बसंती बिष्ट से पहले उत्तराखंड में जागर (Jagar in Uttarakhand before Basanti Bisht)
बसंती बिष्ट से पहले उत्तराखंड में जागर
बसंती बिष्ट से पहले उत्तराखंड में जागर को पुरुषों का गायन माना जाता रहा था, जिसमें मुख्य गायक पुरुष होता था और अगर कोई महिला इसे गाती थी तो सिर्फ जागर में साथ देने के लिए। जब बसंती बिष्ट ने जागर गाना शुरू किया तो लोगों ने इसका खूब विरोध भी किया लेकिन जैसे-जैसे वह प्रसिद्ध होती गईं, लोग उनको स्वीकारते-सराहते गए। आज वह सिर्फ जागर ही नहीं, मांगल, पांडवानी, न्यौली आदि दूसरे पारंपरिक गीत भी गाती हैं। जिस उम्र में घरेलू महिलाएं खुद को घर की दहलीज तक समेट लेती हैं, उस उम्र में बसंती बिष्ट ने तमाम वर्जनाएं तोड़कर हारमोनियम थाम लिया। एक वक्त में जब उत्तराखण्ड आन्दोलन फूटा तो मुजफ्फरनगर, खटीमा और मसूरी गोलीकांड की पीड़ा बसंती बिष्ट गीतों में गूंजने लगी। वह स्वयं उस आंदोलन में कूद पड़ीं। अपने लिखे गीतों के माध्यम से वह लोगों से राज्य आंदोलन को सशक्त करने का आह्वान करने लगीं। घूम-घूमकर आंदोलन के मंचों पर गीत गाने लगीं। इससे उन्हें मंच पर खड़े होने का हौसला मिला।
Famous Women of Uttarakhand Smt. Basanti Bisht |
चालीस वर्ष की आयु में पहली बार वह देहरादून के परेड ग्राउंड में गढ़वाल सभा के मंच पर जागर की एकल प्रस्तुति के लिए पहुंचीं। अपनी मखमली आवाज में जैसे ही उन्होंने मां नंदा का आह्वान किया, पूरा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। दर्शकों को तालियों ने उन्हें जो ऊर्जा और उत्साह दिया, वह आज भी बना हुा है। उन्हें खुशी है कि उत्तराखंड के लोक संगीत को राष्ट्रीय स्तर पर सराहा जा रहा है। बंसती बिष्ट की पहचान सिर्फ पारंपरिक वाद्य यंत्र डौंर बजाने और भगवती के जागर तक ही नहीं है, बल्कि उत्तराखंड आंदोलन के दौरान उनके लिखे गीत आज भी गाए जाते हैं। सिर्फ पांचवीं क्लास तक पढ़ी बसंती बिष्ट उस गांव की रहने वाली हैं, जहां बारह साल में निकलने वाली नंदा देवी की धार्मिक यात्रा का अंतिम पड़ाव होता है।
चमोली जिले के बधाण इलाके को नंदा देवी का ससुराल माना जाता है। इसलिये यहां के लोग नंदा देवी के स्तुति गीत, पांडवाणी और जागर खूब गाते हैं। यहां के लोगों का मानना है कि नंदा देवी उत्तराखंड की देवी ही नहीं बल्कि बेटी भी हैं। जब वह अपने मायके आती हैं तो उनके सम्मान में गीत, जागर गाए जाते हैं। ये चलन पीढ़ियों से चल रहा है। बसंती बिष्ट की उन्नीस साल की उम्र में ही शादी हो गई थी। उनके पति रंजीत सिंह सेना में थे। उनके साथ-साथ वह भी कई शहरों में जाती-आती रहीं। एक बार पति की पोस्टिंग जालंधर में हुई। पड़ोस में चुतुर्थ श्रेणी कर्मचारी एक तमिल महिला रहती थीं। वह अपनी लोक संस्कृति से जुड़े गाने गाती थीं। जिस घर में वह काम करती थीं वहां के बच्चों को भी गाना सीखाती थीं। यह देख बसंती बिष्ट ने सोचा कि वह भी अपनी लोक संस्कृति के गीतों को गा-सिखा सकती हैं। उन्होंने पति से बात की। पति से अनुमति मिलने के बाद उन्होंने चंडीगढ़ के प्राचीन कला केन्द्र से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली ताकि वह गायन ठीक से सीख सकें।
