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देव दारुवननिवासी मुनिगणों द्वारा शिवाराधना | Worship of Lord Shiva by the sages resident of Dev Daruvan

देव दारुवननिवासी मुनिगणों द्वारा शिवाराधना

सनत्कुमार मुनि ने पूछा:

"हे प्रभो! देवदारु वन के निवासी मुनिगणों ने भगवान शिव की आराधना किस प्रकार की और वे उनके अनुग्रह को कैसे प्राप्त हुए? कृपा करके मुझे यह बताएं।"

शैलादि ऋषि ने उत्तर दिया:

"स्वयंभू ब्रह्मा ने देवदारु वन में तपस्या करने वाले महाबुद्धिमान मुनियों से कहा: महादेव महेश्वर की आराधना करो। उनसे श्रेष्ठ और कोई पद प्राप्त करने योग्य नहीं है। वे ही संपूर्ण देवताओं, ऋषियों और पितरों के भी स्वामी हैं।"

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लिंग पुराण : देव दारुवननिवासी मुनिगणों द्वारा शिवाराधना |

भगवान शिव की महिमा

  1. सृजन और संहारकर्ता:
    भगवान शिव सृष्टि के संहारकर्ता और सृजनकर्ता हैं। प्रलय के समय वे कालरूप धारण कर सभी प्राणियों का संहार करते हैं। फिर अपने तेज से नई सृष्टि की रचना करते हैं।

  2. योग और युग धर्म:
    सत्ययुग में वे योगी के रूप में, त्रेतायुग में यज्ञस्वरूप, द्वापर में कालाग्नि और कलियुग में धर्मकेतु के रूप में पूजनीय हैं।

  3. लिंग पूजा का विधान:
    मुनिगणों को बताया गया कि भगवान शिव के लिंग की पूजा विशेष विधि से करनी चाहिए।

    • लिंग को अंगुष्ठ के आकार का, सुवृत्त (गोल), और वेदों में निर्दिष्ट लक्षणों के अनुसार बनाना चाहिए।
    • उसकी वेदिका त्रिकोण, चौकोर, या वर्तुलाकार हो सकती है।

मुनियों द्वारा तपस्या और पूजन

मुनियों ने तपस्या और पूजन के लिए विविध स्थानों का चयन किया:

  • पर्वतों की गुफाओं में।
  • नदियों के पवित्र तटों पर।
  • शैवाल और दर्भ से बने आसनों पर।
  • जल के भीतर ध्यानस्थ होकर।

उनके तपस्या के प्रकार:

  • कुछ मुनियों ने पाषाण पर पिसे हुए अन्न का भोग किया।
  • कुछ ने वीरासन में बैठकर ध्यान किया।
  • कुछ ने दांतों को उलूखल बनाकर तपस्या की।
  • कुछ ने अपने पैर के अंगूठे पर खड़े होकर तपस्या की।

भगवान शिव का प्राकट्य

मुनियों की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अपनी कृपा से उन्हें दर्शन दिए। उनके दर्शन मात्र से मुनियों के सभी अज्ञान और अधर्म समाप्त हो गए।

भगवान शिव के स्वरूप का ध्यान
महादेव को त्रिगुणात्मक रूप में ध्यान करना चाहिए:

  • तमोगुण रूप अग्नि।
  • रजोगुण रूप ब्रह्मा।
  • सत्वगुण रूप विष्णु।

निष्कर्ष

देवदारु वन के मुनियों ने भगवान शिव के लिंग रूप की विधिपूर्वक पूजा कर उनके अनुग्रह को प्राप्त किया। यह कथा बताती है कि तप, समर्पण, और ध्यान से भगवान शिव की कृपा प्राप्त की जा सकती है। शिव ही सृजन, पालन और संहार के अधिपति हैं।

"जो उनके स्वरूप का ध्यान और पूजन करता है, उसे सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं और वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।"

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