उत्तराखंड में वन- सम्पदा(Forest wealth in Uttarakhand)
उत्तराखण्ड में वनों की भौगोलिक स्थिति
उत्तराखण्ड राज्य में वन क्षेत्र का प्रबंधन निम्नवत है जिसमे सर्वार्धिक वन क्षेत्र वन -विभाग के अधिकार क्षेत्र में है -
सुरक्षित वन-64.6%
सिविल-सोयम वन-26.2%
पंचायती वन- 8.4%
शेष वन क्षेत्र, व्यक्तिगत , नगर क्षेत्रों तथा कैंटोनमेंट बोर्ड के अधीन है।
- उत्तराखण्ड में सम्पूर्ण भौगोलिक क्षेत्र के कितने प्रतिशत भाग पर अभिलिखित वन क्षेत्र है। 71.5%
- उत्तराखण्ड में वनों के प्रबन्धन एवं वन उत्पादों का उपयोग करने का अधिकार है वन पंचायत व्यवस्था को
- इण्डिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2017 के अनुसार, राज्य में 53,483 क्षेत्र के कितने वर्ग किमी में वन क्षेत्र स्थित है? 24303.04 वर्ग किमी
- इण्डिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2017 के अनुसार राज्य में सर्वाधिक एवं न्यूनतम वन क्षेत्र वाले जिले हैं पौड़ी गढ़वाल एवं ऊधमसिंह नगर
- उत्तराखण्ड में सर्वाधिक वन भूमि की घाटियाँ हैं टाँस, कोसी तथा यमुना नदी घाटियाँ
उत्तराखण्ड में वनो की स्थिति
- जिला भौगोलिक क्षेत्रफल(वर्ग किमी ) कुल वन
- अल्मोड़ा 3144 1719.14
- बागेश्वर 2241 1262.69
- चमोली 8030 2709.43
- चम्पावत 1766 1225.55
- देहरादून 3088 1608.69
- पौड़ी ग० 5329 3394.99
- हरिद्वार 2360 585.25
- नैनीताल 4251 3041.56
- पिथौरागढ़ 7090 2079.80
- रुद्रप्रयाग 1984 1142.17
- टिहरी ग० 3642 2065.98
- उ०नगर 2542 30431.79
- उत्तरकाशी 8016 3036.00
वनों के प्रकार
- उत्तराखण्ड में आर्थिक दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण वन हैं उपोष्ण कटिबन्धीय वन
- उपोष्ण कटिबन्धीय वन में उगने वाले प्रमुख वृक्ष हैं साल, शीशम, सेमल, हल्दू, जामुन एवं खैर
- उत्तराखण्ड में 1,500 मी से कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाने वाले वन हैं उष्णकटिबन्धीय शुष्क वन
- उष्णकटिबन्धीय वन पाए जाते हैं कम वर्षा वाले क्षेत्रों में
- उष्णकटिबन्धीय वनों में पाई जाने वाली प्रमुख प्रजातियाँ हैं बाक, सेमल, गूलर, जामुन एवं बेर
- उष्णकटिबन्धीय आर्द्र पतझड़ वनों को कहा जाता है मानसूनी वन
- मानसूनी वनों की प्रमुख विशेषता है किसी एक मौसम में पत्तियाँ गिराना
- 8601 कटिबन्धीय आर्द्र पतझड़ वन पाए जाते हैं 1500 मी. की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में
- उत्तराखण्ड की दून घाटी एवं शिवालिक श्रेणियों में पाए जाने वाले वन हैं उष्णकटिबन्धीय आर्द्र पतझड़ वन
- उष्णकटिबन्ध तथा शीतोष्ण कटिबन्ध के बीच वन हैं कोणधारी वन
- उत्तराखण्ड में 900 से 1,800 मी. की ऊंचाई पर पाए जाने वाले वन हैं कोणधारी वन
- कोणधारी वन का प्रमुख वृक्ष है चीड़
