कार्तिकेयपुर या कत्यूरी राजवंश | Kartikeyapur or Katyuri Dynasty

कार्तिकेयपुर या कत्यूरी राजवंश | Kartikeyapur or Katyuri Dynasty

  • कार्तिकेयपुर या कत्यूरी राजवंश(Kartikeyapur or Katyuri Dynasty) (700-1050 ई)
  • प्रारम्भिक राजधानी-कार्तिकेयपुर (जोशीमठ)
  • द्वितीय राजधानी- बैजनाथ (बागेश्वर)
  • शीतकालीन राजधानी- ढिकुली (रामनगर)
  • राजभाषा- संस्कृत
  • लोकभाषा- पालि
  • कत्यूरी शासक नरसिंह देव ने राजधानी कार्तिकेयपुर से स्थानांतरित कर बैजनाथ में बनाई। 675 ई० के आस-पास मध्य हिमालय के सबसे बड़े राज्य ब्रह्मपुर का पतन हो चुका था। इसी समय प्राचीन कुणिन्दों की एक शाखा उत्तर पश्चिमी गढ़वाल में अपनी शक्ति की वृद्धि में व्यस्त थी तथा अनेक लघु राज्यों को अधीन कर मध्य हिमालय में पुनः एक प्रबल शक्ति के रूप में सामने आई।

मध्यकाल कत्यूरी शासक 

  1. मध्यकाल में कत्यूरी शासक की जानकारी हमें मौखिक रूप से लोकगाथाओ और जागर के माध्यम से मिलती हैं। कत्यूरी का आसंतिदेव वंश, अस्कोट के रजवार तथा डोटी के मल्ल इन की शाखाएं थी। 
  2. आसंतिदेव ने कत्युर राज्य में आसंतिदेव राजवंश के स्थापना की और अपनी राजधानी जोशीमठबनायी बाद में बदलकर रणचुलाकोट में स्थापित की। इसका अंतिम शासक ब्रह्मदेव था। 
  3. 1191 ई. में नेपाल के राजा अशोकचल्ल ने कत्यूरी राज्य पर आक्रमण कर कुछ भाग पर अपना अधिकार कर लिया। 
  4. 1223 ई. में नेपाल के काचल्देव ने भी कुमाऊॅ पर आक्रमण कर लिया और अपने अधिकार में ले लिया। 

कत्यूरी राजवंश

  1. इस वंश में कुल 14 नरेश हुए और इनके 9 अभिलेख  प्राप्त हुए है। इस प्रकार 700 ई० से लेकर प्रायः तीन शताब्दियों तक कार्तिकेयपुर राजवंश ने राज किया। इसे उत्तराखण्ड का प्रथम ऐतिहासिक राजवंश माना जाता है। इस राजवंश के अब तक कुल नौ अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं। सभी अभिलेखों की लिपि कुटिला है।
  2. कार्तिकेयपुर के शासकों द्वारा अपनी राजधानी कत्यूर घाटी में स्थानांतरित करने के कारण इन्हें कत्यूरी नाम से भी जाना जाता है।
  3. इस राजवंश के तीन परिवार थे।
  4. पहला -बसन्तदेव वंश /खर्परदेव देव वंश
  5. दूसरा- निम्बरदेव वंश
  6. तीसरा- सलोणादित्य वंश
  7. इस परिवार के चौदह नरेशों ने उत्तराखण्ड तथा उसके पड़ोसी प्रदेशों पर प्रायः तीन सौ वर्षों तक शासन किया। कार्तिकेयपुर के राजा मूलतः अयोध्या के निवासी थे।
  8. इस राजवंश का इतिहास बागेश्वर, पांडुकेश्वर व बैजनाथ आदि स्थानों से प्राप्त ताम्रलेखों के आधार पर लिखा गया है।

बसंत देव वंश/खर्परदेव देव वंश (Bansant Dev Dynasty)

