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दिसंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तिमिला कई रोंगो में रामबाण औषधि आहार तिमिला के फायदे

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 तिमिला कई रोंगो में रामबाण औषधि आहार उत्तराखन्ड में बहुत सारे बहुमूल्य जंगली फल बहुतायत मात्रा में पाये जाते हैं जिनको स्थानीय लोग, पर्यटक तथा चारावाह बडे चाव से खाते हैं, जो पोष्टिक एवं औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। इनमें से एक फल तिमला है जिसको हिन्दी में अंजीर तथा अंग्रेजी में Elephant Fig के नाम से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम फाईकस आरीकुलेटा है। तिमिला के फायदे ... 1   अतिसार, घाव भरने, हैजा तथा पीलिया जैसी गंभीर बीमारियों के रोकथाम हेतु।   2  तिमला का फल खाने से कई सारी बीमारियों के निवारण के साथ-साथ आवश्यक पोषकतत्व की भी पूर्ति भी हो जाती है। 3  International Journal of Pharmaceutical Science Review Research के अनुसार तिमला व्यवसायिक रूप से उत्पादित सेब तथा आम से भी बेहतर गुणवत्तायुक्त होता है।  4  वजन बढ़ाने के साथ-साथ इसमें पोटेशियम की बेहतर मात्रा होने के कारण सोडियम के दुष्प्रभाव को कम कर रक्तचाप को भी नियंत्रित करता है।

ढोल-दमाऊ व शंख-घंटी तथा ब्रहमाचारियों व असंख्य श्रध्दालुओं के साथ मंदिर की 7-9 परिक्रमाएं

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 भुवनेश्वरी शक्तिपीठ  उत्तराखंड में भुवनेश्वरी शक्तिपीठ पहला ऐसा मंदिर है, जहां माता रानी का सामूहिक पूजन उपासना अनेक ब्रहमाचारियों के द्वारा प्रतिदिन  होती है। इसके अलावा इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां देवी की श्रृंग के रूप में पूजा होती है। #स्कन्द #पुराण >,          चन्द्रकूट स्थिते देवी भवानी भयमोचनी।         नमः शिवायै शान्ताये शांकरी भुवनेश्वरी ।।  कोट ब्लाक  में सीता माता की पवित्र  धरती पर चन्द्रकूट नामक पर्वत की चोटी पर आदि शक्ति मां भुवनेश्वरी का मंदिर स्थित है। इस चोटी से दूर तक के क्षेत्र ऐसे नजर आते हैं जैसे जगत की महारानी ऊंचे सिंहासन पर बैठ कर न्याय कर रही हों। इस मंदिर की कई विशेषताएं हैं। श्रृंग की पूजा      यहां श्रृंग की पूजा होती है और कहा जाता है कि यह दुनियां का अंतिम छोर है। मंदिर में पहाड़ की प्राचीन परंपराएं वर्तमान में भी विद्यमान हैं। इस मंदिर में नित्य धूयेल होती है, यानि ढोल और दमाऊ के साथ देवी की दोपहर में आरती होती है।  ढोल-दमाऊ व शंख-घंटी    ढोल-दमाऊ व शंख-घंटी तथा ब्रहमाचारियों व असंख्य श्रध्दालुओं  के साथ मंदिर की 7-9 परिक्रमाएं होती है। विषम संख्

जानिए पहाड़ी लोगों की 10 दिलचस्प बातें

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जानिए पहाड़ी लोगों की 10 दिलचस्प बातें  अगर आप पहाड़ी हैं..चाहे आप देश के किसी और राज्य में रह रहे हैं या फिर विदेशों में रह रहे हैं, तो आप ये 10 बातें कभी भी नहीं भूल सकते।   कंडाली(सिशौण), घुघुती-बासुती,देवभूमि,फूलदेई,बेड़ु पाको गीत,भारतीय सेना,माल्टे-नारंगी,रोटने (रोट)और अर्से(पूवे), सिंगोरी(बाल मिठाई)   अगर आप पहाड़ी हैं, तो ये 10 बातें आपकी जिंदगी को उन पलों में ज़रूर ले जाएंगी...जब आप अपने गांव की गोद में रहते थे। चलिए 2 मिनट में वो खास बातें भी जान लीजिए।  कंडाली की झपाक(कंडाली की सब्जी) कंडाली(सिशौण)....नाम सुनकर आज भी कई लोगों की कुछ पुराने दिन याद आ जाते होंगे। घर में कभी मां की मार खाई होगी, कभी गुरुजी की, कभी गलती से ही कंडाली को छू लिया होगा...तो वो झमनाठ आज तक याद होगा। पहाड़ी को कंडाली की पता नहीं ? सवाल ही नहीं उठता। कंडाली की सब्जी बहुत ही टेस्टी होती है कंडाली की सब्जी खाने से कई प्रकार की बीमारियां भी ठीक होती हैं इसमें विटामिन और प्रोटीन भरपूर मात्रा में होता है जैसे पथरी बवासीर इत्यादि माल्टा, नारंगी और खट्टे नींबू (यहां नींबू साधारण नींबू से कहीं ज्यादा खट्टा होता

लोहावती नदी के किनारे बसे लोहाघाट का इतिहास :

