उत्तराखण्ड में सिंचाई और नहर परियोजनाऐं | - Irrigation And Canal Project in Uttarakhand
उत्तराखण्ड में सिंचाई और नहर परियोजनाऐं | Irrigation And Canal Project in Uttarakhand
उत्तराखण्ड में सिंचाई व्यवस्था(Irrigation System in Uttarakhand)
उत्तराखण्ड के कुल प्रतिवेदित क्षेत्रफल के लगभग 12.5 प्रतिशत भाग पर कृषि कार्य किया जाता है। राज्य में बोये गए कुल कृषि भूमि के लगभग 47 प्रतिशत भाग पर सिंचाई की जाती है। राज्य में कुंआ, तालाब, नदी, झील, नहर, नलकूप, झरनों आदि साधनों का प्रयोग सिंचाई हेतु किया जाता है। गढ़वाल मण्डल के कुल सिंचित क्षेत्रफल के लगभग 50.95 भाग पर कुंओं, तालाबों, झरनों, झीलों, पोखरों से सिंचाई की जाती है। राज्य में सर्वाधिक सिंचित क्षेत्र वाला जनपद ऊधम सिंह नगर और सबसे कम सिंचित क्षेत्र वाला जनपद चमोली है। सन् 1985 में राज्य में लघु सिंचाई योजना के तहत निःशुल्क बोरिंग योजना प्रारंभ की गई थी। राज्य के शिवालिक से दक्षिण तथा दून क्षेत्रों में सिंचाई हेतु नलकूपों का विकास बढ़ रहा है। गढ़वाल में मण्डल में नलकूपों से 5.57 प्रतिशत तथा कुमाऊँ मण्डल में 44.57 प्रतिशत क्षेत्रफल पर सिंचाई की जाती है। सिंचित क्षेत्रों तथा जिन क्षेत्रों में नहरों का अभाव होता है, वहां नलकूपों का अधिक प्रयोग होता है। नदियों द्वारा नहरों के माध्यम से सिंचाई की जाती है। यह प्रणाली अधिक खर्चीली होने के कारण इसका विकास कम हुआ है। दिसम्बर 2018 तक सिंचाई विभाग के अधीन 2,963 नहरें हैं तथा जिनकी लम्बाई 12,067 वर्ग किमी है। राज्य में गूलें एवं पोखर द्वारा सिंचाई की जाती है। पोखर को स्थानीय भाषा में खाल कहा जाता है। गधेरों से पानी के संचय और वर्षाजल एकत्र करने हेतु पोखरों का निर्माण किया जाता है। ड्रिप तथा स्प्रिंकलर सिस्टम कम पानी की उपलब्धताओं वाले क्षेत्रों के लिए तथा औद्योगिक फसलों हेतु उपयोगी सिस्टम है।
उत्तराखण्ड में सिंचाई और नहर परियोजनाऐं
अन्य महत्वपूर्ण घटनाएं(Other Important Events)
- राज्य की कृषि क्षेत्र में उपलब्धि हेतु वर्ष 2019 में खाद्यान्न उत्पादन में प्रशंसा पुरस्कार तथा 2018 में जैविक इण्डिया अवार्ड प्राप्त हुआ था।
- उत्तराखण्ड में बासमती जोन दून घाटी को कहा जाता है।
- कृषि के मामले में सर्वाधिक समृद्धशाली क्षेत्र तराई भावर है।
- 1834 में चाय बागान के विकास हेतु चाय के बीज चीन से मंगाया गया था।
- उत्तराखण्ड के गठन के पश्चात् उत्तराखण्ड में उत्पादित होने वाली चाय को कैच ब्राण्ड के नाम से बेचा जाता है।
- भारतीय चाय बोर्ड का मुख्यालय अल्मोड़ा में स्थित है।
- उत्तराखण्ड में मात-तौल हेतु प्रयुक्त साधन नाली, मण, मुट्ठी, विश्त, ज्यूला, तामी, टका, हड़पी, टका, हुमानी, पिड़ाई, बीसी, माशा, रत्ती, दूण, कुणी आदि हैं।
- पर्वतीय क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेती हेतु सीढ़ियां अधिक से अधिक 15 प्रतिशत भूमि के ढाल तक बनाई जानी चाहिए था।
- उत्तराखण्ड कृषि तथा पशुपालन में में सर्वाधिक 60 प्रतिशत योगदान महिलाओं का है।
- तराई क्षेत्र में सूरजमुखी की खेती की जाती है।
- राज्य में कृषि योग्य भूमि लगभग 13 प्रतिशत है।
- वर्षा आश्रित क्षेत्रों में दो वर्षीय लोकप्रिय फसल चक्र धान, गेहूं, मंडुआ पड़ती हैं।
- राज्य में जतार या जुण्टूरू का प्रयोग गेहूं आदि खाद्यान्न फसलों को पीसने हेतु किया जाता है।
- राज्य में मंडुआ का निर्यात जापान को किया जाता है।
उत्तराखंड की प्रमुख नहरें(Major Canals of Uttarakhand)
नहर की परिभाषा( Definition of Canal)
