ताड़केश्वर महादेव मंदिर (Tarkeshwar Mahadev Temple)
यह स्थान “भगवान शिव” को “श्री ताड़केश्वर मंदिर धाम” या “ताड़केश्वर महादेव मंदिर (Tarkeshwar Mahadev Temple)” के रूप में समर्पित है। इस मंदिर का नाम उत्तराखंड के प्राचीन मंदिरों में आता है, और इसे “महादेव के सिद्ध पीठों” में से एक के रूप में भी जाना जाता है।
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तारकेश्वर महादेव मंदिर पौड़ी गढ़वाल
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देवदार, बुरांश और चीड़ के घने जंगलो से घिरा, यह उन लोगो के लिए आदर्श स्थान है, जो प्रकृति में सौन्दर्य की तलाश करते है। महाशिवरात्रि के दिन यहाँ एक विशेष पूजा की जाती है यहाँ पौराणिक महत्व है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए ताड़केश्वर में प्रार्थना की थी, कई भक्तों का यह भी मानना है कि भगवान शिव अभी भी इस स्थान पर है और गहरी नींद में है। मंदिर में भक्तों द्वारा अर्पित की गई कई हजारों घंटियों को आज भी देखा जा सकता है।
ताड़केश्वर महादेव मंदिर का इतिहास
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तारकेश्वर महादेव मंदिर पौड़ी गढ़वाल |
पौराणिक कथा के अनुसार, तारकासुर एक राक्षस था जिसने वरदान के लिए उसी स्थान पर भगवान शिव की तपस्या और पूजा की थी। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने तारकासुर के अनुरोध के अनुसार उसे भगवान शिव के पुत्र (केवल भगवान शिव का पुत्र ही उसे मार सकता है) को छोड़कर अमरता का वरदान दिया। तारकासुर ने संतों को मारना और देवताओं को धमकाना शुरू कर दिया। ऋषियों ने भगवान शिव से मदद मांगी। तारकासुर के गलत कार्यों से परेशान होकर भगवान शिव ने पार्वती से विवाह किया और कार्तिकेय का जन्म हुआ। कार्तिकेय ने जल्द ही तारकासुर को मार डाला लेकिन मृत्यु के समय तारकासुर ने भगवान शिव से प्रार्थना की और क्षमा मांगी। महादेव ने तब अपना नाम उस मंदिर से जोड़ लिया जहां तारकासुर ने एक बार ध्यान किया था। इसलिए इस स्थान का नाम तारकेश्वर महादेव पड़ा।
महाशिवरात्रि के दौरान यह स्थान भक्तों से भरा रहता है। मंदिर हजारों घंटियों से घिरा हुआ है जो भक्तों द्वारा चढ़ाई जाती हैं। मंदिर के पास पर्यटकों के आवास के लिए दो धर्मशालाएँ हैं
माता लक्ष्मी ने खोदा था कुंड
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तारकेश्वर महादेव मंदिर पौड़ी गढ़वाल |
मंदिर परिसर में एक कुंड भी है। मान्यता है कि यह कुंड स्वयं माता लक्ष्मी ने खोदा था। इस कुंड के पवित्र जल का उपयोग शिवलिंग के जलाभिषेक के लिए होता है। जनश्रुति के अनुसार यहां पर सरसों का तेल और शाल के पत्तों का लाना वर्जित है। लेकिन इसकी वजह के बारे में लोग कुछ कह नहीं पाते
ताड़कासुर ने यहीं की थी तपस्या
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ताड़कासुर नामक राक्षस ने भगवान शिव से अमरता का वरदान प्राप्त करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी। शिवजी से वरदान पाकर ताड़कासुर अत्याचारी हो गया। परेशान होकर देवताओं और ऋषियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की और ताड़कासुर का अंत करने के लिए कहा।
इसलिए पड़ा मंदिर का नाम 'ताड़केश्वर'
भोलेनाथ ने असुरराज ताड़कासुर को उसके अंत समय में क्षमा किया और वरदान दिया कि कलयुग में इस स्थान पर मेरी पूजा तुम्हारे नाम से होगी इसलिए असुरराज ताड़कासुर के नाम से यहां भगवान भोलेनाथ 'ताड़केश्वर' कहलाये।
एक अन्य दंतकथा भी यहां प्रसिद्ध है कि एक साधु यहां रहते थे जो आस-पास के पशु पक्षियों को सताने वाले को ताड़ते यानी दंड देते थे। इनके नाम से यह मंदिर ताड़केश्वर के नाम से जाना गया।
माता पार्वती हैं मौजूद छाया बनकर
ताड़कासुर के वध के पश्चात् भगवान शिव यहां विश्राम कर रहे थे, विश्राम के दौरान भगवान शिव पर सूर्य की तेज किरणें पड़ रही थीं। भगवान शिव पर छाया करने के लिए स्वयं माता पार्वती सात देवदार के वृक्षों का रूप धारण कर वहां प्रकट हुईं और भगवान शिव को छाया प्रदान की। इसलिए आज भी मंदिर के पास स्थित सात देवदार के वृक्षों को देवी पार्वती का स्वरूप मानकर पूजा जाता है।