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 लोहावती नदी के किनारे बसे  लोहाघाट का इतिहास :    चंपावत से 14 किमी दूर लोहावती नदी के किनारे बसा लोहाघाट एक ऐतिहासिक शहर है। यहां की सुंदरता से मुग्ध होकर पी. बैरन ने इसे कश्मीर के बाद धरती के दूसरे स्वर्ग का खिताब दे दिया। लोहाघाट चंपावत जिले का नगर पंचायत है। पर्यटक यहां के कई पुराने मंदिरों का भ्रमण कर सकते हैं, जो कि हिन्दू धर्म के विभिन्न त्योहारों को मनाने के लिए जाने जाते हैं। होली और जनमाष्टमी के दिन यहां भारी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। पर्यटक चाहें तो यहां के खादी बाजार से खरीदारी कर सकते हैं और यहां पास में ही स्थित खूबसूरत गलचौरा का भ्रमण भी कर सकते हैं।      भारतीय स्वाधीनता से पहले कुमाऊं के शेष भाग की तरह लोहाघाट भी कई रजवाड़े वंशों द्वारा शासित रहा है। 6ठी सदी से पहले यहां कुनिनदों ने शासन किया। उसके बाद खासों तथा नंदों एवं मौर्यों का शासन हुआ। माना जाता है कि बिंदुसार के शासन काल में खासों ने विद्रोह कर दिया था जिसे उसके पुत्र सम्राट अशोक ने दबाया। इस काल में कुमाऊं में कई छोटे-मोटे सरदारों तथा राजाओं का शासन था। यह 6ठी से 12वीं सदी के दौरान संभव हो पाया कि एक वंश

उत्तराखंड के चंपावत शहर मैं क्रांतेश्वर महादेव मंदिर समुद्र तल से लगभग 6000 मीटर की ऊंचाई

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उत्तराखंड के चंपावत शहर मैं क्रांतेश्वर महादेव मंदिर समुद्र तल से लगभग 6000 मीटर की ऊंचाई  उत्तराखंड के चंपावत शहर से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर एक ऊंचे पहाड़ी की चोटी पर भगवान शिव को समर्पित प्रसिद्द और पवित्र धार्मिक स्थल क्रांतेश्वर महादेव मंदिर (kranteshwar mahadev temple) है। समुद्र तल से लगभग 6000 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद इस धार्मिक स्थल को स्थानीय लोग कणदेव और कूर्मपड़ नाम से भी संबोधित करते हैं। यह प्राचीन मंदिर है, जो उस समय की वास्तुकला की याद दिलाता है। अनोखी वास्तुशिल्प कला के लिए प्रसिद्द क्रांतेश्वर महादेव मंदिर परिसर से बर्फ से ढके हिमालय के सुंदर दृश्य का दीदार होता है। यहां आने वाले श्रद्धालु भगवान कणदेव को दूध, दही और देशी घी चढ़ाते हैं। भगवान विष्णु का अवतार क्रांतेश्वर महादेव मंदिर का बड़ा धार्मिक महत्व है। मंदिर को लेकर धार्मिक मान्यता है कि यह स्थान जिस पहाड़ी पर स्थित है, वहां पर भगवान विष्णु ने “कूर्मावतार” लिया था।  इतिहासकारों का मानना है कि कुर्म पर्वत के नाम से ही कुमाऊं शब्द बना है। संस्कृत के कूर्म शब्द का ही अपभ्रंश कुमाऊं है। मान्यता है कि इस स्थान पर आज भी भ

उत्तराखंड मैं इन स्थानों का बहुत महत्व

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माँ कसार देवी का मंदिरउ उत्तराखण्डराज्य के अल्मोड़ा जिले से लगभग 10 किमी दूर काषय (कश्यप) पर्वत पर माँ कसार देवी का मंदिर स्थापित हैं। हिन्दू धर्म ग्रंथों की माने तो उत्तराखण्ड में स्वयं देवी माँ दुर्गा अवतरित हुई थी। कसार देवी मंदिर में माँ दुर्गा के आठवें रूप कात्यायनी देवी की पूजा की जाती हैं।देवी माँ का यह मंदिर लगभग 1,800 साल पहले दूसरी शताब्दी में बनाया गया था। हर हर महादेव। विश्वनाथ मन्दिर,गुप्तकाशी,उत्तराखण्ड। आशुतोष भगवान शिव और माता पार्वती की विवाह स्थली श्री त्रियुगीनारायण मंदिर !! जय माँ त्रिभुवनेश्वरी षोढ़षी श्रीराजराजेश्वरी जी।माँ श्री जी का आशीर्वाद आप सबको,सपरिवार को देवलगढ़ श्रीराजराजेश्वरी धाम से।  #गढ़वाल, उत्तराखंड #जय श्री बाबा #केदार #भिम शिला.... #तुंगनाथ #महादेव मंदिर !! #व्रह्मकमल #उत्तराखंड का राज्य पुष्प !!

भूतनाथ मंदिर जहाँ बही दूधकी #गगां खुदाईसे #प्रकटे स्वयं भू शिवलिंग ऋषिकेश उत्तराखन्ड

#भूतनाथ मंदिर जहाँ बही दूधकी #गगां खुदाईसे #प्रकटे स्वयं भू शिवलिंग ऋषिकेश उत्तराखन्ड  1.  मंडी नगर की स्थापना भगवान शिव के रूप बाबा भूतनाथ के मंदिर के निकट ही हुई है। 2.  जहां पर भूतनाथ_मंदिर की स्थापना की है। वहां पर कभी घना जंगल हुआ करता था। लोगों की गायें यहां चरने के लिए आती थीं। इनमें से एक गाय हर रोज उस जगह पर खड़ी हो जाती, जहां पर बाबा भूतनाथ का मंदिर है। 3.   गाय के थनों से स्वयं भी इस जगह पर दूध निकलने लगता। जब इस बात का पता राजा को लगा तो इस जगह की खुदाई की गई। 4.  यहां स्वयंभू_शिवलिंग प्रकट हुऐ। इसके बाद यहां पर भव्यमंदिर का निर्माण किया गया।  5.  इनमें एकादश महादेव,त्रिलोकीनाथ, अर्द्धनारीश्वर, पंचवक्त्र महादेव और नीलकंठ महादेव मंदिर शामिल हैं। यहां सावन के महीने में ओम नमो: शिवाय का मंत्र गुन्जायमान रहता है।

इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें साल का इंतजार था। समय के पहिए के साथ-साथ ऋतुओं के चक्र को आगे बढ़ना

