गढ़वाल-कुमाऊं की सेठाणी जसुली शौक्याणी, (garhwal-kumaon key sethani jasuli shaukyani,)

गढ़वाल-कुमाऊं की सेठाणी जसुली शौक्याणी, 

पिथौरागढ़। कुमाऊं की महान दानवीर महिला स्व.जसुली दताल (शौक्याणी) की धर्मशालाओं को पर्यटन हब के रूप में विकसित किया जाएगा। शासन ने कुमाऊं के सभी जिलों से जसुली दताल की बनाईं धर्मशालाओं की रिपोर्ट मांगी है। शासन की इस पहल से उपेक्षित पड़ीं 170 साल पुरानी धर्मशालाओं के संरक्षित होने की उम्मीद बढ़ गई है।
गढ़वाल-कुमाऊं की सेठाणी जसुली शौक्याणी

धारचूला के दांतू गांव की महान दानवीर महिला स्व. जसुली दताल (शौक्याणी) ने लगभग 170 साल पहले दारमा घाटी से लेकर भोटिया पड़ाव हल्द्वानी तक धर्मशालाओं का निर्माण किया था। इनमें से ज्यादातर धर्मशालाएं अब खंडहर हो चुकी हैं। जसुली देवी ने धर्मशालाओं का निर्माण पिथौरागढ़,अल्मोड़ा, धारचूला, टनकपुर, अल्मोड़ा और बागेश्वर सहित पूरे कुमाऊं के पैदल रास्तों पर करवाया था। इन धर्मशालाओं का वर्णन 19वीं सदी के आठवें दशक (1870) में अल्मोड़ा के तत्कालीन कमिश्नर शेरिंग के यात्रा वृतांत में भी मिलता है।

कौन थी जसुली देवी

स्थानीय जानकारों के अनुसार धारचूला से लेकर हल्द्वानी तक लगभग दो सौ धर्मशालाओं का निर्माण करवाने वाली इस दानवीर महिला के व्यापारी पति के पास अथाह धन था। यह दौलत महिला के पति ने बोरों में भरकर रखी थी। व्यापारी की असमय मौत के बाद जसुली देवी शौक्याणी ने दान स्वरूप इस धन को बहती नदी के जल में चढ़ाना शुरू कर दिया। कहा जाता है कि किसी व्यक्ति ने जसुली को इस धन का सदुपयोग विभिन्न पैदल मार्गों पर धर्मशालाएं बनवाकर करने की सलाह दी। इसके बाद इस महिला ने धर्मशालाओं का निर्माण करवाया। ये धर्मशालाएं उन मार्गों पर बनाई गईं, जिनसे भोटिया व्यापारी आवागमन किया करते थे। इसके अलावा, कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग पर भी उन्होंने धर्मशालाओं का निर्माण करवाया। निर्माण के लगभग डेढ़ सौ वर्षों तक इन धर्मशालाओं का उपयोग होता रहा। 1970 के आसपास सीमांत तक सड़क बनने के बाद ये धर्मशालाएं उपेक्षित हो गईं। अधिकांश धर्मशालाएं अब खंडहर हो चुकी हैं।
गढ़वाल-कुमाऊं की सेठाणी जसुली शौक्याणी

धर्मशालाओं के दिन बहुरने की उम्मीद

शौक्याणी के बनाए इन धर्मशालाओं के दिन अब बहुरने की उम्मीद है। शासन के रिपोर्ट मांगे जाने पर पिथौरागढ़ पर्यटन विभाग ने इनकी जानकारी एकत्र करनी शुरू कर दी है। पिथौरागढ़ जिले में शौक्याणी की बनवाईं नौ धर्मशालाएं हैं, जिसमें जिला मुख्यालय से करीब 21 किमी की दूरी पर स्थित सतगढ़ गांव की धर्मशाला की स्थिति कुछ ठीक है। यहां रं समुदाय के लोग और स्थानीय जगदीश चंद्र कापड़ी ऐतिहासिक धरोहर की साफ-सफाई कर संरक्षित करने का कार्य करते रहते हैं। इसके अलावा, चंडाक, धारापानी, अस्कोट, चौंदास, नाभीढांग, कुटी सहित कई अन्य स्थानों पर जसुली देवी सौक्याणी की धर्मशालाएं हैं। संवाद

कुमाऊं की दारमा घाटी में आज से दो सौ बर्ष पहले हुई थी अथाह धन सम्पदा की इकलौती मालकिन जसूली शौक्याण, कहते हैं सब कुछ ईश्वर देता नहीं- छिन गया पति अल्पायु में और इकलौते पुत्र ने भी असमय साथ छोड़ दिया, पहाड़ सी जिंदगी और हताश मन ने प्रण किया सब सम्पति बहा देगी धौलीगंगा में, कुमायूं कमिश्नर हैनरी रैम्जे को दुखी जसुली की बात पता चली, मुनस्यारी पहूंच समझाया जसूली को , पानी में न बहाये अकूत सम्पत्ति कर कुछ सतकाम धन से,  पुत्र के नाम बनवा दे धर्मशालाएं और रैनकुटिर, बात समझ सारा खजाना लदवाकर दे दिया हैनरी को, हैनरी ने उस खजाने से बनवाये गढ़वाल कुमाऊं से नेपाल तक तीर्थयात्रियों और व्यापारियों की सुविधा को धर्मशालाऐ , आज भी पहाड़ में जीर्ण अवस्था में उस नेकदिल की निशानियां!!

गढ़वाल-कुमाऊं की सेठाणी जसुली शौक्याणी

कोट

जसूली देवी सौक्याणी की बनवाई गईं धर्मशालाओं की जानकारी शासन से मांगी गई है। भविष्य में इन्हें संरक्षित करने और पर्यटन हब के रूप में विकसित करने को लेकर प्रस्ताव बनाए जाएंगे। पिथौरागढ़ में नौ धर्मशालाएं हैं इनकी जानकारी जुटाई जा रही है। - अमित लोहनी, जिला पर्यटन अधिकारी पिथौरागढ़।

सरकार के इस प्रयास से ब्रिटिशकालीन ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने का अवसर प्राप्त होगा। ये धर्मशालाएं तत्कालीन शासन में कैलाश मानसरोवर तक भारतीय पहुंच को प्रमाणित करती है। महान दानी जसुली देवी सौक्याणी ने 18वीं सदी में पूरे कुमाऊं भर कई धर्मशालाओं और पैदल रास्तों का निर्माण करवाया था। इनका संरक्षण जरूरी है। - कृष्णा गर्ब्याल, नंदन न्यास, एवं रं भाषा संरक्षक व लिपि विकास संस्था धारचूला।

अल्मोड़ा में 30, चंपावत में हैं तीन धर्मशालाएं

पिथौरागढ़। जसुली दताल ने 30 धर्मशालाएं अल्मोड़ा जिले में बनवाई, जबकि चंपावत जनपद में तीन धर्मशालाएं हैं। बागेश्वर जिले में कोई धर्मशाला नहीं मिली है। जसुली ने यह धर्मशालाएं मुख्य व्यापारिक और कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग पर बनवाई थीं। पिथौरागढ़ के लिए काठगोदाम से अल्मोड़ा होते हुए अधिक आवाजाही होती थी। सभी धर्मशालाएं पुराने पैदल मार्ग के किनारे स्थित हैं।

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