उत्तराखंड के धार्मिक स्थल (Religious Places in Uttarakhand).PNG)
प्रमुख दर्शनीय स्थल
उत्तराखण्ड के चार धाम
केदारनाथ
केदारनाथ मंदिर समुद्र तल से 3553 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है यहां से भैरव मंदिर आदि शंकराचार्य की समाधि और गांधी सरोवर को देखा जा सकता है यहां वासुकी ताल भी स्थित है यह स्थान भगवान शिव का निवास स्थान है। यहाँ महाभारत युद्ध के बाद पाण्डवो ने अपने सम्बन्धियों की मृत्यु का प्रायश्चित किया था। दिसम्बर से मार्च तक यह क्षेत्र बर्फ से थका रहता है।
- केदारनाथ मंदिर इस मंदिर की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने आठवीं सदी में की थी किंतु मंदिर का नवनिर्माण कत्यूरी राजाओं द्वारा 11वीं 12वीं शताब्दी में कराए जाने का अनुमान है।
- शंकराचार्य की समाधि इनकी समाधि केदारनाथ मंदिर के पीछे है कहां जाता है कहां जाता है भारत में चार धाम स्थापित करने के पश्चात आदि गुरु शंकराचार्य 32 वर्ष की अवस्था में यहां समाधि स्थल हो गए थे।
- महाशिला केदारनाथ से लगभग 6 किलोमीटर दूरी पर ईशान कोण में एक महाशिला मापन थे जिसे भैरों झाप भी कहा जाता है माना जाता है कि इस स्थान पर अनेक यात्री स्वर्ग लोक की कामना में प्राण त्याग करते थे ब्रिटिश काल में यह प्रथा बंद कर दी गई।
- शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है केदारनाथ
- केदारनाथ मन्दिर स्थित है रुद्रप्रयाग जिले में
- केदारनाथ मन्दिर का निर्माण किया गया है कत्यूरी शैली में
- प्रतिकूल जलवायु के कारण केदारनाथ मन्दिर दर्शनार्थ हेतु खुला रहता है केवल अप्रैलनवम्बर माह तक
- केदारनाथ के लिए गौरीकुण्ड से कितने किलोमीटर की ट्रैकिंग करनी पड़ती है? 14 किमी की
बद्रीनाथ
3300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बद्रीनाथ भगवान विष्णु को समर्पित है। कहा जाता है कि भगवान बद्री विशाल की मूल मूर्ति को बौद्धों ने नारद कुंड में फेंक दिया था 9 वीं सदी मैं आदि गुरु शंकराचार्य ने मूर्ति को नारदकुंड से निकालकर मंदिर में प्रतिस्थापित किया था। पुराणों के अनुसार यहां नारद मुनि ने तब किया था अतः इस स्थान को नारद पूरी भी कहते हैं मंदिर के कपाट अप्रैल महीने खुलते हैं तथा नवंबर में बंद हो जाते हैं।
प्रमुख दर्शनीय स्थल
- पंचधारा प्रह्लादधारा, कूर्मधारा, उर्वशीधारा, भृगुधारा तथा वसुधारा।
- पंचशिला नारदशिला, वाराहशिला, गरुड़शिला, मार्कंडेयशिला तथा नृसिंहशिला।
- कुण्ड तप्तकुण्ड, नारदकुण्ड, सत्यपथकुण्ड, भिकोणकुण्ड तथा मानुषीकुण्ड।
- मातामूर्ति का मंदिर माणा गाँव (बद्रीनाथ मंदिर से 3 कि.मी. आगे)
- चारों धामों में सबसे महत्वपूर्ण धाम है बद्रीनाथ
- बद्रीनाथ धाम स्थित है चमोली जनपद में
- प्रत्येक वर्ष किस माह में काले शालीग्राम से निर्मित बद्रीनारायण की मूर्ति ज्योतिर्मठ ले जायी जाती है? नवम्बर माह में
- भगवान बद्रीनाथ को पुराणों में कहा गया है मुक्तिदाता
- भगवान बद्रीनाथ के प्रमुख नाम हैं योग सिद्धा, बद्रीवन एवं विशाला
- बद्रीनाथ धाम के पुजारियों को कहा जाता है रावल
- रावल वंशज माने जाते हैं आदि शंकराचार्य के
गंगोत्री