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 बातों-बातों में:-                       भूली बिसरी                इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें साल का इंतजार था। समय के पहिए के साथ-साथ ऋतुओं के चक्र को आगे बढ़ना ही है। हर वर्ष पहाड़ से मैदान और फिर मैदान से पहाड़ तक मीलों लम्बे सफर यूँ ही चलते रहे।                 प्रवासी यात्राएं चाहे उच्च हिमालयी क्षेत्रों के शौका-भोटियों की हों या काली-कुमाऊं के मलोटियों (माल प्रवास वाले) की। अब ऐसी प्रवासी यात्राएं नहीं के बराबर ही रह गई ।                  माल प्रवास के लिए अपने पछेटियों (साथियों) के साथ छोटी-छोटी आँखों वाले  विशन सिंह जिन्हें सब 'काकू' (चाचा) के नाम से जानते थे, एक बार फिर उसी यात्रा के रास्ते में थे। हालांकि पिचहत्तर साल के काकू  अभी भी अपने साथ चल रहे उन पछेटिया नौजवानों से कम न थे। पैर के मौजों से लेकर सिर की टोपी तक पूरी की पूरी ऊनी वेश-भूषा। सैकड़ों भेड़, कुछ मैमने, पाँच जुमली प्रजाति के घोड़े और तीन बड़े झबरीले काले बालों वाले भोटिया कुकुर (कुत्ते) गलचौड़ा की  देवदार वनी से आगे बढ़ने को तैयार थे।                  झुलमुल अंधेरे में काकू का यह कारवां निकल पड़ा। छमनिया चौ

स्वर्ग रोहिणी धरती का मात्र एक स्थान जहां से स्वर्ग जाया जा सकता है

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 बद्री नाथ केदार नाथ धाम की यात्रा तो हजारों प्राणी करते है परंतु सतोपंत स्वर्गरोहणी(धरती पर एक मात्र स्थान जहाँ से शरीर सहित स्वर्ग जाया जा सकता है) की यात्रा चंद प्राणी ही कर पाते है! उत्तराखंड देवभूमि है यहाँ अनेको कोटि के देवी देवताओं का वास है, सतोपंत के बारे मे हम पिछली पोस्ट मे बता चुके है आज हम आपको भीम सीला के बारे मे बताएंगे, माना जाता है जब 5भाई पंडवास द्रोपती के शाथ स्वर्गारोहणी की यात्रा कर रहे थे तो इस स्थान पे आके माता द्रोपती को ये नदी पार करने मे भय लग रहा था, तब भीम ने एक बड़ी सीला नदी के ऊपर रख यह पुल बनाया था जिसे आज भीम सीला के नाम से जाना जाता है भीम सीला के नजदीक कुलदेवी का मंदिर है जहाँ द्रोपती ने अपनी देह त्यागी थी, पांच भाई पांडव और द्रोपती मे से सिर्फ युधिष्ठिर ही शरीर सहित स्वर्ग गये थे, 4भाई पांडव ने जहाँ जहाँ अपनी देह त्यागी उन स्थानों से जुड़ी कहानियां स्कंद पुराण मे वर्णित है, जहाँ भीम ने देह त्यागी थी वह सरोवर दुनिया का सबसे पवित्र सरोवर माना जाता है जहाँ एकादशी के दिन ब्रह्मा विष्णु महेश साक्षात स्नान करने आते है! जहाँ कण कण मे है हरि का वाश उस भारत भूमि

भगवान बदरीनाथ जी की सेवा में अर्पित होने वाली बदरी तुलसी

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 भगवान बदरीनाथ जी की सेवा में अर्पित होने वाली बदरी तुलसी बदरी तुलसी भगवान बदरीनाथ जी को अत्यंत प्रिय है एवं जो भी श्रद्धालु श्री बदरीनाथ धाम आते हैं इस तुलसी की सुगंध से वह इसकी दिव्यता का अनुभव करते हैं ।। शास्त्रों में वर्णित तुलसी के बारे में कुछ अद्भुत बातें या दृष्ट्वा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपु: पावनी रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी ।। प्रत्यासतिविधायिनी भगवतः कृष्णस्य संरोपिता न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नमः ।। (ब्रह्मवैवर्त पुराण) ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार तुलसी दर्शन से सब पापों को दूर करने वाली, स्पर्श करने से देह शुद्ध करने वाली, प्रणाम करने से रोगों को दूर करने वाली, सींचने से यमराज को डराने वाली, पौधा लगाने से भगवान के समीप पहुंचाने वाली तथा भगवान के चरणों में अर्पित करने से मोक्ष प्रदान करने वाली उस तुलसी को प्रणाम है ।। श्री बदरीनाथ धाम में नित्य तुलसी की मालाएं माल्या पंचायत के भक्तों एवं बामणी गांव के भक्तों द्वारा बनाई जाती है ।। श्री बदरीनाथ जी की आरती "पवन मंद सुगंध शीतल" में जो सुगंध शब्द की बात आई है वह इसी बदरी तुलसी से सं

उत्तराखंड के कुछ मनमोहक दृश्य

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 अद्भुत व मनमोहक दृश्य.... डोल आश्रम भोले बाबा का दर्शन करते हैं। भोले बाबा का धाम बागनाथ बागेश्वर!😚♥️🙏 चौड़ा गोलू देवता मंदिर। जिला अल्मोड़ा। भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी. बेरीनाग डिग्री कालेज से नंदा देवी की नजारा