- उत्तराखण्ड में 700 मी. से कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाने वाले वन हैं पर्वतीय शीतोष्ण वन
- पर्वतीय शीतोष्ण वनों में पाए जाने वाले प्रमुख वृक्ष हैं स्यूस, बाँज, सिल्वर फर एवं साइप्रस
- उत्तराखण्ड में उप-अल्पाइन वनों का विस्तार है 2,700 मी. से ऊंचाई पर
- प्रमुख वृक्ष ब्लू पाइन, सिल्वर फर, बर्च आदि पाए जाते हैं उप-अल्पाइन वनों में
- उत्तराखण्ड में 3,000 से 3,600 मी. या इससे अधिक ऊँचाई पर पाई जाने वाली वनस्पति है अल्याइन
- अल्पाइन वनस्पति के उदाहरण हैं जूनिफर एवं विलो
- उत्तराखण्ड में मिलने वाली अल्पाइन झाड़ियाँ हैं तुंगला, किलमोड़ा, सकीना, हिंसालू एवं चिंगारु
- शीतोष्ण कटिबन्धीय वृक्ष हैं बाँज
- सम्पूर्ण विश्व में बाँज वृक्ष की कितनी प्रजातियाँ पाई जाती हैं? 10
- उत्तराखण्ड में बाँज की पाई जाने वाली पाँच प्रजातियाँ हैं सफेद, हरा, भूरा, फल्योंट एवं रियाज
- किस वृक्ष को इसकी उपयोगिता के कारण 'उत्तराखण्ड का सोना कहा जाता है? बाँज वृक्ष को
उत्तराखण्ड में प्रमुख घास के मैदान एवं अल्पाइन पहाड़ियाँ
हिम-रेखा से नीचे 3500 मीटर से 6000 मीटर ऊँचाई के मध्य, कोमल घास की ढलानें में 'बुग्याल' कहलाती हैं।
- उत्तराखण्ड में 3,800 से 4,200 मी. की ऊँचाई वाले क्षेत्र होते हैं वृक्षविहीन
- उत्तराखण्ड के वृक्षविहीन क्षेत्रों में छोटी-छोटी घास उगती हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में कहा जाता हैबुग्याल अथवा पंयार
- उत्तराखण्ड में अधिक ऊँचाई पर स्थित घास के मैदानों का अन्य नाम है मीडो एवं अल्पाइन पाश्चर
- क्षेत्रफल की दृष्टि से उत्तराखण्ड का सबसे बड़ा बुग्याल है बेदनी (चमोली)
- केदारकण्था, मानेग, हर की दून, सोनगाड़, कुश कल्याण एवं दयारा बुग्याल क्षेत्र स्थित हैं उत्तरकाशी में
- उत्तराखण्ड के चमोली जनपद में स्थित प्रमुख बुग्याल हैं औली, सतोपन्थ, चित्रकण्ठा, कुआँरी, बुगजी एवं कल्पनाथ
- कफनी बुग्याल स्थित है बागेश्वर में
- टिहरी जनपद में स्थित बुग्याल है खतलिंग, खारसोली एवं जौराई
- वर्मी, मदमहेश्वर, चोपता बुग्याल स्थित है रुद्रप्रयाग में
यहाँ नीचे उत्तराखण्ड के कुछ प्रमुख बुग्याल दिए हैं -
बुग्याल स्थान जनपद
बेदनी बुग्याल रूपकुंड मार्ग पर चमोली
गोरसों औली के ऊपर चमोली
औली जोशीमठ के ऊपर चमोली
पांडूसेरा क्वारी पास विरही के समीप चमोली
रुद्रनाथ गोपेश्वर से ऊपर चमोली
नंदनकानन फूलों की घाटी के ऊपर चमोली
सतोपंथ माणा के ऊपर चमोली
लक्ष्मी वन माणा के ऊपर चमोली
कैला बुग्याल बद्रीनाथ के चारों ओर चमोली
हर की दून टांस के उद्गम के ऊपर उत्तरकाशी
वर्मी बुग्याल रुद्रनाथ के निकट रुद्रप्रयाग
राज खर्क पवाली कांठा के ऊपर चमोली
देव दामिनी यमुनोत्री के समीप उत्तरकाशी
दुधातोली चमोली व पौड़ी के मध्य टिहरी
भेटी बुग्याल घाट के ऊपर चमोली
केदार खर्क गंगोत्री के निकट उत्तरकाशी
खादू खर्क वसुधारा के निकट चमोली
