उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं चंद्रप्रभा एटवाल (Famous women of Uttarakhand Chandraprabha Aitwal)
Chandraprabha Aitwal (चंद्रप्रभा एटवाल)
चन्द्रप्रभा एतवाल: विश्व प्रसिद्ध पर्वतारोही नंदादेवी अभियान की 1993 में नेशनल एडवेंचर अवार्ड और वर्ष 2010 में तेनजिंग नोर्ग अॅवार्ड से सम्मानित किया गया है।चन्द्रप्रभा एतवाल को 1981 में सफलता के लिए अर्जुन पुरस्कार, 1990 में पदमश्री से सम्मानित किया था।
Famous women of Uttarakhand Chandraprabha Aitwal |
उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं चन्द्रप्रभा एतवाल चंद्रप्रभा एतवाल प्रेरणादायक कहानी
Famous women of Uttarakhand Chandra Prabha Etwal
संघर्ष में भी नहीं मानी हार, 68 की उम्र में हिमालय जीत पाई सफलता
हिमाल्या की तलहटी के नैसर्गिक सौंदर्या से परिपूर्ण पावन धरती की गोद मे बसा एव नेपाल टीबिट की सीमा से संलग्न जनपद पीथौरागढ़ का धारचूला शेत्र विशाल प्राकृतिक संपदाओ का गढ़ है। इसी कस्बे में 24 डिसेंबर 1941 को श्री. डी. एस. एतवाल के घर चंद्रप्रभा ने जानम लिया था। इनकी माता का नाम श्रीमती पदी देवी एतवल था, जिन्होने बाल्यकाल से ही उच्चकोटि के साहसिक कार्यो को करने की प्रेरणा दी. पिथौरागड़ से 96 कि॰मी॰ की दूरी पर बसे दुर्गम पिछड़े शेत्र में उस समय न सड़क थी और न ही आवागमन के कोई विशेष साधन थे। पैदल ही एक जगह से दूसरी जगह यात्रा करनी पड़ती थी। चंद्रप्रभा के पिता कृषि कार्य कर अपने परिवार का पालन पोषण किया करते थे। अधिक शिक्षित और ग़रीब होने के बावजूद उन्होने अपने बच्चो को विद्यालए बेजा. चंद्रप्रभा ने अपनी प्रत्मिक शिक्षा चानग्रू से सन् 1954 में पूर्ण की. वे फिर रा.इ. कॉलेज में पढ़ी. सन् 1959 में हाइ स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की. कठिन पहाड़ी रास्ते से घंटो पैदल चलना, समय पर विश्वविद्यालय पहुँचना, विद्यालय के बाद घर पर माता के कार्यो में हाथ बाँटना उनकी रोज की दिनचार्यो का अंग था। उनमे बचपन में ही चीते जैसी फुर्ती थी। विद्यालय में वो अपने पुरुष सहपाठियों से किसी भी कार्य में पीछे नही रहती थी। हाईस्कूल की परीक्षा के उपरांत आपने इंटर्मीडियेट मे राजकीय बालिका इंटरकॉलेज नैनीताल में प्रवेश लिया। यही से आपका खेल जीवन शुरू हुआ। विद्यालय स्तर में दौडकद, भाला, गोला, डिस्कस फेंकने आदि खेलो में भाग लेकर अपने उल्लेखनीय उपलब्धिया हासिल की. तदुपरांत सन् 1963 में अपने राजकीय स्नातकोत्तर महविश्वविध्यलय नैनीताल से बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की. सन् 1964 में आपने आई.टी.आई अल्मोड़ा से सिलाई-कड़ाई में डिप्लोमा प्राप्त किया। फिर उन्होने सी.पी.एड की परीक्षा इल्लाहबाद से की और उसमे उत्तीर्ण हुई. परीक्षा के कुछ समय बाद आपको सहायक अध्यापिका के रूप में राजकीय इंटर कॉलेज पिथौरागढ़ में नियुक्ति मिल गयी। एक शिक्षिका का फर्ज़ आपने बखूबी निभाया. वे ग़रीब घर की छात्राओं को हमेशा शिक्षा हेतु प्रोत्साहित करती थी एवं अत्यंत ग़रीब बालिकाओ का शुल्क देकर पठन-पाठन सहायता भी करती थी। एतवल भली भांति जानती थी की पहाड़ की लड़की को शिक्षा प्राप्त करने में ग़रीबी सबसे बड़ी बाध थी। गढ़वाल क्षेत्र की परिस्थितिया भी कुमाऊँ के समान ही है। अशिक्षा का साम्राज्य पूरे उत्तरांचल में तब बहुत फैला था। स्कूल 10 से 30 कि॰मी॰ के डूती पर होते थे। सुश्री एतवल ने कुमाऊँ एवं गढ़वाल क्षेत्र के गावों में ब्राह्मण कर बालिकाओं को स्कूल भेजने का अभियान चलाया। इश्स अभियान के कारण उन्हे अपेयार लोकपतियता मिली. पहाड़ी परिवेश में पली बड़ी होने के कारण बच्चपन से ही आपकी पर्वतारोहण में बहुत रूचि थी। अत: शिक्षण कार्य करते हुए श्री एतवल ने बीच बीच में अनेकों पर्वतारोहण कोर्स भी पूरे किए साथ ही अनेक चोटियो पर भी आपने विजय प्राप्त की. सन् 1972 के जून में बेसिक पर्वतारोहण पाठ्यकर्म एवं सन् 1975 अग्रवर्ती पर्वतारोहण पाठ्यकर्म उत्तरकाशी से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया तथा 1976 में भारत स्काउट एवं गाइड कोर्स भी आपने उत्तरकाशी से उत्तीर्ण किया। फिर गढ़वाल विश्वविध्यलय से 1979 में अर्थशास्त्र में एम.ए. की उपाधि हासिल की. सन् 1979 फेब्रुवरी-मार्च में बेसिक स्कीइंग पाठ्यकर्म तथा सन् 1980 में इंटर्मीडियेट स्कीइंग कोर्स व्दित्य श्रेणी में उत्तीर्ण किया। पर्वतारोहण के इन कोर्सो को करने के दौरान आपने विभिन्न चोटियो पर चढ़ने में भी सफलता हासिल की. आपकी उत्कृष्ट सेवाओ को देख कर उ.प्र.