गंगोत्री समुद्र तल से इसकी लगभग ऊंचाई 34,15 मीटर है उत्तरकाशी से 97 किलोमीटर की दूरी पर गंगोत्री मंदिर स्थापित है 1803 के भूकंप के बाद क्षतिग्रस्त हो जाने पर गोरखा सेनानी अमर सिंह थापा ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था तथा बाद में महाराजा जय बहादुर ने इसको वर्तमान स्वरूप प्रदान किया। मान्यता अनुसार सगर के वंशज महाराज भागीरथ ने तपस्या करके धरती पर गंगा जी को धरती पर लाने के लिए यहां तप किया था।
प्रमुख दर्शनीय स्थल
गंगोत्री मंदिर के बंधती के अनुसार यहां राजा भगीरथ ने मंदिर के निकट पवित्र पत्थर पर भगवान की पूजा की थी माना जाता है इसी स्थान पर माता गंगा पृथ्वी पर सर्वप्रथम उतरी थी।
डूबा हुआ शिवलिंग इसी प्राकृतिक चट्टान पर भगवान से बैठे हुए थे और गंगा को अपनी उलझी हुए केश राशि में उतार दिया था।
गोमुख मध्यहिमालय का सबसे महत्वपूर्ण हिमनद जो गंगोत्री से आगे 18 किलोमीटर दूर गोमुख है जो भागीरथी का उद्गम स्थल है।
नंदन वन यह तपोवन गोमुख से 6 किलोमीटर आगे स्थित है। यहाँ से शिवलिंग छोटी पर शिवलिंग दिखाई पड़ता हैं, जो गोमुख हिमनद के ऊपर स्थित है।
- गंगा नदी का उद्गम स्थल है गंगोत्री
- समुद्रतल से गंगोत्री मन्दिर की लगभग ऊँचाई है 34,15मी.
- गंगोत्री मन्दिर के कपाट किस दिन बन्द होते हैं? दीपावली के दिन
- 18वीं शताब्दी में गंगोत्री मन्दिर का निर्माण करवाया था गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने
यमुनोत्री
यमुनोत्री धाम सिंधुताई से समुद्र तल से 3235 मीटर की ऊंचाई पर उत्तरकाशी जनपद में स्थित है मान्यता अनुसार यमुना यमराज की बहन व सूर्य भगवान की बेटी और भगवान श्री कृष्ण की 8 पटरानियों में कालींदा के नाम से प्रसिद्ध थी। यहां मंदिर के पास जल का स्रोत भी है जिसमे दाल और चावल कपड़े की पोटली में बांधकर पकाया जा सकता है।
प्रमुख दर्शनीय स्थल
यमुना देवी मंदिरजयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं शताब्दी में इसे बनाया था इसी शादी में यह दो बार दोस्त हुआ और पुणे इसका जीर्णोद्धार कराया गया यह नवंबर से अप्रैल तक बंद रहता है।
सूर्य कुंडयमुनोत्री मंदिर के पास गर्म जल का प्रमुख स्रोत है।
दिव्य शिला मंदिर में जाने से पहले इस पाषाण शिला की पूजा की जाती है इसलिए इसे दिव्य शिला कहा जाता है।
- यमुना नदी का उद्गम स्थल है यमुनोत्री
- यमुना जी का मन्दिर स्थित है उत्तरकाशी में
- यमुनोत्री में स्थित गर्म पानी का कुण्ड है सूर्यकुण्ड
- मन्दिर के प्रांगण में स्थित विशाल शिला स्तम्भ का नाम है दिव्य शिला
- वर्ष 1919 में यमुनोत्री मन्दिर का निर्माण करवाया था गढ़वाल नरेश प्रताप शाह ने
उत्तराखण्ड के पंच बद्री
श्री बद्रीनाथ मन्दिर
- पुराणों में वर्णित सर्वश्रेष्ठ भूमि है बद्रीकाश्रम
- श्री बद्रीनाथ मन्दिर किस पर्वत शिखर के मध्य स्थित है? नारायण पर्वत शिखर
- श्री बद्रीनाथ मन्दिर किस नदी के किनारे है? अलकनन्दा नदी
- गर्म पानी के चश्मे (स्रोत) स्थित है चमोली में
श्री आदि बद्री मन्दिर
- श्री आदि बद्री मन्दिर स्थित हैपौखुटिया रानीखेत मार्ग पर
- श्री आदि बद्री मन्दिर की मूर्ति है श्यामवर्ण शिला ( पवित्र शालीग्राम पत्थर) वृद्ध बद्री मन्दिर