संगीत की शिक्षा हासिल करने के बाद उनका सारा ध्यान अपने बड़े हो रहे बच्चों पर गया। तब तक पति सेना से रिटायर होने के बाद देहरादून आकर रहने लगे थे। सन् 1997 में वह ल्वॉणी की ग्राम प्रधान चुन ली गईं। उत्तराखंड की पहली महिला ग्राम प्रधान बनीं। उसके कुछ समय बाद ही अलग उत्तराखंड राज्य की मांग जोर पकड़ने लगी थी। बाद में एक दिन उन्होंने तय किया कि मां नंदा देवी के जागर गाना शुरू करेंगी, जिसे बचपन से सुनती आ रही हैं। हालांकि नंदा देवी की जागर कहीं भी लिखी हुई नहीं हैं और लोग एक पीढ़ी से सुनकर दूसरी पीढ़ी को सुनाते आ रहे हैं। इस जागर में ‘मां नंदा देवी’ की कहानी को गाकर सुनाया जाता है। बसंती देवी ने सबसे पहले जागर के उच्चारण में जो कमियां थीं उनको सुधारना शुरू किया। इसके बाद ‘मां नंदा देवी’ के जागर को किताब की शक्ल में पिरोया और उसे अपनी आवाज में गाया। उन्होने इस किताब को नाम दिया ‘नंदा के जागर सुफल ह्वे जाया तुमारी जातरा’। इस किताब के साथ उन्होने नंदा देवी की स्तुति को अपनी आवाज में गाकर एक सीडी भी तैयार की जो किताब के साथ ही मिलती है।
बंसती बिष्ट और माँ नंदा का सम्बन्ध
बसंती बिष्ट उत्तराखंड के चमोली जिले के ल्वॉणी गांव की रहने वाली हैं। पांचवीं क्लास तक पढ़ाई करने वाली बसंती बिष्ट उस गांव की रहने वाली हैं जहां बारह साल में निकलने वाली नंदा देवी की धार्मिक यात्रा का अंतिम पढ़ाव होता है। कहते हैं कि ये एशिया की सबसे लंबी पैदल यात्रा होती है।
चमोली जिले के बधाण इलाके को नंदा देवी का ससुराल माना जाता है। इसलिये यहां के लोग नंदा देवी के स्तुति गीत, पांडवाणी और जागर खूब गाते हैं। यहां के लोगों का मानना है कि नंदा देवी उत्तराखंड की देवी ही नहीं बल्कि बेटी भी हैं। इस कारण जब वो हर 12 साल बाद अपने मायके आती हैं तो उनका पूरे सम्मान के साथ आदर किया जाता है और उनके आगमन और विदाई पर अनेक गीत और जागर गाये जाते हैं। ये चलन पीढ़ियों से चल रहा है।
माँ ने सिखाया जागर और स्तुति गीत
बसंती बिष्ट को जागर की शुरूआती शिक्षा अपनी मां बिरमा देवी से मिली और वो उनको ही अपना गुरू मानती हैं। बिरमा देवी खुद बहुत अच्छा जागर गाती थीं। बसंती बिष्ट ने एक बार बताया था कि मैंने बचपन से ही अपनी मां को नंदा देवी के स्तुति गीत और जागर गाते हुए सुना था। इस वजह से वो सब मुझे भी याद हो गया। लेकिन मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं इसे इस तरह से आगे ले जा पाऊंगी।
