माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर(Maa Jwalpa Devi Temple) maa jwalpa devi mandir

माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर(Maa Jwalpa Devi Temple)

देवी दुर्गा को समर्पित इस क्षेत्र का प्रसिद्ध शक्तिपीठ माँ ज्वाल्पा देवी का मंदिर पौड़ी-कोटद्वार मोटर सड़क पर पौड़ी से लगभग 33 किमी दूरी पर स्थित है।लोग दूर दूर से अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए नवरात्रों के दौरान एक विशेष पूजा के लिए आते  हैं।पर्यटक विश्रामगृह और धर्मशाला यहां उपलब्ध हैं।मंदिर नदी नायर नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है तथा पास का  स्टेशन सतपुली लगभग 17 किमी है।

माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर इतिहास

ग्राम खैड़ के पंडित भवानी दत्त सती थपलियाल पहले गढ़वाली नाटककार के रूप में स्थापित हैं। उन्होंने गढ़वाली भाषा मे प्रथम नाटक- “जय विजय” (1911में) लिखा और प्रह्लाद नाटक 1913 में मंचन भी कर दिया। प्रह्लाद नाटक 1930 में प्रकाशित किया।  प्रह्लाद नाटक पुस्तक में पंडित भवानी दत्त थपलियाल जी ने अपनी वंशावली दी है। इसी प्रसंग में उन्होंने ज्वालपा देवी मंदिर की स्थापना और ज्वालपा सेरा के बारे में भी लिखा33 है। उनके लिखे इस प्रसंग को यथावत दिया जा रहा है-
माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर(Maa Jwalpa Devi Temple)
    “एक समय गढ़वाल के पंवार वंशी राजा ने शत्रुओं से पीड़ित होकर ज्वालपा देवी की शरण ली और देवी ने अपने भक्त की रक्षार्थ किसी अन्य देश से एक कफोला बिष्ट के नमक के थैले के अंदर आकर जहां पर अब मौजूद है, अचल हो गई। जबकि वहां पर  थैला किसी से नही हिला तो बिष्ट ने थैला खोलकर उसमे से देवी की प्रतिमा को निकालकर वहीं स्थापित करके राजा के पास जाकर सब हाल कह सुनाया, उसी रात को राजा के स्वप्न में ज्वालपा देवी ने कहा कि मैं तेरी रक्षार्थ चौंदकोट गढ़ी के नजदीक पटलेश्वर (पटालिका) महादेव के समीप मंदाकिनी (नयार) गंगा के तट पर स्थापित हो गई हूं, तू वहां पर मेरा मंदिर और पूजा का प्रबंध कर तब अपने सब शत्रुओं को जीतकर केदारखंड इत्यादि का निर्भय राज्य करेगा। राजा ने उसी समय अपने पुरोहित सोमनाथ सती थपल्याल को चौंदकोट गढ़ी भेजकर चौंदकोट इत्यादि कई परगना का फौन्दार अर्थात कुल मुंतजिम मुकर्रर करके ज्वालपा देवी के मंदिर और पूजा के लिए पचासों गांऊ जागीर देकर उसका कुल प्रबंधकर्ता बनाकर भेज दिया। पंडित सोमनाथ जी ने चौंदकोट गढ़ी आकर खैड़, सिमतोली, पंचुर, मासों इत्यादि अनेक गांव बसाए और अपना जेष्ठ पुत्र धामजी को पंचुर सिमतोली में बसाकर मुल्क का फौन्दार बनाया। और कनिष्ट पुत्र पंडित दहस जी को ज्वालपा देवी की पूजा और जागीर का मुंतजिम मुकर्रर करके खैड़ में बसाके मुआफीदार बनाया। बाद को धाम जी ने जेष्ठ पुत्र पंडित रुद्र देव जी को मुल्की फौन्दार बनाकर पंचुर में बसा दिया और उसका मदगार अपना तीसरा पुत्र पंडित देवेंद्र जी को करके मासों में बसा दिया। बाकी दूसरा पुत्र पंडित सदानंद जी को अपने छोटे भाई पंडित दहस जी को मददगार देकर सिमतोली से ज्वालपा देवी जागीर में शरीक कर दिया। इसी इंतजाम के बमोजिब खैड़-सिमतोली के थपल्याल ज्वालपा देवी की पूजा में जागीर खाते चले आते थे परंतु सोलहवीं शताब्दी के शुरू में अन्य सरोला जातियों ने इन्हें बढ़े चढ़े देखकर देवी के पुजारी होने से लिंगचटा कहकर उपहास करने लगे इस कारण से खैड़ सिमतोली के थपल्यालों ने देवी की सर्वश्रेष्ठ पूजा जो नवरात्रों की मानी जाती है बतौर सिरगोही आप करने लगे और मंदिर व जागीर का कुछ आयव्यय अपने हाथ मे रखा और बाकी सालभर की पूजा के लिए अपनी तरफ से एक रामदेव सारस्वत को मुकर्रर करके अणेथ में बसा दिया और ज्वालपा का सेरा देवी पूजा के लिए उसके सुपुर्द कर दिया तब से उसकी संतान अणथ्वाल कहाती है जो कि सिवाय नवरात्रों के बाकी कुल साल की पूजा ज्वालपा देवी की वर्तमान समय तक करते चले आये हैं।।”

माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर लोक कथा : पाषाण पिंडी रूप में आई थी देवी

पुराने समय मे जब उत्तराखंड में सड़कें नही थी यातायात के साधन नही थे, उस काल तीन वस्तुओं के लिए यहां के लोग नगीना, धामपुर या नजीबाबाद पैदल जाकर, सामान सिर में ढोकर लाते थे। ये तीन वस्तुएं थी – नमक, गुड़ और कपड़े। ढोकर लाने को ढाकर कहते थे। इनका रास्ता बांघाट, द्वारीखाल, डाडामंडी से होकर नजीबाबाद की ओर जाता था। ऐसी ही एक ढाकर में कुछ लोग जो मवालस्यूं- खातस्यूं की तरफ के गांवों से थे, वापसी में बांघाट से नयार नदी के किनारे किनारे चलते हुए आमकोटि (ज्वालपा सेरा) की ओर चल पड़े। इस समूह में खैड़ गांव के दयानंद  थपलियाल और अगरोडा गांव के बिष्ट और एक रावत ढाकरी भी थे। जब चलते चलते वे थक गए तो पश्चमी नयार नदी के तट पर आमकोटि में ये लोग विश्राम करने के लिए रुके। विश्राम के बाद जब अपने अपने गांव की ओर जाने के लिए उठे और दयानंद जी ने सामान से भरा थैला (ढाकर) उठाना चाहा तो थैला उठाया न जा सका। कारण जानने के लिए थैला खोला तो उसमें एक मातृपिंडी (गोल पत्थर की पिंडी) मिली। जिसे उन्होंने निकाल कर किनारे पर रख दिया। कुछ लोगों का मत है कि अगरोडा के कफोला बिष्ट के भारा (बोझ) में माँ ज्वालपा आई थी। पिंडी को बाहर निकालते ही बोझ एकदम हल्का हो गया। सभी ढाकरी अपने अपने गाँव की ओर चल पड़े। रात को देवी  सह यात्रियों के सपने में आई और बोली- मैं तुम्हारी देवी ज्वालपा हूँ। मैं तुम्हारे समान के साथ पिंडी के रूप में आई हूँ। मुझे यह स्थान बहुत प्रिय लगा है तुम इस स्थान पर मेरा मंदिर बनाकर मुझे थरप (स्थापित) कर दो। उसके बाद यहां पर नबालका (पश्चमी नयार नदी) के किनारे पत्थरों का एक छोटा सा मंदिर बना दिया गया। जब मंदिर बना तो उस मातृ पिण्डिका (लोड़ी) को डोली में ले जाकर नबालका नदी में स्नान कराया और मंदिर में लाकर स्थापित किया। मातृ पिंडी को डोली में ले जाकर स्नान कराने वाले बिष्ट, नेगी, रावत और गुसाईं थे। इस प्रकार थपलियाल ज्वालपा देवी मंदिर के मूल पुजारी बने और इन सबकी इष्टदेवी ज्वालपा हुई।

