नागदेव मन्दिर पौड़ी गढ़वाल (Nagdev Temple Pauri Garhwal)

नागदेव मन्दिर पौड़ी गढ़वाल (Nagdev Temple Pauri Garhwal)

यह मंदिर पौड़ी-बुबाखाल  रोड पाइन और रोडोडेंड्रन के घने जंगल के बीच में स्थित है। मंदिर के रास्ते में एक वेधशाला स्थापित की गयी है जहां से चौखंबा, गंगोत्री समूह, बन्दर पूँछ , केदरडोम, केदारनाथ आदि जैसे शानदार हिमालय पर्वतमाला के विशाल और रोमांचकारी दृश्य देखे जा सकते हैं। मंदिर बस स्टेशन से 5 किमी दूर स्थित है तथा यहाँ पर 1 और 1/2 किलोमीटर ट्रेक द्वारा भी पहुंचा  जा सकता है।

नागदेव मन्दिर पौड़ी गढ़वाल (Nagdev Temple Pauri Garhwal)

नागदेव मन्दिर पौड़ी गढ़वाल

पौड़ी बस स्टेशन से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर कण्डोलिया-बुवाखाल मार्ग पर स्थित है घने जंगल के मध्य स्थित है "नागदेव मंदिर"। प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण घने बांज, बुरांश तथा गगनचुम्बी देवदार, चीड़ के वृक्षों के बीच से छनकर आती सूर्य की किरणें, मंद-मदं बहती सुगन्धित बयार भक्तजनों के हृदय को शीतलता प्रदान करती हैं। मंदिर के समीप प्राकृतिक स्रोत का शीतल जल पर्यटकों के लिये संजीवनी समान प्रतीत होता है। नगर में स्थित यह नागदेवता का मन्दिर उत्तराखण्ड में गढ़वाल में नागवंशियों के प्रवास को सिद्ध करता है। नागदेवता के इस मन्दिर की स्थापना के बारें में लोगों के भिन्न भिन्न मत हैं लेकिन धार्मिक आस्था और विश्वास के फलस्वरूप जो कहानी उभर का आई है वह इस प्रकार है।
नागदेव मन्दिर पौड़ी गढ़वाल (Nagdev Temple Pauri Garhwal)
नागदेवता मूलरूप से डोभाल वंश का देवता माना जाता है। पौड़ी शहर से लगभग ११ किलोमीटर दूर पौड़ी श्रीनगर राजमार्ग पर नादलस्यूं पट्‍टी में स्थित है "डोभ गांव", जिसमें डोभाला जाति के लोग रहते हैं। कहा जाता है कि लगभग २०० वर्ष पूर्व डोभ-गांव के डोभाल वंश में एक बालक का जन्म हुआ जिसका ऊपरी हिस्सा मनुष्य रूप एवं कमर से नीचे का हिस्सा सर्प रूप में था जिसे नागरूप कहा जाता है। यह बालक जन्म से ही प्रत्यक्ष भाषित था।

 अपने जन्म के बाद बालक ने अपने पिता से कहा कि मुझे लैन्सडाऊन क्षेत्र में भैरवगढ़ी मन्दिर के पास एक स्थान पर कंण्डी में ले जाकर स्थापित कर दो। साथ ही यह भी कहा कि मुझे यहां से ले जाते समय मार्ग में किसी भी स्थान पर कण्डी को नीचे ना रखा जाय, मुझे वहीं उतारना जहां स्थापना होनी है। कहा जाता है कि डोभाल वंश, गर्ग गोत्र के लोग बालक को कण्डी में लेकर गन्तव्य की ओर डोभ-गांव, प्रेमनगर, चोपड़ा, झण्डीधार होते हुये निकल पड़े। झण्डीधार से थोड़ा नीचे उन्होने भूलवश कण्डी को जमीन पर रख दिया, जिसके बाद उन अर्द्धनागेश्वर बालक ने सभी लोगों से कण्डी को छूने व उठाने से इन्कार कर दिया। उस देव बालक ने उन लोगों से कुछ दूरी पर खोदने का आदेश दिया। देवबालक के बताये स्थान पर खुदाई करने पर एक शीतल जलधारा निकली। बालक के आदेशानुसार उन्होने उस जल से स्नान करके उस बालक को पूजा अर्चना करके वहीं स्थापित कर दिया। तभी से यह स्थान नागदेवा कहलाने लगा। खुदाई से उपजा वह प्राकृतिक जल स्रोत आज भी मन्दिर के समीप ही स्थित है तथा नागदेवता एक प्रस्तरशिला के रूप में दृष्टिगोचर है।