बसंतदेव(Basant dev)
  1. बागेश्वर से प्राप्त त्रिभुवनराज के अभिलेख से ज्ञात होता है कि प्रथम कत्यूरी नरेश का नाम बसन्तदेव था।
  2. बसन्तदेव एक शक्तिशाली शासक था इसने परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण की थी।
  3. इसने जोशीमठ में नृसिंह मन्दिर का निर्माण करवाया था।
  4. इसने बागेश्वर के समीप एक मन्दिर को स्वर्णेश्वर नामक गांव दान में दिया था।
  5. बसंतदेव प्रारम्भ में स्वतंत्र शासक नहीं था। उसकी नियुक्ति यशोवर्मन द्वारा की गई थी। लेकिन यशोवर्मन को कश्मीर शासक ललितादित्य ने पराजित कर दिया जिस कारण उसे अपने राज्य का बहुत सा भाग खोना पड़ा।
  6. इस परिस्थिति का लाभ उठाकर बंसतदेव ने स्वतंत्र कार्तिकेयपुर राजवंश की नींव डाली तथा जोशीमठ के पास कार्तिकेयपुर को अपनी राजधानी बनाया।
  7. बागेश्वर से प्राप्त शिलालेख में इसकी पत्नी का नाम राजनारायणी देवी उत्कीर्ण है।
  8. अज्ञातनामा
  9. बसन्तदेव का बाद उसका पुत्र गद्दी पर बैठा किन्तु उसका नाम शिलालेख में मिट जाने कारण ज्ञात नहीं हो सका।

खर्परदेव ( Kharperdev Dynasty)

  1. अज्ञातनामा के बाद बागेश्वर से प्राप्त शिलालेख के अनुसार खर्परदेव का नाम आता है।
  2. खर्परदेव को कार्तिकेयपुर राजवंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
  3. खर्परदेव कन्नौज नरेश यशोवर्मन का समकालीन था।

कल्याणराज(Kalyanraj)

  1. खर्परदेव के बाद उसका पुत्र कल्याणराज या अधिराज शासक बना।
  2. बागेश्वर शिलालेख में इसकी पत्नी का नाम लद्धा देवी उत्कीर्ण मिलता है।

त्रिभुवनराज(Tribhuvan raj)

  1. कल्याणराज के बाद त्रिभुवनराज ने कत्यूरी वंश की सत्ता संभाली।
  2. त्रिभुवनराज ने किसी किरात-पुत्र से सन्धि की थी।
  3. इसके द्वारा ब्याघ्रेश्वर मन्दिर को सुगंधित द्रव्यों के उत्पादन के लिए भूमि दान दी गई थी।
  4. पाल नरेश धर्मपाल ने गढ़वाल पर आक्रमण किया तथा खर्परदेव वंश का अंत हो गया और एक नये वंश निम्बर की स्थापना हुई।

निम्बर वंश(Nimber Dynasty)

निंबर(Nimber)
  1. त्रिभुवनराज के बाद निम्बर ने कत्यूरी वंश बागडोर संभाली।
  2. निंबर वंश की स्थापना निम्बर ने की थी।
  3. निंबर को बागेश्वर शिलालेख में निंबर्त तथा पाण्डुकेश्वर ताम्रलेख में निम्वरम् कहा गया है।
  4. निम्बर ने पालों से संधि की थी।
  5. निम्बर ने जागेश्वर में विमानों का निर्माण करवाया था।
  6. निम्बर की रानी का नाम दाशू या नाथू देवी था।
  7. निम्बर को शत्रुहंता भी कहा जाता है।

इष्टदेवगण(Ishta Dev Gan)

  1. अभिलेखों को आधार मानकर कहा जा सकता है कि निम्बर का पुत्र इष्टगण इस वंश का स्वतन्त्र शासक रहा होगा, क्योंकि उसक लिए अभिलेखों में परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर शब्द का प्रयोग किया गया है।
  2. इसने समस्त उत्तराखंड को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया।
  3. इष्टदेवगण ने जागेश्वर में लकुलीश, नटराज, नवदुर्गा व महिषमर्दिनी के मन्दिरों का निर्माण करवाया था।
  4. इसकी पत्नी का नाम धरा देवी था।

