उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक नृत्य - Famous Folk Dances of Uttarakhand

उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक नृत्य

उत्तराखण्ड के प्रमुख लोकनृत्य | Uttarakhand ke Pramukh Loknrityan

गायन, वादन एवं नृत्य के सुसंगत समावेश को संगीत कहा जाता है। मधुर ध्वनियों या स्वरों का विशिष्ट नियमों के अनुसार लयबद्ध होकर प्रस्फुटित होना संगीत है। यह सर्वविदित है कि संसार के समस्त जीवों में मानव ही एकमात्र विचारशील एवं सर्वाधिक संवेदनशील जीव है। वह अपने जीवन में घटने वाली घटनाओं तथा अपने पर्यावरण को अनुभव करता है। इस प्रक्रिया में उसे कई बार तीव्र हर्ष, निराशा, प्रसन्नता, उत्साह, दुःख, क्रोध, घृणा आदि के भावों का अनुभव होता है। प्राय: मानव इन तीव्र आवेगों को संगीत के माध्यम से व्यक्त करता है। अतः सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि संगीत मानवीय संवेदना को व्यक्त करने का एक रचनात्मक साधन है। संगीत का मानव के साथ सम्बंध मानव की उत्पत्ति काल से है। प्रत्येक समाज का संगीत उस समाज के इतिहास, भूगोल, धर्म एवं संस्कृति से जुड़ा हुआ होता है। यदि उत्तराखण्ड के परिप्रेक्ष्य में चर्चा की जाए तो यहाँ के निवासी संगीतप्रिय माने जाते हैं। यहाँ के लोक जीवन में संगीत रचा-बसा है। यह संगीत नृत्य तथा गीतों की विभिन्न शैलियों के रूप में प्रस्फुटित हुआ है। इस अध्याय में हम उत्तराखण्ड के प्रमुख लोकनृत्यों का अध्ययन करेंगे। श्री शिवांनद नौटियाल तथा अन्य विद्वानों द्वारा राज्य में प्रचलित विभिन्न नृत्यों का वर्णन किया गया है। 

उत्तराखंड के प्रमुख लोक नृत्य कौन से हैं?
छोलिया नृत्य उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध लोक नृत्य है और हर साल पिथौरागढ़, उत्तराखंड में आयोजित किया जाता है। यह नृत्य पौराणिक युद्ध और सैनिकों का प्रतिबिंब है। चोलिया नृत्य युद्ध के बाद के उत्सव का दृश्य प्रस्तुत करता है। सभी नृत्य कलाकार पौराणिक सैनिकों को भड़काते हैं और तलवार और ढाल के साथ युद्ध करते हैं

प्रमुख लोक नृत्य क्या है?
राजस्थान : ख्याल, रसधारी, तुर्रा किलंगी, गौरी, घूमर, और कालबेलिया ।

उत्तराखंड में मुख्य रूप से कौन सा नृत्य किया जाता है?
छोलिया नृत्य उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध लोक नृत्य है और हर साल उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में आयोजित किया जाता है। यह नृत्य पौराणिक युद्ध और सैनिकों का प्रतिबिंब है। छोलिया नृत्य युद्धोत्तर उत्सव का दृश्य प्रस्तुत करता है।

कुमाऊं का लोक नृत्य क्या है?
छोलिया: छोलिया उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल का प्रसिद्ध लोकनृत्य है। इसमें पौराणिक युद्ध और सैनिकों का प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है। असल में छोलिया नृत्य युद्ध में विजय के पश्चात होने वाले उत्सव का दृश्य प्रस्तुत करता है।

उत्तराखण्ड के प्रमुख लोकनृत्य

झुमैलो :

उत्तराखंड के गढ़वाल और कुँमाऊ दोनों ही क्षेत्रो में झुमैलो नृत्य बहुत प्रसिद्ध है।

तांदी:

इस नृत्य में सभी जन एक दूसरे का हाथ पकड़ एक श्रृंखला में नृत्य करते है।

छपेली :

