागत किया और उन्हें प्रणाम किया। भगवान शिव के इस रूप में अनेक देवता जैसे ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र और अन्य ऋषियों ने नन्दी की स्तुति की।

शिलाद द्वारा शिव की स्तुति

शिलाद मुनि ने भगवान शिव को प्रणाम करते हुए कहा, "हे देवदेवेश्वर! आप मेरे पुत्र हैं, और आप ही जगत के रक्षक हैं। आप जगत के पिता, महेश्वर और जगद्गुरु हैं। मुझे सदा आपके दर्शन और कृपा की प्राप्ति हो।"

भगवान शिव ने शिलाद मुनि को आशीर्वाद दिया और नन्दी का रूप लेकर उनके घर में प्रकट हुए, जिससे शिलाद मुनि का जीवन आनंदित हो गया।

निष्कर्ष

यह कथा यह संदेश देती है कि भगवान शिव अपने भक्तों के तप और विश्वास से प्रसन्न होकर उनकी इच्छाओं की पूर्ति करते हैं। शिलाद मुनि के तप और भगवान शिव की कृपा से नन्दी का जन्म हुआ, जो शिव के महान भक्त और रक्षक के रूप में प्रसिद्ध हुआ। इस कथा से यह भी सिद्ध होता है कि भगवान शिव अपने भक्तों की कठिन तपस्या का कभी न कभी प्रतिफल देते हैं और उनका उद्धार करते हैं।

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