ललितशूर देव(Lalitshur dev)

  1. इष्टगण के बाद उसका पुत्र ललितशूर देव शासक बना।
  2. ललितशूर देव को कालीकलंक पंक में मग्न धरती के उद्धार के लिए बराहवतार के समान बताया गया है।
  3. ललितशूर देव की दो पत्नियां थी जिनका नाम लया देवी व सामा देवी था।
  4. सर्वाधिक ताम्र अभिलेख इन्हीं के शासन के मिले हैं।
  5. इसके द्वारा अपने शासनकाल के 21 वें व 22 वें वर्ष में दो ताम्र अभिलेख उत्कीर्ण कराये गये जो कि पांडुकेश्वर से मिले हैं।
  6. नोट- पांडुकेश्वर ताम्रपत्र ललितसूर देव का है जिसका लेखक गंगाभद्र है।

भूदेव(Bhoodev)

  1. इसे राजाओं का राजा कहा जाता था।
  2. इसने बैजनाथ मंदिर का निर्माण कराया।
  3. ललितशूर देव के बाद भूदेव ने सत्ता संभाली।
  4. इसका जन्म लया देवी की कोख से हुआ था।
  5. भूदेव परम ब्राह्मण भक्त था जिसने बौद्ध धर्म का विरोध किया।
  6. बागेश्वर लेख भूदेव का है।

सलोणादित्य वंश(Silodaditya Dynasty)

सलोणादित्य(Silodaditya)
  1. भूदेव के पश्चात् सलोणादित्य कत्यूरी राजवंश का शासक बना।
  2. इसकी रानी का नाम सिंधुवली था।
  3. इसे अपनी भुजाओं की शक्ति से शत्रु के व्यूह को नष्ट करने वाला बताया गया है।

इच्छटदेव(Ichchatdev)

  1. इच्छटदेव को सलोणादित्य राजवंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
  2. इसकी रानी का नाम सिंधु देवी था।

देशटदेव(Deshatdev)

  1. देशटदेव की पत्नी का नाम पझल्ल देवी था।
  2. देशटदेव को शत्रुओं के समस्त कुचक्रों को नष्ट करने वाला बताया गया है।
  3. देशटदेव का प्राचीन ताम्र पत्र चंपावत के बालेश्वर मंदिर से प्राप्त हुआ है।

पदमदेव(Padmadev)

  1. पद्मदेव को बाहुबल से समस्त दिशाओं को जीवने वाला बताया गया है।
  2. इसने बद्रीनाथ मंदिर के लिये भूमिदान की थी।

सुभिक्षराज देव(Subhiksharaj Dev)

  1. सुभिक्षराजदेव कार्तिकेयपुर राजवंश का अन्तिम राजा था।
  2. इसने कार्तिकेयपुर से राजधानी सुभिक्षपुर (तपोवन) में स्थापित की।
  3. कालांतर में इसके वंशज नरसिंह देव द्वारा बैजनाथ में स्थानांतरित कर दी गई।
  4. कत्यूरियों द्वारा कार्तिकेयपुर से राजधानी परिवर्तन का कारण प्राकृतिक आपदा था।

कार्तिकेयपुर राजवंश के उत्तराधिकारी(Successor of the Kartikeyapur dynasty)

  • जब से कार्तिकेयपुर वंश की राजधानी बैजनाथ स्थानांतरित हुई तब से कार्तिकेयपुर शासकों के संबंध में प्रमाणिक जानकारियों का अभाव है। जनश्रुतियों के अनुसार प्रीतमदेव, धामदेव, ब्रह्मदेव तथा वीर देव कार्तिकेयपुर वंश के शासक थे।

कार्तिकेयपुर राजवंश से जुड़े मुख्य तथ्य(Main Facts related to Kartikeyapur Dynasty)