सुमित्रानंदन पंत जी की पहाड़ी कविता ब्रांच के प्रति लिखी हुई

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 सुमित्रानंदन पंत जी की पहाड़ी कविता जो उन्होंने बुरांश पर लिखी थी इस तरह तो उत्तराखंड पर कहीं कविताएं लिखी जा चुकी हैं लेकिन कुछ खास कविताएं इस तरह जोकि उत्तराखंड की पारंपारिक चीजों को दर्शाती हैं उन कविताओं का अनुवाद अगर सरल भाषा में की जाए तो उन कविताओं का अर्थ से जो सुकून मिलता है ......... सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां, फुलन छै के बुरूंश! जंगल जस जलि जां। सल्ल छ, दयार छ, पई अयांर छ, सबनाक फाडन में पुडनक भार छ, पै त्वि में दिलैकि आग, त्वि में छ ज्वानिक फाग, रगन में नयी ल्वै छ प्यारक खुमार छ। सारि दुनि में मेरी सू ज, लै क्वे न्हां, मेरि सू कैं रे त्योर फूल जै अत्ती माँ। काफल कुसुम्यारु छ, आरु छ, अखोड़ छ, हिसालु, किलमोड़ त पिहल सुनुक तोड़ छ , पै त्वि में जीवन छ, मस्ती छ, पागलपन छ, फूलि बुंरुश! त्योर जंगल में को जोड़ छ? सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां, मेरि सू कैं रे त्योर फुलनक म' सुंहा॥ ~ सुमित्रानंदन पंत

"(कुमाऊँनी हास्य कविता ) 😜😜 ""आजकल चेली ब्वारी चलौनी फेसबुक

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 "(कुमाऊँनी हास्य कविता )    😜😜           ""आजकल चेली ब्वारी चलौनी  फेसबुक  ""नई फोटो अपलोड करी पुछनी हाउ इज माई लुक    सौर ज्यू देखनी गोर भैसों कैै सासु  बेचारी बनी रै कुक .. स्वामी जी हैं बोली मैकै छ भारी दुःख .. देवर जिठान सब फ्रेंड्स बनै हली ; जिठाना त कमेन्ट करनी "माई ब्रो नाईस लुक"  मैसेज मै लिखनी ओ भूली मैंलै ऊँ जरा रूक . रत्ते बटी रात तक सब आनलाइन आईडी सबुक, सासु बोलें चल ब्वारी जंगलजानू गोरू भैसो हुनी घा लौनू ,उ छन भूख, चेली ब्वारी चलौनी फेसबुक   भूख हरेगे नींद हैरगे फेसबुक मै लागरी टूक टूक , आठ नानतिना की माँ छू और फोटो सोल साल की .. फ्रेंड्स का कमैन्ट ऊनी मस्त छ त्यर लुक" जुग जुग जी रयै ईजा जैल बना य फेसबुक" 😜😜

लालुकाथल की तरफ गाज्यो (कटीली घास) काटने जा रही चार - पाँच सखी - सहेलियों

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 बेठे ठाले ........ .         .            लालुकाथल की तरफ गाज्यो (कटीली घास) काटने जा रही चार - पाँच सखी - सहेलियों में से किसी एक ने पूछा है ..... ला दिदि , जगज्यू 'ल बेई तुमन थैं कि कौ उ " पियार - सियार " सब बाद में होल् कै .... इनन् ले बतै दिनाँ धैं (अरे दीदी, जगदीश 'जी ने कल तुसमे वो पियार - सियार क्या कहा था , इनको भी बताना तो )...... कितुलि भाभी को समझते देर न लगी कि माल् बजेरी की रंभा ने यह सवाल उनसे ही किया है ..... मैं थैं किलै कौल जग्गू .... उँ त बतूँण लागि रौछी कि आब् मन लगै बेरि पढ़ाइ करुँन कै और त्यार ख्वार् तस बजर पड़ि रौ ( मुझसे क्यों कहेगें जगदीश ? वे तो बता रहे थे कि अब मन लगा कर पढाई करूँगा और तेरे दिमाग में उल्टी बात घुस रही है )  ...... सुनते ही सब खिलखिला पड़ीं । कितुलि भाभी को जाने क्यों लगा जैसे चोरी पकड़ी गई है । अभी वे और सफाई देतीं लेकिन तब तक पार्वती बोल पड़ी .....  हमैरि बोज्यू ले जास् - कास् जि भ्या ! तुम कि समच्छा , पियार - सियार न जाणन् कै ....... ब्या बाद एक साथ भटिंडा रई छन । वां दाज्यू ' नां दिगा इनैलि संगम , मुगलेआजम , मेला , कतुकुप

मृग मरीचिका सा प्रेम

 मृग मरीचिका सा प्रेम ये मरुस्थल रूपी प्रेम की डगर जहाँ दूर तक सुनहरी रेत सा  फैला विश्वास का सागर ये रेत कभी उड़ती कभी ठहर जाती कभी टीला बन जाती तो कभी ग़ुबार बन कर लिपट जाती मेरे तन को मैं सुनहरी रेत में लिपटी एक मूर्ति टकटकी लगाए बैठी हूँ प्रेम की प्रतीक्षा में कभी रेतीली आँधी उड़ा देती है विश्वास को एकत्रित करती हूँ बिखरी हुई रेत को फिर साहस बटोरती हूँ  एक मृग मरीचिका के पीछे भागती हूँ ये प्रेम ना जीने दे ना मरने दे ज्वार भाटा बन बस छलता है अपने आप को कभी सुख की अनुभूति कभी काली रात आँसुओं  की छटा और दर्द प्रेम एक तृष्णा है जो बहका देती है  डूबती उतरती चली जा रही हूँ अकेली  इस प्रेम के मरुस्थल में यथार्थ के पटल पर सब नामुमकिन है पर फिर भी चल रही हूँ