कहा जाता है कि आज भी कोमल हृदय एवं अटूट श्रद्धा से जाने वाले भक्तों को नागदेवता दर्शन देते हैं। मान्यता है कि मन्दिर में स्थापित प्रस्तर शिला के समीप ही एक छिद्र में नाग देवता निवास करते हैं जहां पुजारी गण नित्य प्रति एक कटोरी में दूध रख देते हैं और यह कटोरी कुछ समय बाद खाली मिलती है। पुजारी तथा भक्तगणों के अनुसार अक्सर इस स्थान पर नाग देवता की उपस्थिति का एहसास होता है। मन्दिर के पुजारी जी ने एक ओर विस्मयकारी बात की तरफ हमारी टीम का ध्यान आकृष्ट किया, मुख्यतया चीड़ के वृक्ष आकार में सीधे होते हैं परन्तु जिस चीड़ के वृक्ष के नीचे प्रस्तर शिला स्थापित है उसने ऊपर जाकर फन फैलाये हुये नाग का आकार लिया हुआ है।
नागदेव मन्दिर पौड़ी गढ़वाल (Nagdev Temple Pauri Garhwal)
जून माह में इस स्थान पर दो दिवसीय भजन-कीर्तन एवं भण्डारे का आयोजन होता है। वर्ष भर यहां श्रद्धालुगण, नव विवाहित युगल अपनी अपनी मनोकामनायें लेकर इस स्थान पर आते रहते हैं

कमल पिमोली/पौड़ी गढ़वाल. सनातन धर्म और आस्था के प्रतीक कई ऐसे पौराणिक मठ मंदिर हैं जिनका ऐतिहासिक महत्व होने के साथ-साथ स्थानीय मान्यताएं भी हैं. एक ऐसा ही मंदिर पौड़ी जिला मुख्यालय में मौजूद है. यह मंदिर नाग देवता को समर्पित है, यहां नाग देवता की पूजा की जाती है. इसलिए मंदिर का नाम भी “नागदेव मंदिर” पड़ा है. पौड़ी जिला मुख्यालय से महज तीन से साढ़े तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित नागदेव मंदिर स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र बिंदु है, साथ ही मंदिर और डोभाल जाति के लोगों को लेकर कई कहानी भी है. वहीं यह मंदिर गढ़वाल क्षेत्र में नागवांसियो की मौजूदगी का भी प्रमाण देता है.
नागदेव मन्दिर पौड़ी गढ़वाल (Nagdev Temple Pauri Garhwal)
पौड़ी जिले में कंडोलिया मैदान से बुवाखाल वाले रास्ते पर देवदार के घने जंगलों के बीच नागदेव मंदिर मोजूद है. मंदिर का इतिहास 200 साल पहले का बताया जाता है. देवदार, बांज, बुरांश के जंगल होने के कारण यहां वातावरण काफी ठंडा रहता है, जिस कारण यहां श्रद्धालु गर्मी से निजात पाने भी आते हैं.

नागदेव मन्दिर पौड़ी गढ़वाल (Nagdev Temple Pauri Garhwal)

नागदेव मन्दिर पौड़ी गढ़वाल (Nagdev Temple Pauri Garhwal)

नागदेव मन्दिर पौड़ी गढ़वाल (Nagdev Temple Pauri Garhwal)

नागदेव मन्दिर पौड़ी गढ़वाल (Nagdev Temple Pauri Garhwal)

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