  1. कार्तिकेयपुर राजवंश के काल में उत्कृष्ट कला का विकास हुआ।
  2. वास्तुकला व मूर्तिकला के क्षेत्र में यह उत्तराखण्ड का स्वर्ण काल था।
  3. कार्तिकेयपुर राजाओं के इष्टदेव भगवान कार्तिकेय थे।
  4. राजा शालिवाहन कार्तिकेयपुर राजाओं के आदि पुरूष माने जाते हैं।
  5. इन्होंने जागेश्वर मंदिर का निर्माण कराया था।
  6. कार्तिकेयपुर शासकों के लोकहितकारी कार्यों के कारण कुमाऊं क्षेत्र में यह आज भी प्रचलित है कि कार्तिकेयपुर के अवसान पर सूर्य अस्त हो गया और रात्रि हो गयी।
  7. इस राजवंश के समय आदि गुरू शंकराचार्य उत्तराखण्ड आये और कत्यूरियों ने उनकी शिक्षा को मानते हुए अनेक मन्दिर बनवाये जैसे - पंचकेदार, पंचबद्री, व्याघ्रेश्वर मन्दिर, ज्योतिर्मठ आदि।
  8. शंकराचार्य ने बौद्ध धर्म के प्रभाव को समाप्त करने तथा हिंदू धर्म की पुनः स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  9. शंकराचार्य ने केदारनाथ व बद्रीनाथ मंदिरों का जीर्णोद्वार कराया और योषि (जोशीमठ) में ज्योर्तिमठ की स्थापना की।
  10. 820 में शंकराचार्य ने केदारनाथ में अपने शरीर का त्याग किया। यहीं इनकी समाधि है।
  11. शंकराचार्य ने बद्रीनाथ में विष्णु मूर्ति को नारदकुंड से निकालकर दोबारा प्रतिस्थापित किया।

पाल वंश(Pal Dynasty)

  • बैजनाथ अभिलेखों के आधार पर कहा जा सकता है कि ग्यारहवीं और बारहवीं सदी में लखनपाल, त्रिभुवनपाल, रूद्रपाल, उदयपाल, चरूनपाल, महीपाल, अनन्तपाल आदि पाल नामधारी राजाओं ने कत्यूर में शासन किया था। लेकिन तेहरवीं सदी में पाल कत्यूर छोड़कर अस्कोट के समीप ऊकू चले गए और वहां जाकर उन्होंने पाल वंश की स्थापना की।

मल्ल राजवंश(Malla Dynasty)

  • एंटकिन्सन के अनुसार नेपाली विजेता अशोकचल्ल के गोपेश्वर लेख की तिथि 1191 ई० है लेकिन गोपेश्वर के त्रिशूलपर अंकित अशोचल्ल की दिग्विजय सूचक लेख में कोई तिथि नहीं दी गई है। तेहरवीं सदी में नेपाल में बौद्ध धर्मानुआयी मल्ल राजवंश का अभ्युदय हुआ।
  • बागेश्वर लेखानुसार 1223 ई० में क्राचल्लदेव ने कर्तिकेयपुर (कत्यूर) के शासकों को परास्त कर दिया जो स्वयं दुलू का राजा था। दुलू और जुमना से मल्ल राजवंश के अनेक लेख मिले हैं। जिनसे ज्ञात होता है कि तेरहवीं से पन्द्रहवीं सदी तक कुमाऊँ गढ़वाल की लोकगाथाओं में कत्यूरी राज्य कहा जाता था।
इस साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक अशोकचल्ल था।

कत्यूरी वंश(Katyuri Dynasty)

  1. कत्यूरी वंश का संस्थापक- वासुदेव/बसंतदेव
  2. कत्यूरी वंश की प्रारम्भिक राजधानी- जोशीमठ 
  3. इनकी द्वितीय राजधानी- रणचूलाकोट (बागेश्वर )
  4. इनकी कुल देवी- कोट भ्रामरी
  5. इनका धर्म- शैव
  6. कोट भ्रामरी का मंदिर बागेश्वर में है।
  7. कत्यूरी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम एटकिंसन ने किया था।
  8. कत्यूरी राजाओं का मूल निवास स्थान राजस्थान था।
  9. कत्यूरी वंश की जानकारी हमें मौखिक रूप में प्रचलित स्थानीय लोकगाथाओं व जागर से मिलती है।
  10. राजुला मालूशाही गाथा से पता चलता है कि कत्यूर 22 भाई थे।
  11. कत्यूरियों का शासन कई भागों में विभक्त था। जिसमें आंसतिदेव राजवंश, डोटी के मल्ल तथा अस्कोट के रजवार प्रमुख शाखाएं थी।

आसन्तिदेव वंश(Asantidev Dynasty)

  1. आसंतिदेव ने आसंतिदेव वंश की स्थापना की।
  2. जोशीमठ से प्राप्त हस्तलिखित गुरुपादुक नामक ग्रन्थ से आसन्तिदेव के पूर्वजों में अग्निवराई, फीणवराई, सुबतीवराई,
  3. केशववराई और बगडवराई के नाम क्रमशः दिए हुए हैं।
  4. आसंतिदेव ने जोशीमठ से राजधानी हटाकर कत्यूर के रणचूलाकोट में स्थापित की।
  5. आसंतिदेव ने नाथपंथि संत नारसिंह के कहने पर अपनी राजधानी कत्यूर घाटी के रणचूलाकोट में स्थापित की।
  6. उसके पश्चात् कत्यूर में वासंजीराई, गोराराई, सांवलाराई, इलयणदेव, तीलणदेव, प्रीतमदेव, धामदेव और ब्रह्मदेव ने
क्रमश: शासन किया।
  1. इस वंश का अन्तिम शासक ब्रह्मदेव था जो अत्यंत अत्याचारी था।
  2. जागरों में इसे बीरमदेव कहा गया है।
  3. 1191 में अशोचल्ल ने कत्यूरी राज्य पर आक्रमण कर इसके कुछ भाग पर अधिकार कर लिया।
  4. 1223 में दुलु (नेपाल) के शासक क्राचलदेव ने भी कुमाऊँ पर आक्रमण कर कत्यूरी राज्य का अपने अधिकार में लिया था।
  5. जियारानी की एक लोकगाथा के अनुसार तमूर लंग ने 1398 ई० में हरिद्वार पर आक्रमण किया था और ब्रहमदेव उसका सामना हुआ। इसी के साथ इस राजवंश का अंत हो गया।
  6. नोट- कत्यूरी राजवंश का स्वर्णकाल धामदेव के काल को माना जाता है।
  7. कत्यूरियों की प्रसिद्ध नृत्यांगना छमुना पातर थी।

कत्यूरी काल के पदाधिकारी(officers of Katyuri period)

  1. राजात्मय- यह उस काल का सर्वोच्च पद था जो राजा को समय-समय पर अपनी सलाह दिया करता था।
  2. महासामन्त- यह सेना का प्रधान होता था।
  3. महाकरतृतिका-निरीक्षण संबंधी कार्यों की देखभाल करता था। इसे मुख्य ओवरसियर भी कह सकते हैं।
  4. उदाधिला- आधुनिक सुपरिटेन्डेण्ट जैसा पदाधिकारी था।
  5. सौदाभंगाधिकृत- यह राज्य का मुख्य आर्किटेक्चर था जो राजकीय निर्माणों की रूपरेखा तैयार करता था।
  6. प्रान्तपाल- सीमाओं का प्रहरी जो सीमाओं की सुरक्षा का भार लिये होता था।
  7. वर्मपाल- सीमावर्ती क्षेत्रों में आवागमन पर कड़ी नजर रखने वाला पदाधिकारी।
  8. घट्पाल- गिरी अथवा पर्वतीय प्रवेशद्वारां की रक्षा के लिए नियुक्त पदाधिकारी।
  9. नरपति- नदी के घाटों पर आवागमन को सुगम का बनाने के लिए नियुक्त पदाधिकारी तथा संदिग्ध व्यक्तियों की जांच भी करता था।
  10. कत्यूरी काल में गांव को कहा जाता था - पल्लिका
  11. कत्यूरी काल में ग्राम शासक को कहा जाता था - महत्तम
  12. कत्यूरी काल में तहसीलदार को कहा जाता था- कुलचारिक)
  13. गोप्ता- रक्षक
  14. अक्षपटलिक - लेखापरीक्षक
  15. महा दंडनायक- प्रधान सेनापति