- पंच बद्री में प्रथम बद्री है वृद्ध बद्री
- श्री लक्ष्मीनारायण की प्राचीन मूर्ति है वृद्ध बद्री मन्दिर
- वृद्ध बद्री मन्दिर स्थित है आनीमठ में
- वृद्ध बद्री मन्दिर के संस्थापक हैं शंकराचार्य
योगध्यान बद्री मन्दिर
- योगध्यान बद्री मन्दिर स्थित है पाण्डुकेश्वर में
- योगध्यान बद्री मन्दिर कितनी ऊँचाई पर है? 1,5000 फीट पर
- पाण्डवों की जन्मस्थली मानी जाती है पाण्डुशिला को
भविष्य बद्री मन्दिर
- किस मन्दिर में भगवान बद्री की आधी आकृति की मूर्ति है? भविष्य बद्री मन्दिर में
- भविष्य बद्री मन्दिर स्थित है जोशीमठमलारी मार्ग पर
उत्तराखण्ड के पंचकेदार
केदारनाथ मंदिर
- समुद्र तल से 3581 मी की ऊँचाई पर पाण्डवों द्वारा स्थापित मन्दिर है श्री केदारनाथ मन्दिर
- प्राचीन मान्यताओं के अनुसार श्री केदारनाथ मन्दिर के पश्चात् दर्शन किए जाते हैं श्री बद्रीनाथ के
- केदारनाथ में भगवान शिव के किस भाग की पूजा होती है? पृष्ठ भाग की
कल्पेश्वर मन्दिर
- भगवान शिव की जटाओं की पूजा-अर्चना की जाती है कल्पेश्वर मन्दिर में
- कल्पेश्वर मन्दिर स्थित है चमोली में
- कल्पेश्वर मन्दिर का प्रवेश मार्ग है गुफा द्वार
मदमहेश्वर महादेव मन्दिर
- किस मन्दिर को द्वितीय केदार की संज्ञा दी गई है? मदमहेश्वर महादेव मन्दिर को
- मदमहेश्वर महादेव मन्दिर स्थित है रुद्रप्रयाग में
- मदमहेश्वर मन्दिर में भगवान शिव के किस भाग की पूजा होती है? नाभि की
रुद्रनाथ मन्दिर
- रुद्रनाथ मन्दिर में भगवान शिव की पूजा किस रूप में की जाती है? नीलकण्ठ (मुँह) रूप में
- रुद्रनाथ जी का मन्दिर स्थित है गंगोल गाँव में
- रुद्रनाथ मन्दिर क्षेत्र प्रसिद्ध है पित् तीर्थ नाम से
तुंगनाथ मन्दिर
- उत्तराखण्ड का सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित मन्दिर है तुगनाथ मन्दिर
- तुंगनाथ मन्दिर स्थित है चोपता से 5 किमी की दूरी पर
- तुंगनाथ मन्दिर में भगवान शिव के किस भाग की पूजा की जाती है? भुजाओं की
- रावण ने भगवान शिव की आराधना की थी रावण शिला में
- तुंगनाथ मन्दिर के गर्भगृह में स्थित प्रतिमा है शंकराचार्य की प्रस्तर प्रतिमा
उत्तराखण्ड के पंचप्रयाग
देवप्रयाग
- उत्तराखण्ड के पंचप्रयागों में प्रमुख प्रयाग है देवप्रयाग
- अलकनन्दा एवं भागीरथी नदियों का संगम होता है देवप्रयाग में
- देवप्रयाग में अलकनन्दा एवं भागीरथी नदियाँ मिलकर किस नाम से जानी जाती हैं? गंगा
- पौराणिक रघुनाथ मन्दिर स्थित है देवप्रयाग में
- रघुनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठापना की थी आदि शंकराचार्य ने
- देवप्रयाग स्थित है टिहरी में
- देवप्रयाग का वह मन्दिर जहाँ चैत्र एवं अश्विन में नवरात्र के समय विशेष पूजाअर्चना की जाती है चन्द्रबदनी मन्दिर
कर्णप्रयाग
- किस वर्ष आयी 'विरही की बाढ़ ने प्राचीन कर्णप्रयाग को बहा दिया था? वर्ष 1894 में
- कर्णप्रयाग प्रसिद्ध है कर्ण की तपस्थली के रूप में
- कर्णप्रयाग में कर्ण ने किस अराध्य की तपस्या की थी? सूर्य की
- कर्णप्रयाग में किन नदियों का संगम होता है? अलकनन्दा तथा पिण्डार का कर्णप्रयाग स्थित है चमोली जिले में
रुद्रप्रयाग
- ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग की दूरी है 139 किमी
- रुद्रप्रयाग में किन नदियों का संगम होता है? मन्दाकिनी एवं अलकनन्दा का
- केदारखण्ड पुराण में कोल पर्वत से लेकर मन्दाकिनी-अलकनन्दा संगम तक के क्षेत्र को कहा गया है रुद्र क्षेत्र
नन्दप्रयाग- समुद्रतल से 1358 मी. की ऊँचाई पर दशोली परगने की तल्ली दशोला पट्टी में स्थित प्रयाग है नन्दप्रयाग
- नन्दप्रयाग नदियों का संगम स्थल है अलकनन्दा एवं नन्दाकिनी का
- 1803-04 ई. में किस क्षेत्र में आए भूकम्प एवं बाढ़ ने नन्दप्रयाग के मूल रूप को बदल दिया था? गढ़वाल में
- प्राचीन समय में नन्दप्रयाग में विशेष रूप से किस वस्तु का व्यापार किया जाता था? सुहागा का
विष्णुप्रयाग
- जोशीमठ से बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित प्रयाग है विष्णुप्रयाग
- विष्णुप्रयाग में किन नदियों का संगम होता है? अलकनन्दा और विष्णुगंगा का
- विष्णु प्रयाग के विषय में लिखा गया है हिमालयन गजेटियर में किस पौराणिक ग्रंथ में वर्णित है कि विष्णुप्रयाग से ऊपर गन्धमादन क्षेत्र में अत्यन्त सुरम्य स्थल और सरोवर है महाभारत में
उत्तराखण्ड के पवित्र स्थल
- उत्तराखंड के कुछ प्रमुख पवित्र स्थलों का विवरण नीचे दिया गया है जो हमेशा से ही दर्शंकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहे हैं।
उखीमठ
- रुद्रप्रयाग जनपद में रुद्रप्रयाग केदारनाथ मार्ग पर सेंट्रल से 13 19 मीटर की ऊंचाई पर बसाया देवस्थान भगवान शंकर की शीतकालीन पूजा स्थली है।
गुप्तकाशी
- रुद्रप्रयाग जनपद में लगभग 14 50 मीटर की ऊंचाई पर स्थित तीर्थ है यहां पर विश्वनाथ मंदिर अर्धनारीश्वर मंदिर मणिकर्णिका कुंड मुख्य आकर्षण के केंद्र हैं।
अगस्त्यमुनि
- रुद्रप्रयाग से 18 किलोमीटर दूर गौरीकुंड मोटर मार्ग पर अगस्त्यमुनि नामक देवस्थल है जो मंदाकिनी नदी और जुगाड़ के संगम पर स्थित है यही अगस्त्येश्वर ऋषि मंदिर भी है।
तपोवन
- जोशीमठ से 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित तपोवन कोलाहल से दूर अत्यंत शांत स्थान है यह अपने उसमें जल स्रोतों के लिए प्रसिद्ध है स्थानीय निवासी इस स्थान को तातापानी भी कहते हैं
कालीमठ
- केदारनाथ मार्ग पर गुप्तकाशी से 2 किलोमीटर दूरी पर मस्तक चट्टी है जहां से सिद्ध पीठ कालीमठ को मार्ग जाता है 83 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह स्थान जगदंबा की सिद्ध पीठों में से एक है पूरे देश में इसी प्रकार के 108 फीट है।
त्रियुगीनारायण
- रुद्रप्रयाग से 70 किलोमीटर तथा कालीमठ से 50 किलोमीटर पर प्राचीन तीर्थ त्रियुगीनारायण है ऐसा विश्वास है कि यहीं पर भगवान शिव और सती पार्वती का विवाह भगवान विष्णु की उपस्थिति में संपन्न हुआ था यहां पर एक अमर ज्योति प्रज्वलित रहती है।
महासू मंदिर
- उत्तरकाशी से 150 किलोमीटर की दूरी पर हनोल महासू देवता का प्राचीन मंदिर है यहां प्रतिवर्ष भाद्रपद मास की अमावस्या को मेला लगता है।
लाखामंडल
- देहरादून नगर से 128 किलोमीटर दूर 11 मीटर की ऊंचाई पर पुरोला चकराता मार्ग पर यमुना तथा रिक्वायर्ड नदियों के संगम पर लाखामंडल नामक प्राचीन तीर्थ है या उत्तराखंड शैली का प्राचीन शिव मंदिर है।
