उत्तराखंड के सभी प्रमुख आयोग | All Important Commissions of Uttarakhand in Hindi
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उत्तराखंड के सभी प्रमुख आयोग |
उत्तराखंड के सभी प्रमुख आयोग (All Important Commissions of Uttarakhand)
देश में गठित राज्य आयोग विभिन्न मुद्दों से निपटने के लिए जिम्मेदार हैं। वे यह सुनिश्चित करने के लिए स्थापित किए गए हैं कि राज्य के नागरिकों के पास उनके अधिकारों की रक्षा हो और उन्हें न्याय मिले। मानवाधिकारों की रक्षा से लेकर सरकारी नीतियों के कार्यान्वयन की निगरानी तक, उनके कार्य एक आयोग से दूसरे आयोग में भिन्न होते हैं।
All commissions of Uttarakhand
यह सुनिश्चित करने के लिए कि राज्य सरकार सुचारू रूप से कार्य करे, राज्य में विभिन्न आयोगों का गठन किया जाता है। इन आयोगों में योजना आयोग, राज्य वित्त आयोग, राज्य चुनाव आयोग, विधि आयोग, महिला आयोग और प्रवासन आयोग आदि विभिन्न आयोग इस ब्लॉग में शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक आयोग की स्थापना, उनके अध्यक्ष और कार्य हैं जो राज्य सरकार के कामकाज के लिए आवश्यक हैं।
उत्तराखण्ड अल्पसंख्यक आयोग स्थापना
- भारत का संविधान के अनुच्छेद 200 के अधीन उत्तराखण्ड विधान सभा द्वारा पारित उत्तराखण्ड अल्पसंख्यक आयोग विधेयक 2002 पर दिनांक 16.06.2002 को अनुमति प्रदान की गर्इ।
- उत्तराखण्ड सरकार द्वारा दिनांक 27 मर्इ, 2003 को उत्तराखण्ड अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया।
- गठन के पश्चात आयोग ने 29.09.2003 को अपना कार्य प्रारम्भ किया।\
उत्तराखण्ड अल्पसंख्यक आयोग में धारित पदों का विवरण
- आयोग में एक अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष तथा नौ सदस्यों के पद सृजित है। वर्तमान में एक अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष तथा नौ सदस्य कार्यरत है। आयोग में नियुक्त सभी महानुभावों की अवधि कार्यभार ग्र्रहण करने की तिथि से पांच वर्ष के लिए है।
- शासन द्वारा आयोग में सचिव श्रेणी- II लेखाकार, वैयकितक सहायक, वरिष्ठ सहायक, कनिष्ठ लिपिक के एक-एक पद तथा वाहन चालक-दो तथा चतुर्थ श्रेणी-चार कुल 11 पद स्वीकृत है।
आयोग का संरचनात्मक ढांचा :-
शासनादेष संख्या 428स.क.-02-35(स.क.)2002 देहरादून दिनांक 11.07.2002 द्वारा उत्तराखण्ड अल्पसंख्यक आयोग के कार्यो को सुचारू रूप से संचालित किए जाने हेतु निम्न पद सृजित है-\
क्र.स. स्वीकृत पदनाम पदो की संख्या
1 सचिव(श्रेणी-II) 01
2 लेखाकार 01
3 वैयकितक सहायक 01
4 वरिश्ठ लिपिक 01
5 कम्प्यूटर आपरेटर 01
6 वाहन चालक (अध्यक्ष एवं सचिव हेतु) 02
7 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी 04
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उत्तराखंड के सभी प्रमुख आयोग |
योजना आयोग राज्य में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करने के लिए जिम्मेदार है। राज्य वित्त आयोग स्थानीय निकायों को कराधान और सहायता अनुदान जैसे वित्त से संबंधित मामलों को देखता है। राज्य चुनाव आयोग यह सुनिश्चित करता है कि चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से हों। विधि आयोग कानूनी सुधारों पर सिफारिशें प्रदान करता है जबकि महिला आयोग महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और लैंगिक समानता सुनिश्चित करने की दिशा में काम करता है। अंत में, प्रवासन आयोग राज्य के भीतर या बाहर प्रवासन से संबंधित मामलों को देखता है।