कत्यूरी सेना का विभाजन (Division of Katyuri army)

  1. कत्यूरी काल में सेना चार भागों में विभाजित थी‌।
  2. पहला- (पदातिक) (पैदल सेना)- इसका मुखिया गौलमिक कहलाता था।
  3. दूसरा - (अश्वारोही)-इसका मुख्या अश्वबलाधिकृत होता था।
  4. तीसरा- (गजारोही)- इसका मुख्या हस्तिबलाधिकृत होता था।
  5. चौथा - (ऊष्ट्रारोही)-इसका मुख्या ऊष्ट्राबलाधिकृत होता था।

कत्यूरी कालीन पुलिस व्यवस्था(Katyuri era police system)

  1. दाण्डिक व खड्गिक दण्ड और खड्.गधारी सिपाही थे जो राज्य तथा जनता की सम्पत्ति की सुरक्षा का ध्यान रखते थे।
  2. अपराधियों को पकड़ने वाला सर्वोच्च अधिकारी दोषापराधिक कहलाता था।
  3. गुप्तचर विभाग का सर्वोच्च अधिकारी दुःसाध्यसाधनिक था।

कत्यूरी शासन में आय के साधन(Sources of income in Katyuri rule)

  1. कत्यूरी शासन काल में आय का प्रमुख साधन कृषि, खनिज एवं वन थे।
  2. क्षेत्रपाल राज्य में कृषि की उन्नति का ध्यान रखता था। और प्रभातार भूमि की नाप करता था।
  3. उपचारिक या पट्टकोष चारिक नामक अधिकारी भूमि के अभिलेख रखता था।
  4. खण्डपति व खण्डरक्षास्थानाधिपति नामक अधिकारी खनिज तथा वनों की रक्षा तथा संबंधित उद्योगों की व्यवस्था करता था।

कत्यूरी शासन काल के कर(Taxes of Katyuri rule)

  1. भोगपति व शौल्किक नामक अधिकारियों का काम करों को वसूलना था।
  2. भट व चार-प्रचार नामक अधिकारी प्रजा से बेगार लेते थे।
  3. नोट:- डोटी परिवार के छोटे राजकुमार रैंका कहलाते थे।

कत्यूरी शासन काल में प्रांतों का शासन(Administration of provinces under Katyuri rule)

  1. राज्य बहुत प्रान्तों में विभाजित था जिनका शासन उपरिक (राज्यपाल) के द्वारा होता था।
  2. उपरिक के अन्तर्गत आयुक्तक प्रान्त के विभिन्न भागों में शासन चलाते थे।
  3. प्रान्तों को विषयों में बांटा गया था जिनका सर्वोच्च पदाधिकारी विषयपति कहलाता था।
  4. कत्यूरी शासकों से चार विषयों तथा एक लोकगाथा से एक अन्य विषय का पता चलता है - कार्तिकेयपुर विषय          (प्राचीन कत्यूर, जोशीमठ से गोमती उपत्यका तक), टंकणपुर विषय (अलकनन्दा-भागीरथी संगम से ऊपर अलकनन्दा उपत्यका तक), अन्तराग विषय ( भागीरथी-अलकनन्दा की मध्यवर्ती उपत्यका), एशाल विषय ( भागीरथी तथा यमुना की मध्यवर्ती उपत्यका), मायापुरहाट (हरिद्वार के निकटवर्ती भाभर क्षेत्र) ।
  5. आभीर नामक व्यक्ति दुधारू पशुओं से दुग्धादि प्राप्त करने का कार्य करता था।
  6. कत्यूरी अभिलेखों से ज्ञात होता है कि राज परिवार की व्यक्तिगत सम्पत्ति में अनेक पशु मुख्यतः गाय, भैंस, घोड़े तथा खच्चर भी होते थे। उनकी देखरेख करने वाला अधिकारी किशोर-बडचा-गो-मजिहष्यधिकृत कहलाता था।

