कोटद्वार के प्रसिद्ध श्री सिद्धबली मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं की किस कदर अटूट आस्था है,



कोटद्वार के प्रसिद्ध श्री सिद्धबली मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं की किस कदर अटूट आस्था है, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण इस बात से मिलता है कि मंदिर में भंडारा आयोजन को 2026 तक की एडवांस बुकिग श्रद्धालु कर चुके हैं। माना जाता है कि हनुमान जी के इस मंदिर में मांगी गई मुराद अवश्य पूर्ण होती है और मुराद पूर्ण होने के बाद श्रद्धालु मंदिर में भंडारे का आयोजन करते हैं।

सिद्धबली मंदिर में विराजमान पवनसुत हनुमान के दर्शनों को उत्तराखंड ही नहीं, उत्तर प्रदेश, दिल्ली से भी बड़ी तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं। सिद्धबली मंदिर के बारे में मान्यता है कि कलयुग में शिव का अवतार माने जाने वाले गुरु गोरखनाथ को इसी स्थान पर सिद्धि प्राप्त हुई थी, जिस कारण उन्हें सिद्धबाबा कहा जाता है। गोरख पुराण के अनुसार, गुरु गोरखनाथ के गुरु मछेंद्रनाथ पवनसुत बजरंग बली की आज्ञा से त्रिया राज्य की शासिका रानी मैनाकनी के साथ गृहस्थ आश्रम का सुख भोग रहे थे। जब गुरु गोरखनाथ को इस बात का पता चला तो वे अपने गुरु को त्रिया राज्य से मुक्त कराने को चल पड़े। मान्यता है कि इसी स्थान पर बजरंग बली ने रूप बदल कर गुरु गोरखनाथ का मार्ग रोक लिया। जिसके बाद दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। दोनों में से कोई भी एक-दूसरे को परास्त नहीं कर पाया। इसके बाद बजरंग बली अपने वास्तविक रूप में आ गए व गुरु गोरखनाथ के तपो-बल से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मांगने को कहा। गुरु गोरखनाथ ने बजरंग बली से इसी स्थान पर उनके प्रहरी के रूप में रहने की गुजारिश की। गुरु गोरखनाथ व बजरंग बली हनुमान के कारण ही इस स्थान का नाम 'सिद्धबली' पड़ा। आज भी यहां पवनपुत्र हनुमान प्रहरी के रूप में भक्तों की मदद को साक्षात रूप में विराजमान रहते हैं।

गुरु नानकदेव जी ने किया था विश्राम

वर्तमान में जिस स्थान पर श्री सिद्धबली मंदिर स्थापित है, वहां समीप ही सिखों के प्रथम गुरु नानकदेव जी ने भी कुछ दिन प्रवास किया था। कोटद्वार स्थित गुरुद्वारा साहिब के मुख्य ग्रंथी कंवलजीत सिंह बताते हैं कि गुरु नानकदेव जी के पग जिस भूमि पर पड़े, वह भूमि पावन है। बताया कि वे लंबे समय से सिद्धबली मंदिर के आसपास गुरुद्वारे की स्थापना को भूमि की तलाश कर रहे हैं, लेकिन भूमि नहीं मिल पा रही है।

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