ज्वालपा देवी
- ज्वालपा देवी का अति प्राचीन सिद्धपीठ पौड़ी कोटद्वार मोटर मार्ग पर पौड़ी से 33 किलोमीटर दूर न यार नदी की पश्चिमी धारा के दक्षिणी तट पर स्थित है मान्यता अनुसार सतयुग में स्थान पर जाते राजपूतों की कन्या सचिन ने देवराज इंद्र को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए क्षेत्र में देवी पार्वती की तपस्या की थी।
बिनसर
- बिनसर मंदिर देवदार के सघन वृक्षों से आच्छादित दो तरीके से संपन्न चित्र दुधाटोली के आंचल में विद्यमान है माना जाता है कि पांडव 1 वर्ष के अज्ञातवास में इस वन में आए थे और उन्होंने मात्र एक रात्रि में ही इस मंदिर का निर्माण किया था। इस भूमि पर राजमाता कर्णावती ने सवा लाख मुगलों की सेना को परास्त किया था।
जागेश्वर
- अल्मोड़ा पिथौरागढ़ मार्ग पर अट्ठारह 70 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस देवस्थल की अल्मोड़ा से दूरी 35 किलोमीटर है आदि शंकराचार्य ने यहां शक्ति पीठ की स्थापना की थी। उत्तराखंड स्थित चार धामों के साथ ही जागेश्वर पांचवा धाम कहा जाता है मान्यता अनुसार यहां भगवान शिव की तपस्थली है।
बागेश्वर
- अल्मोड़ा से 70 किलोमीटर गोमती सरयू और अदृश्य सरस्वती के संगम पर सिंधु तल से 960 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मार्कंडेय मुनि की तपोभूमि को कुमाऊ के जरिए कहा गया है प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है कि यहां पर मार्कंडेय ऋषि ने मंदिर का निर्माण कराया था और उसमें बागनाथ नाम से सेव की प्रतिमा स्थापित की थी।
सोमेश्वर
- अल्मोड़ा कौसानी मार्ग पर अल्मोड़ा से 40 किलोमीटर दूर स्थित इस मंदिर का निर्माण 720 ई उसके में चंद वंश के प्रथम राजा सोमचंद ने कराया था। यह धार्मिक स्थल महादेव मंदिर को समर्पित है।
द्वाराहाट
- मंदिर समूह अल्मोड़ा से 38 किलोमीटर दूर से 1530 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। कहां जाता है 11वीं तथा 12वीं सदी में ऐसे स्थान पर 30 प्राचीन मंदिरों तथा 365 गुंडों का निर्माण कराया गया था इन मंदिरों के कारण द्वारा को हिमालय के द्वारे का भी कहा जाता है।
बैजनाथ
- बागेश्वर जनपद में 11:00 26 मीटर की ऊंचाई पर अल्मोड़ा नगर से 71 किलोमीटर दूर बैजनाथ मंदिर गरोठ नामक स्थान पर स्थित है गोमती नदी के तट पर निर्मित यह मंदिर कत्यूरी राजाओं द्वारा 11 वीं सदी में बनवाया गया था यह धार्मिक स्थल माता पार्वती को समर्पित है।
पाताल भुवनेश्वर
- पिथौरागढ़ से 51 किलोमीटर तथा गंगोलीहाट से 14 किलोमीटर उत्तर में 13 50 मीटर की ऊंचाई पर पाताल भुनेश्वर भूमि के अंदर एक संकरी चट्टानी गुफा के अंदर स्थित है।
- यहां कई देवी-देवताओं का मूर्तियां हैं। यही पातालगंगा के अवर्णनीय दर्शन होते हैं।
चौखुटिया
- रानीखेत करणप्रयाग मार्ग पर शाम गंगा के तट पर स्थित चौखुटिया रानीखेत से 54 किलोमीटर दूर एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक माता का स्थान है यहां का काली मंदिर तथा वैष्णो देवी मंदिर स्थित है।
कटारमल सूर्य मंदिर