ज्वालपा देवी के पग पखारती नबालका नदी

स्कन्द पुराण के अध्याय 168 में नबालका अर्थात “कुंवारीनदी” की महिमा बताई गई है।  इस नदी का एक नाम नारद गंगा और आधुनिक नाम पश्चिमी नयार नदी  है।  इस नदी को भी गंगा के समान पवित्र माना गया है। नबालका नदी का उद्गम दूधतोली पर्वत श्रृंखला का पश्चमी भाग है। प्राचीन काल मे यहां आयुर्वेद के ज्ञाता ऋषि च्यवन का आश्रम था। निकट ही पैठानी पुरी में एक सेठ की कन्या नबालका बहुत ही सुशील और तपस्वी स्वभाव की थी, जो च्यवन ऋषि की सेवा सुश्रुषा भी करती थी। ऋषि ने अपने दैवीय ज्ञान से उस बालिका का भविष्य बताया। उन्होंने कहा आनेवाले समय मे तुम गंगा समान पवित्र नदी के रूप में प्रवाहित होंगी। तुम्हारे जल से स्नान करनेवालों के पाप नष्ट होंगे तथ्या स्नान करने वालों को पूण्य प्राप्त होगा। इसलिए जवालपधाम आनेवाले भक्तगण इस पवित्र नदी में स्नान करने के बाद ही दर्शन करते हैं। यह बारहमासी नदी है। सतपुली के निकट पूर्वी और पश्चमी नयार नदी मिलती हैं। 22 किलोमीटर प्रवाहित होने पर  इन्द्रप्रयाग निकट व्यासघाट में गंगा जी मे मिल जाती है।
माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर(Maa Jwalpa Devi Temple)

कहां है मां ज्वालपा देवी मंदिर

उत्तराखंड के पौड़‌ी गढ़वाल स्थित पौड़ी-कोटद्वार मार्ग पर नयार नदी के तट पर स्थित देवी दुर्गा को समर्पित इस क्षेत्र का प्रसिद्ध शक्तिपीठ माँ ज्वाल्पा देवी का मंदिर यहा मंदिर पौड़ी-कोटद्वार मोटर सड़क पर पौड़ी से लगभग 33 किमी दूरी पर स्थित है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार

पौराणिक कथाओं के अनुसार,सतयुग में दैत्यराज पुलोम की पुत्री शची ने देवराज इंद्र को पति रूप में पाने के लिए नयार नदी के किनारे ज्वाल्पा धाम में जगत माता देवी मां पार्वती की तपस्या की थी। मां पार्वती ने शची की तपस्या से काफी प्रसन्न हुई जिसके बाद उसे दीप्त ज्वालेश्वरी के रूप में दर्शन देते हुए उसकी मनोकामना पूर्ण की,और साथ ही मां शची को ये वरदान दिया की जो भी इस धाम में सच्चे मन से वर की कामना लेकर आऐगा उसकी हर मनोकामना पूरी होगी,इसी के साथ मां के ज्वाला रूप में दर्शन देने के कारण इस स्थान का नाम ज्वालपा पड़ा गया।
मां पार्वती के दीप्तिमान ज्वाला। के रूप में प्रकट होने के प्रतीक स्वरूप अखंड दीपक निरंतर मंदिर में प्रज्ज्वलित रहता है। इस प्रथा को यथावत रखने के लिए प्राचीन काल से निकटवर्ती मवालस्यूं, कफोलस्यूं, खातस्यूं, रिंगवाडस्यूं, घुड़दौड़स्यूं और गुराडस्यूं पट्टयों के गांवों से सरसों को एकत्रित कर मां के अखंड दीपकको प्रज्ज्वलित रखने के लिए तेल की व्यवस्था की जाती है।
माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर(Maa Jwalpa Devi Temple)
आप को बता दे की 18वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा प्रद्युम्न शाह ने मंदिर को 11.82 एकड़ सिंचित भूमि दान की थी। ताकि यहां अखंड दीपक हेतु तेल की व्यवस्था के लिए सरसों का उत्पादन हो सके। माना जाता है  कि आदि गुरु शंकराचार्य ने यहां मां की पूजा अर्चना की थी, जिसके बाद मां पर्वती ने उन्हें दर्शन दिए थे।
ज्वाल्पा देवी सिद्ध पीठ पौराणिक महत्व को समेटे हुए है। इस पीठ के बारे में प्रसिद्ध है कि यहां आने पर हर मनोकामना पूर्ण होती है और खासकर कुंवारी लड़कियों की वर की इच्छा पूरी होती है।

श्री ज्वालपा देवी मंदिर समिति की सदस्यता संबंधी कुछ प्रमुख जानकारियां

माँ ज्वालपा में अनन्य श्रद्धाभाव रखने वाला व्यक्ति बिना जाति, धर्म या लिंग का भेदभाव के समिति का साधारण सदस्य बन सकता है बशर्ते वह सनातन संस्कृति की उच्च नैतिक आचरण में आस्था रखता हो। सदस्यता के लिए निर्धारित प्रारूप में आवेदन किया जाता है। साधारण सदस्यता शुल्क रुपये 500/- वार्षिक है। संपोषक सदस्य के लिए शुल्क रुपये 1100/- निर्धारित है। पहले आजीवन सदस्यता का प्रावधान भी था लेकिन अनुभव में यह आया कि अक्सर आजीवन सदस्य बैठकों में आ नही पाते अतः इस सदस्यता को निरुत्साहित किया जाने लगा है। साधारण सदस्यों के लिए यह आवश्यक है कि जब भी कार्यकारिणी की बैठक में आमंत्रित किया जाय, उसे बैठक में भाग लेना होगा। सामान्यतः इस तरह की बैठक में भाग लेने के लिए यात्रा व्यय स्वयं ही वहन करना होता है। समिति की एक साल में कम से कम दो बैठकें अवश्य आहूत की जाती हैं। एक अर्द्ध वार्षिक बैठक और एक वार्षिक बैठक। इसके अलावा आवश्यकता पड़ने पर लघु बैठकें भी आयोजित होती हैं।
अधिक जानकारी समिति की नियमावली में उपलब्ध हैं।

कार्यकारिणी में अति वरिष्ठ सदस्यों को उनकी अनुमति से संरक्षक मंडल में स्थान दिया जाता है। कार्यकारिणी में अध्यक्ष, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, कनिष्ठ उपाध्यक्ष, मुख्य सचिव, उप सचिव, कोषाध्यक्ष, जनसंपर्क अधिकारी, मुख्यनिर्माण परामर्शदाता, विद्यालय प्रबंधक, व्यवस्थापक, संप्रेक्षक, निर्माण इंजीनियर, साधारण सदस्य और धर्म शिक्षक/ पाठार्थी पंडित होते हैं। समिति के सांविधान में कार्यकारिणी का चुनाव प्रत्येक तीन वर्ष में एक बार किये जैन का प्रावधान है। 
  समिति का प्रयास रहता है ऐसे परिपक्व लोग कार्यकारिणी में सक्रिय रहें जो सेवानिवृत्त हैं, जिनके अन्य  दायित्व बहुत कम हैं, पद की बजाय सेवाभाव में रुचि रखते हों। उन्हें धार्मिक स्थलों की महत्ता समझते हुए व्यवस्था संभालने का अनुभव भी हो। विस्तृत जानकारी समिति की सांविधान पुस्तिका में है।

श्री ज्वालपा देवी समिति का विस्तार

श्री ज्वालपा देवी मंदिर समिति, ज्वालपा धाम की स्थापना अक्टूबर 1969 में कई गई थी। माँ ज्वालपा के भक्त काफी बड़ी संख्या में गढ़वाल से बाहर भी रहते हैं। दिल्ली में रहनेवाले माता के भक्तों ने इस मंदिर समिति से पहले ही दिल्ली में श्री ज्वालपा देवी पूजन समिति दिल्ली (पंजी.) का गठन कर वार्षिक आयोजन शारदीय नवरात्री में देवी का पाठ और भंडारा आयोजित करने शुरू कर दिया था।

   श्री माया दत्त थपलियाल (स्व.) जो 9, प्रिंसेज पार्क निकट इंडिया गेट, नई दिल्ली में रहते थे, बहुत सामाजिक व्यक्ति थे। उन्होंने दिल्ली में ज्वालपा देवी के भक्तों के साथ विमर्श किया। उन्ही के घर पर एक बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में प्रमुख व्यक्तियों में श्री महिमानंद थपलियाल शास्त्री (ग्राम भटकोटी), श्री लोकेशानन्द शास्त्री, श्री बालम सिंह रावत, श्री रेवत सिंह बिष्ट, श्री पुरुषोत्तम जी, श्री चक्रधर जी, श्री वाणीविलास जी, श्री देवी प्रसाद जी, श्री देवी प्रसाद जी, श्री जीवानंद जी, श्री घनानंद जी, श्री भगवती प्रसाद जी (उपरोक्त महानुभाव अब स्वर्गीय हो चुके हैं) आदि बैठक में सम्मिलित हुए और उन्होंने श्री ज्वालपा देवी पूजन समिति दिल्ली का गठन किया। श्री माया दत्त जी प्रधान, श्री रामकृष्ण जी मंत्री, वाणी विलास जी कोषाध्यक्ष चुने गए और अन्य लोग सदस्य बने।

   सन 1959 में श्री मायादत्त थपलियाल के निवास प्रिंसेज पार्क में समिति का प्रथम पाठ रखा गया। अष्टमी के दिन हवन, पूर्णाहुति और भंडारे का आयोजन किया गया। बाद के वर्षों में श्री मुरारीलाल थपलियाल लंबे समय तक पूजन समिति के अध्यक्ष रहे। उन्होंने पूजन समिति का विस्तार गाज़ियाबाद, नोएडा और फरीदाबाद तक किया। इस दौर में लोगों में ज्वालपादेवी की पूजा के प्रति काफी जुड़ाव देखने को मिला। इस पूजन समिति को जो भी आर्थिक सहयोग मिलता उसे जमा कर इस समिति ने ज्वालपा देवी धाम में “दिल्ली भवन” का निर्माण कराया। बाद में (सन 2000 के करीब) श्री ज्वालपादेवी पूजन समिति दिल्ली ने श्री ज्वालपा देवी मंदिर समिति की उपशाखा के रूप में कार्य करना आरंभ कर दिया। श्री नरेश थपलियाल, श्री अनूप थपलियाल, श्री वीरेंद्र मैठाणी, श्री रविन्द्र बिष्ट, श्री देवेन्द्र बिष्ट, श्री देवेन्द्र थपलियाल मेरठ से श्रीमती नीरा और श्री अमरदेव थपलियाल भी समिति से जुड़े। श्री दुर्गेश बल्लभ थपलियाल ने “मंगल कलश योजना” से बहुत लोगों को जोड़ा। श्री नागेंद्र थपलियाल वर्षों तक पूजन समिति दिल्ली से जुड़े रहे 2021 में मुख्य समिति ने उनका चयन ज्वालपा धाम में व्यवस्थापक के रूप में कर दिया।  श्री सुमन थपलियाल नव ऊर्जा के साथ पूजन समिति दिल्ली के साथ कर्मठता से जुड़े हुए है।  पूजन समिति दिल्ली शारदीय नवरात्रि में विशाल ज्वालपा पूजन का विशाल आयोजन करती है। इसी प्रकार की एक उप समिति का गठन देहरादून में भी किय्या गया था, शुरू में वहां के कार्यकर्ताओं ने उत्साह से भाग लिया अभी वह समिति नई ऊर्जा की तलाश में है। इन समितियों से प्राप्त अंशदान के कुछ भाग को श्री ज्वालपा देवी मंदिर समुति को भहेज दिया जाता है

ज्वालपा धाम : अतिथिदेवो भव:

समिति द्वारा ज्वालपा धाम आनेवाले श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए समुचित अतिथिगृह व धर्मशालाएं तैयार करवाई गई हैं। किसी एक दिन में लगभग 125 लोगों के लिए ठहरने की आधुनिक सुविधाओं  सहित व्यवस्था है। पूर्व सूचना हो तो भोजन की व्यवस्था भी उपलब्ध हो जाती है।

श्री ज्वालपा देवी मंदिर समिति से संबंधित समस्त प्रशासकीय

कार्यों के लिए मुख्य सचिव से, ज्वालपा धाम में ठहरने के लिए धर्मशालाओं में कमरे बुक करवाना, किसी ऐसी आवश्यकता हेतु जिसकी सहजता से उम्मीद की जा सकती है, बिजली, पानी, खान-पान संबंधी व्यवस्था के लिए मंदिर समिति के “व्यवस्थापक” से,  मंदिर या समिति सम्बन्धी किसी भी प्रकार की सामान्य जानकारियों के “जनसंपर्क अधिकारी” से सम्पर्क कर सकते हैं। संस्कृत शिक्षा संबंधी जिज्ञासाओं के लिए कनिष्ठ उपाध्यक्ष अथवा विद्यालय प्रबंधक से सम्पर्क कर सकते हैं। कोई दानदाता किसी भी प्रकार के दान देने की जिज्ञासा रखता हो वे कोषाध्यक्ष अथवा व्यवस्थापक से संपर्क कर सकते हैं।

 ज्वालपा धाम में प्रवास के दौरान दर्शनार्थियों से अपेक्षा की जाती है कि नैतिक आचरण बनाये रखेंगे। धर्मशाला में 3 दिन तक (पूर्व सूचना देकर) अनुमति प्राप्त कर रह सकते हैं। अधिक दिन ठहरने के लिए पहले से आवेदन कर विशेष अनुमति प्राप्त करनी होगी।  समिति की ओर से धर्मशाला निशुल्क है। जो सक्षम हैं वे स्वेच्छा से अपनी रसीद कटवा सकते हैं, ताकि सुविधाओं को बढ़ाने में सहायता मिलती रहे। धर्मशालाओं में शराब पीना, जुआ खेलना या किसी भी अनैतिक/अमर्यादित आचरण की अनुमति नही है। संदिग्ध अवस्था में व्यवस्थापक हस्तक्षेप कर समयानुसार समीक्षा करके कार्यवाही कर सकते हैं।


माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर(Maa Jwalpa Devi Temple)

माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर(Maa Jwalpa Devi Temple)

माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर(Maa Jwalpa Devi Temple)

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