ढोल-दमाऊ व शंख-घंटी तथा ब्रहमाचारियों व असंख्य श्रध्दालुओं के साथ मंदिर की 7-9 परिक्रमाएं

 भुवनेश्वरी शक्तिपीठ 


उत्तराखंड में भुवनेश्वरी शक्तिपीठ पहला ऐसा मंदिर है, जहां माता रानी का सामूहिक पूजन उपासना अनेक ब्रहमाचारियों के द्वारा प्रतिदिन  होती है। इसके अलावा इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां देवी की श्रृंग के रूप में पूजा होती है।



#स्कन्द #पुराण >, 

        चन्द्रकूट स्थिते देवी भवानी भयमोचनी।

        नमः शिवायै शान्ताये शांकरी भुवनेश्वरी ।।

 कोट ब्लाक  में सीता माता की पवित्र  धरती पर चन्द्रकूट नामक पर्वत की चोटी पर आदि शक्ति मां भुवनेश्वरी का मंदिर स्थित है। इस चोटी से दूर तक के क्षेत्र ऐसे नजर आते हैं जैसे जगत की महारानी ऊंचे सिंहासन पर बैठ कर न्याय कर रही हों। इस मंदिर की कई विशेषताएं हैं।

श्रृंग की पूजा

     यहां श्रृंग की पूजा होती है और कहा जाता है कि यह दुनियां का अंतिम छोर है। मंदिर में पहाड़ की प्राचीन परंपराएं वर्तमान में भी विद्यमान हैं। इस मंदिर में नित्य धूयेल होती है, यानि ढोल और दमाऊ के साथ देवी की दोपहर में आरती होती है। 

ढोल-दमाऊ व शंख-घंटी

   ढोल-दमाऊ व शंख-घंटी तथा ब्रहमाचारियों व असंख्य श्रध्दालुओं  के साथ मंदिर की 7-9 परिक्रमाएं होती है। विषम संख्या में परिक्रमा में स्थानीय लोगों की भी भीड़ जुटती है। स्कंध पुराण में उल्लेख आया है कि ब्रहमा के मानस पुत्र दक्ष प्रजापति के यज्ञ में पार्वती का शरीर शांत होने पर शिव ने हरिद्वार कनखल में प्रजापति को सबक सिखाया। 

पार्वती के सती हो जाने पर उनका जला शरीर लेकर वे आकाश मार्ग से गुजरे और तब विष्णु ने जले शव के 51 टुकड़े कर दिए। इसके बाद शिव ने इस पर्वत पर विश्राम किया। 

चैत्र धार्मिक अनुष्ठान

   शरद व चैत्र के नवरात्र पर यहां धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही पूजा अर्चना व देवी स्तुति में माहौल आध्यात्म से सराबोर होता है। बुधवार को नवमी तिथि पर यहां विशेष पूजा अर्चना के साथ ही श्रद्धालुओं ने सुख एवं शांति की कामना की। भुवनेश्वरी शक्ति पीठ एक बार पहुंचने वाला बार-बार आता है।

पुजारी जुयाल परिवार

   इस मन्दिर के मूल पुजारी जुयाल परिवार के हैं पर नवरात्री पर्व हो या अन्य धार्मिक अनुष्ठान समितियों तथा स्थानीय लोगो का पूर्ण सहयोग माता रानी के प्रति समर्पित होता है।

छात्रों का सुनहरे भविष्य का निर्माण

     यहां होता है छात्रों का सुनहरे भविष्य का निर्माण जी हां मां जगत जननी के श्री चरणो मै एक गुरुकुल भी है जहां पर छात्र और गुरूजनो का जीवन एक दूसरे के प्रति समर्पण रहता , यहां पर छात्रावास है गुरूजन हो या छात्र सभी का वास परिसर मै ही होगा इसलिए सुबह से लेकर सांय तक नियमित दिनचर्या का पालन होता है .अनुशासन का वास्तविक रूप इस गुरुकुल मै देखने को मिलता है अनुशासन को ही विद्यालय का प्राण माना जाता है.यहां पर उत्तराखण्ड ही नहि अपितु  बिजनौर .देहली.गाजियाबाद .देहरादून आदि क्षेत्रो से भी छात्र अध्ययनरत हैं.गुरूकुल अपनी ख्याति निरन्तर प्राप्त कर रहा है अनेक बार राज्यस्तर पर अपनी पताका लहरा चुका है. यहां से पड़े अनेक छात्र आज उच्च पदों पर आसीन हो चुकें अर्थात माता रानी के चरणो मै जो रहा उसपे कृपा बरस रही.वह तो करूणामयी है.मेरा भी सौभाग्य था मुझे भी पांच वर्षों तक मां के चरण मै अध्ययन करने का शुभ अवसर मिला ...

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटन स्थल (Major tourist places in Uttarakhand)

उत्तराखण्ड: एक नया राज्य, एक नई शुरुआत - Uttarakhand: A New State, A New Beginning

उत्तराखंड राज्य में स्थित राष्ट्रीय उद्यान (National park located in the state of Uttarakhand)

गब्बर सिंह नेगी, इनकी बहादुरी को आज भी याद (Gabbar Singh Negi still remembers his bravery )

श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं - shree ganesh chaturthi ki hardik shubhkamnayen

वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली कौन थे ? /Who was Veer Chandra Singh Garhwali?

उत्तराखंड में कृषि सिंचाई एवं पशुपालन(Agriculture Irrigation and Animal Husbandry in Uttarakhand) uttaraakhand mein krshi sinchaee evan pashupaalan