उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं(Famous Women of Uttarakhand)
मुगलों की नाक काटने वाली रानी कर्णावती
भारतीय इतिहास में जब रानी कर्णावती का जिक्र आता है तो फिर मेवाड़ की उस रानी की चर्चा होती है जिसने मुगल बादशाह हुमांयूं के लिये राखी भेजी थी। इसलिए रानी कर्णावती का नाम रक्षाबंधन से अक्सर जोड़ दिया जाता है। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि इसके कई दशकों बाद भारत में एक और रानी कर्णावती हुई थी और यह गढ़वाल की रानी थी। इस रानी को मुगलों की नाक काटने के लिये जाना जाता है और इसलिए कुछ इतिहासकारों ने उनका जिक्र नाक कटी रानी या नाक काटने वाली रानी के रूप में किया है। रानी कर्णावती ने गढ़वाल में अपने नाबालिग बेटे पृथ्वीपतिशाह के बदले तब शासन का कार्य संभाला था जबकि दिल्ली में मुगल सम्राट शाहजहां का राज था। रानी कर्णावती वह पवांर वंश के राजा महिपतशाह की पत्नी थी। जब महिपतशाह की मृत्यु हुई तो उनके पुत्र पृथ्वीपतिशाह केवल सात साल के थे। राजगद्दी पर पृथ्वीपतिशाह ही बैठे लेकिन राजकाज उनकी मां रानी कर्णावती ने चलाया। इस दौरान जब मुगलों ने गढ़वाल पर आक्रमण किया तो रानी कर्णावती ने उन्हें छठी का दूध याद दिलाया था। गढ़वाल की सेना ने मुगल सेना को हरा दिया था। मुगल सैनिकों के हथियार छीन दिये गये थे और आखिर में उनके एक एक करके नाक काट दिये गये थे। कहा जाता है कि जिन सैनिकों की नाक काटी गयी उनमें सेनापति नजाबत खान भी शामिल था। विस्तार से पढ़ने के लिये क्लिक करें "मुगल सैनिकों की नाक काटने वाली गढ़वाल की रानी कर्णावती" ।
Famous Women of Uttarakhand Rani Karnavati |
- कुमाऊं के अल्मोड़ा में पहली बार बिशनी देवी ने ही तिरंगा फहराया था.(For the first time in Almora, Kumaon, Bishni Devi hoisted the tricolor.)
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं राधा बहन(Famous Women of Uttarakhand Radha Sister)
- Chandraprabha Aitwal (चंद्रप्रभा एटवाल)
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं चंद्रप्रभा एटवाल (Famous women of Uttarakhand Chandraprabha Aitwal)
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं डॉ० हर्षवन्ती बिष्ट Famous women of Uttarakhand Dr. Harshwanti Bisht
युवा वीरांगना तीलू रौतेली
केवल 15 वर्ष की उम्र में रणभूमि में कूद कर सात साल तक अपने दुश्मन राजाओं को छठी का दूध याद दिलाने वाली गढ़वाल की वीरांगना थी 'तीलू रौतेली'। इस महान वीरांगना का जन्म कब हुआ। इसको लेकर कोई तिथि स्पष्ट नहीं है। गढ़वाल में आठ अगस्त को उनकी जयंती मनायी जाती है और यह माना जाता है कि उनका जन्म आठ अगस्त 1661 को हुआ था। उस समय गढ़वाल में पृथ्वीशाह का राज था। इसके विपरीत जिस कैंत्यूरी राजा धाम शाही की सेना के साथ तीलू रौतेली ने युद्ध किया था उसने इससे पहले गढ़वाल के राजा मानशाह पर आक्रमण किया था जिसके कारण तीलू रौतेली को अपने पिता, भाईयों और मंगेतर की जान गंवानी पड़ी थी। तीलू रौतेली ने इसका बदला चुकता करने की ठानी और आखिर में वह इसमें सफल रही। इस वीरांगना ने केवल 22 साल की उम्र में प्राण त्याग दिये थे लेकिन इतिहास में वह अपना नाम हमेशा के लिये अजय अमर कर गयी। विस्तार से पढ़ने के लिये क्लिक करें "तीलू रौतेली ..वर्षों पहले बन गयी थी लक्ष्मीबाई" ।
उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं तीलू रौतेली |
उत्तराखंड के प्रसिद्ध कत्यूरी राजवंश का किस्सा
