देवदारुवन का वृत्तान्त और संन्यास धर्म का महत्व | Story of Devdaruvan and importance of Sannyasa religion
देवदारुवन का वृत्तान्त और संन्यास धर्म का महत्व
प्रस्तावना:
लिंग पुराण, हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण ग्रंथ है जिसमें भगवान शिव के विभिन्न रूपों, उनकी लीलाओं और शास्त्रों का वर्णन किया गया है। इसके 29वें अध्याय में देवदारुवन की कथा, अतिथिमाहात्म्य में सुदर्शन मुनि का आख्यान और संन्यास धर्म का महत्व विस्तार से बताया गया है। इस अध्याय में भगवान शिव के विकृत रूप में दारुवन में आगमन और वहाँ मुनियों के तप के प्रसंग का वर्णन किया गया है, साथ ही उनके विभिन्न रूपों और संन्यास के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है।
देवदारुवन का वृत्तान्त:
सनत्कुमार ने भगवान शिव से पूछा कि वे विकृत रूप में दारुवन क्यों गए थे और वहाँ क्या घटित हुआ। भगवान शिव, जो कि नीललोहित (कृष्णवर्ण) रूप में थे, मुनियों की तपस्या को परखने और उनकी श्रद्धा का परीक्षण करने के लिए देवदारुवन में पहुंचे। उन्होंने एक मोहक रूप धारण किया, जिससे स्त्रियाँ भी मोहित हो गईं और उनके पीछे चलने लगीं। यह रूप न केवल मुनियों के तप की परीक्षा लेने के लिए था, बल्कि शिव की लीलाओं का भी एक हिस्सा था।
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शिव का विकृत रूप और स्त्रियों का मोह:
शिव के इस विकृत रूप को देखकर देवदारुवन में निवास करने वाली स्त्रियाँ उनकी मोहक मुस्कान और रूप से आकर्षित हो गईं। कुछ स्त्रियाँ उनके पीछे-पीछे चलने लगीं, उनके वस्त्र शिथिल हो गए, और वे अपने घरवालों को भूलकर शिव की तरफ आकर्षित हो गईं। इस घटना से यह भी स्पष्ट होता है कि भगवान शिव के रूप और उनके लीला के माध्यम से न केवल भक्तों की श्रद्धा की परीक्षा ली जाती है, बल्कि वे संसार के समस्त आकर्षणों से परे होते हुए भी हर रूप में कार्य करते हैं।
संन्यास धर्म का महत्व:
इसके अलावा, लिंग पुराण के इस अध्याय में संन्यास धर्म का भी वर्णन किया गया है। संन्यास का उद्देश्य आत्मा की मुक्ति है, और यह विचारधारा उस समय के मुनियों और तपस्वियों के लिए मार्गदर्शक थी। संन्यासियों का जीवन शांति, तपस्या और आत्मसाक्षात्कार की ओर प्रेरित करता है, जिसमें संसारिक मोह से दूर रहकर केवल आत्मा की शुद्धि पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। इस अध्याय में यह भी बताया गया कि संन्यास लेने से व्यक्ति अपने कर्मों से ऊपर उठकर ब्रह्मा की प्राप्ति कर सकता है।
उपसंहार:
लिंग पुराण का यह अध्याय न केवल शिव के विभिन्न रूपों और लीलाओं का वर्णन करता है, बल्कि यह हमें संन्यास धर्म की महिमा भी बताता है। भगवान शिव के द्वारा मुनियों की परीक्षा और उनके तप के प्रति संवेदनशीलता, हमें यह सिखाती है कि जीवन में श्रद्धा और तप का महत्व कितना अधिक है। संन्यास का मार्ग हमें संसारिक मोह से मुक्त होकर आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करता है।
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