नहर जल स्थानातरण का एक माध्यम है जिसके द्वारा जल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है जो मानव निर्मित होती है। इसका प्रयोग सिंचाई और मत्स्य पालन आदि कार्यों के लिए किया जाता है।
नोट:- भारत की सबसे बड़ी नहर इंद्रा गांधी नहर है। जो सतलुज और व्यास नदी(पंजाब) में बना हुआ है।
उत्तराखंड में नहरों का विकास ब्रिटिश शासन काल से सबसे अधिक हुआ था। उत्तराखंड में अंग्रेज अधिकारी बी. काटले को नहर निर्माणों पिता कहा जाता है। उत्तराखण्ड में छोटी और बड़ी बहुत सी नहरें निर्मित है जो सिंचाई सुविधा और अन्य कामों के लिए उपयोग किए जा रहे है। उत्तराखंड में नहरों की रख रखाव और देखभाल की जिम्मेदारी उत्तराखंड सिंचाई विभाग के पास है।
ऊपरी गंगा नहर परियोजना(Upper Ganges Canal Project)
- इस नहर का उद्घाटन लॉर्ड डलहौजी द्वारा 8 अप्रैल, 1854 में किया गया था।
- यह राज्य की सबसे पुरानी नहर है। जिसका निर्माण 1842-54 के मध्य किया गया था।
- इस नहर की परिकल्पना संयुक्त प्रान्त के तत्कालीन गर्वनर थॉमसन द्वारा की गई थी।
- इस नहर का निर्माण पी बी कॉटले के नेतृत्व में किया गया था।
- यह नहर हरिद्वार में गंगा के दाहिने ओर से निकलकर कानपुर तक जाती है।
- इस नहर का मुख्य उद्देश्य 1834 में गंगा-यमुना दोआब में फैला भीषण दुर्भिक्ष को कम किया जाना था।
- 1836 में पी पी कॉटले को सिंचाई इंस्पेक्टर जनरल नियुक्त किया गया था।
- 1836 में पी बी कॉटले ने इस नहर को स्वीकृत किया था।
- 1838 में इस नहर के संबंध में प्रस्ताव ब्रिटिश सरकार को भेजा गया था।
- यह नहर उत्तरप्रदेश के साथ-साथ हरिद्वार के दक्षिणी भागों को सिंचित करती है।
- 1984 में इस नहर का आधुनिकीकरण किया गया था।
- पी बी कॉटले को आधुनिक भागीरथ की संज्ञा दी जाती है।
- मुख्य नहर की लम्बाई 570 किमी है, जबकि शृंखलाओं की लम्बाई 5650 किमी है।
- इस परियोजना की शुरुआत 1977 में 48.50 करोड़ रूपये की लागत से बनाई गई थी।
- यह हरिद्वार में नवनिर्मित भीमगोड़ा से निकाली गई है।
- यह हरिद्वार तथा उत्तरप्रदेश को सिंचाई सुविधा प्रदान करती है।
- निचली गंगा नहर परियोजना(Lower Ganges Canal Project)
- नरोरा बांध से सेंगर नदी व सेरसा नदी और मैनपुरी जिले के शिकोहाबाद को पार कर आगे बढ़ती है। इसे गंगा नहर की भागनीपुर शाखा कहा जाता है।
- इसे 1880 में खोला गया था।
शारदा नहर(Sharda Canal)
- उत्तराखण्ड के नेपाल सीमा पर चम्पावत के बनबसा से यह नहर निकाली गई है।
- इसका निर्माण 1928 में शारदा या काली नदी पर किया गया है।
- यह उत्तरप्रदेश के साथ-साथ चम्पावत और ऊधम सिंह नगर में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराती है।
- पौढ़ी के कालागढ़ के पास बांध बनाकर यह नहर निकाली गई है।
- इसकी लम्बाई 3200 किमी है, जो उत्तराखण्ड और उत्तरप्रदेश को सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाती है।
- यह गौला नदी पर प्रस्तावित है, जो ऊधम सिंह नगर और नैनीताल जनपदों को सिंचाई सुविधा के साथ-साथ पेयजल भी उपलब्ध करेगी।
भीमताल नहर(Bhimtal Canal)
- कुमाऊँ की सबसे बड़ी झील नैनीताल जनपद में सिंचाई हेतु अनेक नहरें निकाली गई हैं।
- यह भागीरथी और भिलंगना नदी के तट पर विश्व का चौथा एवं भारत का सबसे ऊँचा बांध है।
- इसे सुमन सागर एवं स्वामी रामतीर्थ सागर के नाम से जानते हैं।
- इस राष्ट्र गांव की उपमा दी जाती है।
- यह 42 वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत है।
- इस बांध के निर्माण के समय 1969 में हनुमन्था राव समिति का गठन किया गया था।
- इस बांध से उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, चण्डीगढ़, राजस्थान तथा हिमाचल प्रदेश को बिजली प्राप्त होती है।
राजपुर नहर(Rajpur Canal)