बसंती बिष्ट कहती हैं कि जागर एक ऐसी विधा है, जिसे कम से कम वाद्ययंत्रों के साथ गाया जाता है। इसमें डौंर (डमरू), थाली, हुड़का जैसे वाद्ययंत्र इस्तेमाल होते हैं। जागर गाते समय डौंर को वह खुद बजाती हैं। ये परंपरा आगे भी बनी रहे, इसके लिये वह अन्य महिलाओं को भी जागर सीखाती हैं। पिछले 20 सालों से बसंती बिष्ट ‘मां नंदा देवी’ के जागर को पारम्परिक पोशाक में ही गाती हैं। इसके लिए वह स्तुति के समय ‘पाखुला’ भी पहनती हैं। ‘पाखुला’ एक काला कंबल होता है जिसे पहनने में लोगों को झिझक महसूस होती थी, लेकिन वह इसे बड़े सम्मान के साथ धारण कर लेती हैं।
ल्वाणी देवाल, चमोली (उत्तराखंड) की रहने वाली मशहूर जागर गायिका पद्मश्री बसंती बिष्ट एक बार फिर गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों आज सम्मानित हो रही हैं। यह सम्मान पाने वाली वह उत्तराखंड की एकमात्र शख्सियत हैं। इससे पहले भारत सरकार ने उन्हें 26 जनवरी 2017 को लोक संस्कृति के प्रचार-प्रसार और संवर्द्धन में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री से विभूषित किया था। वह जागर गायन से उत्तराखंड की लोक संस्कृति को दुनिया भर के मंचों पर मुखर कर चुकी हैं। वह बताती हैं कि उत्तराखंड के गांवों और पहाड़ों पर महिलाओं के मंच पर जागर गाने की परंपरा नहीं थी।
Famous Women of Uttarakhand Smt. Basanti Bisht |
बसंती बिष्ट ने जागर को स्वरचित पुस्तक ‘नंदा के जागर- सुफल ह्वे जाया तुम्हारी जात्रा’ में संजोया है। लोक गायन के लिए मां बिरमा देवी ने तो उन्हें सिखाया था लेकिन बाकी कहीं से कोई प्रोत्साहन नहीं मिला। वह गीत-संगीत में तो रुचि लेती थीं लेकिन मंच पर जाकर गाने की उनकी हसरत सामाजिक वर्जनाओं के चलते पूरी नहीं हो पाती थीं। शादी के बाद उनके पति रणजीत सिंह ने उन्हें प्रोत्साहित तो किया लेकिन समाज इतनी जल्दी बदलाव के लिए तैयार नहीं था। इसी बीच करीब 32 वर्ष की आयु में वह अपने पति के साथ पंजाब चली गईं। पति ने उन्हें गुनगुनाते हुए सुना तो विधिवत रूप से सीखने की सलाह दी। पहले तो वह गायन के लिए तैयार नहीं हुईं लेकिन पति के जोर देने पर उन्होंने सीखने का फैसला किया। हारमोनियम संभाला और विधिवत अभ्यास करने लगीं।
जागर का मतलब होता है जगाना। उत्तराखण्ड तथा नेपाल के पश्चिमी क्षेत्रों में कुछ ग्राम देवताओं की पूजा कि जाती है, जैसे गंगनाथ, गोलु, भनरीया, काल्सण आदि। देवताओं को स्थानीय भाषा में 'ग्राम देवता' कहा जाता है। ग्राम देवता का अर्थ गांव का देवता है। अत: उत्तराखण्ड और डोटी के लोग देवताओं को जगाने के लिए जागर लगाते, गाते हैं। जागर मन्दिर अथवा घर में कहीं भी किया जाता है। जागर "बाइसी" तथा "चौरास" दो प्रकार के होते हैं। बाइसी बाईस दिनों तक जागर किया जाता है। कहीं-कहीं दो दिन का जागर को भी बाईसी कहा जाता है। चौरास मुख्यतया चौदह दिन तक चलता है। पर कहीं-कहीं चौरास को चार दिनों में ही समाप्त किया जाता है।
- कुमाऊं के अल्मोड़ा में पहली बार बिशनी देवी ने ही तिरंगा फहराया था.(For the first time in Almora, Kumaon, Bishni Devi hoisted the tricolor.)