लाता खर्क तपोवन से लाता गांव के ऊपर चमोली
डांग खर्क तपोवन के ऊपर चमोली
कोरा खर्क निति से आगे चमोली
होलिया बुग्याल वसुधारा के ऊपर चमोली
जली सेरा बड़गांव तपोवन के ऊपर चमोली
नंदा देवी पश्चिमी 7817मीटर चमोली
कामेट 7756मीटर चमोली
त्रिशूल 7120मीटर चमोली
पूर्णागिरि 7066मीटर चमोली
नीलकंठ 6597मीटर चमोली
बद्रीनाथ 7140मीटर चमोली
स्वर्गारोहिणी पूर्वी 6252मीटर चमोली उत्तरकाशी
माना पर्वत 7273 मीटर चमोली
सतोपंथ 7084 मीटर चमोली
गंधमादन 6984 मीटर चमोली
नारायण पर्वत 5965 मीटर चमोली
हाथी पर्वत 6727 मीटर चमोली
गौरी पर्वत 550 मीटर चमोली
पंचाचुली 6904 मीटर चमोली,पिथौरागढ़
नंदा देवी पूर्वी 7434 मीटर चमोली पिथौरागढ़
तुंगनाथ चंद्रशिला 3690 मीटर चमोली
केदारनाथ 6968मीटर चमोली,उत्तरकाशी
केदार कांठा 3813 मीटर उत्तरकाशी
देवस्थान 6678 मीटर चमोली
यमुनोत्री 640 मीटर उत्तरकाशी
भागीरथी पर्वत 6856 मीटर उत्तरकाशी
श्रीकण्ठ 6728 मीटर उत्तरकाशी
गंगोत्री 6674 मीटर उत्तरकाशी
उत्तराखण्ड के प्रमुख औषधीय पौधे
- वर्ष 1972 में उत्तराखण्ड में जड़ी-बूटियों के संग्रह का कार्य सर्वप्रथम प्रारम्भ किया गया था सहकारिता विभाग द्वारा
- उत्तराखण्ड में जूड़ी-बूटी क्लस्टर स्थापित किया गया है मोहनरी व देघाट ( अल्मोड़ा), पौड़ी एवं जोशीमठ में
- उत्तराखण्ड में औषधियों के संरक्षण एवं विकास हेतु गठन किया गया है औषधीय पादप बोर्ड का
- हिमालय क्षेत्र के सम्पूर्ण शीतोष्ण भाग में पाया जाने वाला पौधा है भीमल
- भीमल पौधे की कोमल शाखाओं का प्रयोग किया जाता है हर्बल शैम्पू बनाने में
- वन्यजीव अधिनियम की प्रथम श्रेणी में रखा जाने वाला पौधा है किलमोड़ा
- किलमोड़ा पौधे के रस से निकाले जाने वाले विशेष पदार्थ हैं बरबेरिन हाइड्रोक्लोराइड तथा रसोद
- किलमोड़ा पौधे का मुख्यतः प्रयोग किया जाता है- नेत्र सम्बन्धित उपचार में
- बिच्छू घास (कण्डाली) मूल रूप से है यूरोपीय पौधा
- हिमालय क्षेत्र के स्थानीय लोग बिच्छू घास का प्रयोग करते हैं सब्जी एवं पशु चार चारे के रूप में
- बिच्छू घास विशेष रूप से उपयोगी है एनीमिया रोग में
- किस पौधे की जड़ों द्वारा मिट्टी में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण किया जाता है? अमेश
- अमेश के फल का प्रयोग किसके विकल्प के रूप में किया जाता है टमाटर के
- उत्तराखण्ड की स्थानीय भोटिया जनजाति किस पौधे के फलों से प्राप्त होने वाले खाद्य तेल का उपयोग करती है? भैकल
- सौन्दर्य प्रसाधन, साबुन एवं मोमबत्ती आदि उद्योगों में प्रयोग किया जाता है जैट्रोफा (रतनजोत) का
- जैट्रोफा विशेष रूप से सहायक है भूमि सुधार एव भूमि कटाव रोकने में
- वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर प्रकृति में उपलब्य किस पौधों के वीजों को तेल ईंधन के सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प के रूप में देखा जा रहा है? जैट्रोफा (रतनजोत)