कत्यूरी राजवंश भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक मध्ययुगीन राजवंश था। इस राजवंश के बारे में माना जाता है कि वे अयोध्या के शालिवाहन शासक के वंशज थे और इसलिए वे सूर्यवंशी कहलाते थे। इनका कुमाऊँ क्षेत्र पर छठी से ग्यारहवीं सदी तक शासन था। कुछ इतिहासकार कत्यूरों को कुषाणों के वंशज मानते हैं।
बागेश्वर-बैजनाथ स्थित घाटी को भी कत्यूर घाटी कहा जाता है। कत्यूरी राजाओं ने ‘गिरिराज चक्रचूड़ामणि’ की उपाधि धारण की थी। उन्होंने अपने राज्य को ‘कूर्मांचल’ कहा, अर्थात ‘कूर्म की भूमि’। ‘कूर्म’ भगवान विष्णु का दूसरा अवतार था, जिस वजह से इस स्थान को इसका वर्तमान नाम ‘कुमाऊँ’ मिला।
कत्यूरी राजवंश उत्तराखंड का पहला ऐतिहासिक राजवंश माना गया है। कत्यूरी शैली में निर्मित द्वाराहाट, जागेश्वर, बैजनाथ आदि स्थानों के प्रसिद्ध मंदिर कत्यूरी राजाओं ने ही बनाए हैं। प्रीतम देव 47वें कत्यूरी राजा थे जिन्हें ‘पिथौराशाही’ नाम से भी जाना जाता है। इन्हीं के नाम पर वर्तमान पिथौरागढ़ जिले का नाम पड़ा।
माता जिया रानी कत्यूरी वंश की रानी थीं. उत्तराखंड में जिया रानी की गुफा के बारे में एक किवदंती काफी प्रचलित है. कत्यूरी राजा पृथ्वीपाल जिन्हें प्रीतमदेव नाम से भी जाना जाता था, की पत्नी रानी जिया रानीबाग में चित्रेश्वर महादेव के दर्शन करने आई थीं.
इतिहासकारों के अनुसार नंदा गढ़वाल के राजाओं के साथ कुमाऊं के कत्यूरी राजवंश की भी ईष्टï देवी थी, इस वजह से नंदा को राजराजेश्वरी भी कहा जाता है।
Famous Women of Uttarakhand Jiyarani |
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शराबबंदी की समर्थक टिंचरी माई
थलीसैंण के मंज्यूड़ गांव में 1917 को जन्मी दीपा नौटियाल ने बचपन में ही अपने माता पिता को गंवा दिया था। चाचा ने बचपन में ही उनकी शादी सेना के जवान से कर दी जो युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गया। तब दीपा की उम्र 19 साल की थी। वह संन्यासिन बनी और बाद में पहाड़ लौटकर यहां की कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाने लगी। उन्होंने पहाड़ में शराबबंदी के लिये आवाज उठायी। अंग्रेज अफसर से डरे बिना अपने गांव में टिंचरी यानि शराब की दुकान जला डाली। तभी से लोग उन्हें टिंचरी माई कहने लगे। उन्होंने अपना पूरा जीवन सामाजिक कार्यों में समर्पित कर दिया था। उन्हें इच्छागिरी माई के नाम से भी जाना जाता है। टिंचरी माई ने 19 जून 1992 को अंतिम सांस ली थी।
उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं टिंचरी माई |
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं टिंचरी माई Famous Women of Uttarakhand Tinchri Mai
- गढ़वाल-कुमाऊं की सेठाणी जसुली शौक्याणी, (garhwal-kumaon key sethani jasuli shaukyani,)
- तिलोत्तमा देवी उर्फ़ तीलू रौतेली
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं मधुमिता बिष्ट – बैडमिंटन (Famous Women of Uttarakhand Madhumita Bisht – Badminton)
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं माधुरी बर्थवाल(Famous Women of Uttarakhand Madhuri Barthwal)
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिशनी देवी शाह
देश के स्वतंत्रता संग्राम में उत्तराखंड की महिलाओं का भी अहम योगदान रहा और इनमें बिशनी देवी शाह प्रमुख हैं। उनका जन्म 12 अक्तूबर 1902 को बागेश्वर में हुआ था और वह किशोरावस्था से ही स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ी थी और देश के आजाद होने तक इसमें सक्रिय रही। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भी अहम भूमिका निभायी थी। स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े होने के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा। इस महान स्वतंत्रता सेनानी का वर्ष 1974 में 73 वर्ष की उम्र में निधन हुआ।