- अल्मोड़ा के दक्षिण पश्चिम में 15 किलोमीटर की दूरी पर कटारमल गांव में स्थित है 10 वीं सदी में राजा कटारमल देव द्वारा निर्मित हजार वर्ष पुराने बडादित्य सूर्य मंदिर के कारण यह स्थान प्रसिद्ध है। मंदिर में मुख्य प्रतिमा सूर्य की है।
गंगोलीहाट
- जनपद पिथौरागढ़ में अट्ठारह सौ मीटर की ऊंचाई पर बसा गंगोलीहाट हॉट महाकाली के मंदिर के कारण प्रसिद्ध है। यहां प्राचीन कालिका मंदिर दर्शनीय है।
रामेश्वर
- पिथौरागढ़ मैं सरयू रामगंगा के संगम पर रामेश्वर का पावन तीर्थ है यहीं से पिथौरागढ़ कैलाश जाने का घाट था। मान्यता अनुसार यहां भगवान राम ने शिवलिंग की स्थापना की थी।
तालेश्वर
- पिथौरागढ़ में काली गंगा नदी का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल ताली स्वर है जूनागढ़ से लगभग 5 किलोमीटर दूर पैदल मार्ग पर स्थित है यहां पर कटी पानी गाढ और काली नदी का संगम है।
- यहां मकर सक्रांति व महाशिवरात्रि के अवसर पर धार्मिक मेले का आयोजन होता है।
नानकमत्ता
- उधम सिंह नगर में खटीमा से 15 किलोमीटर दूर नानकमत्ता सिखों का प्रतीक तीर्थ है कहा जाता है कि सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह नया प्रवास किया था इस स्थान का प्राचीन नाम बक्शी था।
रीठा मीठा साहिब
- चंपावत में लोहाघाट देवीधुरा मार्ग पर सिखों का दूसरा पवित्र तीर्थ रीठा मीठा साहिब स्थित है नानकमत्ता प्रवास के बाद गुरु नानक देव हिमालय की यात्रा के अवसर पर यही रुके थे यहां पर वैशाख पूर्णिमा को गुरुद्वारे में विशाल मेला लगता है।
- हेमकुंड मध्य हिमालय की गोद में प्राकृतिक सुषमा से भरपूर विश्व विख्यात गंधमादन पर्वत पर शिखरों के मध्य हेमकुंड लोकपाल 4329 मीटर पर स्थित तीर्थ शिक्षकों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।
पिरान कलियर
- गंग नहर के किनारे रुड़की के समीप कलियार शरीफ की स्थित है इस स्थान पर हजरत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर की दरगाह तथा मजार है यह मुसलमानों का पवित्र स्थान है
उत्तराखण्ड में स्थित कुण्ड
- पवित्र कुण्ड स्थान
- सूर्यकुण्ड बदरीनाथ
- ऋषिकुण्ड (नारदकुण्ड) बदरीनाथ
- उर्वशीकुण्ड बदरीनाथ
- चन्द्रकुण्ड सत्यपथ 2 कि०मी०
- हेमकुण्ड लोकपाल
- अमृतकुण्ड निकट अत्रि गुफा, मण्डल
- बैराशकुण्ड नन्दप्रयाग से आगे
- ब्रह्मकुण्ड जहाँ से भागीरथी उत्तरगामी होती है।
- रुद्र कुण्ड केदारखण्ड
- इन्द्र कुण्ड केदारखण्ड
- वायु कुण्ड ब्रह्मकुण्ड के नीचे
- शिव कुण्ड देवप्रयाग में
- गण कुण्ड शिवकुण्ड के समीप
- गौरी कुण्ड केदारनाथ मार्ग पर
- पार्वती कुण्ड गौरीकुण्ड के समीप
- नन्दी कुण्ड पाण्डुसेरा, गोपेश्वर से मार्ग जाता है।
- हंस कुण्ड केदारनाथ
- रेतस कुण्ड केदारनाथ
- रम्भा कुण्ड रेतस कुण्ड के समीप
- उदक कुण्ड कदारनाथ
- अमृत कुण्ड तुगनाथ मन्दिर के नीचे चोपता के समीप
- ब्रह्म कुण्ड त्रियुगीनारायण
- रुद्र कुण्ड त्रियुगीनारायण
- सरस्वती कुण्ड त्रियुगीनारायण
- विष्णु कुण्ड नन्दप्रयाग तथा त्रियुगीनारायण
- भास्कर कुण्ड भास्कर क्षेत्र
- बेताल कुण्ड बेताल शिला के समीप
- सूर्य कुण्ड बेताल कुण्ड के समीप
- ब्रह्म कुण्ड नवालका नदी के तट पर
- सीता कुण्ड रामाश्रम
- राम कुण्ड सीता कुण्ड के समीप
- हनुमान कुण्ड राम कुण्ड के निकट
- धर्म कुण्ड नवालका नदी के तट पर