"मैंने अपनी बंदआँखों से" कविता कोश

"मैंने अपनी बंदआँखों से" कविता कोश   मैंने अपनी बंदआँखों से  महसूस किया है, जीवन मे बिखरे संगीत को, प्रकृति के कण -कण में विद्यमान एक मधुर संगीत, हृदय को झंकृत करता हुआ, निरंतर तान छेड़ता हुआ, जाग्रत करता है मेरे प्रेम को और वो हर दुखद क्षण आनन्द से भर जाता है, मन के भीतर कई जलतरंग, तरंगित, होकर स्पर्श कर जाते है आत्मा को और मेरे अधरो पर मुस्कान बन झलकता है संगीत, जीवन मे संगीत , संगीत में समाहित मेरा प्रेम, प्रेम में समाहित तुम और तुम में समाहित  मेरी आत्मा, मैं अनुभव करती हूँ तुम्हे अपने निकट और भी निकट,  समेट लिया है मैने बिखरे संगीत को  अपने अंतर्मन में, अब प्रत्येक क्षण आनंद से सराबोर, मुझे सम्पूर्ण  करता है,  और तुम बन जाते हो मेरे जीवन का उत्सव

बोला भै-बन्धू तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ् / श्री नरेंद्र सिंह नेगी

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उत्तराखण्ड राज्य निर्माण प्राप्ति के संघर्ष के दौरान लोगों के दिलों में एक आदर्श राज्य का सपना था. राज्य की प्राप्ति के लिये लगभग 40 लोगों ने अपने प्राण न्यौछावर किये. अन्ततः राज्य तो बन गया, लेकिन 7 साल बीतने पर भी आन्दोलनकारियों के सपनों का राज्य एक सपना ही बना हुआ है.शराब के ठेकेदारों, भू माफियाओं और एन.जी ओ. के नाम पर चल रहे करोड़ों के व्यवसाय के बीच आम उत्तराखण्डी मानस ठगा सा महसूस कर रहा है. सपना देखा गया था ऐसे राज्य का जिसमें चारों ओर खुशहाली हो. समाज के हर वर्ग की अपनी अपेक्षाएं थीं. नरेन्द्र सिंह नेगी जी की इस कविता के माध्यम से समाज के सभी वर्गों की आक्षांकाएं स्पष्ट होती हैं. भगवान से यही प्रार्थना है कि राज्य के नीतिनिर्धारकों के कानों तक नेगी जी का यह गीत पहुँचे, और वो हमारे सपनों का राज्य बनाने के लिये ईमानदारी और सच्ची निष्ठा से काम करें. बोला भै-बन्धू तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ् हे उत्तराखण्ड्यूँ तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ् जात न पाँत हो, राग न रीस हो छोटू न बडू हो, भूख न तीस हो मनख्यूंमा हो मनख्यात, यनूं उत्तराखण्ड चयेणू छ् बोला बेटि-ब्वारयूँ तुमथैं कनू उत्तराखण

यहां भगवान शिव के साथ होती है रावण की पूजा, ये है मान्यता

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  यहां भगवान शिव के साथ होती है रावण की पूजा, ये है मान्यता उत्तराखंड में एक ऐसी भी जगह है जहां रावण भगवान शिव के साथ रावण की पूजा होती है। चमोली जिले के घाट विकासखंड स्थित बैरासकुंड में भगवान शिव का पौराणिक मंदिर है। कहते हैं कि यह वही स्थान है, जहां पर लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए दस हजार वर्ष तक तपस्या की थी। इस स्थान पर रावण शिला और यज्ञ कुंड आज भी मौजूद हैं। साथ ही भगवान शिव के प्राचीन मंदिर में शिव स्वयंभू लिंग के रूप में विराजमान हैं। श्रद्धालु यहां शिव के साथ रावण की भी श्रद्धापूर्वक पूजा करते हैं। 'स्कंद पुराण' के केदारखंड में उल्लेख है कि यहां तपस्या के दौरान जब रावण अपने नौ शीश यज्ञ कुंड में समर्पित कर दसवें शीश को समर्पित करने लगा तो साक्षात भगवान शिव उसके सम्मुख प्रकट हो गए। रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने उसे मनवांछित वरदान दिए। लोक मान्यता है कि इस दौरान रावण ने भगवान शिव से सदा इस स्थान पर विराजने का वरदान भी मांगा था। यही कारण है कि आज भी इस स्थान को शिव की पवित्र भूमि के रूप में जाना जाता है।  क्षेत्र की परंपराओं के जानकार पंडित हरि

चमड़खान का गोलज्यू मंदिर...! जहाँ होती है गोरिल देवता के चरणों की पूजा.!

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 जय ईष्ट देव श्री गोलज्यू महाराज जी  चमड़खान का गोलज्यू मंदिर...! जहाँ होती है गोरिल देवता के चरणों की पूजा.! पूरे गढ़-कुमाऊँ में यह गोलू देवता का पहला ऐसा मंदिर है जहाँ उनके चरण पूजे जाते हैं. अल्मोड़ा जिले के  रानीखेत से लगभग 22 किमी. ताडीखेत, रामनगर, चमड़खान मोटर मार्ग पर स्थित यह मंदिर पूरे उत्तराखंड का एकमात्र ऐसा गोरिल/ग्वेल/गोलू/गोल्जू देवता का मंदिर है जहाँ उनके चरणों की पूजा होती है. स्थानीय लोगों का मानना है कि यहाँ गोलू देवता ने एक सप्ताह तक अपना न्याय दरवार लगाया! लोगों ने गुहार लगाईं कि अब आप यहीं विराजमान रहे तब गोलू देवता ने अपनी चरण पादुकाएं यहीं छोड़ दी व कहा कि जब भी किसी के साथ कोई अन्याय हो वो मुझे स्मरण कर दे। मंदिर परिसर से लगभग 500 मीटर तक की दूरी पर एक भी चीड का पेड़ ऐसा नहीं है जो कोई नया पनपा हो. इस पर स्थानीय लोगों का मत है कि ये पेड़ उसी काल से यहाँ खड़े हैं जब गोल्जू देवता की यहाँ कालांतर में स्थापना की गयी। तब से न आस पास कोई नया पेड़ ही जन्म लेता है और न ही इन पेड़ों के टूटने से कभी कोई अप्रिय घटना जनमानस में घटित हुई है। जय ईष्ट देव श्रीगोलज्यू महाराज शुभ रात्रि प