उत्तराखंड राज्य योजना आयोग
गठन –21 मार्च 2001
मुख्यालय– देहरादून
प्रथम अध्यक्ष –नित्यानंद स्वामी
प्रथम उपाध्यक्ष– भारत सिंह रावत
इसका अध्यक्ष प्रत्येक राज्य का मुख्यमंत्री होता है।
राज्य योजना आयोग का कार्य
राज्य के विभिन्न प्रकार के संसाधनों (भौतिक, वित्तीय एवं जनशक्ति) का अनुमान लगाना तथा राज्य के समावेशी विकास में इसके सर्वोत्तम उपयोग के बारे में सुझाव देना । राज्य के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में बाधक कारणों को इंगित करना, योजनाओं के सफल क्रियान्वयन हेतु उसका समाधान ढूंढ़ना तथा उपयुक्त सुझाव प्रदान करना है।
उत्तराखंड राज्य वित्त आयोग
प्रथम अध्यक्ष– आर के दर
वर्तमान अध्यक्ष –इंदु कुमार पांडे
वर्तमान में 5 वा वित्त आयोग कार्यरत है ।
राज्य वित्त आयोग के कार्य
राज्य में विभिन्न पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों को राज्य के समेकित निधि से धन का आवंटन करना। वित्तीय मुद्दों के बारे में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करना। केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को प्रदान की गई धनराशि का उपयोग करना।
उत्तराखंड राज्य निर्वाचन आयोग
स्थापना –30 मई 2001
प्रथम अध्यक्ष –दुर्गेश जोशी
वर्तमान अध्यक्ष –चंद्रशेखर भारत
राज्य निर्वाचन आयोग के कार्य
यह निकाय राज्य में लोक सभा, राज्य सभा, राज्य विधान सभाओं और देश में राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचनों का संचालन करता है। निर्वाचन आयोग संविधान के अनुच्छेद 324 और बाद में अधिनियमित लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के प्राधिकार के तहत कार्य करता है।
उत्तराखंड विधि आयोग
प्रथम अध्यक्ष –धर्मवीर शर्मा
वर्तमान अध्यक्ष –राजेश टंडन
उत्तराखंड विधि आयोग का कार्य
इनका कार्य राज्य विधि में सुधार करना, अर्थात किसी न्यायप्रणाली में कानूनों की स्थिति की समीक्षा करना तथा कानूनों में परिवर्तन/परिवधन सुझाना है।
उत्तराखंड राज्य मानवाधिकार आयोग
स्थापना –जुलाई 2011
कार्य करना शुरू –30 मई 2013
प्रथम अध्यक्ष –विजेंद्र जैन
वर्तमान अध्यक्ष– विजय कुमार बिष्ट
उत्तराखंड राज्य मानवाधिकार आयोग के कार्य
संविधान की राज्य सूची एवं समवर्ती सूची के अंतर्गत आने वाले विषयों से संबंधित मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच करना अथवा किसी लोक सेवक के समक्ष प्रस्तुत मानवाधिकार उल्लंघन की प्रार्थना, जिसकी कि वह अवहेलना करता हो, की जांच स्व-प्ररेणा या न्यायालय के आदेश से करना है।
उत्तराखंड महिला आयोग
स्थापना– 13 मई 2013
प्रथम अध्यक्ष –संतोष चौहान
वर्तमान अध्यक्ष– कुसुम कंडवाल
वर्तमान उपाध्यक्ष– शायरा बानो
उत्तराखंड महिला आयोग के कार्य
इसका उद्देश्य महिलाओं की संवैधानिक और क़ानूनी सुरक्षा को सुनिश्चित करना, उनके लिये विधायी सुझावों की सिफारिश करना, उनकी शिकायतों का निवारण करना तथा महिलाओं को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत मामलों में सरकार को सलाह देना है।
उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग
स्थापना– 10 मई 2011
प्रथम –अध्यक्ष अजय सेतिया
वर्तमान– अध्यक्ष उषा नेगी
उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग के कार्य