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उपलब्धिया
- सन् 1972 जून बेबी शिवलिंग चोटी उत्तरकाशी 18130 फीट पर विजय प्राप्त की.
- सन् 1975, जून बंदरपूंछ छोटी उत्तरकाशी 20720 फीट पर विजय प्राप्त की.
- सन् 1975 सितम्बर-अक्टूबर, केदार शेत्र 22410 फीट विजित.
- सन् 1976 मई-जून कामेट भारत जापानी अभियान 25447 फीट विजित.
- सन् 1977 अप्रैल-जून कमेट भारतीया महिला अभियान में 25447 फीट विजित.
- सन् 1979, अगस्त-सितंबर रत्तावन् 20320 फुट भारत न्यूजिलैंड 'क्लाइंब थे माउंटन डाउन थे रिवर' अभियान में शिकार विजेता रही.
- सन् 1981, अगस्त, नंदादेवी 25654 फीट, भारतीय मिश्रित दल अभियान भारतीय पर्वतारोहण संस्थान, नई दिल्ली के नेतृत्व में.
- सन 1981 चोन्द्कस (जापान) की चोटी का सफल आरोहण.
- सन 1981, चुरी-गी-सावा (जापान) नमक पर्वत शिखर पर विजय प्राप्त की.
- सन् 1981 तेतियाम (जापान) चोटी का सफल आरोहण.
- सन 1982 सितंबर-अक्टूबर 21890 फीट ऊँची गंगोत्री प्रतम नमक चोटी पर विजय प्राप्त की.
- सन् 1983, सितंबर-ओक्टूबर में 23860 फीट ऊँची माना पीक पर एवरेस्ट का चुनाव करते हुए सफल आरोहण किया।
- सन् 1984 के मार्च-अप्रैल माह में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के अभियान के दौरान आप 28750 फीट नही पहुँच पाई. आयेज का अभियान उन्हे मौसम की खराबी के वजह से रोकना पड़ा.
- सन् 1986 मार्च-अप्रैल में अड्वॅन्स्ड कोर्स सीखने के दौरान दिओ तिब्ब्त (20787 फीट) नामक छोटी पर विजय प्राप्त की.
- सन् 1988 में भागीरथी व्दितिय (21363 फीट) पर विजय प्राप्त की.
- सन् 1989, अगस्त-सितंबर में नन्दाकोत नामक शिखर पर विजय प्राप्त की.
- सन् 1990 अगस्त में विघ्रुपन्थ (22345 फीत) नमक शिकार पर विजय प्राप्त की.
- सन् 1992 में रुद्र्गैदा (19090 फीट) ऊँची चोटी पर विजय प्राप्त की.
- सन् 1993 मार्च में भारत-नेपाल महिला अभियान (नई दिल्ली) की सदस्य के रूप में एवरेस्ट (29028 फीट) की चोटी तक आरोहण किया।
- सन् 1998 के सितंबर-अक्टूबर माहो में सुदर्शन (21473 फीट) तक चढ़ने में सफलता हासिल की.
- सन् 1998, सितंबर-अक्टूबर में ही चले एक दूसरे अभियान में आपने सेफ (20331 फीट) नामक चोटी पर 57 वर्ष की उम्र में विजय पताका फिराया.