त्रिशूल रूपी वृक्ष
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तारकेश्वर महादेव मंदिर पौड़ी गढ़वाल |
मंदिर परिसर में मौजूद त्रिशूलनुमा देवदार का पेड़ है, जो दिखने में सचमुच बेहद अदभुत है। यह वृक्ष इसे देखने वाले श्रद्धालुओं की आस्था को प्रबल करता है। ऐसी मान्यता है कि जब किसी भक्त की मनोकामना पूरी होती है तो वह यहां मंदिर में घंटी चढ़ाते हैं। यहां दूर दूर से लोग अपनी मुरादें लेकर आते हैं, और भगवान शिव जी अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते। यहां मंदिर में चढ़ाई गई हजारों घंटियां इस बात का प्रमाण हैं कि यहां बाबा की शरण में आने वाले भक्तों का कल्याण हुआ है।
महाशिवरात्रि में विशेष पूजा का आयोजन
महाशिवरात्रि पर यहां का नजारा अद्भुत होता है। इस अवसर पर यहां विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।
पौराणिक कथा (Mythology of Tarkeshwar Temple)
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तारकेश्वर महादेव मंदिर पौड़ी गढ़वाल |
वैसे तो देवभूमि उत्तराखंड के पावन भूमि पर ढेर सारे पावन मंदिर और स्थल हैं। पर बलूत और देवदार के वनों से घिरा हुआ जिसे शिव की तपस्थली भी कहा जाता है, 'ताड़केश्वर' (Tarkeshwar) भगवान शिव का मंदिर। इस मंदिर के पीछे, पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बेहद रोचक कहानी है।
ताड़कासुर नाम का एक राक्षस था, जिसने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। भगवान शिव ताड़कासुर की तपस्या से प्रसन्न हुये और उसे वरदान मांगने के लिए कहा। वरदान के रूप में ताड़कासुर ने अमरता का वरदान मांगा परन्तु भगवान शिव ने अमरता का वरदान नहीं दिया और कहा यह प्रकृति के विरुद्ध है, कुछ और वर मांगो। तब ताड़कासुर ने भगवान शिव के वैराग्य रूप को देखते हुए, कहा कि अगर मेरी मृत्यु हो तो सिर्फ आपके पुत्र द्वारा ही हो। ताड़कासुर जानता था, कि भगवान शिव एक वैराग्य जीवन व्यतीत कर रहे है, इसलिए पुत्र का होना असंभव था। तब भगवान शिव ने ताड़कासुर को वरदान दे दिया। वरदान मिलते ही ताड़कासुर ने अपना आतंक फैला दिया। शिवजी से वरदान पाकर ताड़कासुर अत्याचारी हो गया। परेशान होकर देवताओं और ऋषियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की और ताड़कासुर का अंत करने के लिए कहा।
कई वर्षो के अन्तराल बाद माता पार्वती ने भगवान शिव से विवाह हेतु तप किया और अपने शक्ति रूप को जानने के बाद भगवान शिव से विवाह किया। विवाह के बाद माता पार्वती ने कार्तिक को जन्म दिया। भगवान शिव के आदेश पर कार्तिकेय ताड़कासुर से युद्ध करते हैं। जब ताड़कासुर अपनी अन्तिम सांसे ले रहा था, तब अपना अंत नजदीक जानकर ताड़कासुर भगवान शिव से क्षमा मांगता है। भोलेनाथ ताड़कासुर को क्षमा कर देते हैं और वरदान देते हैं कि कलयुग में इस स्थान पर तुम्हारे नाम से मेरी पूजा होगी, इसलिए असुरराज ताड़कासुर के नाम से यहां भगवान शिव 'ताड़केश्वर महादेव' कहलाते हैं।
कई युगों पहले ताड़केश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग मौजूद था, लेकिन अब भगवान शिव की मूर्ति मौजूद है जिसकी पूजा होती है। भगवान शिव की मूर्ति उसी जगह है, जहां पर कभी शिवलिंग मौजूद था।
ताड़केश्वर महादेव मंदिर कैसे पहुँचे (How to reach Tarkeshwar Mahadev Temple)
सड़क मार्ग से : लैंसडाउन कई शहरों से जुड़ा हुआ है। जहाँ से निजी और सरकारी बसें कोटद्वार (kotdwar) तक जाती रहती हैं, कोटद्वार से लैंसडाउन करीब 40 कि॰मी॰ की दूरी पर है। लैंसडाउन से ताड़केश्वर महादेव मंदिर (Tarkeshwar Mahadev Temple) 37 कि॰मी की दूरी पर है।
रेलवे से: नजदीकी रेलवे स्टेशन कोटद्वार स्टेशन है। वहाँ से फिर टैक्सी या सरकारी बस आदि से ताड़केश्वर महादेव मंदिर पहुँचा जा सकता है।
हवाई अड्डा : यहाँ का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्राँट एयरपोर्ट है, जो लैंसडाउन (lansdowne) से करीब 152 कि॰मी॰ की दूरी पर है।
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