इसे दो प्रेमी युगल का नृत्य माना गया है। इसमें कभी-कभी पुरुष ही स्त्री की वेशभूषा पहनकर स्त्री का अभिनय करता है।

चौंफुला :

इस नृत्य में नर नारी वृताकार में कदम मिलाकर, एक दूसरे के विपरीत खड़े हो नृत्य करते है।

छोलिया:

छोलिया नृत्य उत्तराखण्ड का प्रसिद्ध लोक नृत्य है। सभी नृत्य कलाकार पौराणिक सैनिकों का वेश धारण कर तलवार और् ढाल संग युद्ध का अभिनय करते है। ।

मंडाण :

विवाह या धार्मिक अनुष्ठान के अवसर पर मंडाण में गाँव के चौक या मैदान के बीच में अग्नि प्रज्वलित करी जाती है और सभी पारंपरिक यन्त्र वादक (ढोल दमो, रणसिंहा, भंकोर) गीतों के द्वारा देवी देवताओं का आह्वाहन करते है।नृत्य को पाण्डव नृत्य भी कहा जाता है।

झोड़ा :

इसमें स्त्री -पुरुष गोल घेरा बना कर एक दूसरे के कंधे पर हाथ रख पद आगे -पीछे संचालन कर नृत्य करते व गीत गाते हैं।

भागनौली नृत्य:

भागनौली नृत्य कुमाऊँ क्षेत्र का नृत्य है जिसे मेलों में आयोजित किया जाता है . इस नृत्य में हुड़का और नागदा वाद्य यंत्र प्रमुख होते हैं|

थडिया :

घर के आँगन में आयोजित होने वाला संगीत और नृत्य उत्सव को थडिया कहते है। थडिया उत्सव का आयोजन बसंत पंचमी के दौरान गाँव घरों के आँगन में किया जाता है।

हारुल नृत्य:

यह जौनसारी जनजातियों द्वारा जाता है जिसका विषय महाभारत के पांडव होते हैं | इस नृत्य में रामतुला(वाद्ययंत्र) बजाना अनिवार्य होता है |

जागर:

यह नृत्य सिर्फ देवता के पेशवा द्वारा किया जाता है |

नाटी:

यह नृत्य देहरादून क्षेत्र के चकराता तहसील का पारम्परिक नृत्य है | सभी महिलाएं व पुरुष रंगीन कपडे पहन इस नृत्य को मिलकर करते हैं

चाँचरी :

चाँचरी कुमाऊँ में दानपुर क्षेत्र की नृत्य शैली है। इसमें भी स्त्री व पुरुष दोनों सम्मलित होते हैं। यह कुमाऊँ का नृत्य गीत है।

रणभुत नृत्य:

यह नृत्य उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में किया जाता है, मुख्यतः ये नृत्य वीरगति प्राप्त करने वालों को देवता के सामान आदर दिए जाने के लिए होता है ताकि वीर की आत्मा को शांति मिले |

बुड़ियात लोकनृत्य:

यह नृत्य ख़ुशी के मौकों पर किया जाता है जैसे शादी-विवाह एवं हर्षोल्लास, किसी का जन्मोत्सव आदि।

लंगविर नृत्य:

यह गढ़वाल का एक उत्साह वर्धन नृत्य है जिसमे पुरुषों को एक सीधे खम्बे में चढ़ चोटी पर पहुँच कर पेट का सहारा ले कर करतब दिखाने/या संतुलन बना नाचना होता है

पण्डवार्त/पांडव लीला :

इन नृत्यों के अलावा भी उत्तरखंड के कई पारम्परिक नृत्य व गीत हैं जैसे
सिपैया नृत्य |
घुघती नृत्य |
पौणा नृत्य |
सरौं नृत्य |
शोतीय नृत्य |
छोपती नृत्य |
छोपाती नृत्य |
भैलो-भैलो नृत्य |
बसंती |
पवाड़ा या भाड़ौं नृत्य |
बगवान नृत्य |
यह नृत्य पांडवों को समर्पित होती है जो महाभारत के घटनाओं पर आधारित होता है |
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