- उत्तराखण्ड में जैट्रोफा कर्कस सामान्यत: पाए जाते हैं गर्म क्षेत्रों एवं घाटी क्षेत्रों में
- एक सुगन्धित पौधा है जिरेनियम
- जिरेनियम का उपयोग किया जाता है खाद्य पदार्थो, साबुन, फेसवॉश एवं क्रीम बनाने में
- हिमालयी क्षेत्र में 7,000 फीट की ऊंचाई पर पाया जाने वाला पौधा है ममीरा (पीली जड़ी)
- नेन उपचार में प्रयुक्त किस पौधे की जड़ें पीले रंग की होती हैं? ममीरा की
- बुद्धिवर्द्धक एव बलवईक वनस्पति औषधि है ब्राह्मी
- ब्राह्मी अत्यधिक मात्रा में पाई जाती है हरिद्वार में
- वर्ष 1903 में उत्तराखण्ड में बैलाडोना की कृषि की शुरुआत की गई थी कुमाऊँ क्षेत्र में
- बैलाडोना औषधीय पौधे का प्रयोग किया जाता है दांत एवं सिर दर्द तथा मूत्राशय सम्बन्धित रोग उपचार में
उत्तराखण्ड के प्रमुख औषधीय शोध संस्थान
- भारतीय वन अनुसंधान संस्थान स्थित है देहरादून में
- जी.बी. पन्त हिमालय पर्यावरणीय एवं विकास संस्थान की स्थापना की गई है कटारमल (अल्मोड़ा)
- पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर में स्थित प्रमुख संस्थान है उच्चस्थलीय पौध शोध संस्थान
- जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान स्थित है गोपेश्वर (चमोली में)
- रसायन विभाग एवं वानस्पतिक विभाग (कुमाऊँ विश्वविद्यालय) स्थित है नैनीताल में
- श्रीनगर में स्थित राज्य का प्रमुख संस्थान है रसायन विभाग एवं वनस्पति विभाग (गढ़वाल विश्वविद्यालय)
उत्तराखण्ड में वन संरक्षण सम्बन्धी जन-आन्दोलन
- वर्ष 1980 में नए वन कानून को समाप्त करने हेतु टिहरी रियासत के विरुद्ध किया गया आन्दोलन है रवाई आन्दोलन
- रवाई आन्दोलन का अन्य नाम है तिलाड़ी आन्दोलन
- रवाई आन्दोलन से सम्बन्धित किस तिथि को शहीद दिवस मनाया जाता है? 30 मई को
- वर्ष 1974 में वनों के कटाई के विरुद्ध गोपेश्वर (चमोली) में होने वाला आन्दोलन था चिपको आन्दोलन
- चिपको आन्दोलन का सूत्रपात किसने किया था? गौरा देवी ने
- चिपको आन्दोलन का प्रारम्भिक नारा था हिम पुत्रियों की ललकार, वन नीति बदले सरकार
- चिपको आन्दोलन का विस्तार किसके नेतृत्व में हुआ? सुन्दरलाल बहुगुणा एवं चण्डीप्रसाद भट्ट के
- सुन्दरलाल बहुगुणा ने चिपको आन्दोलन में नारा दिया था हिमालय बचाओ देश बचाओ'
- चिपको आन्दोलन के लिए वर्ष 1981 में रैमन मैग्सेस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था चण्डीप्रसाद भट्ट को
- राज्य स्तर पर वनों की नीलामी के विरोध में आन्दोलन किया गया था वर्ष 1977 में
- किस वर्ष प्रथम बार सम्पूर्ण उत्तराखण्ड बन्द हुआ था वर्ष 1977 में
- बाँज वृक्ष के जंगलों की कटाई के विरोध में किया जाने वाला आन्दोलन है डगी-पतोली आन्दोलन
- डूंगी-पैंतोली आन्दोलन किया गया था चमोली में
- वर्ष 1980 में पौड़ी के उफरैखाल गाँव में पानी की कमी को दूर करने हेतु चलाया गया आन्दोलन था पाणी-राखो आन्दोलन