कत्यूरी कालीन मापन व्यवस्था(Katyuri Carpet Measurement System)

  1. कत्यूरी शासन में द्रोण के अतिरिक्त नाली (एक नाली=1 पाथा-2सेर) बीजवाली भूमि का उल्लेख है।
  2. प्राचीन भारतीय अभिलेखों में वाप का प्रयोग बीज की मात्रा प्रकट करने के लिए हुआ है।
  3. एक द्रोण प्राय: 32 सेर के बराबर होता था।
  4. ब्रिटिश शासन काल में एक नाली को 240 वर्गगज के बराबर मान लिया गया।
  5. इस आधार पर एक द्रोणवाप 3840 वर्ग गज के बराबर हुआ।
  6. गुप्तकाल में कुलय शब्द का बहुत प्रयोग हुआ है।
  7. एक कुलय 8 द्रोण के बराबर माना जाता है। अर्थात जिसमें 256 सेर बीज बोया जा सके। जबकि ब्रिटिश कालीन मानक के अनुसार एक कुलय 30720 वर्गगज के बराबर है।
  8. एक खारि 20 द्रोण के बराबर मानी जाती है। अतः इसमें 640 सेर बीज बोया जा सकता है। ब्रिटिश कालीन माप अनुसार यह 76800 वर्ग गज क्षेत्र था।

कत्यूरी स्थापत्य कला(Katyuri Architecture)