कोटद्वार के प्रसिद्ध श्री सिद्धबली मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं की किस कदर अटूट आस्था है,

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कोटद्वार के प्रसिद्ध श्री सिद्धबली मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं की किस कदर अटूट आस्था है, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण इस बात से मिलता है कि मंदिर में भंडारा आयोजन को 2026 तक की एडवांस बुकिग श्रद्धालु कर चुके हैं। माना जाता है कि हनुमान जी के इस मंदिर में मांगी गई मुराद अवश्य पूर्ण होती है और मुराद पूर्ण होने के बाद श्रद्धालु मंदिर में भंडारे का आयोजन करते हैं। सिद्धबली मंदिर में विराजमान पवनसुत हनुमान के दर्शनों को उत्तराखंड ही नहीं, उत्तर प्रदेश, दिल्ली से भी बड़ी तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं। सिद्धबली मंदिर के बारे में मान्यता है कि कलयुग में शिव का अवतार माने जाने वाले गुरु गोरखनाथ को इसी स्थान पर सिद्धि प्राप्त हुई थी, जिस कारण उन्हें सिद्धबाबा कहा जाता है। गोरख पुराण के अनुसार, गुरु गोरखनाथ के गुरु मछेंद्रनाथ पवनसुत बजरंग बली की आज्ञा से त्रिया राज्य की शासिका रानी मैनाकनी के साथ गृहस्थ आश्रम का सुख भोग रहे थे। जब गुरु गोरखनाथ को इस बात का पता चला तो वे अपने गुरु को त्रिया राज्य से मुक्त कराने को चल पड़े। मान्यता है कि इसी स्थान पर बजरंग बली ने रूप बदल कर गुरु गोरखनाथ का मार्ग रोक लिया।

15 दिसंबर का इतिहास

15 दिसंबर का इतिहास 1749 – छत्रपति शिवाजी के पोते शाहू की मौत हुई। 1794 – फ्रांस में क्रांतिकारी ट्रिब्यूनल को समाप्त कर दिया गया। 1803 – ईस्ट इंडिया कंपनी ने उड़ीसा (अब ओडिशा) पर कब्जा किया। 1911 – बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी सोसाइटी की स्थापना हुई। 1916 – प्रथम विश्व युद्ध के दौरान वेरदून में हुए लड़ाई में फ्रांसने जर्मनी को हराया। 1917 – मॉल्डोवा गणराज्य ने रूस से स्वतंत्र होने की घोषणा की। 1943 – भारत की एस विजयलक्ष्मी पंडित संयुक्त राष्ट्र महासभा के आठवें सत्र की प्रथम महिला अध्यक्ष चुनी गई। 1950- भारत रत्न से अलंकृत और स्वतंत्र भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री तथा लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का निधन हुआ। 1953-भारत की एस विजयलक्ष्मी पंडित संयुक्त राष्ट्र महासभा के आठवें सत्र की प्रथम महिला अध्यक्ष चुनी गईं। 1965 – बांग्लादेश में गंगा नदी के तट पर आये चक्रवात में 15,000 लोगों की मौत हुई। 1970 - बाबुल सुप्रियो - भारतीय पार्श्वगायक, लाइव परफ़ॉर्मर, टीवी होस्ट, अभिनेता और राजनीतिज्ञ और सांसद हैं। 1976 – न्यूजीलैंड से स्वतंत्र हुआ समोआ संयुक्त राष्ट्रका

बस साल् में यक चक्कर जरूर घरैं लग्यै दिया। मैंकें तुमरि नरै लागि रै।

 गौं बटि बुबूकि चिट्ठी ऐरै। नानतिनो, भ्या बैणियों भाल् है रया।  जां लै छा, जिलै करण लागि रौछा सबै सुखारि रया। घरकि चिंता झन करिया। कैदिनै मौक लागलत यक चक्कर जरूर लगाया। घराक गोल्ज्यू, गाड़क मसाण, धार मेंकि देवि, भुतणिक थान सबै जाग। तुमरनामक द्यू जगाहा। सबै द्याप्तन्हैं हाथ जोड़ि हालि। हे नरैंणां म्यार प्वाथन बचै राखिया। बस साल् में यक चक्कर जरूर घरैं लग्यै दिया। मैंकें तुमरि नरै लागि रै। बाट मैंनि द्येखि न राख। नतरि यक दिन मैंलै जरूर ऐ जनी। देवा आब तुमरि आस छ। मैंकें म्यार नानतिन दिखै दे। धें कास् है रयी। कि पत्त आब कदुक दिनक पराण छ बल। तदुक निर्मोही केहीं भई म्यार नान्। कदुक साल है गई। कि पत्त घरक पत्त भुलि गई।

संस्कार त् हरै गयीं भगवान् ज्यु , तुम क्यलै चुपै रोछा।

 १- दूध-भात खैबेर् भागी, नानतिन हुन्छी खूब हुस्यार आब खांण भेगी मैगी-बर्गर, तबेत रूनी हरदम बीमार ।। २- भटै रांजणि झ़ुंगरौ भात, ब्वझ उठै द्यछीं बातै-बात अच्याला नान् फूल जस् परांण, हिटि नि सकंन् द्वी लपाक् ।।  ३ - आठ-दस मैल् पैदल् जंछी,  तब पड़छी इस्कूल आब् त् ऑनलाइन हैगो,  ठंड-ठंड कूल-कूल ।। ४ - शराब गुटुक बाट-बाटन् में, इफरात है रै कूंछा  संस्कार त् हरै गयीं भगवान् ज्यु , तुम क्यलै चुपै रोछा।। ५- एक बखत् ऊ लै छी, जब भल् मनखिकि हैंछी कदर आब् जैक् छीं चार चाटुकार, वी पधान वी हुस्यार।।