- ताराकुण्ड दूधातोली के समीप
- नाग कुण्ड टिहरी, लम्बगाँव के समीप
- शूल कुण्ड उत्तरकाशी, कोटेश्वर मन्दिर के समीप
- शिव कुण्ड नन्दप्रयाग गंगा के तट पर
- नल कुण्ड गुप्तकाशी के समीप गंगा के तट पर
उत्तराखण्ड के प्रमुख मंदिर
उत्तराखण्ड के कुछ प्रमुख मंदिरों का विवरण निम्नलिखित दिया गया है -
देवी मंदिर
नाम स्थान
- अनुसूया देवी मण्डल स5 कि०मी०
- बालानी देवी त्यूणी (चकराता) से 26 कि०मी०
- चम्पावती दुर्गा मन्दिर चंपावत
- चामुण्डा देवी गंगोत्तरी हाट से 2 कि०मी०
- चण्डी देवी हरिद्वार
- चण्डिका माई (सिमली) कर्णप्रयाग से 6 कि०मी०
- चन्द्रबदनी जामनीखाल से 7 कि०मी० रिटी
- धारी देवी श्रीनगर से 15 कि०मी०
- दूनागिरि मन्दिर द्वाराहाट से 13 कि०मी०
- दुर्गा मन्दिर कोटद्वार से 13 कि०मी०
- गर्जिया देवी रामनगर से 14 कि०मी०
- गौरा देवी (देवलगढ़) श्रीनगर-रुद्रप्रयाग मार्ग
- गौरा माई गौरीकुण्ड (रुद्रप्रयाग)
- हरियाली देवी नगरासू से 22 कि०मी०
- हथकाली मन्दिर पिथौरागढ़
- होकरा देवी बिरथी झरने से 3 कि०मी०
- ज्वाल्पा देवी पौड़ी से 36 कि०मी
- काली मन्दिर चौखुटिया
- कामाख्या देवी पिथौरागढ़ से 3 कि०मी०
- कालिंका मन्दिर गंगोलीहाट
- कसार देवी अल्मोड़ा से 7 कि०मी०
- कुन्जापुरी नरेन्द्रनगर से 13 कि०मी०
- महाकाली मन्दिर कालीमठ-गुप्तकाशी से 10 कि०मी० कर
- मनसादेवी हरिद्वार
- नैना देवी नैनीताल
- नन्दादेवी (नौटी) कर्णप्रयाग से 25 कि०मी०
- नन्दा देवी चौकोड़ी से 3 कि०मी०
- नवदुर्गा देवी नैना देवी जोशीमठ
- पूर्णागिरि माता टनकपुर
- पुश्ती माता जागेश्वर
- सन्तला देवी गढ़ी कैण्ट देहरादून
- श्रीकोट डीडीहाट
- स्याली देवी शीतलाखेत से 3 कि०मी०
- सुरकण्डा देवी मसूरी से 24 कि०मी०
- त्रिपुरा देवी अल्मोड़ा
- उमा देवी कर्णप्रयाग
- वैष्णो देवी चौखुटिया
- वैष्णो देवी दूनागिरि (द्वाराहाट) को
- वाराही देवी देवीधुरा
नाग मंदिर
नाम स्थान
- शेषनाग पाण्डुकेश्वर
- भीखनाग कीरत गाँव
- माँगल नाग कोतलारे
- बनया नाग कीमर गाँव
- पुष्कर नाग नागनाथ
- नाग देव पौड़ी
- लोदिया नाग नीती घाटी
- कालिंगा नाग रवाई
- सुटियाँ नाग टकनौर
- नागराजा सेम-मुखेम
- महासर नाग टकनौर
- हूँण नाग भदूरा
- नाग नाग ग्राम, टिहरी
- कर्माजीत नाग पिल्लू
शिव मंदिर
- अगस्तेश्वर महादेव अगस्त्यमुनि
- बैजनाथ कौसानी से 16 कि०मी०
- बाघनाथ बागेश्वर
- बालेश्वर मन्दिर चम्पावत
- बिनसर महादेव रानीखेत के निकट
- बूढ़ा केदार महासर ताल के निकट
- द्वाराहाट मन्दिर समूह द्वाराहाट
- जागेश्वर ज्योतिर्लिंग जागेश्वर
- कल्पेश्वर कल्पनाथ
- कमलेश्वर महादेव जरमोला से 2 कि०मी०
- कमलेश्वर महादेव श्रीनगर
- कपिलेश्वर महादेव पिथौरागढ़ से 3 कि०मी०
- केदारनाथ रुद्रप्रयाग जनपद
- कोटेश्वर महादेव रुद्रप्रयाग से 3 कि०मी०
- क्रान्तश्वर महादेव चम्पावत की पूर्व दिशा में
- मदमहेश्वर रुद्रप्रयाग जनपद
- मुक्तश्वर नैनीताल से 51 कि०मी०
- नीलकण्ठ महादेव लक्ष्मणझूला से 22 कि०मी०
- आकारेश्वर ऊखीमठ
- पचश्वर लोहाघाट से 37 कि०मी०
- पाताल भुवनेश्वर गंगोलीहाट से 13 कि०मी०
- रामश्वर घाट से 10 कि०मी०
- रुद्रनाथ मण्डल से 17 कि०मी०
- सल्ट महादेव अल्मोड़ा जनपद