इसमें केन्द्र और राज्य स्तर पर बाल अधिकार संरक्षण गठित करने का प्रावधान है। जिसमें देश में बच्चों के अधिकारों के संरक्षण, सुरक्षा, प्रोत्साहन एवं विकास के लिए बाल अधिकार संरक्षण आयोग एक वैद्यानिक निकाय के रूप में स्थापित किया गया। इस अधिनियम में 18 वर्ष से कम आयु के मानव को बच्चों की परिभाषा में रखा गया है।
उत्तराखंड अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति आयोग
प्रथम– अध्यक्ष नारायण राम आर्य
वर्तमान अध्यक्ष – मूरत राम
उत्तराखंड एससी एसटी आयोग के कार्य
संविधान के तहत SCs को प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों के संबंध में सभी मुद्दों की निगरानी और जांँच करना। SCs को उनके अधिकार और सुरक्षा उपायों से वंचित करने से संबंधित शिकायतों के मामले में पूछताछ करना।अनुसूचित जातियों से संबंधित सामाजिक-आर्थिक विकास योजनाओं पर केंद्र या राज्य सरकारों को सलाह देना।
उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग(Uksssc)
स्थापना –17 सितंबर 2014
प्रथम अध्यक्ष –आर बी एस रावत
वर्तमान अध्यक्ष–उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के कार्य
UKSSSC का मुख्य उद्देश्य राज्य के विभिन्न सरकारी कार्यालयों या विभागों के अंतर्गत अधिनस्थ सेवा या समूह ग के रिक्त पदों पर बेरोजगार योग्य युवकों व युवतियों को पारदर्शी प्रक्रिया के जरिए चयन प्रक्रिया प्रणाली द्वारा विभिन्न विभागों को भरना है।
उत्तराखंड मुख्य सूचना आयुक्त
प्रथम सूचना आयुक्त - आर एस टोलिया
वर्तमान – अर्जुन सिंह
उत्तराखंड मुख्य सूचना आयुक्त का कार्य
मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा सभी लोक सूचना अधिकारियों एवं प्रथम अपीलीय अधिकारियों कि वे सूचना आवेदन पत्रों / प्रथम अपीलों का समयबद्ध एवं गुणवत्तापूर्ण निस्तारण करना है।
उत्तराखंड पुलिस महानिदेशक
प्रथम– अशोक कांत शरण
वर्तमान –अशोक कुमार
उत्तराखंड महिला पुलिस महानिदेशक– कंचन चौधरी भट्टाचार्य(देश में पहली )
उत्तराखंड पुलिस महानिदेशक का कार्य
राज्य के सभी क्षेत्रों के पुलिस प्रशासन के कार्यों को सुचारू रूप से संचालन करना। और राज्य में अपराधिक घटनाएं को कम करना, राज्य के लोगो के सुरक्षा के प्रति जिम्मेदार होना है।
राज्य उपभोक्ता आयोग
प्रथम अध्यक्ष –के डी शाही
वर्तमान अध्यक्ष– जे एस त्रिपाठी
राज्य उपभोक्ता आयोग के कार्य
यह आयोग सामाजिक-आर्थिक कानून के इतिहास में एक मील का पत्थर है, जिसके दो उद्देश्य हैं, पहला, उपभोक्ताओं को बेहतर सुरक्षा प्रदान करना और दूसरा, उनकी शिकायतों का त्वरित, सस्ता और न्यायपूर्ण समाधान प्रदान करना। इस अधिनियम की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता त्रि-स्तरीय अर्ध-न्यायिक तंत्र की स्थापना का प्रावधान है।
राज्य सेवा का अधिकार आयोग
स्थापना –13 मार्च 2013
वर्तमान अध्यक्ष –आलोक कुमार जैन
नोट –राज्य विधानसभा द्वारा सेवा का अधिकार कानून 2011 में बनाया गया।
उत्तराखंड खादी उद्योग बोर्ड
गठन– 17 अगस्त 2002
मुख्यालय– देहरादून
अध्यक्ष –मुख्यमंत्री
उपाध्यक्ष –देवेंद्र बिष्ट
उत्तराखंड खादी उद्योग बोर्ड का कार्य
प्रदेश में खादी तथा ग्रामोद्योगों का आयोजन, उनका संगठन विकास एवं विधिनियम करना तथा अपने द्वारा बनाई गई योजनाओं का क्रियान्वयन करना। खादी के उत्पादों एवं अन्य ग्रामोद्योगों में लगे हुये अथवा उसमें अभिरूचि रखने वाले व्यक्तियों के प्रशिक्षण की योजना तैयार कर कुटीर उद्योगों की स्थापना कर रोजगार उपलब्ध कराना।
उत्तराखंड अल्पसंख्यक आयोग