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित कसारदेवी मंदिर की 'असीम' शक्ति से नासा के वैज्ञानिक भी हैरान हैं।

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दुनिया में तीन पर्यटक स्थल ऐसे हैं जहां कुदरत की खूबसूरती के दर्शन तो होते ही हैं, साथ ही मानसिक शांति भी महसूस होती है। ये अद्वितीय और चुंबकीय शक्ति का केंद्र भी हैं। इनमें से एक भारत के उत्तराखंड में अल्मोड़ा स्थिति कसारदेवी शक्तिपीठ है। इन तीनों धर्म स्थलों पर हजारों साल पहले सभ्यताएं बसी थीं। नासा के वैज्ञानिक चुम्बकीय रूप से इन तीनों जगहों के चार्ज होने के कारणों और प्रभावों पर शोध कर रहे हैं। पर्यावरणविद डॉक्टर अजय रावत ने भी लंबे समय तक इस पर शोध किया है। उन्होंने बताया कि कसारदेवी मंदिर के आसपास वाला पूरा क्षेत्र वैन एलेन बेल्ट है, जहां धरती के भीतर विशाल भू-चुंबकीय पिंड है। इस पिंड में विद्युतीय चार्ज कणों की परत होती है जिसे रेडिएशन भी कह सकते हैं। पिछले दो साल से नासा के वैज्ञानिक इस बैल्ट के बनने के कारणों को जानने में जुटे हैं। इस वैज्ञानिक अध्ययन में यह भी पता लगाया जा रहा है कि मानव मस्तिष्क या प्रकृति पर इस चुंबकीय पिंड का क्या असर पड़ता है। अब तक हुए इस अध्ययन में पाया गया है कि अल्मोड़ा स्थित कसारदेवी मंदिर और दक्षिण अमेरिका के पेरू स्थित माचू-पिच्चू व इंग्लैंड के स्ट

पिथौरागढ जनपद का ( माता उल्का देवी मंदिर )

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पिथौरागढ जनपद का ( माता उल्का देवी मंदिर ) चैत के महिने लगने वाले चैतोल के उत्सव पर यहां विशेष उत्सव होता है. इस मंदिर के पिथौरागढ़ शहर में बहुत मान्यता है. यहां प्रत्येक वर्ष नवरात्रि के अवसर पर भंडारे का आयोजन भी किया जाता है. चंडाक रोड पर स्थित इस मंदिर के मुख्य मंदिर पर दोनों और शेर की मूर्तियां लगीं हैं! सीढ़ियों से चढ़कर ऊपर मां का सुंदर देवालय है! इस मंदिर में लोग फूल इत्यादि के अतिरिक्त घंटी भी चढ़ाते हैं, मंदिर में लगी हुई अनेक घंटियां देखने को मिलती हैं जिनपर दान करने वालों के नाम भी गुदे रहते हैं! मंदिर के परिवेश से पिथौरागढ़ शहर की शानदार छवि दिखती है! यहां बहुत से पर्यटक सूर्योदय और सूर्यास्त को देखने के लिए आते हैं. पर्यटन दृष्टि से यह मंदिर पिथौरागढ़ का एक महत्त्वपूर्ण व्यू पाइंट माना जाता है!

तिमला: स्वाद ही नहीं सेहत का खजाना भी है

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 तिमला और उत्तराखंड  तिमला: स्वाद ही नहीं सेहत का खजाना भी है  तिमला ऊँचे और ठन्डे प्रदेशों मैं पाए जाते हैं भारत मैं तिमला का क्षेत्र उत्तर भारत माना जाता है यह उत्तराखंड, हिमांचल, अरुंनाचल प्रदेश, नेपाल और अन्य पहाड़ी क्षेत्र मैं बहुत जादा पाया जाता है। तिमले का उत्तराखंड से बहुत ही प्राचीन काल से गहरा संबन्ध है यहाँ के लोकगीतों मैं तिमले का जिक्र किया जाता है बड़ा आकार की वजह से इसका पत्ता प्राचीन समय मैं खाना खाने के लिए थाली का काम करती थी आज भी कई जगह शादी पार्टी के आयोजनों मैं लोग इसके पत्तों का इस्तेमाल करते हैं बड़ी कड़ी पर बही सब्जियां और भात इसके पत्तों से ठाके जाते हैं साथ ही पशुओं का चारे के लिए यहाँ एक बड़ा विकल्प रहता है इसकी पतियाँ पशुओं के लिए फायदेमंद बताई जाती हैं . इसके फल को लोग खूब खाते हैं इसलिए लोग इस पेड़ की उपयोगिता को देख घर के नजदीक ही लगते हैं इस पेड़ पर भरी भरकम शाखाएं निकलती हैं जिनपे धान के बाद सुखी न्यार (पराल) इसकी मजबूत शाखाओं पर लगे जाती है जो काफी समय तक सुरक्षित रहती है।

झूला देवी मंदिर, रानीखेत

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 झूला देवी मंदिर, रानीखेत शहर से 7 किमी की दूरी पर स्थित यह एक लोकप्रिय धार्मिक स्थल है। यह हिंदू देवी दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर 8 वीं सदी में बनाया गया था। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण इस स्थान पर रहने वाले जंगली जानवरों पर मां दुर्गा की कृपा बनाये रखने के उद्देश्य से किया गया था। माना जाता है कि एक चरवाहे को सपने में देवी दुर्गा ने दर्शन दिये और यहां पर खुदाई कर उनकी मूर्ति निकालने की सलाह दी। यह मंदिर ठीक उसी जगह पर स्थित है, जहां मूर्ति पायी गई। मंदिर में खूबसूरती से तराशी गईं पवित्र घंटियाँ खुदी हुई हैं, और दूर से इन घंटियों की आवाज स्पष्ट रूप से सुनाई देती है।  मानना है कि मंदिर में प्रार्थना करने वाले लोगों की मनोकामनाएं मां झूला देवी पूर्ण करती हैं। 28. ध्वज मंदिर पिथौरागढ़ के पास स्थित एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ मंदिर 29. जय माँ नैनादेवी मंदिर नैनीझील के किनारे 30. माँ मानिला देवी अटूट आस्था का प्रतीक काले पत्थर से निर्मित 31. प्राचीन पौराणिक ताड़केश्वर महादेव मंदिर रिखणीखाल पौड़ी गढवाल उत्तराखंड 32. विश्व का सर