- इस नहर का निर्माण पृथ्वीपति शाह की माता कर्णावती ने कराया था।
- यह नहर वर्तमान समय में देहरादून जिले में स्थित है।
- यह राज्य की सबसे पुरानी नहर है।
कटापत्थर नहर(Katapathar Canal)
- इस नहर का डिजाइन पी वी कॉटले ने 1840-41 में तैयार किया था।
- यह नहर वर्ष 1847 में तैयार हुई थी।
- यह नहर यमुना नदी पर निर्मित है।
बीजापुर नहर(Bijapur Canal)
- पी. वी. कॉटले ने 1837 में इस नहर का डिजाइन तैयार किया था।
- यह पूर्वी टौंस नदी पर बनी है।
खलंगा नहर(Khalanga Canal)
- सौंग नदी पर यह नहर 1860 में बनाई गई थी।
- यह भी देहरादून क्षेत्र में स्थित है।
जाखन नहर(Jakhan Canal)
- सन् 1863-64 में यह नहर जाखन नदी पर बनाई गई थी।
- इस नहर से देहरादून क्षेत्र लाभान्वित है।
धर्मपुर नहर(Dharampur Canal)
- रिस्पना नदी पर ईस्ट कैनाल नाम से जानी जाने वाली नहर जो बंगाली कोठी से आगे खेतों में मिल जाती थी। इसी नहर को कारगी नहर कहा जाता है।
हल्द्वानी नहर(Haldwani Canal)
- इस नहर का निर्माण ट्रेल द्वारा किया गया था।
लस्तर नहर(Lastar Canal)
- 1970 में जखोली ब्लॉक, रूद्रप्रयाग के बांगर, सिलगढ़ और लस्या पट्टी के दर्जनों गांवों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराती है ।
नानक सागर नहर परियोजना (Nanak Sagar Canal Project)
- यह बांध नंधौर नदी पर निर्मित है।
- इस नहर से नैनीताल और ऊधम सिंह नगर जिले लाभान्वित होते है।
FAQ
उत्तराखंड की आय का मुख्य स्रोत क्या है?
अधिकांश भारत की तरह, कृषि उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है।
उत्तराखंड की सबसे बड़ी नहर कौन सी है?
शाखा-प्रशाखाओं सहित शारदा नहर की कुल लम्बाई लगभग 350 किलोमीटर है। यह उत्तर प्रदेश और नेपाल सीमा के समीप शारदा नदी के किनारे "बनबसा" नामक स्थान से निकाली गई है। नहर का निर्माण कार्य सन् 1920 में प्रारम्भ हुआ और 1928 में पूर्ण हुआ था।
उत्तराखंड में सिंचाई कैसे की जाती है?
राज्य में कुंआ, तालाब, नदी, झील, नहर, नलकूप, झरनों आदि साधनों का प्रयोग सिंचाई हेतु किया जाता है। गढ़वाल मण्डल के कुल सिंचित क्षेत्रफल के लगभग 50.95 भाग पर कुंओं, तालाबों, झरनों, झीलों, पोखरों से सिंचाई की जाती है। राज्य में सर्वाधिक सिंचित क्षेत्र वाला जनपद ऊधम सिंह नगर और सबसे कम सिंचित क्षेत्र वाला जनपद चमोली है।
उत्तराखंड में सिंचाई कृषि भूमि को क्या कहा जाता है?
बण या वन – ऐसा क्षेत्र जो होती तो वन भूमि है, लेकिन उस पर नियंत्रण गांव वालों का होता है। पहाड़ो में ऐसे क्षेत्र के जंगल में गांव घास व लकड़ी लाने सामूहिक रूप से जाते हैं। स्थानीय भाषा में इसे बण जाना या उबढ़ी कहते हैं। तलौं – पहाड़ की ऐसी खनिज भूमि जो खेती के लिए उत्तम होने के साथ ही सिंचाई सुविधा से युक्त होती है।
उत्तराखंड में कितने जल विद्युत संयंत्र हैं?
उत्तराखंड जल विद्युत निगम का गठन 9 नवंबर 2001 को किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य उत्तराखंड राज्य की जल विद्युत क्षमता का विकास और दोहन करना था। निगम के पास 1400 मेगावाट से अधिक की कुल क्षमता वाली 33 परियोजनाएं चल रही हैं और 14 से अधिक परियोजनाएं कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं।
उत्तराखंड में कृषि योग्य भूमि का प्रतिशत कितना है?
प्रस्तावना उत्तराखण्ड का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 59,926 वर्ग कि०मी० है, जिसका 37999 वर्ग कि0मी0 (63.41 प्रतिशत) वन आच्छादित है । वर्तमान में कुल 6.98 लाख हैक्टेयर कृषि के अन्तर्गत है, जो कि कुल क्षेत्रफल का केवल 11.65 प्रतिशत है।
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