- पाणी-राखो आन्दोलन किसके नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ था? सचिदानन्द भारती के
- सचिदानन्द भारती ने किस संस्थान की स्थापना कर वनों की कटाई पर रोक लगाई थी? दूधातोली लोक विकास संस्थान की
- वृक्षों की कटाई के विरुद्ध टिहरी के भिलंगना क्षेत्र में चलाया गया आन्दोलन था रक्षा सूत्र आन्दोलन
- रक्षा सूत्र आन्दोलन का प्रारम्भ हुआ था वर्ष 1994 में
- वृक्षों की रक्षा हेतु वृक्षों पर रक्षा सूत्र बाँधा गया था रक्षा सूत्र आन्दोलन के अन्तर्गत
- वर्ष 1996 में गढ़वाल क्षेत्र में कल्याण सिंह रावत के द्वारा चलाया गया आन्दोलन था मैत्री आन्दोलन
- मैत्री आन्दोलन के अन्तर्गत विवाह समारोह में पौधा रोपण किया जाता है वर-वधू द्वारा
- वनों पर परम्परागत अधिकार पुनः प्राप्त करने तथा नन्दा देवी राष्ट्रीय पार्क का प्रबन्धन ग्रामीणों को सौंपने की मांग से सम्बन्धित आन्दोलन है झपटो छीनो आन्दोलन
- झपटो छीनो आन्दोलन प्रारम्भ हुआ था 21 जून, 1998 में
वन सम्बन्धी योजनाएं/कार्यक्रम
- मिश्रित वन खेती मॉडल तैयार किया गया है जगत सिंह चौधरी जंगली के द्वारा
- जगत सिंह चौधरी सम्बन्धित है रुद्रप्रयाग (उत्तराखण्ड) से
- पर्यावरण संरक्षण एवं पारिस्थितिकी सन्तुलन की दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण मॉडल है मिश्रित वन खेती मॉडल
- गाँवों को वनों से जोड़ने हेतु प्रारम्भ की गई योजना है अपना गाँव अपनी वन योजना
- राज्य में वनों की वृद्धि एवं संरक्षण हेतु गठित फोर्स है इको टास्क फोर्स
- इको टास्क फोर्स का गठन किया गया था वर्ष 2008-09 में
वनौषधियों पर आधारित शोध - कार्यरत योजनाएं
संस्थान स्थान
- इंडियन ड्रग्स एण्ड फार्मास्युटिकल्स लि. ऋषिकेश (देहरादून)
- इंडियन मेडिसन फार्मास्युटिकल्स लि. मोहान (अल्मोड़ा)
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद फॉर ड्रग रिसर्च ताड़ीखेत (अल्मोड़ा)
- कोऑपरेटिव ड्रग फैक्ट्री कुमाऊँ मंडल विकास निगम रानीखेत (अल्मोड़ा),नैनीताल
- गढ़वाल मंडल विकास निगम पौड़ी गढ़वाल
जड़ी-बूटी और औषधीय क्षेत्र में शोध एवं विकास से सम्बन्धित राज्य में निम्न संस्थाएँ हैं-
शोध संस्थान स्थान
- उच्चस्थलीय पौध शोध संस्थान श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल)
- जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान गोपेश्वर (चमोली)
विकास संस्थान स्थान
- औषधीय एवं सुगंधित पौध संस्थान (सीमैप) पंतनगर
- रसायन विभाग एवं वानस्पतिक विभाग (कुमाऊँ विश्वविद्यालय) नैनीताल
- रसायन विभाग एवं वानस्पतिक विभाग (गढ़वाल विश्वविद्यालय) श्रीनगर
- वन अनुसंधान संस्थान देहरादून
- जी०बी० पंत हिमालय पर्यावरणीय एवं विकास संस्थान (अल्मोडा) कटारमल कासा
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