  1. कत्यूरी शासन काल में स्थापत्य कला अपने चर्मोत्कर्ष में पहुंच चुकी थी।
  2. वास्तुकला व मूर्तिकला के क्षेत्र में यह उत्तराखण्ड का स्वर्णकाल था।
  3. कत्यूरी काल में मन्दिरों का निर्माण काष्ठ एवं पाषाण दोनों से किया जाता था।
  4. मन्दिरों पर नागर शैली का प्रभाव देखने को मिलता है।
  5. कत्यूरी काल में मन्दिर दो प्रकार के होते थे - छत्रयुक्त और शिखरयुक्त ।
  6. छत्रयुक्त मन्दिर के उदाहरण बागनाथ मंदिर बागेश्वर, लाखामण्डल, गोपीनाथ मंदिर गोपश्वर, केदारनाथ, बिनसर, रणीहाट, देवलगढ़, अल्मोड़ा स्थित नन्दा देवी मन्दिर आदि हैं।
  7. शिखर युक्त मन्दिर के उदाहरण बैजनाथ, जागेश्वर, कटारमल, द्वाराहाट, जोशीमठ, आदिबद्री आदि हैं।
  8. द्वाराहाट का गूजरदेव का मन्दिर अपनी सुन्दरता एवं स्थापत्य की दृष्टि से अनुपम मन्दिर माना जाता है।
  9. कत्यूरी कालीन मन्दिरों की निम्नलिखित विशेषताएं देखने को मिलती हैं नागर शैली का प्रचलन, पाषाण एवं काष्ठ का प्रयोग, छोटै एवं मध्यम आकार के मन्दिर, स्थानीय पाषाणों का उपयोग, शिखर मन्दिरों में द्विस्तम्भ युक्त अर्द्धमण्डप, छत्रशैली के मन्दिरों में आमलका को ढकने के लिए काष्ठ निर्मित छत्र और तत्पश्चात् कलश, परिवार मन्दिर समूह।
  10. राहुल सांस्कृतायन ने कालीमठ में स्थापित हर-गौरी मन्दिर जो कत्यूरी काल की देन है से प्राप्त मूर्ति हर-गौरी की को देखकर कहा है - आज सारे भारत में इतनी सुन्दर अखण्ड मूर्ति कहीं भी नहीं है।
  1. उत्तराखंड का इतिहास Uttarakhand history
  2. उत्तराखण्ड(उत्तरांचल) राज्य आंदोलन (Uttarakhand (Uttaranchal) Statehood Movement )
  3. उत्तराखंड में पंचायती राज व्यवस्था (Panchayatiraj System in Uttarakhand)
  4. उत्तराखंड राज्य का गठन/ उत्तराखंड का सामान्य परिचय (Formation of Uttarakhand State General Introduction of Uttarakhand)
  5. उत्तराखंड के मंडल | Divisions of Uttarakhand
  6. उत्तराखण्ड का इतिहास जानने के स्त्रोत(Sources of knowing the history of Uttarakhand)
  7. उत्तराखण्ड में देवकालीन शासन व्यवस्था | Vedic Administration in Uttarakhand
  8. उत्तराखण्ड में शासन करने वाली प्रथम राजनैतिक वंश:कुणिन्द राजवंश | First Political Dynasty to Rule in Uttarakhand:Kunind Dynasty
  9. कार्तिकेयपुर या कत्यूरी राजवंश | Kartikeyapur or Katyuri Dynasty
  10. उत्तराखण्ड में चंद राजवंश का इतिहास | History of Chand Dynasty in Uttarakhand
  11. उत्तराखंड के प्रमुख वन आंदोलन(Major Forest Movements of Uttrakhand)
  12. उत्तराखंड के सभी प्रमुख आयोग (All Important Commissions of Uttarakhand)
  13. पशुपालन और डेयरी उद्योग उत्तराखंड / Animal Husbandry and Dairy Industry in Uttarakhand
  14. उत्तराखण्ड के प्रमुख वैद्य , उत्तराखण्ड वन आंदोलन 1921 /Chief Vaidya of Uttarakhand, Uttarakhand Forest Movement 1921
  15. चंद राजवंश का प्रशासन(Administration of Chand Dynasty)
  16. पंवार या परमार वंश के शासक | Rulers of Panwar and Parmar Dynasty
  17. उत्तराखण्ड में ब्रिटिश शासन ब्रिटिश गढ़वाल(British rule in Uttarakhand British Garhwal)
  18. उत्तराखण्ड में ब्रिटिश प्रशासनिक व्यवस्था(British Administrative System in Uttarakhand)
  19. उत्तराखण्ड में गोरखाओं का शासन | (Gorkha rule in Uttarakhand/Uttaranchal)
  20. टिहरी रियासत का इतिहास (History of Tehri State(Uttarakhand/uttaranchal)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उत्तराखंड की लोक कला एवं संस्कृति (Folk art and culture of Uttarakhand)

गढ़वाली लाइफ शायरी, Love, Attitude, किस्मत life शायरी (Garhwali Life Shayari, Love, Attitude, Kismat life Shayari)

उत्तराखंड में शिक्षा एवं स्वास्थ्य (Education and Health in Uttarakhand)

बिनसर महादेव मंदिर पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड (Binsar Mahadev Temple Pauri Garhwal Uttarakhand)

उत्तराखंड के धार्मिक स्थल (Religious Places in Uttarakhand)

उत्तराखण्ड की प्रमुख झीलें, ताल एवं ग्लेशियर(Major lakes, ponds and glaciers of Uttarakhand) uttaraakhand kee pramukh jheelen, taal evan gleshiyar

उत्तराखंड में कृषि सिंचाई एवं पशुपालन(Agriculture Irrigation and Animal Husbandry in Uttarakhand) uttaraakhand mein krshi sinchaee evan pashupaalan