- सन् 1999 अगस्त में जोगिन 1&3 (20548 फीट) नामक छोटिया विजित की. न केवल पर्वतारोहण के श्रेत्र में ही सुश्री एतवल ने अपनी उपलब्धियों के झंडे गाड़े बल्कि अगस्त-अक्टूबर 1979 में अलकनंदा और गंगा नदी में रुद्रप्रयोग से हरिव्दार तक, सन् 1984 में अलकनंदा नदी में ही भारत अमरीका अभियान दल के साथ नन्द्प्रयग से देवप्रयाग तक एवं पुन: इसी वर्ष भागीरथी एवं गंगा नदी में इसी अभियान दल के साथ आपने देवप्रयोग से हरिव्दार तक रिवर राफ्टिंग कर उल्लेखनीय उप्लब्धियां हासिल की. आपने विभिन्न देशो में ट्रेकिंग में कही अभियानो में भाग लिया था।
चंद्रप्रभा एतवाल प्रेरणादायक कहानी
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चंद्रप्रभा एतवाल inspirational story: संघर्ष में भी नहीं मानी हार, अड़सठ की उम्र में हिमालय जीत पाई सफलता
किसी ने सच ही कहा है, हिम्मत और मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती। जिंदगी में सच्ची सफलता (success) संघर्ष के बाद ही मिलती है। कुछ लोग अपने संघर्ष से सफलता की ऐसी कहानी लिख देते हैं जो दूसरों के लिए एक प्रेरणा (inspiration) का स्त्रोत बन जाती है। कुछ ऐसा ही किया है चंद्रप्रभा एतवाल ने, जिन्होने अड़सठ की उम्र में हिमालय जीत कर दूसरों के लिए एक मिसाल पेश की है।
चंद्रप्रभा एतवाल का जन्म उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के धारचूला गांव में 24 दिसम्बर 1941 को हुआ था। एक किसान परिवार में जन्मी चंद्रप्रभा को ‘माउन्टेन गोट’ के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने 6133 M ऊंची चोटी श्रीकंठ पर भारतीय तिरंगा लहराया था चंद्रप्रभा ने अपनी स्कूली शिक्षा छान्गरू में ही पूरी की थी। जिसके बाद हाई स्कूल की परीक्षा पांगू से तथा इंटरमीडिएट रा. ई. कॉलेज नैनीताल से पास की। वह शुरुआत से ही खेल-कूद की ओर आकर्षित थीं। उन्होंने कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया था। 1963 में नैनीताल से अपने ग्रेजुएशन को पास करने के बाद उन्होने रा.ई. कॉलेज पिथोरागढ़ में शिक्षण देना शुरु कर दिया।
जिसके बाद चंद्रप्रभा ने पर्वतारोहण की ओर कदम बढ़ाया। सन 1975 में प्रथम श्रेणी में पास करके वे निरंतर पर्वतारोहण की ओर बढती रही. उनके साहसिक कार्यों को देख उत्तरप्रदेश सरकार ने विशेष अधिकारी के रूप में उन्हें नियुक्त किया। चन्द्रप्रभा एतवाल ने 28 बार हिमालय की दुर्लभ चोटियों पर चढ़ने का कारनामा किया है।
चंद्रप्रभा एतवाल ने अपने बुलंद हौसलों के साथ हिमालय की 6133 m ऊंची चोटी श्रीकंठ पर भारतीय तिरंगा लहरा कर, सभी के लिए एक मिसाल पेश की। चंद्रप्रभा के लिए ऐसा करना आसान नहीं था। इसे पूरा करने में उन्हें 40 के अनुभव की जरुरत पड़ी। उन्होंने 68 साल की उम्र में 6133 M ऊंची चोटी श्रीकंठ पर भारतीय तिरंगा लहराने का गौरव प्राप्त किया है।
चन्द्रप्रभा एतवाल को 1989-90 में पदमश्री सम्मान के साथ अर्जुन पुरस्कार, राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार जैसे कई पुरस्कारों से नव़ाजा गया है। पर्वतारोहण के साथ ही रिवर राफ्टिंग में भी उनका विशिष्ट योगदान रहा है।
चन्द्रप्रभा एतवाल की सफलती की कहानी सभी के लिए एक मोटिवेशन है। जो यह बताती है कि व्यक्ति अगर कुछ हासिल करना चाहें तो वो उसे किसी भी उम्र में हासिल कर सकता है। सफलता प्राप्त करने की कोई उम्र नहीं होती। यदि आप भी जिंदगी में कुछ अलग करना चाहतें है अपनी खुद की एक अलग पहचान बनाना चाहते हैं,
चंद्रप्रभा ऐतवाल को पद्म श्री कब मिला?
पर्वतारोहण के हुनर, हौसले व जानकारी पर ही भारत सरकार ने चंद्रप्रभा एतवाल को 1981 में अजरुन अवार्ड, 1990 में पद्मश्री, 1993 में जनजाति का रंगरती, 1994 में नेशनल एडवेंचर अवार्ड, 2002 में गढ़ गौरव, सिल्वर मेडल जैसे कई सम्मान मिले हैं।
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