उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं कुन्ती वर्मा Famous Women of Uttarakhand Kunti Verma

 कुन्ती वर्मा : स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी। जन्म 1906-1980 अल्मोड़ा नगर।

उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं  कुन्ती वर्मा  Famous Women of Uttarakhand Kunti Verma 

कुन्ती वर्मा

1906 अल्मोड़ा खास में जन्मी, प्रखर संग्रामी, संकल्प, शक्ति, त्याग, देश सेवा और भक्ति की बेमिसाल शख्सियत। 13 वर्ष की आयु में श्री गाँगीलाल वर्मा से प्रणय सूत्र में बंधी, जिनका असमय निधन हो गया। तब तक कुन्ती देवी 2 पुत्रों और पुत्रियों की माँ बन चुकी थीं। 

अप्रत्यक्ष रूप से इन्होंने महिलाओं को राष्ट्रीय आन्दोलन में जोड़ना शुरू कर दिया था। चरखा चलाना और खादी पहनना शुरू कर दिया। 1930 में इन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरोध में दुर्गा देवी पन्त, पार्वती देवी पन्त, भक्ति देवी त्रिवेदी, बिसनी देवी साह, बच्ची देवी पाण्डे, तुलसी देवी रावत आदि के नेतृत्व में 100 से अधिक महिलाओं का संगठन गठित किया। दूसरी तरफ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने नगर पालिका भवन, अल्मोड़ा पर तिरंगा झण्डा फहराने का कार्यक्रम बनाया। विक्टर मोहन जोशी, शान्ति लाल त्रिवेदी आदि इसके अगुवा थे। अल्मोड़ा में घर-घर में यह चर्चा का विषय बन गया। कुन्ती देवी ने अपने साथ मंगला वर्मा, भागीरथी वर्मा, जीवन्ती देवी व रेवती वर्मा को साथ लिया और नगर पालिका भवन पर झंडा फहरा दिया।

 ब्रिटिश सरकार के लिए यह एक चुनौती बन गई। इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 3 महीने की सजा हो गई। रिहाई के बाद ये नैनीताल में बिमला देवी, भागीरथी देवी, पदमा देवी जोशी, सावित्री देवी वर्मा, जानकी देवी आदि अन्य महिलाओं को साथ लेकर स्वाधीनता आन्दोलन में जुट गयीं। 

1932 में विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार और धरना देने के आरोप में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 6 माह की सजा और 50 रु. जुर्माना किया गया। 9 नवम्बर, 1932 को हल्द्वानी में आयोजित कांग्रेस की एक सभा में इन्हें मुख्य महिला कार्यकर्ता चुना गया। भागीरथी देवी के साथ हल्द्वानी, कालाढूंगी व कोटाबाग में राष्ट्रीय भावना जागृत की। पाटकोट में चन्द्रावती देवी, भवानी देवी, सरस्वती देवी आदि को लेकर डौन पेखा ओखलढुंगा, तल्ली सेठी, बेतालघाट, सिमलखा व मझेड़ा की पद यात्राएं कीं। नैनीताल में राज्य सचिवालय और राजभवन को घेरने के आरोप में इन्हें 6 माह की कठोर सजा सुनाई गई। 

1942 के आन्दोलन की जो रिपोर्ट उलटैन हेम ने ब्रिटेन में प्रस्तुत की थी उसमें कुन्ती वर्मा का भी विशेष उल्लेख था। अडिग, साहसी, संकल्प की धनी, देशभक्त श्रीमती कुन्ती देवी वर्मा का 1980 में निधन हो गया।

झन्डा सत्याग्रह ( 1930 ) के दौरान पुलिस संघर्ष होने के कारण मोहन जोशी और शांति लाल के घायल होने के बाद श्रीमती कुंती देवी वर्मा, मंगला देवी, भागीरथी, जीवंती देवी ठकुरानी आदि महिलाओं का जत्था अल्मोड़ा नगरपालिका भवन पर तिरंगा फहराने के लिए प्रयत्नशील था. अतः हथियार बंद युवकों के साथ चल रही महिलाओं ने तिरंगा फहरा कर, जन संघर्ष का आह्वान किया
उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं  कुन्ती वर्मा  Famous Women of Uttarakhand Kunti Verma 

राजनैतिक क्षेत्र में महिलाओं की इस प्रथम सफलता के साथ ही नैनीताल में भी महिलाओं ने नमक सत्याग्रह में पुलिस उत्पीड़न के प्रहार सहन किये. नैनीताल में महिलाओं ने जानकी देवी, भागीरथी देवी, विमला देवी, पद्मा जोशी और शकुन्तला आदि संभ्रांत महिलाओं ने कुमाऊं क्षेत्र में अभूतपूर्व जागृति लाने का प्रयत्न किया. कुमाऊं में महिला संगठन के कार्यों पर प्रकाश डालते हुए अखबार ‘स्वाधीन प्रजा’ ( अल्मोड़ा ) ने ( 28 जनवरी 1931 ) लिखा कि सन 1931 में बागेश्वर में संपन्न महिला सम्मेलन में महिलाओं के सर्वांगीण विकास की आवश्यकता पर बल दिया गया.

इस अवसर पर महिलाओं ने विदेशी वस्त्रों की होली जला कर खादी को अपनाया. खादी की लोकप्रिय बनाने के लिए उन्होंने पद यात्राएं की. पर्वतीय महिलाओं ने अपने कार्यक्रमों को राजनीतिक विषयों पर ही केन्द्रित न करके सामाजिक सुधार कार्यक्रम को भी प्रमुखता के साथ अपनाया. फलस्वरूप सन 1932 में कुमाऊं सुधार आन्दोलन में महिलाओं ने बड़ी संख्या में भाग लेकर छूवा-छूत व प्रचलित वर्ण व्यवस्था का विरोध किया. साथ ही जनता से इसे त्याग कर नैतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ते रहने का आह्वान किया था.
उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं  कुन्ती वर्मा  Famous Women of Uttarakhand Kunti Verma 

‘ रेमोती घसियारी रेमोती मालू न काटा’

इसी तरह बेगार के कष्टों पर महिलाओं के उत्पीड़न पर टिप्पणी करते हुए गढ़वाल मासिक ( 1907 ) ने लिखा था कि ‘ अहा यह कैसी आफत है. अपनी बारी पूरी करने के लिए किसको भेजें. इधर प्रधान धमकाता है, उधर चमासी आँखे दिखाता है.’ अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि हमारे कुमाऊं प्रदेश में ऐसी दुखनी-विधवा औरतें भी बेगार में पकड़ी जाती हैं. अंग्रेजी राज के लिये इससे अधिक लज्जाजनक और क्या बात हो सकती है, जहां औरतों के ऊपर भी ऐसा अत्याचार होता है. यद्यपि आंग्ल सत्ता के इस उत्पीड़न के बाद भी महिलायें आन्दोलन के लिए उद्वेलित नहीं हो सकी, तथापि उनमें जागरण के स्वर उभरने लगे थे.

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