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं राधा बहन(Famous Women of Uttarakhand Radha Sister)
- Chandraprabha Aitwal (चंद्रप्रभा एटवाल)
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं चंद्रप्रभा एटवाल (Famous women of Uttarakhand Chandraprabha Aitwal)
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं डॉ० हर्षवन्ती बिष्ट Famous women of Uttarakhand Dr. Harshwanti Bisht
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं बछेन्द्रीपाल Famous Women of Uttarakhand Bachendripal
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं श्रीमती बसंती बिष्ट Famous Women of Uttarakhand Smt. Basanti Bisht
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं(Famous Women of Uttarakhand)
- पहाड़ी नारी उत्तराखण्डी धरोहर की रीढ़(Pahari woman backbone of Uttarakhandi heritage)
- रानी कर्णावती की कहानी और इतिहास...(Story and History of Rani Karnavati)
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं टिंचरी माई Famous Women of Uttarakhand Tinchri Mai
- गढ़वाल-कुमाऊं की सेठाणी जसुली शौक्याणी, (garhwal-kumaon key sethani jasuli shaukyani,)
- तिलोत्तमा देवी उर्फ़ तीलू रौतेली
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं मधुमिता बिष्ट – बैडमिंटन (Famous Women of Uttarakhand Madhumita Bisht – Badminton)
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं माधुरी बर्थवाल(Famous Women of Uttarakhand Madhuri Barthwal)
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं हंसा मनराल शर्मा /Famous Women of Uttarakhand "Hansa Manral Sharma"
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं मानसी जोशी (बैडमिंटन खिलाड़ी) का जीवन परिचय(Famous Women of Uttarakhand "Biography of Mansi Joshi (Badminton Player)")
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं गौरा देवी (Famous Women of Uttarakhand Gaura Devi)
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं "रानी कर्णावती (नक्कटी रानी) कथा या कहानी" Famous Women of Uttarakhand "Rani Karnavati (Nakkati Rani) Katha or Story"
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं भारतीय महिला क्रिकेटर एकता बिष्ट / Famous women of Uttarakhand Indian female cricketer Ekta Bisht
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं स्नेह राणा एक भारतीय महिला क्रिकेट / Famous women of Uttarakhand Sneh Rana an Indian women's cricket
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं आइरिन पन्त Famous women of Uttarakhand Irene Pant
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं विमला देवी Famous Women of Uttarakhand Vimla Devi
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं कुन्ती वर्मा Famous Women of Uttarakhand Kunti Verma
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं जीवंती देवीFamous Women of Uttarakhand Jivanti Devi
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं सरला बहन Famous Women of Uttarakhand Sarla Behn
- बसंती बिष्ट से पहले उत्तराखंड में जागर (Jagar in Uttarakhand before Basanti Bisht)
- गढ़वाल की महारानी कर्णावती जिसका पराक्रम देख डर जाते थे दुश्मन (Maharani Karnavati of Garhwal, whose enemies were afraid to see whose might)
- इतिहास के भूले बिसरे पन्नों से रानी कत्युरी की कहानी। (The story of Rani Katyuri from the forgotten pages of history.)
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं जियारानी Famous Women of Uttarakhand Jiyarani
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं रानी कर्णावती Famous Women of Uttarakhand Rani Karnavati
- उत्तराखण्ड के नशामुक्ति आन्दोलन की पुरोधा: टिंचरी माई (uttarakhand ke nashamukti andolan ki purodha: tinchery mai)
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं जसुली शौक्याण Famous women of Uttarakhand Jasuli Shaukyaan
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं तीलू रौतेली (Famous Women of Uttarakhand Teelu Rauteli )
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं गौरा देवी Famous Women of Uttarakhand Gaura Devi
- श्रीमती कलावती देवी रावत" की प्रेरक कहानी ' Inspiring story of famous women of Uttarakhand "Smt. Kalawati Devi Rawat"
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं "कबूतरी देवी" Famous Women of Uttarakhand "Kabutari Devi"
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें