महर्षि दधीच एवं राजा क्षुप की कथा तथा महामृत्युंजय मंत्र का स्वरूप | Story of Maharishi Dadhich and King Kshup and the nature of Mahamrityunjaya Mantra
महर्षि दधीच एवं राजा क्षुप की कथा तथा महामृत्युंजय मंत्र का स्वरूप
लिंग पुराण का यह अध्याय महर्षि दधीच और राजा क्षुप की अद्वितीय कथा का वर्णन करता है। इस कथा में धर्म, तप, और शक्ति की पराकाष्ठा के साथ शिव की कृपा से अमरत्व और विजय प्राप्ति का मार्ग बताया गया है।
कथा का सारांश
राजा क्षुप और महर्षि दधीच में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ। राजा क्षुप ने स्वयं को लोकपालों का प्रतिनिधि बताते हुए अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने का प्रयास किया, जबकि महर्षि दधीच ने ब्राह्मणों की आध्यात्मिक महत्ता का समर्थन किया। यह विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों के बीच युद्ध हुआ।
युद्ध में, राजा क्षुप ने वज्र का प्रयोग किया और दधीच को परास्त किया। गंभीर रूप से घायल महर्षि ने शुक्राचार्य का स्मरण किया। शुक्राचार्य ने अपनी योगशक्ति से दधीच के शरीर को पुनः जीवन प्रदान किया और उन्हें शिव की आराधना करने का सुझाव दिया।
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लिंग पुराण : महर्षि दधीच एवं राजा क्षुपकी कथा तथा महामृत्युंजय मन्त्र की स्वरूपमी मांसा |
महर्षि दधीच की शिव भक्ति
महर्षि दधीच ने भगवान शिव की आराधना की और महामृत्युंजय मंत्र का जप करते हुए अमरत्व का वरदान प्राप्त किया। शिव ने दधीच को वज्र के समान कठोर अस्थियों का आशीर्वाद दिया। ये अस्थियां आगे चलकर देवताओं के लिए वज्र बनाने में उपयोग हुईं, जिससे असुरों का नाश संभव हुआ।
महामृत्युंजय मंत्र का स्वरूप
महर्षि दधीच को शिव से यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि महामृत्युंजय मंत्र के नियमित जाप और ध्यान से मृत्यु के भय पर विजय पाई जा सकती है। यह मंत्र इस प्रकार है:
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
इस मंत्र में त्रिलोकपति शिव का स्मरण किया गया है, जो सभी गुणों और तत्वों के स्वामी हैं। यह मंत्र शरीर, आत्मा, और मन की पुष्टि करता है तथा मृत्यु के बंधनों से मुक्ति प्रदान करता है।
कथा का संदेश
यह कथा हमें तप, धर्म, और भक्ति के माध्यम से अदम्य शक्ति प्राप्त करने की प्रेरणा देती है। शिव आराधना और महामृत्युंजय मंत्र का जाप न केवल भय को समाप्त करता है, बल्कि आत्मा को शुद्ध और परमात्मा के निकट ले जाता है।
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