स्थापना –27 मई 2003
अल्पसंख्यक आयोग के वर्तमान अध्यक्ष –आर के जैन
उत्तराखंड अल्पसंख्यक आयोग के कार्य
उत्तराखण्ड में अल्पसंख्यकों के विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना है।संविधान और राज्य विधान सभा द्वारा पारित अधिनियमों/विधियों में उपबन्धित अल्पसंख्यकों से संबंधित रक्षोपायों के कार्यकरण का अनुश्रवण करना।
उत्तराखंड अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग
स्थापना– 20 मई 2003
वर्तमान अध्यक्ष– कुंदन लाल सक्सेना
उत्तराखंड अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के कार्य
आयोग अनुसूची में किसी वर्ग के नागरिकों को पिछड़े वर्ग के रूप में सम्मिलित किये जाने के अनुरोधों का परीक्षण करेगा और अनुसूची में किसी पिछड़े वर्ग के गलत सम्मिलित किये जाने या सम्मिलित न किये जाने की शिकायतें सुनेगा और राज्य सरकार को ऐसी सलाह देगा, जैसी वह उचित समझे।
राज्य किसान आयोग किसान
स्थापना– 9 अक्टूबर 2016
प्रथम अध्यक्ष– चौधरी राजेंद्र सिंह
वर्तमान अध्यक्ष– राकेश राजपूत
राज्य किसान आयोग किसान के कार्य
उत्तराखण्ड की कृषि के वर्तमान स्तर पर समय-समय पर समीक्षा करना,विभिन्न कृषि जलवायु पर्वतीय उपखण्डों की परिस्थितियों में विभिन्न श्रेणी के कृषकों की क्षमताओं एवं कमजोरियों को उपखण्ड़ों की परिस्थितियों में विभिन्न श्रेणी के कृषकों की क्षमताओं एवं कमजोरियों को वरीयता देते हुए उत्तराखण्ड में सतत् एवं समान विकास के लिए वृहत रणनीति तैयार करना, उन कारणों का विश्लेषण करना, जिससे किसानों की खेती से आय में कमी आयी है तथा कृषकों की आय में वृद्धि के लिए बाजारोन्मुखी फसल विविधिकरण, उन्नत बाजार व्यवस्था, सरल एवं नियमित मूल्य सम्वर्धन तथा कृषि प्रसंस्करण आदि के माध्यम से कृषकों की आय में वृद्धि करने के लिए तरीके सुझाना, राज्य के प्रमुख खेती प्रणाली की उत्पादकता, लाभ, स्थिरता को बढ़ाने के लिए, कृषि परिस्थितिकी एवं कृषि जलवायु पहुंच एवं प्रौद्योगिकी को ध्यान में रखते हुए तरीके सुझाना,एक व्यवहारिक एवं संगत फसल (उद्यान को सम्मिलित करते हुए) पशुधन,मत्स्य को एकीकृत करने हेतु सुझाव देना, ये सभी काम इस आयोग के अंतर्गत आते है।
उत्तराखंड पलायन निवारण आयोग
स्थापना –2017
अध्यक्ष –मुख्यमंत्री
उपाध्यक्ष –शरद सिंह नेगी
मुख्य आयकर आयुक्त– प्रमोद कुमार गुप्ता
विद्युत नियामक आयोग के वर्तमान अध्यक्ष –सुभाष कुमार है।
उत्तराखंड पलायन निवारण आयोग के कार्य
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उत्तराखंड के सभी प्रमुख आयोग |
यह आयोग अवगत कराता है कि ग्राम्य विकास विभाग के अन्तर्गत राज्य सरकार द्वारा पलायन रोकने तथा इस हेतु राज्य स्तर पर पलायन प्रभावित गांवों के लिए ठोस कार्य योजना तैयार किये जाने हेतु मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना प्रारम्भ की जा रही है। इससे गांव में हो रहे पलायन के कारणों को पता लगाना और इनके लिए कार्य योजना बनाना इस आयोग का मुख्य काम है।इसका नया नाम पलायन निवारण आयोग रखा गया है।
वैदिक युग से लेकर आधुनिक काल तक पंचायतों का उल्लेख मिलता रहा है और उन्होंने स्थानीय स्वशासी संस्थाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। महात्मा गांधी का सपना था कि प्रत्येक गांव स्वशासन की शक्तियों वाला एक गणतंत्र होना चाहिए, जिसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत के रूप में अपनाया गया है। इसमें प्रावधान है कि "राज्य ग्राम पंचायतों को संगठित करने के लिए कदम उठाएगा और उन्हें ऐसी शक्तियां और अधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वशासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाने के लिए आवश्यक हों।"
इस उद्देश्य के लिए, लोगों की भागीदारी और राज्य सहायता के माध्यम से सामुदायिक विकास का कार्यक्रम 2 अक्टूबर 1952 को शुरू किया गया था। 1959 में श्री बलवंत राय मेहता समिति के आधार पर लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की अवधारणा को अपनाया गया और पंचायतों की त्रिस्तरीय प्रणाली शुरू की गई। समय के साथ-साथ पंचायती राज संस्था और शहरी स्थानीय निकाय, धन की कमी और ऐसे निकायों के लिए समय पर चुनाव कराने में देरी के कारण, उन्हें सौंपी गई जिम्मेदारियों में विफल होने लगे। विभिन्न समितियों ने सिफारिश की कि पंचायती राज और स्थानीय निकाय संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए और इन संस्थाओं का चुनाव अलग चुनाव आयोग द्वारा कराया जाना चाहिए। परिणामस्वरूप, 73वां और 74वां संशोधन वर्ष 1993 में लागू हुआ।
इन दो संशोधनों द्वारा, भारत के संविधान ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन की इन संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया। अब, संविधान के अनुच्छेद 243ई और 243यू के प्रावधानों के माध्यम से राज्य चुनाव आयोगों के तहत इन संस्थानों में पांच साल के बाद नियमित चुनाव सुनिश्चित किए जाते हैं।
9 नवंबर, 2000 को उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद, भारत के संविधान के अनुच्छेद 243 K के प्रावधान के तहत 30 जुलाई, 2001 को राज्य निर्वाचन आयोग, उत्तराखंड का गठन किया गया था। भारत के संविधान के अनुच्छेद 243-के और 243 जेडए के प्रावधानों और अन्य प्रासंगिक अधिनियमों और नियमों के तहत उत्तराखंड में पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव राज्य चुनाव आयोग, उत्तराखंड के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के तहत आयोजित किए जाते हैं।
राज्य में पंचायती राज संस्थाओं का कामकाज उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम 2016 और उत्तराखंड पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम 2019 द्वारा शासित होता है। उपरोक्त अधिनियम की धारा 14,59 और 96 के अनुसार संचालन के लिए अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण है। ग्राम पंचायत के प्रधान, उप-प्रधान और सदस्य, प्रमुख, उप-प्रमुख और क्षेत्र पंचायत के सदस्य, अध्यक्ष, उपप्रधान और जिला पंचायत के सदस्य का चुनाव राज्य चुनाव आयोग में निहित है।
ग्रामीण स्थानीय निकायों की तरह, राज्य में शहरी स्थानीय निकाय दो अलग-अलग अधिनियमों द्वारा शासित होते हैं, एक नगर पंचायतों सहित नगर पालिकाओं को नियंत्रित करता है और दूसरा नगर निगमों को नियंत्रित करता है। उप्र नगर पालिका अधिनियम, 1916 की धारा 13-बी (उत्तराखंड में यथा अंगीकृत एवं संशोधित) एवं उप्र नगर निगम अधिनियम 1959 (उत्तराखंड में यथा अंगीकृत एवं संशोधित) की धारा 45 के अनुसार, चुनाव के संचालन का अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण नगर पालिकाओं और नगर प्रमुख, उप-नगर प्रमुख और निगम के पार्षद के चुनाव राज्य चुनाव आयोग में निहित हैं।
मतदाता सूची संबंधित अधिनियमों के प्रावधानों के तहत तैयार नियमों और राज्य चुनाव आयोग द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों और निर्देशों के अनुसार तैयार की जाती है। उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम 2016 और उत्तराखंड पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम 2019 की धारा 9,14(2),14(3)और54(1) के तहत इस आशय के विशिष्ट प्रावधान हैं।
इसी प्रकार नगर पालिका अधिनियम, 1916 (जैसा कि उत्तराखंड में अपनाया और संशोधित किया गया) की धारा 12 और 13 क्रमशः नगर पालिकाओं के सदस्यों की चुनाव नामावली और चुनाव की तैयारी से संबंधित हैं। अधिनियम की धारा 43 क्रमशः नगर पालिकाओं के अध्यक्ष के चुनाव से संबंधित है, जबकि यूपी नगर निगम अधिनियम 1959 (उत्तराखंड में अपनाया और संशोधित) की धारा 35 और 40 नगर निगम की मतदाता सूची की तैयारी और धारा 11 ए से संबंधित है। उपरोक्त अधिनियम के 12 और 27 नगर प्रमुख, उप-नगर प्रमुख और नगर निगम के पार्षद के चुनाव का प्रावधान करते हैं।
शहरी स्थानीय निकायों के पहले आम चुनाव राज्य चुनाव आयोग, उत्तराखंड द्वारा 2003 में राज्य के सभी 13 जिलों में आयोजित किए गए थे। इसके बाद यूएलबी के लिए आगे के चुनाव एसईसी द्वारा वर्ष 2008 और 2013 में आयोजित किए गए थे। 84 यूएलबी के लिए अंतिम चुनाव हुआ था। अक्टूबर-नवंबर 2018 में आयोजित किया गया जिसमें 15,55,257 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, मतदान प्रतिशत 66.67% था। बाजपुर, श्रीनगर और रूड़की के यूएलबी के चुनाव 2019 में हुए थे। वर्तमान में उत्तराखंड में 8 नगर निगम, 43 नगर पालिका परिषद और 41 नगर पंचायतें।
त्रिस्तरीय पीआरआई के पहले आम चुनाव 2003 में राज्य के 12 जिलों में (2005 में आयोजित जिला हरिद्वार को छोड़कर) आयोजित किए गए थे। पीआरआई के लिए आगे के चुनाव एसईसी द्वारा वर्ष 2008 और 2014 में आयोजित किए गए थे। पिछले आम चुनाव 2019 में 55572 ग्राम पंचायत सदस्यों, 7485 प्रधानों, 2984 बीडीसी सदस्यों और 356 जिला पंचायत सदस्यों के लिए हुए थे। इन चुनावों में कुल 30, 06,378 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, मतदान प्रतिशत 69.59% रहा। वर्तमान में उत्तराखंड राज्य में 13 जिला पंचायतें, 95 ब्लॉक और 7485 ग्राम पंचायतें हैं।
अब तक यूएलबी और पीआरआई दोनों के चुनाव परिणाम वास्तविक समय के आधार पर राज्य चुनाव आयोग की वेबसाइट पर और एनआईसी उत्तराखंड द्वारा इस उद्देश्य के लिए विकसित एंड्रॉइड फोन के लिए एक मोबाइल ऐप पर भी उपलब्ध हैं। उत्तराखंड पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम 2019 पेश किया गया जुलाई 2019 में तीन स्तरीय पंचायती राज सेट में सभी पदों के लिए इच्छुक उम्मीदवारों के लिए पूर्व-आवश्यकता के रूप में शैक्षिक योग्यता निर्धारित करने, सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार के लिए हाई स्कूल / मैट्रिक पास और महिलाओं और आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार के लिए मिडिल / आठवीं पास जैसे कई नए प्रावधान हैं। -अप और ऐसे सभी उम्मीदवारों को पीआरआई चुनाव लड़ने से भी रोक दिया जाएगा यदि उनके दो से अधिक जीवित बच्चे हैं।
वर्षों से राज्य चुनाव आयोग, उत्तराखंड ने भारत के संविधान द्वारा दिए गए जनादेश को बरकरार रखते हुए स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराने का प्रयास किया है।
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