14 दिसंबर का इतिहास

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14 दिसंबर का इतिहास 1799 को अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन (प्रथम) का निधन हुआ था। 1864 को अपने समय में उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध वकील और प्रसिद्ध सार्वजनिक कार्यकर्ता जगत नारायण मुल्लाका जन्‍म हुआ था। 1910 को निबन्धकार, लेखक, कहानीकार उपेन्द्रनाथ अश्क का जन्‍म हुआ था। 1911 – रुआल आमुन्सन की दक्षिणी ध्रुव की यात्रा। 1918 को प्रसिद्ध भारतीय योग गुरु बीकेएस अयंगर का जन्‍म हुआ था। 1921 – एनी बेसेंट को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ने 'डॉक्टर ऑफ़ लेटर्स' की उपाधि से विभूषित किया। 1922 – यूनाइटेड किंगडम में आम चुनाव। 1922 को नोबेल पुरस्कार विजेता रूसी भौतिक विज्ञानी निकोले बासोव का जन्‍म हुआ था। 1924 को भारतीय अभिनेता राज कपूर का जन्‍म हुआ था। 1934 -श्याम बेनेगल- प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक। 1936 - विश्वजीत चटर्जी - भारतीय सिनेमा में बंगालीऔर हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता। 1946 - संजय गाँधी - भारतीय नेता इंदिरा गाँधी के छोटे पुत्र। 1946 – डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारत की संविधान सभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 1971 को परमवीर चक्र सम्मानित भारतीय सैनिक और फ़्लाइ

इनके कई रूप हैं जैसे- #चितई गोल्जयू, #डाना गोल्जयू, #घोडाखाल गोल्जयू, #गैराड़ गोल्जयू.

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 🙏#श्री_गोलज्यू_के_नाम 🙏🙏 गोरी गंगा से निकले #गोरिया नाम पड़ा, कंडी में पौड़ी लाये गये #कंडोलिया नाम पड़ा, #गागरी_में_रख_कर_गरुड़_में_लाये_गये_तो #गागरीगोल (गागरीग्वल) नाम पड़ा, माता के दूध की परिक्षा पास की #दूदाधारी नाम पड़ा, देवो, पितरो, भूतो, मसाडो, बयालो, जादू टोने का उचित न्याय किया #न्यायकारी_चितई_गोलू नाम पड़ा, पंचनाम देवो के धर्म भांजे हो #अागवानी नाम पड़ा, उत्तराखण्ड, नेपाल, उत्तरप्रदेश में अपना झंडा स्थापित किया #राजाओ_के_राजा नाम पड़ा और भगवान महादेव के सबसे सुन्दर रुप हो #गौर_भैरव नाम पड़ा  - जय राजवंशी गोरिया, महादेव…  🙏🙏#श्री_गोलज्यू_के_नाम 🙏🙏 1  गोरी गंगा से निकले #गोरिया नाम पड़ा, 2  कंडी में पौडी लाये गये #कंडोलिया नाम पड़ा, 3.  #गागरी_में_रख_कर_गरुड़_में_लाये_गये_तो #गागरीगोल (#गागरीग्वल) नाम पड़ा, 4.  चंपावत से बागेश्वर में बाजार में बसाये गये तो श्री बाजारी गोल्ज्यु , 5.  माता के दूध की परिक्षा पास की #दूदाधारी नाम पड़ा, 6   देवो, पितरो, भूतो, मसाडो, बयालो, जादू टोने का उचित न्याय किया #न्यायकारी_चितई_गोलू नाम पड़ा,  7.  पंचनाम देवो क

कविता - हूं राज्यपुष्प उत्तराखण्ड का

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 हूं राज्यपुष्प उत्तराखण्ड का मैं नहीं प्रियतम कमल पुष्प,       जो कीचड़ में खिल जाता है।       हूं मां नंदा की चरण धूरी,       ब्रह्मकमल कहलाता हूं ।।    गुण हैं औषधि मुझ में भरपूर,    मानव मेरे शोषण में चूर।।    अब कौन इन्हें समझाएगा,     हूं राज्य पुष्प उत्तराखंड का,     ब्रह्म कमल कहलाता हूं ।।   बर्गनदतोगेस भी नाम मेरा,  तो हिमाचल में दुधाफूल , कश्मीर में नाम है गलगल,  हूं राज्य पुष्प उत्तराखंड का , ब्रह्मकमल कहलाता हूं ।। आस्था विश्वास की परम झलक ,                       केदारधाम पर चढ़ता हूं, आस्था रूपी हूं देवपुष्प , हूं राज्य पुष्प उत्तराखंड का  ब्रह्मकमल कहलाता हूं ।। निवेदक बनकर मांग रहा, अपने, अस्तित्व की अमिट धरा, मेरा ,नाम कहां ले पाओगे, यदि ,धरा पर ही ना रहा ।। क्यों व्यापार को मेरे हो आतुर, हूं राज्य पुष्प उत्तराखंड का, ब्रह्मकमल कहलाता हूं।। मैं नहीं प्रियतम कमल पुष्प, जो कीचड़ में खिल जाता है। हूं मां नंदा की चरण धूरी, ब्रह्मकमल कहलाता हूं । अपने पहाड़ से मैं कहां अलग हो पाया हूं जिन पहाड़ों, झरनों, धारों के पानी से मैं दूर आ