- शिव (रुद्र) मन्दिर रुद्रप्रयाग
- शिव मन्दिर गोपेश्वर
- शिवलिंग तथा गुफा कोटद्वार से 3 कि०मी०
- सोमेश्वर कौसानी से 11 कि०मी०
- जलमग्न शिवलिंग गंगोत्तरी
- टपकेश्वर महादेव देहरादून
- त्रियुगी नारायण सोनप्रयाग से 14 कि०मी०
- तुंगनाथ चोपता से 4 कि०मी०
- बीरणेश्वर (शिव) मन्दिर बिनसर
- विश्वनाथ मन्दिर गुप्तकाशी
- विश्वनाथ मन्दिर उत्तरकाशी
- वृद्ध जागेश्वर (बडा जागेश्वर)
- नारायण मंदिर
- गोपाल मन्दिर काँडी चट्टी
- साक्षी गोपाल मन्दिर व्यासघाट के निकट
- श्री रघुनाथ मन्दिर देवप्रयाग
- विष्णु मन्दिर (ठाकुर द्वारा) विदाकोटी
- विष्णु मन्दिर शंकरमठ, बिल्वकेदार से 2 कि०मी० आर्ग
- विष्णु मन्दिर गैरोलामठ, श्रीनगर
- ठाकुरद्वारा कालीकमली के समीप, श्रीनगर
- वैष्णवी शिला धनुषक्षेत्र, श्रीयंत्र के पास
- परशुराम आश्रम विष्णु मन्दिर फरासू
- विष्णु मन्दिर शिवानन्दी रुद्रप्रयाग
- लक्ष्मी नारायण मन्दिर पुनाड़
- विष्णु मन्दिर पुष्कराश्रम नागनाथ
- गोपालजी मन्दिर हाटगाँव
- नारायण मन्दिर हाटगाँव
- नृसिंह मन्दिर पाखी
- ठाकुरद्वारा गुलाबकोटि
- वासुदेव मन्दिर जोशीमठ
- विष्णु मन्दिर विष्णु प्रयाग
- वासुदेव मन्दिर पाण्डुकेश्वर
- लक्ष्मीनारायण मन्दिर ठाकुरद्वारा, पौड़ी
- लक्ष्मी नारायण मन्दिर नारायण कोटि
- लक्ष्मी नारायण मन्दिर त्रियुगीनारायण
- श्रीरामचन्द्र मन्दिर भोट
- लक्ष्मी नारायण मन्दिर माली देवल
- नृसिंह मन्दिर नीलकंठ तीर्थ के पास
- नारायण मन्दिर नारायण बगड़
- नारायण मन्दिर सिमली
- विष्णु मन्दिर चन्द्रापुरी
- नारायण मन्दिर देवाल
- नारायण मन्दिर पिण्डवार
प्रमुख शक्तिपीठ
- उर्वशी (श्रीविद्या) बदरीनाथ
- नन्दादेवी कुरूड़, नौटी, देवलगढ़
- पर्णखण्डासना मैखण्डा
- ललिता नाला ग्राम
- काली कालीमठ
- शाकम्भरी त्रियुगीनारायण के पास
- गौरी गौरीकुण्ड
- सन्मार्गदायिनी केदारनाथ
- बगलामुखी विनायक खाल
- कामेश्वरी कामेश्वर पर्वत
- कूर्मासना मैठाणा
- इन्द्रासना कण्डाली ग्राम
- छिन्नमस्ता भणना ग्राम
- पवनेश्वरी योनिपर्वत
- अन्नपूर्णा उत्तरकाशी
- भुवनेश्वरी चन्द्रकूट पर्वत
- रमणा देवप्रयाग
- विकृताख्या मुन्नाखाल (चमराड़ा)
- रण मण्डना पावकी देवी
- सुन्दरीदेवी ब्रह्मपुरी
- कंसमर्दनी श्रीनगर
- चामुण्डा श्रीनगर
- राजेश्वरी रणिहाट
- काली कालीमठ, कालीशिला
- धारी देवी कालियासौड़
- हरियाली देवी हरियाली डाँडा
- ज्वाल्पा देवी ज्वालपाधाम
- सुरकण्डा देवी सुरकण्डा
- चन्द्रबदनी चन्द्रबदनी पर्वत
- उमा देवी कर्णप्रयाग
- दक्षिण काली दशमद्वार
- चण्डिका देवी सिमली
- राजराजेश्वरी कण्डारा
- महिषमर्दनी देवलगढ़
- गुह्येश्वरी पारखाल
- नन्द भद्रेश्वरी भवान ग्राम
- दीप्त ज्वालेश्वरी नवालका का तट
- सुरेश्वरी नीलकंठ का तट
- महत्कुमारिका नरेन्द्रनगर के पीछे
- अनगा ऋषिकेश
- मुण्डमालेश्वरी वीरभद्राश्रम
- मनसादेवी हरिद्वार
- माया देवी मायापुर, हरिद्वार
- काली मन्दिर सिल्ला (बेंजी)
- रति प्रिया चण्डीघाट, हरिद्वार
- चण्डीदेवी हरिद्वार
- गौरजा देवलगढ़ कनखल
- नन्दा भगवती लाता
- पार्वती (दुर्गा) देवस्थान
- अनसूया मंडल
- राकेश्वरी रांसी-गोंडार
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