सुप्रसिद्ध लेखिका शिवानी
उत्तराखंड की प्रसिद्ध उपन्यासकार शिवानी उर्फ गौरा पंत का जन्म 17 अक्तूबर 1923 को हुआ था। उन्होेंने 12 साल की उम्र से लिखना शुरू किया और फिर 21 मार्च 2003 को अपने निधन तक लगातार लेखन से जुड़ी रही। उनकी लिखी कृतियों मे कृष्णकली, भैरवी, आमादेर शन्तिनिकेतन, विषकन्या चौदह फेरे, कृष्णकली, कालिंदी, अतिथि, पूतों वाली, चल खुसरों घर आपने, श्मशान चंपा, मायापुरी, कैंजा, गेंदा, भैरवी, स्वयंसिद्धा, विषकन्या, रति विलाप आदि प्रमुख हैं। हिंदी साहित्य जगत में शिवानी को ऐसी लेखिका के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने अपनी कृतियों में उत्तर भारत के कुमाऊं क्षेत्र के आसपास की लोक संस्कृति की झलक दिखायी और किरदारों का बहुत सुंदर तरीके से चरित्र चित्रण किया। हिंदी के अलावा उनकी संस्कृत, गुजराती, बंगाली, उर्दू तथा अंग्रेजी पर भी अच्छी पकड़ थी।
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- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं गौरा देवी (Famous Women of Uttarakhand Gaura Devi)
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं "रानी कर्णावती (नक्कटी रानी) कथा या कहानी" Famous Women of Uttarakhand "Rani Karnavati (Nakkati Rani) Katha or Story"
चिपको की प्रणेता : गौरा देवी
गौरा देवी विश्व प्रसिद्ध चिपको आन्दोलन की जननी रही हैं। उनका जन्म 1925 में हुआ था। वह पहाड़ में जंगलों की अंधाधुंध कटाई का विरोध करने के लिये गौरा देवी अपनी साथियों के साथ पेड़ों से चिपक गयी थी। तब पहाड़ों में वन निगम के माध्यम से ठेकेदारों को पेड़ काटने का ठेका दिया जाता था। गौरा देवी को जब पता चला कि पहाड़ों में पेड़ काटने के ठेके दिये जा रहे हैं तो उन्होंने अपने गांव में महिला मंगलदल का गठन किया। गौरा देवी कहा करती थी कि वन हमारे भगवान हैं इन पर हमारे परिवार और हमारे मवेशी पूर्ण रूप से निर्भर हैं। उनका विवाह 11 वर्ष में हो गया था और 22 साल की उम्र में उनके पति का निधन हो गया था। उन्होंने इसके बाद अपने बेटे की परवरिश करने के साथ अपना जीवन गांव और जंगल की रक्षा के लिये समर्पित कर दिया था। उन्हें 1986 में पहले वृक्ष मित्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। पेड़ों की रक्षा के लिये अपना जीवन समर्पित करने वाली गौरा देवी ने चार जुलाई 1991 को अंतिम सांस ली।
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं भारतीय महिला क्रिकेटर एकता बिष्ट / Famous women of Uttarakhand Indian female cricketer Ekta Bisht
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं स्नेह राणा एक भारतीय महिला क्रिकेट / Famous women of Uttarakhand Sneh Rana an Indian women's cricket
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं आइरिन पन्त Famous women of Uttarakhand Irene Pant
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं विमला देवी Famous Women of Uttarakhand Vimla Devi
जागर को नयी पहचान दी बसंती बिष्ट ने
उत्तराखंड में देवी देवताओं के स्तुति गान यानि जागर गायन का काम मुख्य रूप से पुरूष करते हैं लेकिन श्रीमती बसंती बिष्ट ने न सिर्फ इस विधा से जुड़ी बल्कि उन्होंने देश विदेश में जागर गायन को पहचान भी दिलायी। वह मां भगवती नंदा के जागरों के गायन के मशहूर हैं। अपनी मां से जागर गायन सीखने वाली बसंती देवी को भारत सरकार ने लोक संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिये वर्ष 2017 में पदमश्री से सम्मानित किया। वह उत्तराखंड आंदोलन से भी जुड़ी रही और इस बीच वह अपने गीतों के जरिये इस आंदोलन को मजबूती देती रही। बसंती बिष्ट ने नंदा देवी की जागरों की एक पुस्तक ‘नंदा के जागर- सुफल ह्वे जाया तुम्हारी जात्रा’ भी लिखी है।
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं कुन्ती वर्मा Famous Women of Uttarakhand Kunti Verma
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं जीवंती देवीFamous Women of Uttarakhand Jivanti Devi
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं सरला बहन Famous Women of Uttarakhand Sarla Behn
- बसंती बिष्ट से पहले उत्तराखंड में जागर (Jagar in Uttarakhand before Basanti Bisht)
- गढ़वाल की महारानी कर्णावती जिसका पराक्रम देख डर जाते थे दुश्मन (Maharani Karnavati of Garhwal, whose enemies were afraid to see whose might)
- इतिहास के भूले बिसरे पन्नों से रानी कत्युरी की कहानी। (The story of Rani Katyuri from the forgotten pages of history.)
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं जियारानी Famous Women of Uttarakhand Jiyarani
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं रानी कर्णावती Famous Women of Uttarakhand Rani Karnavati
भारत की पहली एवरेस्ट विजेता महिला बछेंद्री पाल
उत्तराखंड में साहसिक खेलों में अहम योगदान देने वाली महिलाओं की बात आती तो सुश्री चंद्रप्रभा ऐतवाल और फिर बछेंद्री पाल का नाम स्वाभाविक ही जुबान पर आ जाता है। ये दोनों ही पर्वतारोहण से जुड़ी थी। पिथौरागढ़ के धारचूला गांव में 24 दिसंबर 1941 को जन्मीं चंद्रप्रभा ने पर्वतारोहण की विभिन्न अभियानों की अगुवाई की और उन्हें पदमश्री और अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। बछेंद्री पाल ने पर्वतारोहण को नये आयाम तक पहुंचाया। 24 मई 1954 को उत्तरकाशी के नकुरी में जन्मी बछेंद्री पाल ने 23 मई 1984 को एवरेस्ट फतह किया था और ऐसा करने वाली वह भारत की पहली महिला पर्वतारोही बनी थी। उन्हें 1984 में पदमश्री और इसके दो साल बाद अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
उत्तराखंड की कई अन्य महिलाओं ने भी विभन्नि क्षेत्रों में विशिष्ट उपलब्धियां हासिल की। इनकी सूची काफी लंबी है जैसे कि उत्तराखंड की पहली महिला कुलपति प्रो. सुशीला डोभाल (1977 में पहली बार और 1984—85 में दूसरी बार गढ़वाल विश्वविद्यालय की कुलपति बनी थी), उत्तराखंड की पहली महिला आईएएस अधिकारी ज्योति राव पांडेय, भारत की पहली महिला मेजर जनरल माया टम्टा, बैडमिंटन में विशेष छाप छोड़ने वाली मधुमिता बिष्ट, भारतीय महिला क्रिकेट टीम की स्पिनर एकता बिष्ट आदि प्रमुख हैं। यहां पर कई नामों का जिक्र नहीं हो पाया। उम्मीद है कि घसेरी के पाठक टिप्पणी वाले कालम में इस कमी को पूरा करेंगे।
- उत्तराखण्ड के नशामुक्ति आन्दोलन की पुरोधा: टिंचरी माई (uttarakhand ke nashamukti andolan ki purodha: tinchery mai)
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं जसुली शौक्याण Famous women of Uttarakhand Jasuli Shaukyaan
- उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं तीलू रौतेली (Famous Women of Uttarakhand Teelu Rauteli )
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- श्रीमती कलावती देवी रावत" की प्रेरक कहानी ' Inspiring story of famous women of Uttarakhand "Smt. Kalawati Devi Rawat"
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